बुधवार, 24 सितंबर 2025

Adolescence ड्रामा: कैसे सोशल मीडिया और विषाक्त मर्दानगी मानव अधिकारों के लिए खतरा बन रहे हैं ?

 
Adolescence ड्रामा की कहानी है एक 13-साल के किशोर जेमी मिलर की जिस पर उसकी सहपाठिनी की हत्या का आरोप लगता है। जांच में पता चलता है कि  इसके पीछे सोशल मीडिया पर उपलब्ध साइबरबुलिंग और “मैनोस्फीयर”  जैसे विचारो का उसके ऊपर प्रभाव है | पुलिस ,परिवार और मनोवैज्ञानिक आदि सब परेशान हैं कि कैसे एक सामान्य किशोर ऐसी स्तथि में पहुंचा - जो सामाजिक जागरूकता की कहानी बनती है |
Source:Netflix's Promotional Photo 
प्रस्तावना 

कल्पना कीजिये ---एक 13 वर्षीय किशोर, अपने स्कूल की एक सहपाठी छात्रा की ह्त्या के आरोप में फँस जाता है | 

उसका न कोई आपराधिक इतिहास है, न वह हिंसा से प्रेरित है और न वह आपराधिक मंसा रखता है | 

फिर अचानक यह जघन्य अपराध की कहानी घटित क्यों होती है ? इसके पीछे है उसका हर दिन फ़ोन की स्क्रीन पर स्क्रॉल करना, Manosphere जैसी परम्परागत सोच से प्रभावित होना | 

जिसे आज के सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर और हवा देकर आग में घी डालने का काम कर रहे हैं | 
सयुंक्त राष्ट्र महिला वेबसाइट के अनुसार ऑनलाइन स्त्री-द्वेष स्कूलों, कार्यस्थलों और अंतरंग संबंधों में भी अपनी जगह बना रहा है।

विश्व भर में  5.5 अरब से ज़्यादा लोग ऑनलाइन हैं – और 5.2 अरब से ज़्यादा लोग सोशल मीडिया पर भी  हैं  – 

Netflix की Adolescence सीरीज़ ने सिर्फ इतना दिखाया है कि कैसे सोशल मीडिया के algorithms प्रक्रिया से निर्मित होते  peer-pressure  और toxic masculinity ने किशोरों को वास्तव में कुछ ऐसा बना दिया है जिस पर समाज का ध्यान नहीं है
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डिजिटल स्पेस आम आदमी के लिए सीखने और डिजिटल संपर्क का केंद्र बिंदु बन गया है। 

एक ओर इंटरनेट के फायदे हैं, वहीं दूसरी ओर इसका उपयोग पारस्परिक नफ़रत, गाली-गलौज और स्त्री-द्वेष फैलाने के लिए भी किया जा रहा है।

हर दिन ऑनलाइन मान्यता की तलाश में खुद को  स्थापित करने की कोशिश करना है | 

Netflix की Adolescence सीरीज़ ने सिर्फ इतना दिखाया है कि कैसे सोशल मीडिया के algorithms प्रक्रिया से निर्मित होते  peer-pressure  और toxic masculinity ने किशोरों को वास्तव में कुछ ऐसा बना दिया है जिस पर समाज का ध्यान नहीं है तथा समाज ने आंख बंद कर रखी हैं | 
यह कहानी सिर्फ ब्रिटेन
 की कहानी नहीं है—ये दुनियाभर के किसी भी घर की कहानी हो सकती है। यदि हम समय रहते न जागे तो ये सोशल मीडिया और उससे उपजे दबाव मानव अधिकारों को और गहरा घाव पहुंचा सकते हैं।

मैनोस्फीयर (Manosphere) क्या है ?

"मैनोस्फीयर" (Manosphere) उन ऑनलाइन समुदायों के लिए एक व्यापक शब्द है, जो नारीवाद और लैंगिक समानता के विरोधी हैं तथा विषाक्त मर्दानगी (toxic masculinity) के विचार को प्रोत्साहित करते हैं |  "मैनोस्फीयर" डिजिटल दुनिया में तेजी से अपनी जगह बना रहा है | 

न सिर्फ विकसित देशों में बल्कि भारत में भी मैनोस्फीयर अपना कुनबा तेजी से फैला रहे हैं | भारत में लगातार पुरुष आयोग की माँग करने वाले पुरुषों का समूह इसका एक अच्छा उदाहरण हो सकता है | यह समूह मानता है कि कानूनों के तहत महिलाओं द्वारा उनका बेइंतहा शोषण किया जा रहा है | 

सोशल इन्फ्लुएंसर द्वारा मैनोस्फीयर और  विषाक्त मर्दानगी जैसी विचारधारा को फैलाने के लिए सोशल मीडिया का दुरपयोग होता है
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एंड्रयू टेट जैसे अनेकों 'मैनोस्फीयर' इन्फ्लुएंसर'  हैं, जो दुनिया भर में युवा पुरुषों के लिए चरम पुरुषत्व  के प्रेरणा श्रोत माने जाते हैं | 
 
महिलाओं के प्रति ऑनलाइन बढ़ते लैंगिक भेदभाव के सम्बन्ध में सयुंक्त राष्ट्र महिला ने चिंता जाहिर की है कि "मैनोस्फीयर" इन्फ्लुएंसर्स समुदाय का ऑनलाइन बढ़ता नेटवर्क लैंगिक समानता के लिए एक गंभीर खतरा बनकर उभर रहा है|

एक खबर के अनुसार वर्ष 2022 में 'मैनोस्फीयर' इन्फ्लुएंसर' के रूप में सबसे ज़्यादा गूगल पर खोजे जाने वाले सार्वजनिक व्यक्ति ,एंड्रयू टेट  बने |

ऐसा माना जाता है कि Andrew Tate, The Real World / therealworld.net से कम‑से‑कम ब्रांडिंग, प्रचार, और सार्वजनिक चेहरे के तौर पर जुड़े हुए हैं |  

उन पर स्त्री -विरोधी विचारों को बढ़ावा देने तथा युवाओं को कट्टरपंथी अवं पुरुष वर्चस्व के समर्थन करने के गंभीर आरोप हैं | उन्हें "विषाक्त मर्दानगी का राजा" के रूप में भी जाना जाता है |

विषाक्त मर्दानगी (Toxic Masculinity) क्या है?

विषाक्त मर्दानगी दर्शित करता एक चित्र
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विषाक्त मर्दानगी का तात्पर्य उन सामाजिक और सांस्कृति मान्यताओं से है जिसमे पुरुषों के सम्बन्ध में माना जाता है कि वे बहुत मजबूत होते हैं, मर्द कभी रोता नहीं है, मर्द को अपनी भावनाये जाहिर नहीं करनी चाहिए, प्रतिस्पर्धी हो, महिलाओं पर अपनी श्रेष्ठता कायम रखे तथा सुदृढ़ व्यवहार करे आदि। 

इन मान्यताओं के चलते लड़कों पर अपनी-अपनी भावनाएं तथा संवेदनाएँ व्यक्त न करने का जबरदस्त दबाब रहता है |

विषाक्त मर्दानगी (Toxic Masculinity) का मानव अधिकारों पर प्रभाव

विषाक्त मर्दानगी ऐसे कारको को जन्म देती है जो मानवीयता और मानव अधिकारों के लिए ख़तरा बन जाती है |  

Adolescence जैसा ड्रामा इन वास्तविकताओं को उजागर करता है कि कैसे मात्र 13 -साल का नाबालिग लड़का बाहरी दुनिया की अपेक्षाओं और खुद की दम्भ भरी पहचान तथा भावनात्मक संघर्ष के बीच पिसता दिखाई देता है | 

इस संघर्ष में वह न सिर्फ खुद के मानव अधिकारों को खो रहा है, बल्कि विश्वसनीय सहपाठी की ह्त्या जैसे जघन्य अपराध को करके पीड़िता और उसके परिवारीजनों के मानव अधिकारों का भी उलंघन करता है |  

विषाक्त मर्दानगी और LGBTQ + समुदाय के मानव अधिकार 

समाज में तेजी से पनपती विषाक्त मर्दानगी की समस्या के कारण  LGBTQ+  समुदाय के लोगों को उनकी अलग लैंगिक पहचान के कारण भेद भाव का शिकार होना पड़ता है
Image by rihaij from Pixabay
अंतराष्ट्रीय मानव अधिकार क़ानून में LGBTQ+  समुदाय को भी वही सब मानव अधिकार प्राप्त है जो अन्य सभी सामान्य व्यक्तियों को प्राप्त हैं | 

लेकिन समाज में तेजी से पनपती विषाक्त मर्दानगी की समस्या के कारण  LGBTQ+  समुदाय के लोगों को उनकी अलग लैंगिक पहचान के कारण भेद भाव का शिकार होना पड़ता है | 

विषाक्त मर्दानगी की सोच उन्हें समाज के सामने अपनी पहचान, अस्तित्व और स्वयं को खुलकर  व्यक्त करने से रोकती है | 

जो कि उनकी आत्म-स्वीकृति और सम्मान को बाधित कर उनके गरिमा, समानता और स्वतंत्रता के मानवाधिकारों  के उलंघन  को बढ़ावा देती है | 

सोशल मीडिया से बढ़ता जनरेशन गैप : माँ-बाप और किशोरों की अलग दुनिया

आप रात को बिना नींद सोए कितनी देर स्क्रॉल करते हो? क्या व्हाट्स ऍप, फेसबुक, इंस्टाग्राम, यूट्यूब पर ‘manosphere’  के वीडियो आपकी दिल की धड़कने नहीं बढ़ाते है ? क्या ये आपके आत्म-सम्मान को नहीं डगमगाते हैं ? 

सोशल मीडिया तक बच्चों की बिना किसी आयु प्रतबंध के आसान पहुंच हो गई है |
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क्या इनके कारण आप अपने बच्चों से एक ही घर में रहते हुए दूर नहीं रहते हैं ? क्या आपकी तरह आपके बच्चे manosphere से प्रभावित नहीं होते हैं ? 

क्या हर समय हमारे हाथों में सोशल मीडिया का लिंक हमारे परिवारों को बुरी तरह प्रभावित नहीं कर रहा है ? वह भी विशेष रूप से नाबालिग बच्चों को ? 

बस इन्हीं सामाजिक, भावनात्मक, कानूनी और मानवाधिकार पहलुओं की गहराई और पूरी जिम्मेदारी से पड़ताल की गई है, ऐमी अवार्ड  विजेता Adolescence ड्रामा सीरीज के माध्य्म से | 

इसमें की गई पड़ताल सिर्फ एक ड्रामा नहीं है बल्कि दुनिया भर में किशोरों की जिंदगी में होने वाली वास्तविक घटनाएं हैं | 

एक ही घर में बच्चे और माता -पिता सोशल मीडिया में व्यस्त मगर कोई पारस्परिक संवाद नहीं
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सोशल मीडिया ने विशेष रूप से किशोरों में लाइक, कमेंट और सब्सक्राइब या फॉलो की भूख पैदा कर दी है, जिसके कारण माता- पिता के साथ एक ही घर में रह रहा किशोर अधिक से अधिक समय सोशल मीडिया पर देने को मजबूर है | 

ऐसी स्तिथि में उसकी एक अलग भाषा विकसित हो गई है | माँ-बाप सोशल मीडिया पर इमोजी को सुख-दुःख व्यक्त करने का एक जरिया मानते हैं, वहीं दूसरी ओर आज के किशोर उन इमोजी का उपयोग साइबर बुलिंग के रूप में कर रहे है | 

कहना न होगा दोनों में जनरेशन गैप बहुत बढ़ गया है | एक ही घर में दोनों रह रहे हैं, एक ही तरह के सोशल मीडिया टूल उनके हाथों में है, लेकिंग दुनिया दोनों की अलग -अलग हो गई है | 

सोशल मीडिया ने बच्चों और माता-पिता के बीच एक बड़ी दरार पैदा कर दी है | जिसे पाटने के लिए अत्यधिक बलिदान की आवश्यकता होगी | देखना ये है क्या हम तैयार हैं ?

Adolescence ने दी चेतावनी: जब नाटक बना हर घर की सच्चाई 

Adolescence ड्रामा सीरीज ने दुनिया को समय रहते चेतावनी दे दी है | इस चेतावनी से पूरी दुनिया में माँ -बाप के बीच चिंता की लकीरें साफ तौर पर देखीं जा सकतीं हैं |
Image by Julien Tromeur from Pixabay

Adolescence ड्रामा सीरीज ने दुनिया को समय रहते चेतावनी दे दी है | इस चेतावनी से पूरी दुनिया में माँ -बाप के बीच चिंता की लकीरें साफ तौर पर देखीं जा सकतीं हैं | 

स्पष्ट है कि एमी पुरस्कार विजेता Adolescence ड्रामा सीरीज ने पूरी दुनिया में हलचल मचा रखी है | यह एक थ्रिलर नाटक का मामला नहीं है |

बल्कि यह किशोर मानसिक स्वास्थय, साइबरबुलिंग और किशोरों में घर करती विषाक्त मर्दानगी की गहरी पड़ताल का गंभीर मुद्दा है | 

इसका बेहतरीन उदाहरण ब्रिटिश प्रधानमंत्री स्टार्मर का बच्चों के साथ Adolescence ड्रामा देखकर विषय की गंभीरता के सम्बन्ध में सार्वजनिक तौर पर चिंता व्यक्त  करना है | 

Adolescence ड्रामा: ब्रिटेन, नीदरलैंड और फ्रांस के स्कूलों में नई पहल 

ब्रिटेन के पीएम रीयर स्ट्रारर ने अपने छोटे बच्चों के साथ सीरीज को देखा तथा सीरीज को मुश्किल और आवश्यक बताया | प्रधानमंत्री ने सीरीज को सभी स्कूलों में बच्चों को दिखाए जाने की घोषणा की | 

ब्रिटेन और नीदरलैंड जैसे देशों के बाद फ्रांसीसी शिक्षा मंत्रालय ने भी Adolescence नेटफ्लिक्स सीरीज को स्कूली पाठ्यक्रमों में शामिल किये जाने की अनुमति दे दी है |

अंतर्राष्ट्रीय समाचार पत्रों और मीडिया ने इसकी गहन समीक्षा की है | जिसके परिणाम स्वरुप दुनिया भर में सामाजिक, कानूनी तथा मानवाधिकार सन्दर्भ में बहस तेज हो गई  है| 

मानसिक स्वास्थ्य सभी लोगों का बुनियादी मानव अधिकार 

विश्व भर में प्रत्येक व्यक्ति को, बिना किसी भेदभाव के, मानसिक स्वास्थ्य के उच्चतम मानक को प्राप्त करने का बुनियादी मानव अधिकार प्राप्त है
Image by Mo Farrelly from Pixabay

विश्व भर में प्रत्येक व्यक्ति को, बिना किसी भेदभाव के, मानसिक स्वास्थ्य के उच्चतम मानक को प्राप्त करने का बुनियादी मानव अधिकार प्राप्त है, यह मानना है विश्व स्वास्थ्य संगठन  का |  

इस अधिकार में उपलब्ध, सुलभ, स्वीकार्य और अच्छी गुणवत्ता वाली देखभाल का अधिकार के अतिरिक्त  स्वतंत्रता, स्वाधीनता और समुदाय में समावेश का अधिकार भी शामिल है | 

यह सामान रूप से किशोरों पर भी लागू होता है |मानव अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा, 1948 में स्वास्थ्य के अधिकार को महत्व पूर्ण स्थान दिया गया है |  


समस्याओं से समाधान तक: स्वास्थ्य मर्दानगी के मॉडल

स्वस्थ मर्दानगी का मॉडल पितृसत्तात्मक या विषाक्त मर्दानगी के मॉडल से जुडी पारंपरिक सोच को ध्वस्त करते हुए भावनात्मक स्वीकृति, वास्तविक आत्म-देखभाल, और सकारात्मक आचरण पर ज़ोर देता है | यह मॉडल लैंगिक भेदभाव सहित हर तरह के भेदभाव का निषेध करता है | 

यहाँ यह समझने का प्रयास किया जाता है कि स्वस्थ्य मर्दानगी का अर्थ केवल शारीरिक बल या  कठोरता नहीं है, बल्कि  इसके दायरे में  सौम्यता, शालीनता, मानसिक स्वास्थ्य देख्भाल और अपनी  कमियों और कमज़ोरियों को स्वीकारना आदि भी आता है | 

इस मॉडल से न केवल व्यक्ति मजबूत होता है बल्कि उसकी समाज में स्वीकार्यता और सम्मान बढ़ता है | इस कारण स्वयं को भी आत्म -सम्मान तथा मानसिक संतोष मिलता है|  

जिससे वह न सिर्फ अनेक तरह के मानवाधिकार उलन्घनो से बचता है, बल्कि खुली सोच के साथ जीते हुए तनाव और अवसाद जैसी गंभीर समस्याओं से बच जाता है | 

स्वस्थ मर्दानगी मॉडल के तहत जब पुरुष शारीरिक, मानसिक, और भावनात्मक रूप से स्वस्थ और संतुलित होता है, तो उसकी परिवार, कार्यस्थल और समुदायों में स्वस्थ्य संवाद, समझ और सहयोग बढ़ता है।  

विषाक्त मर्दानगी के पारंपरिक ढाँचे को चुनौती देकर और नए, लचीले और स्वीकृति-आधारित स्वस्थ्य  मर्दानगी मॉडल को स्वीकार कर बेहतर और मजबूत समाज बना सकते हैं |  

Adolescence ड्रामा, सोशल मीडिया और विषाक्त मर्दानगी का भारतीय परिदृश्य 

Adolescence ड्रामा सीरीज की कहानी न सिर्फ ब्रिटेन, अमेरिका ,नीदरलैंड और फ्रांस  की कहानी है, बल्कि यह कहानी भारत से भी मेल खाती है | 

यह कहना पूरी तरह गलत होगा कि सोशल मीडिया से सिर्फ ब्रिटेन,अमेरिका आदि के बच्चे प्रभावित हो रहे हैं, बल्कि सत्य यह है कि भारत के युवा भी सोशल मीडिया के माध्य्म से मैनोस्फीयर और विषाक्त मर्दानगी जैसी विचारों की और आकर्षित हो रहे हैं |  

लक्ष्मी प्रिया द्वारा न्यूज़लॉन्ड्री पर फ़रबरी, 2025 में प्रकाशित एक लेख में बताया है कि, "भारत में भी, मैनोस्फेयर की भाषा धीरे-धीरे लेकिन निश्चित रूप से स्कूली बच्चों की रोज़मर्रा की बातचीत में घुसने लगी है, जिनमें से कुछ तो आठ या नौ साल के भी हैं।"

अखबारों और मीडिया के माध्यम से इस तरह के प्रकरण भारत में भी आवाम के सामने आ रहे थे, लेकिन Adolescence ड्रामा सीरीज के आने तक उन्हें उस रूप में नहीं देखा जा रहा था जिस रूप में मुद्दे को ड्रामा सीरीज में उठाया गया है | 

भारत में इस मुद्दे को किसी क़ानून विशेष के दायरे में नहीं रखा गया है, बल्कि किशोरों को किशोर न्याय (बालकों  की दखरेख और संरक्षण)अधिनियम, 2015 ,सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम ,2000 तथा यौन अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम, 2012 आदि कानूनों के दायरे में रखते हुए कानूनी कार्यवाही की जाती है | 

सर्व विदित है कि समाज में फिल्मे और नाटक समाज में घटित घटनाओं के दर्पण के रूप में जनता के सामने आते हैं | Adolescence नेटफ्लिक्स सीरीज भी इसी प्रकार समाज का दर्पण प्रदर्शित करती है |

किशोर न्याय अधिनियम के अनुसार 18 वर्ष से कम आयु के बच्चे को अभिकथित "क़ानून का उलंघन करने वाला बालक" माना जाता है | यदि इनके द्वारा कोई अपराध किया गया है और इन अपराधों में विषाक्त मर्दानगी के रूप में किये गए अपराध  भी आते हैं | 

आज कल की दुनिया अधिक से अधिक डिजिटल तकनीकी पर आधारित होती जा रही है | सोशल मीडिया औजार बिना किसी उम्र की बाधा के अधिकांश किशोरों की पहुंच में हैं | उनकी हर सोशल मीडिया प्रोग्राम तक बेलगाम पहुंच हो रही है | 

आज कल ज्यादातर बच्चों को माता -पिता की व्यस्तता के चलते उचित समय नहीं मिल पाता है, ऐसी स्तथि में ये बच्चे  सोशल मीडिया डिजिटल उपकरणों को अपना सर्वश्रेष्ट्र मित्र मानने को विवश हो जाते हैं | 

बच्चे सबसे पहले इन पर सरल गेम खेलते है | उसके बाद धीरे -धीरे  इन्हे हिंसक खेल पसंद आने लगते है | जहाँ ये धीरे -धीरे हिंसक खेल के हीरो को अपना आदर्श मानने लगते हैं और कभी- कभी ये उनमें इतने डूब जाते हैं कि विषाक्त मर्दानगी को अपने जीवन में उतार लेते हैं और अनजाने में ही ये अपराध कर बैठते है जिसका आभास इन्हे भी नहीं होता है | 

इसलिए भारतीय क़ानून में 18 वर्ष की आयु से कम उम्र के किशोरों के लिए हत्या और बलात्कार जैसे जघन्य अपराधों के लिए अधिकतम सजा 3 वर्ष निर्धारित की गई थी | लेकिन 2012 में दिल्ली में एक सामूहिक बलात्कार और ह्त्या का प्रकरण हुया | इस प्रकरण को नर्भया केस के नाम से जाना जाता है | 

निर्भया मामले में कुल 6 अभियुक्त थे जिसमे से एक ने आत्महत्या कर ली थी तथा 4 अभियुक्त को फांसी की सजा दी गई थी | चित्र में चारों दिखाई दे रहे हैं |
Source: Social Media



इस मामले में कुल 6 अभियुक्त थे जिसमे से एक ने आत्महत्या कर ली थी तथा अभियुक्त को फांसी की सजा सुनाई गई | 

इनमे से एक अभियुक्त किशोर अर्थात 18 वर्ष से कम आयु का था | यह माना जाता है कि पीड़िता के साथ सबसे ज्यादा क्रूरता इसी नाबालिग अभियुक्त द्वारा की गई थी | 

इस मामले में आम जनता ने किशोर अभियुक्त को फांसी की सजा देने और कठोर क़ानून बनाने की मांग की थी | 

इस बात को मानते हुए सरकार ने आगे चल कर जुवेनाइल जस्टिस एक्ट में एक प्रावधान किया जिसके तहत 16 से लेकर 18 वर्ष तक के बच्चों को प्रिलिमिनरी असेसमेंट के तहत गुजरना पड़ता है | 

इस टेस्ट में यह तय किया जाता है कि क्या क़ानून का उलंघन करने वाला बालक जघन्य अपराध की प्रकृति और परिणाम समझने में सक्षम है ? 

यदि वह सक्षम पाया जाता है तो उसका ट्रायल बतौर प्रौढ़ चलता है लेकिन उसके साथ बच्चों की तरह ही व्यवहार किया जाता है | नर्भया प्रकरण में किशोर की भूमिका कही न कही अप्रत्यक्ष रूप में ही सही विषाक्त मर्दानगी का ही एक रूप थी |        

निष्कर्ष :-

यदि आपको यह लेख झकझोरता है तो निम्नलिखित कार्य करें सिर्फ बाते नहीं :-

यदि आप माता -पिता हैं तो अपने बच्चों को विशवास में लेकर पूछए कि वे सोशल मीडिया पर क्या- क्या देख रहे हैं | यदि उन्हें कोई दबाब में डाल रहा है तो उनसे खुल कर बात करे और उन्हें भरोसा दिलाएं | 

यदि आप शिक्षक हैं या स्कूल प्रसाशन से सम्बंधित हैं तो स्कूल में डिजिटल मीडिया साक्षरता, जिसमे उसके खतरे भी शामिल हों, के अलावा लैंगिक समानता पर खुल कर चर्चा करें तथा “मर्द बनो”, “दिखावा करो”, जैसी toxic अपेक्षाओं को हतोत्साहित करें | 

यदि आप नीति निर्माता हैं तो अमेरिका तथा आस्ट्रेलिया जैसे देशों को अनुसरण करते हुए नीतियाँ निर्मित कर सकते हैं, जिसमे 16 साल से काम उम्र के बच्चों का सोशल मीडिया उपयोग निषेध करने की योजना बनाई है | यद्धपि ऑस्ट्रेलिया में भी यह क़ानून अभी लागू नहीं हुया है |

इनके अलावा नीति निर्माता सोशल मीडिया और मानसिक स्वास्थय के बीच अन्तर्सम्बन्ध पर गंभीर शोध कार्यों को बढ़ावा दें | साथ ही ऑनलाइन शोषण, साइबर बुलिंग और अल्गोरथिमक शोषण को कम करने के प्रयास करें |  

यदि आप किशोर हैं तो यदि आप online परेशानी महसूस करते हैं या विषाक्त मर्दानगी की समस्या महसूस करते हैं तो तुरंत समर्थ मांगिए और ये समर्थन आप हेल्पलाइन से, कॉउंसिलर या अपने विश्वसनीय दोस्तों या रिस्तेदारों से मांग सकते हैं | 

यदि आप इस लेख के पाठक हैं तो इस लेख को पढ़कर भूलिए मत- बल्कि लेख को दिल से शेयर करें, इस विषय पर चर्चा करें, जागरूकता फैलाएं, यही से  वास्तविक बदलाब की शुरुआत होगी | 

बच्चों के मानव अधिकार तभी सुरक्षित होंगे जब हम उनकी आवाज को गौर से सुनेगे, जो दबाई जा रही हैं तथा उनका हर स्थति में साथ देंगे | उन्हें समस्या में जाने से पहले ही रोकने के प्रयास किये जाने चाहिए | आपके एक शेयर से हो सकता कि किसी के लिए यह उम्मीद की किरण बने |

विशेष : अगर आप इस विषय पर और अधिक पढ़ना चाहते हैं, नीचे ईमेल दर्ज करें|

 



शुक्रवार, 19 सितंबर 2025

भारत में ड्रोन कानून 2025: नियम व वैश्विक असर

ड्रोन को संचालित करने के लिए भारत ने नियम बनाए |
Source:Chat GPT-5

परिचय 

बात उन दिनों की है जब ड्रोन खिलोनो के रूप में कभी-कभार दिखाई देते थे | हमारे घर के सामने एक कामर्सिअल पायलट रहते थे | हमारे घर के सामने एक बड़ा पार्क है |  

एक दिन पायलट एक ड्रोन लाए और उसे  पार्क में उड़ाया | उस समय लोगो में उत्सुकता बहुत थी | पायलट द्वारा उड़ाया गया ड्रॉन बहुत तेज आवाज कर रहा था जो आजकल के ड्रोन्स नहीं करते हैं|

ड्रोन की आवाज सुनकर उत्सुकतावस सभी घर से बाहर आये कि अचानक पार्क में से इतनी आवाज कैसे आ रही है | उस समय लेखक का पुत्र  6 -7 वर्ष का रहा होगा तथा वह भी ड्रोन की आवाज सुनकर बाहर दौड़ा तो पाया कि एक अजीब सी आकृति पार्क के आसमान में उड़ रही है | 

उसे देख कर सभी लोग आशचर्य चकित थे | बाद में पार्क में गए तो पायलट महोदय से बात-चीत में पता चला कि वह कुछ और नहीं बल्कि ड्रोन था | 

उस ड्रोन को उड़ता देकने के बाद लेखक के पुत्र ने जिद पकड़ ली कि मुझे ड्रोन चाहिए तो चाहिए | लेखक उसकी जिद के सामने वेबस था | 

ड्रोन के सम्बन्ध में धुंदली सी याद है कभी -कभी खबरे आती थी कि आगरा स्थित ताज महल के आसपास संदिग्ध ड्रोन मड़राता दिखा | ड्रोन उड़ाने वाले की पुलिस द्वारा तलाश शुरू | 

ऐसा नहीं था कि  लेखक आर्थिक रूप से अपने बच्चे के लिए ड्रोन खरीदने में सक्षम नहीं था बल्कि लेखक की पृस्ठभूमि कानून से जुडी हुई थी इसलिए लेखक अपने बच्चे को ड्रोन दिलवाकर किसी कानूनी पचड़े में नहीं पड़ना चाहता था | 

इसलिए लेखक बच्चे की ड्रोन खरीदने की वह इच्छा आज तक पूरी नहीं कर पाया | इस बात का अवसोस भी है और सकून भी है | यह लेख उसके साथ साथ तमान उन लोगों के लिए है, जो ड्रोन तो उड़ाने की इच्छा रखते हैं लेकिन उन्हें भारतीय ड्रोन कानूनों की जानकारी नहीं है | 

ड्रोन के प्रकार

भारत में ड्रोन को बजन के अनुसार पाँच केटेगरी में बाँटा गया है|  ये पाँच  प्रकार Nano, Micro, Small, Medium और Large UAVs  हैं
Image by Gábor Adonyi from Pixabay

"ड्रोन" से कोई मानव-रहित वायुयान प्रणाली विहित है | भारत में ड्रोन को बजन के अनुसार पाँच केटेगरी में बाँटा गया है| ये पाँच  प्रकार Nano, Micro, Small, Medium और Large UAVs  हैं और क्रमशः इनका वजन 250g, 250g – 2kg, 2kg – 25kg, 25kg – 150kg, 150kg से ऊपर होता है |



                                                    ड्रोन कानून की ज़रूर क्यों ?

भारत में पिछले कुछ वर्ष ड्रोन या UAV (Unmanned Aerial Vehicles) के क्षेत्र में तकनीकी नवाचार को समर्पित रहे है | 

Image by Herney Gómez from Pixabay

अब ड्रोन सिर्फ फोटोग्राफी तक सीमित नहीं रहे हैं, बल्कि अन्य महत्वपूर्ण कार्यों जैसे कृषि सर्वेक्षण, ट्रैफिक निगरानी, बॉर्डर सुरक्षा निगरानी, आपदा प्रबंधन,बड़-बड़े इंफ्रास्ट्रक्चर निरीक्षण आदि में उपयोग हो रहे हैं | 

ड्रोन के अत्यधिक व्यापक उपयोग ने सुरक्षा और गोपनीयता (Privacy) सम्बन्धी चिंताएं बढ़ा दीं हैं | जिसके चलते एक सुदृढ़ कानूनी ढांचे की आवश्यकता भी बढ़ी है | 

जिसके परिणाम स्वरुप भारत में वर्ष 2021 में ड्रोन रूल्स लाये गए | सरकार का अनुमान है कि भारत में 2030 तक वैश्विक ड्रोन हब बनने की क्षमता है। 

भारत में ड्रोन क़ानून 2025 – मुख्य बिंदु 

भारत में ड्रोन संचालन के नियम DGCA (Directorate General of Civil Aviation) द्वारा तय किये जाते हैं | यह विभाग नागरिक उड्डयन मंत्रालय के अधीन आता है |

मंत्रालय ने “Drone Rules 2021” को आगे बढ़ाते हुए कई सुधार किए गए हैं | पुराने नियमों में सुधार करते हुए ड्रोन (संशोधन) नियम 2022 लाये गए |

मंत्रालय ने ड्रोन उद्योग को बढ़ावा देने के लिए उद्योग का आसान पंजीकरण और पारदर्शी लाइसेंसिंग प्रणाली बनाई है।

ड्रोन रजिस्ट्रेशन और रिमोट पायलट लाइसेंस

डिजिटल स्काई प्लेटफ़ॉर्म पर हर ड्रोन का रजिस्ट्रेशन अनिवार्य है। जिसके सम्बन्ध में ड्रोन मालिक को Unique Identification Number (UIN) मिलता है। 

हर व्यक्ति के लिए 250 ग्राम से बड़े ड्रोन उड़ाने के लिए रिमोट पायलट लाइसेंस आवश्यक है, लेकिन मईक्रो-ड्रोन (गैर -वाणिज्यिक उपयोग के लिए) और नैनो-ड्रोन के लिए रिमोट पायलट लाइसेंस लेने की आवश्यकता नहीं होती है | 

ड्रोन उड़ाने के लिए किसी भी क्षेत्र को सुरक्षा क्षेत्र और नो-फ़्लाई ज़ोन में बाँटा गया है | ड्रोन ऑपरेट करने के लिए तीन रंगों में ज़ोन तय किए गए हैं: ग्रीन ज़ोन, यह वह जोन है, जहाँ बिना अनुमति ड्रोन उड़ाए जा सकते हैं |

दुसरा क्षेत्र येलो ज़ोन के रूप में जाना जाता है | इस क्षेत्र में ड्रोन उड़ाने के लिए पूर्व-स्वीकृति आवश्यक होती है | 

तीसरा होता है रेड ज़ोन,जिसमे ड्रोन उड़ाना पूरी तरह निषिद्ध होता है | इस जोन से संवेदनशील स्थलों की सुरक्षा सुनिश्चित होती है।

2021 के नियमों के अनुसार ग्रीन जोन में में ड्रोन का संचालन करने वाली अनुसंधान एवं विकास संस्थाओं को टाइप सर्टिफिकेट, विशिष्ट पहचान संख्या और रिमोट पायलट लाइसेंस की आवश्यकता नहीं है। 

भारत में ड्रोन नियम 2021 के तहत ड्रोन टैक्सियों को शामिल करने की महत्वपूर्ण आकांछा के चलते ड्रोन का कवरेज 300 किलोग्राम से बड़ा कर 500 किलोग्राम कर दिया गया | 

अधिकृत ड्रोन ट्रेनिंग स्कूल से ड्रोन उड़ाने की ट्रेनिंग लेने के बाद डिजिटल स्काई प्लेटफॉर्म के माध्यम से रिमोट पायलट प्रमाण पत्र प्रदान किया जाता है | जिसके प्राप्त होने के बाद 15 दिन के भीतर डीजीसीए रिमोट पायलट लाइसेंस जारी कर देता है | 

डिजिटल स्काई प्लेटफॉर्म पर निर्माता और आयातक स्व-प्रमाणन के माध्यम से अपने ड्रोन की विशिष्ट पहचान संख्या उत्पन्न कर सकते हैं। 

ड्रोन नियम 2021 के प्रावधानों के उल्लंघन के लिए अधिकतम जुर्माना घटाकर 1 लाख रुपये कर दिया गया है ।

वर्ष 2022 से लेकर 2025 तक लगातार चरणबद्ध तरीके से आवश्यकता अनुसार इसमें सुधार किया गया है | 

आज भारत के ड्रोन संबंधित कानून और नीतियाँ वैश्विक स्तर पर एक मॉडल के रूप में स्वीकार किये जा रहे हैं | यद्यपि अभी भी इनमे सुधार की बहुत गुंजाइश है |

भारत की ड्रोन नीति की विशेषताएँ

भारत की ड्रोन नीति कई देशों से उन्नत किस्म की है | भारत ने ड्रोन के पंजीकरण के लिए डिजिटल स्काई प्लेटफॉर्म बनाया है | ड्रोन को औद्योगिक क्षेत्र में बढ़ावा देने के लिए सिंगल विंडो क्लीयरेंस का प्रावधान किया है | 

इसके अतिरिक्त लाइसेंस शुल्क कम रखे गए हैं | जिससे स्टार्ट-अप जैसे सरकार के प्राथमिकता वाले औधोगिक क्षेत्र में बृद्धि को दर्ज किया जा सके | इसके साथ -साथ एमएसएमई सेक्टर अर्थात सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम को बढ़ावा मिल सके। 

ड्रोन उड़ान के सम्बन्ध में अंतरराष्ट्रीय मानक

अंतराष्ट्रीय स्तर पर ICAO (International Civil Aviation Organization) ने ड्रोन उड़ान के लिए गाइडलाइन जारी की है। 
भारत की ड्रोन उड़ान नीति इन्हीं गाइडलाइन के अनुरूप है | अंतराष्ट्रीय ड्रोन उड़ान नीतियों को अनेक देशो ने अपनी स्थानीय आवश्यकताओं के हिसाब से अनुकूलित किया है। 

UAV और भविष्य की संभावनाएँ

डिलीवरी ड्रोन

सामान डिलीवरी करता ड्रोन
Delivery Drone

दूर दर्ज के क्षेत्रों में  ई-कॉमर्स और फ़ूड डिलीवरी में UAV की भूमिका तेजी से बढ़ रही है। भारत में  भी इस तरह की संभावनाओं पर कार्य चल रहा है |सरकार फसल मूल्यांकन, भूमि अभिलेखों के डिजिटलीकरण, कीटनाशकों के छिड़काव आदि क्षेत्रों में भी ड्रोन को बढ़ावा  दे रही है | एक अनुमान के अनुसार भारत में ड्रोन सेवा उद्योग में 30,000 करोड़ रुपए से अधिक की वृद्धि तथा पाँच लाख से अधिक रोज़गार सृजित होने की उम्मीद जताई गई है | 

कृषि क्षेत्र में ड्रोन का उपयोग

भारत में कृषि में कीटनाशक छिड़काव, फसल विश्लेषण और मिट्टी परीक्षण के लिए बड़े पैमाने पर ड्रोन का उपयोग किया जा रहा है | यह किसानों के समय और लागत दोनों की बचत में सहायक है |

ट्रैफ़िक मॉनिटरिंग और आपदा प्रबंधन

आपदा में ध्वस्त हुए मकान
Image by Angelo Giordano from Pixabay

स्मार्ट सिटीज़ में ट्रैफ़िक मॉनिटरिंग सुचारू सामाजिक नियंत्रण के लिए अति आवश्यक है | जाम से सम्बंधित सटीक जानकारी हासिल करने के लिए ड्रोन की सेवाएं ली जा रही है | 

आज-कल आपदा प्रबंधन में ड्रोन अहम भूमिका निभा रहे हैं। देश की सीमाओं को सुरक्षित करने के लिए भी ड्रोन सुविधाओं का भरपूर उपयोग किया जा रहा है | 

विश्व प्रसिद्ध और प्राचीन धरोहर ताजमहल के ऊपर कई बार ड्रोन को उड़ते देखा गया | 

आगरा स्तिथ ताज महल को देकते दर्शकों की भीड़
Taj Mahal: Image by Luca from Pixabay

इन संदेहास्पद उड़ानों ने ताजमहल की सुरक्षा और वहां आने वाले लाखों पर्टकों की सुरक्षा के लिए प्रशासन के समक्ष सुरक्षा सम्बन्धी प्रश्न खड़ा कर दिया |

जिसके बाद सरकार ने ताज महल पर ड्रोन के खतरे से निपटने के लिए एक एसओपी( स्टैण्डर्ड आपरेशन प्रोसीजर) समिति बनाई | 

ताजमहल की परिधि के 500 मीटर की दूरी तक ड्रोन नहीं उड़ाया जा सकता है | अब ताज महल की सुरक्षा में एंटी-ड्रोन सिस्टम तैनात कर दिया गया है| 

चुनौतियाँ और समाधान

प्राइवेसी और डेटा प्रोटेक्शन

ड्रोन के माध्यम से निजी और संवेदनशील डेटा इकट्ठा किया जा सकता है | जिससे प्राइवेसी और डेटा की गोपनीयता भंग होने की सम्भावनाये बनी रहती हैं |  

इसलिए भारत के लिए यह आवश्यक है कि वह एक मजबूत डेटा प्रोटेक्शन कानून बनाए | जिससे लोगों के निजता के अधिकार की रक्षा हो सके |  

नीतिगत और कानूनी ढाँचे  में सुधार की आवश्यकता

वैश्विक स्तर पर ड्रोन सम्बंधित तकनीक तेजी से बदल रही है। ऐसी स्थति में भारत में उपलब्ध नियमों में समय -समय पर सुधार की अत्यधिक आवश्यकता बनी रहेगी | जिससे ड्रोन तकनीकी, नवाचार और सुरक्षा के बीच संतुलन बना रहे | 

जनचेतना और कुशल प्रशिक्षण 

ड्रोन के नियमानुसार और कुशल संचालन के लिए ड्रोन ऑपरेटर्स को प्रमाणित प्रशिक्षण देना और लोगों में जागरूकता फैलाना आवश्यक है | जिससे अनावश्यक दुर्घटनाएँ और ड्रोन के दुरुपयोग  को रोका जा सके |

निष्कर्ष – भारत की भूमिका और वैश्विक दिशा

भारत में ड्रोन संचालन के लिए बनाये गए कानून न सिर्फ भारतीय जरूरतों को पूरा कर रहे हैं, बल्कि नवोन्वेषण के कारण वे वैश्विक मानक बनने की दिशा में एक बड़ा कदम है | 

डिजिटल स्काई प्लेटफ़ॉर्म जैसे आधुनिक नवोन्वेषक प्लेटफॉर्म तथा भारत की औधोगिक नीति के तहत सिंगल विंडो सिस्टम ड्रोन उत्पादन के क्षेत्र में निवेशों और इन्नोवेटर्स के लिए आकर्षक का केंद्र बिंदु  बन रहे हैं |


अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs):-

प्रश्न : क्या भारत में ड्रोन का उपयोग करना कानूनी है?

उत्तर : हाँ, ड्रोन उड़ाना भारत में पूरी तरह कानूनी है, बशर्ते ड्रोन संचालन से जुड़े सभी कानूनों (Drawn Law) का विधिवत पालन किया जाए | 

प्रश्न : भारत में ड्रोन उड़ाने के लिए किस प्रकार की अनुमति की ज़रूरत होती है?

उत्तर : 250 ग्राम से बड़े ड्रोन के लिए ड्रोन का रजिस्ट्रेशन, DGCA से रिमोट पायलट लाइसेंस और डिजिटल स्काई पर अनुमति की आवश्यकता होती है |

प्रश्न : भारत के ड्रोन कानून दुनिया के दुसरे देशों से कैसे अलग हैं|

उत्तर : क्योंकि भारत ने डिजिटल स्काई प्लेटफ़ॉर्म और ज़ोन-आधारित रेग्युलेशन बनाये हैं, जो कई देशों से  अलग और आगे हैं।

प्रश्न : क्या विदेशी कंपनियाँ भारत में ड्रोन संचालन कर सकती हैं?

उत्तर :नहीं ,विदेशी कंपनियों को भारत में ड्रोन संचालित करने की अनुमति नहीं है | भारत में पंजीकृत ड्रोन कंपनियों में विदेशी स्वामित्व पर कोई प्रतिबंध नहीं है| 

ड्रोन शक्ति योजना के प्रस्ताव के बाद मेड- इन- इंडिया ड्रोन को बढ़ावा देने के उद्देश्य से वर्ष 2022 में ड्रोन के आयात पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया | लेकिन उनके पुर्जों के आयात पर कोई प्रतिबन्ध नहीं है |  

प्रश्न :  भारत में ड्रोन नियमों का पालन न करने पर क्या सज़ा है?

उत्तर : भारत में ड्रोन नियमो का अनुपालन न करने की दिशा में 1 लाख रूपए जुर्माना अधिरोपित किया जा सकता है | इसके अलावा ड्रोन ज़ब्ती या  संचालन पर प्रतिबन्ध लगाया जा सकता है |

विशेष :अगर आप इस विषय पर विस्तृत रिपोर्ट चाहते हैं, तो नीचे ईमेल दर्ज करें| 






  
  



सोमवार, 15 सितंबर 2025

आयुष्मान भारत :स्वास्थ्य के मानवाधिकार को साकार करने की दिशा में एक कदम

आयुष्मान योजना बेहतरीन स्वास्थय योजना

भूमिका 

पूर्व प्रधानमंत्री डॉ0 मनमोहन सिंह ने अच्छे स्वास्थ्य को देश के प्रत्येक नागरिक का अक्षुण्य मानव अधिकार बताया था | स्वास्थ्य के मानव अधिकार को अंतराष्ट्रीय मानव अधिकार लिखितों में महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है | 

जिसके अनुसार प्रत्येक व्यक्ति को स्वास्थ्य का अधिकार प्राप्त है | जिसके सम्बन्ध में यह सदस्य देशों पर निर्भर करता है कि अपनी आर्थिक सीमाओं में रहते हुए अपने नागरिकों को स्वास्थ्य का अधिकार विधिक रूप में प्रदान करें | 

आयुष्मान भारत पहल, जिसे प्रधान मंत्री जन-आरोग्य योजना के नाम से भी जाना जाता है, को मात्र एक सरकारी स्वास्थ्य योजना के रूप में नहीं समझा जा सकता है, बल्कि यह योजना दुनिया की सबसे बड़ी स्वास्थ्य बीमा योजना है | 
यह योजना स्वास्थ्य को मानव अधिकार के रूप में सुनिश्चित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।भारत सरकार ने इस योजना का उद्द्घाटन वर्ष २०१८ में किया था |
 
स्वास्थ्य देखभाल/सेवाओं तक सबकी पहुंच तथा डिजिटल समाधान विषय पर नीति आयोग, राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग(एनएचआरसी),नई दिल्ली के सौजन्य से 6 सितम्बर 2024 को आयोजित एक राष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस में एनएचआरसी के जनरल सेक्रेटरी श्री भारत लाल ने अपने सम्बोधन में कहा कि स्वास्थ्य के क्षेत्र में सभी हितधारकों को एक मंच पर आने की आवश्यकता है, जिससे कि सभी के लिए स्वास्थ्य सेवा एक हकीकत बन सके | उन्होंने यह भी कहा कि स्वास्थ्य सेवा एक बुनियादी मानव अधिकार है |  

आयुष्मान भारत योजना

विश्वभर में आम आदमी के जीवन उच्चस्तरीय बनाने के लिए सयुक्त राष्ट्र महासभा ने सतत विकाश लक्ष्यों को वर्ष 2015 में तय किया था | इन लक्ष्यों को समय बद्ध तरीके से पूरा करने के लिए वर्ष 2030 निर्धारित किया गया | 

भारत भी सयुंक्त राष्ट्र संघ का सदस्य होने के नाते उक्त लक्ष्यों को समय से पूरा करने के लिए प्रतिबद्ध है | इसलिए भारत द्वारा अपनी प्रतिबद्धता के चलते वर्ष 2017 में राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति की सन्तुति की गयी जिसके तहत सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज का लक्ष्य रखा गया | 

विशेष रूप से आयुष्मान भारत देखभाल के दो घटक हैं | प्रथम घटक के रूप में स्वास्थ्य एवं कल्याण केंद्र हैं तथा दूसरे घटक के रूप में प्रधान मंत्री जन-आरोग्य योजना को स्थान दिया गया है | 

तत्कालीन सरकार द्वारा फरवरी 2018 में तकरीबन 1 ,50 ,000 प्राथमिक स्वास्थ्य  केंद्रों और उपकेंद्रों को स्वास्थ्य और कल्याण केंद्र के रूप में बदलने की घोषणा की गयी |  

जिसका उद्देश्य स्वास्थ्य सेवाओं की व्यापकता को विस्तार देना था जिससे स्वास्थ्य सेवाओं तक आम-जन की आसान पहुंच हो सके तथा स्वास्थ्य सेवाएं घर -घर तक पहुंच सके | 

इसके अलावा उक्त योजना का लोगों की बीमारियों के इलाज के साथ -साथ उन्हें स्वास्थ्य बनाये रखने अर्थात उन्हें  बीमार न होने देने पर अधिक जोर देना रहा है | इसी लिए शायद स्वास्थ्य एवं कल्याण केंद्र में कल्याण शब्द जोड़ा गया | 

स्वास्थ्य योजना के दूसरे घटक प्रधानमंत्री जन-आरोग्य योजना का शुभारम्भ 23 दिसंबर 2018  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा किया गया था | इस योजना के तहत प्रतिवर्ष प्रति परिवार 5 लाख रूपये तक का बीमा  कवर प्रदान किया जाता है | इस योजना का सम्पूर्ण खर्च सरकार द्वारा उठाया जाता है |
 
इस योजना के तहत अस्पताल में मरीज के भर्ती होने के तीन दिन पहले से 15 दिन बाद तक खर्चे बहन किये जाते हैं | इस योजना का लाभ लाभार्थी भारत में सूचीबद्ध किसी भी अस्पताल में ले सकता है | यह सम्पूर्ण चिकित्सा स्वास्थ्य सेवा व्यवस्था नकदी रहित उपचार के तहत है |

आयुष्मान भारत योजना का उद्देश्य

राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन का उद्देश्य एक समान, सस्ती, सुलभ और गुणवत्तापूर्ण स्वास्थय देखभाल सेवाओं को आमजन तक बिना किसी विभेद के पहुँचाना है | 

स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं की सार्वभौमिक पहुंच की उपलब्धता का सिद्धांत सभी लोगों तक स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच के लिए मानव अधिकार सिद्धांतों के तहत जबाबदेही और उत्तरदायित्व तय करता है | 

उसी प्रकार आयुष्मान भारत योजना का उद्देश्य स्वास्थ्य के अधिकार से वंचित गरीब लोगों की स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच को आसान  बनाना है | 

इसके अलावा शासन की नीतियों में स्वास्थ्य सम्बन्धी मानव अधिकार सरोकार और संवेदनाओं को संकल्प से सिद्धि तक पहुँचाना तथा समाज के समावेशी विकास को बल देना है | 

आयुषमान कार्ड  बनवाने की पात्रता क्या है ?

नियमानुसार वे लोग आयुष्मान कार्ड बनवाने के लिए पात्र हैं जो असंगठित क्षेत्र में कार्य करते हैं तथा ईएसआईसी या पीएफ का लाभ नहीं लेते हैं या फिर गरीबी रेखा या उससे नीचे जीवन यापन कर रहे हैं | 

70 वर्ष और उससे अधिक आयु के सभी वरिष्ठ नागरिक बिना किसी आय की सीमा के आयुष्मान कार्ड बनाने की पात्रता रखते हैं | 

आयुष्मान कार्ड कैसे बनता है ?  

आयुष्मान भारत प्रधानमन्त्री जन आरोग्य योजना के तहत पात्रता की शर्तों को पूर्ण करने वाला लाभार्थी पूरे वर्ष कभी भी अपना आयुष्मान कार्ड बनवा सकता है | 

यह कार्य लाभार्थी स्वयं आयुष्मान ऍप का उपयोग करते हुए कर सकता है या वह जनसेवा केंद्र  या सीएससी या सूचीबद्ध अस्पताल में जाकर बनवा सकता है |

डिजिटल तकनीकी से योजना तक आसान पहुंच 

हर आमजन के जीवन की गुणवत्ता में सुधार और उन्हें गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य देखभाल सेवाएं प्रदान करने में आधुनिक प्रौद्योगिकी की क्षमताओं का उपयोग किया जाना समय की मांग है | वर्तमान सरकार स्वास्थ्य सेवाओं के डिजिटलीकरण पर विशेष बल दे रही है | 

आयुष्मान भारत योजना को समाज के सबसे निचले पायदान तक पहुंचाने के लिए डिजिटल तकनीकी का बेहतर उपयोग किया जा रहा है | डिजिटल तकनीकी के कारण आम आदमी की स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच आसान हुयी है तथा इसका दायरा भी अत्यधिक व्यापक हुया है | 

आधार कार्ड के आधार पर आयुष्मान भारत योजना के लिए पात्रता की जांच की जाती है तथा साथ-साथऑनलाइन ही आयुष्मान भारत सेवा प्रदाता अस्पताल सम्बंधित सूची भी उपलब्ध हो जाती है | 

योजना डिजिटल तकनीकी पर आधारित होने के कारण सुयोग्य लाभार्थियों को योजना का लाभ बिना किसी परेशानी और देरी के प्राप्त हो जाता है | 

डिजिटल तकनीकी के उपयोग से आम आदमी की आयुष्मान भारत योजना तक पहुंच बहुत ही आसान हुयी है | जिससे स्वास्थ्य के मानव अधिकार का लाभ जन -जन तक पहुंच रहा है | 

एक कॉन्फ्रेंस में राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्राधिकरण के सीईओ श्री बसंत गर्ग ने कहा कि आयुष्मान भारत-प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना के अंतर्गत डिजिटल तकनीक के उपयोग से 55 करोड़ लोगों तक पहुंचने में  मदद मिली | 

आयुष्मान भारत पहल का विस्तार 

आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना को विस्तार देते हुए केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 11 सितम्बर ,2024  को 70 वर्ष और उससे अधिक आयु के सभी वरिष्ठ नागरिकों के लिए स्वास्थ्य बीमा कवरेज का प्रावधान कर दिया | 

जिसके तहत किसी भी वरिष्ठ नागरिक की आय नहीं देखी जाएगी | इस विस्तारित निःशुल्क स्वास्थ्य बीमा कवरेज से करीब 4.5  करोड़ परिवारों को लाभ मिलने की उम्मीद है  तथा इसमें लगभग  6 करोड़ वरिष्ठ नागरिक समाहित होंगे | 

70 वर्ष और उससे अधिक आयु के सभी वरिष्ठ नागरिकों के लिए एक नए और विशिष्ट कार्ड देने का प्रावधान किया गया है | 

आयुष्मान भारत प्रधानमन्त्री जन आरोग्य योजना में पहले से ही कवर किये जा रहे वरिष्ठ नागरिकों को  ५ लाख रूपये तक  का अतिरिक्त टॉप -अप कवर मिलेगा तथा इस टॉप-अप कवर में 70  वर्ष से काम आयु के अन्य परिवारीजनों को शामिल नहीं किया जाएगा | 

लाभार्थी सम्पूर्ण भारत में कही भी इस योजना का लाभ ले सकता है अर्थात लाभार्थी को अपने उपचार के लिए किसी भी अस्पताल में नकद धन ले कर नहीं जाना है बल्कि इसमें लाभार्थी नकदी रहित उपचार के लिये भारत के किसी भी भाग में सूचीबद्ध सार्वजानिक या निजी या सार्वजनिक और निजी भागीदारी से संचालित अस्पाताल में जा सकता है | 
आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री  जन-आरोग्य योजना के तहत राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्राधिकरण के अनुसार 31 दिसंबर, 2024 तक 36 ,35 ,23 ,369  आयुष्मान कार्ड बनाये जा चुके हैं | 

आयुष्मान भारत के तहत प्रदान की जाने वाली सेवाओं को प्रदान करने के लिए सरकारी और निजी क्षेत्र के अस्पातालों की एक विस्तृत श्रंखला को जोड़ा गया है | 

इस योजना के तहत आयुष्मान कार्ड धारकों को स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करने के लिए सरकार द्वारा 17,102  सार्वजनिक अस्पतालों और 13,875  निजी अस्पतालों अर्थात कुल मिलाकर 30,977 अस्पतालों को ससक्त तथा सूचीबद्ध किया गया है | जिनके द्वारा जन-जन तक भरोसेमंद और उच्च स्तरीय स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान की जाती है | 

पीएम -जय योजना के तहत  लाभ पाने के लिए तकरीबन 12 करोड़ से अधिक गरीब और कमजोर परिवार पात्रता रखते है | जिसमे करीब 55 करोड़ लाभार्थी लाभ पाने के लिए पात्र है | 

स्वास्थ्य का मानव अधिकार 

आजकल विश्व स्तर पर जो देश अपने नागरिकों के मानव अधिकारों का जितना अधिक सम्मान करता है उसका विकास के सम्बन्ध में वैश्विक मानव अधिकार पैमाना उतना ही ऊँचा होता है अर्थात देश के विकास को उस देश में मानव अधिकारों के सम्मान,संरक्षण, और पूर्ती  के रूप में आँका जाता है | 

किसी भी शासन व्यवस्था के लिए स्वास्थ्य के मानव अधिकार को आत्मसात करना और उसे सैद्धांतिक परिपेक्ष्य से बाहर निकाल कर वास्तविक धरातल पर क्रियान्वयन करना, नागरिकों के मानव अधिकार का वास्तविक सम्मान होता है |

सर्वप्रथम मानव अधिकारों पर विश्वभर में स्वीकार्य अंतराष्ट्रीय दस्तावेज मानव अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा, 1948 में  २ दर्जन से अधिक मानव अधिकारों का जिक्र किया गया है | इन अधिकारों में स्वास्थ्य के मानव अधिकार को भी अन्य मानव अधिकारों के समान महत्व दिया गया है |
 
उक्त घोषणा के अनुछेद 25 में स्पष्ट रूप में इंगित किया गया है कि , " प्रतियेक व्यक्ति  को एक ऐसे जीवन स्तर का अधिकार है जो स्वयं उसके और उसके परिवार के स्वास्थ्य और कल्याण के लिए उपयुक्त हो ,जिसमे भोजन,वस्त्र, आवास  और चिकित्सा सम्बन्धी देखरेख की उचित सुविधा तथा आवश्यक सामाजिक सेवाओं की व्यवस्था का ,और बेरोजगारी, बीमारी, शारीरिक अक्षमता, वैधव्य, बुढ़ापा या उसके बस से बाहर की अन्य ऐसी परिस्थितियों में, जिसमे  वह अपनी जीविका अर्जित करने में असफल हो जाय, सामाजिक सुरक्षा की व्यवस्था का समावेश है | "

इस घोषणा में दिए गए मानव अधिकार सयुंक्त राष्ट्र संघ के सदस्य देशों के लिए उनके यहाँ प्रसाशन में उपयोग किये जाने वाले सिद्धांतों के रूप में मान्य थे | 

किसी भी सदस्य देश पर उक्त मानव अधिकार बाध्यकारी प्रभाव नहीं रखते थे इस लिए उनका अपने यहाँ की नीतियों में समावेश उनकी इच्छा पर निर्भर था कि वह उनका अनुपालन करे या ना करे | 

इसलिए मानव अधिकारों को सदस्य देशों में गारंटी प्रदान करने के उद्देश्य से सयुंक्त राष्ट्र संघ द्वारा प्रसंविदाओं को अंगीकृत किया गया | 

आर्थिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक अधिकारों से सम्बंधित अंतराष्ट्रीय प्रसंविधा को सयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा ने अंगीकृत कर उसे 1976 से प्रभावी किया गया | भारत भी इस प्रसंविदा का सदस्य देश है | 

इस प्रसंविदा के अनुछेद 12 में स्वास्थ्य के अधिकार को रखा गया | इसके अनुछेद 12 (1) में इंगित किया गया है कि,  " इस प्रसंविदा के पक्षकार राज्य स्वीकार करते हैं कि प्रत्येक  व्यक्ति  को शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के उच्चतम प्राप्त स्तर को उपयोग करने का अधिकार है |"  

उक्त के अतिरिक्त अनुछेद 12 (2 )(घ ) में कहा गया है कि इस प्रसंविदा के पक्षकार राज्य  स्वास्थ्य के अधिकार को पूर्ण रूप से चरिथार्त करने के लिए जो उपाय करेंगे उनमे बीमारी होने पर सभी के लिए चिकित्सा सम्बन्धी सेवा और शुश्रुषा सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक उपायों का समावेश होगा | 

अर्थात सरल शब्दों में कहा जाय तो उपरोक्त अंतराष्ट्रीय मानव अधिकार विधि में स्वास्थ्य के मानव अधिकार सम्बन्धी प्रावधान से स्पष्ट है कि उक्त प्रसंविदा के  पक्षकार राज्य किसी भी प्रकार की महामारी या बीमारियां होने की स्तिथि में  बिना किसी भेद भाव के सभी के लिए  चिकित्सा सम्बन्धी सेवा और शुश्रुषा सुनिश्चित करने के लिए हर संभव आवश्यक उपाय करेंगे जिससे सभी नागरिक स्वास्थ्य के अधिकार के सैद्धांतिक  रूप का व्यवहारिक रूप में आभास कर सकें |  

इस प्रसंविदा की उद्देशिका में स्पष्ट रूप में कहा गया है कि सयुंक्त राष्ट्र अधिकार पत्र के अधीन राज्यों पर मानवाधिकार तथा स्वतंत्रताओं के प्रति सार्वभौमिक सम्मान तथा उसके पालन को बढ़ावा देने का दायित्व है | 

निष्कर्ष

प्रधान मंत्री जन आरोग्य योजना से करोड़ों नागरिक, जो आर्थिक या अन्य समस्यायों के चलते अपना या किसी परिवारीजन का इलाज कराने में असमर्थ थे, चिकित्सकीय स्वास्थ्य सेवाओं का लाभ ले चुके हैं | 

स्वास्थ्य के मानव अधिकार की गारंटी के रूप में यह योजना विश्व की सबसे व्यापक योजना साबित हुई है | आयुष्मान भारत पहल ने स्वास्थ्य के मानव अधिकार को सिद्धांत और संकल्प से सिद्धि में बदलने का कार्य किया है| 
यह योजना गरीब और कमजोर वर्गों के स्वास्थ्य के अधिकार का संवर्धन और संरक्षण करती है क्यों कि यह सस्ती, निशुल्क और आसानी से सुलभ होने के कारण समाज में समानता के सिद्धांत को बढ़ावा देती है | 

यदि इस योजना का क्रियान्वयन सही और ईमानदार पहल के साथ किया जाय तो समग्र स्वास्थ्य की अवधारणा के लक्ष्य को आसानी से पूर्ण किया जा सकता है |   

नोट : अगर आप इस विषय पर अधिक जानकारी चाहते हैं, तो नीचे टिप्पणी सहित ईमेल दर्ज करें| 


      

रविवार, 14 सितंबर 2025

सौर ऊर्जा और ऊर्जा तक समान पहुँच: एक मानवाधिकार दृष्टिकोण

जब भारत में हर व्यक्ति के लिए आवश्यक शिक्षा, स्वास्थ्य और भोजन मौलिक अधिकारों के रूम में उपलब्ध हैं तो ऊर्जा तक पहुंच का अधिकार मौलिक अधिकारों के रूप में क्यों नहीं मान्य हो सकता है ?
Source:Gerd Altmann from Pixabay
प्रस्तावना

क्या हर इंसान को सस्ती ऊर्जा तक पहुंच का अधिकार मिल सकता है ? ऊर्जा तक पहुंच भी उतनी ही आवश्यक हो गई है जितनी कि शिक्षा ,स्वास्थ्य और भोजन तक पहुंच | 

प्रश्न उठता है कि जब भारत में हर व्यक्ति के लिए आवश्यक शिक्षा, स्वास्थ्य और भोजन मौलिक अधिकारों के रूम में उपलब्ध हैं तो ऊर्जा तक पहुंच का अधिकार मौलिक अधिकारों के रूप में क्यों नहीं मान्य हो सकता है ? 

जबकि आज कल ऊर्जा एक आवश्यक सुविधा नहीं रही है बल्कि यह जीवन के अधिकार का अभिन्न बन चुकी है | बिना ऊर्जा के आजकल व्यक्ति का विकास ही संभव नहीं है | आज यह हर आदमी के जीवन और मानवीय गरिमा से जुड़ा मानव अधिकार बन चुका है | 

भारत में ऊर्जा असमानता एक गंभीर चुनौती है ऐसी स्थति में गरीब आदमी और वंचित समूहों के लिए सौर ऊर्जा (Solar Energy), ऊर्जा के एक क्रांतिकारी वैकल्पिक श्रोत के रूप में उभरी है - खासकर भारत जैसे देश में जहां सूरज की रोशनी भरपूर मात्रा में उपलब्ध रहती है | 

इस लेख में आम आदमी, गरीब और वंचित समूहों की सौर ऊर्जा तक आसान पहुंच को मानव अधिकार दृष्टकोण से देखने का प्रयास किया गया है | 

ऊर्जा तक समान पहुँच: एक मौलिक मानवाधिकार क्यों?

वर्तमान में ऊर्जा असमानता मानव अधिकारों के लिए एक गंभीर चुनौती है | आज सरकारों के समक्ष ऊर्जा तक सामान पहुंच एक अनकही चुनौती है | 

ऊर्जा तक बिना किसी अमीर- गरीबी,जात-पात,बिना किसी धार्मिक या लैंगिक भेदभाव के सभी की समान पहुंच एक मौलिक मानव अधिकार है क्योंकि यह अन्य महत्वपूर्ण मानव अधिकारों जैसे जीवन के अधिकार, स्वास्थ्य, शिक्षा, आवास और अन्य मूलभूत अधिकारों के उपभोग  के लिए आवश्यक है तथा  उन तक पहुंच को सरल और सुगम बनाता है | 

आज कल ऊर्जा न केवल जीवन के लिए आवश्यक है बल्कि इसके बिना मानव गरिमा और सामाजिक न्याय की सुनिश्चित्ता संभव नहीं है | 

इसके बिना जीवन का अधिकार, स्वास्थ्य का अधिकार, शिक्षा का अधिकार, आवास का अधिकार, आर्थिक विकास और आजीविका, पर्यावरणीय स्थिरता की पूर्ती न सिर्फ अत्यधिक कठिन कार्य है  बल्कि असंभव जैसा है | 

क्यों कि ऊर्जा न सिर्फ जीवन के लिए आवश्यक घटक है बल्कि स्वच्छ आबोहवा, पीने योग्य पानी तथा जीवन रक्षक स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए भी आवश्यक है | 

ऊर्जा के बिना आधुनिक इलेक्ट्रॉनिक स्वास्थ्य उपकरण व्यर्थ हैं | जिससे जान पर आ पड़ती है | ऊर्जा तक आसान पहुंच के अभाव में देश का सम्पूर्ण मुस्तकबिल अर्थात बच्चे, ऑनलाइन शिक्षा और सीखने की प्रक्रिया से ही वंचित हो जायेगे | जिससे बच्चे और युवा शिक्षा के मानव अधिकार से वंचित होंगे | 

गरीब और आम आदमी तक ऊर्जा की पहुंच उसकी आर्थिक गतिविधियों को प्रोत्साहित करती है | जिसे छोटे-मोटे व्यवसाय चला कर आदमी अपना गुजारा कर लेता है | सौर ऊर्जा तक पहुंच पर्यावरण संतुलन में भी अत्यधिक योगदान देती है, जिससे जीवन के अधिकार के रूप में स्वच्छ पर्यावरण मिलता है |

सौर ऊर्जा: सतत और सुलभ ऊर्जा का स्रोत

ऊर्जा तक समान पहुँच एक मौलिक मानवाधिकार है, और सौर ऊर्जा इसकी कुंजी है।
Source:Tung Lam from Pixabay

सौर ऊर्जा सूर्य से प्राप्त होने वाली ऊर्जा है | सौर ऊर्जा नवीन ऊर्जा, क्लीन ऊर्जा और सस्टेनेबल एनर्जी के रूप में भी जानी जा रही है | सौर ऊर्जा का श्रोत सतत, सुलभ और असीमित है | यह विश्व भर में हर उस जगह पर`उपलब्ध है जहाँ सूर्य का प्रकाश पहुँचता है | 

सौर ऊर्जा स्वच्छ ऊर्जा की श्रेणी में आती है | इसमें किसी प्रकार का कार्बन उत्सर्जन नहीं होता है | जिससे वायु की गुणवत्ता बनी रहती है | इस ऊर्जा के कारण अन्य परम्परागत ऊर्जा श्रोतों पर निर्भरता कम हो रही है | इससे स्वच्छ और सतत भविष्य का रास्ता खुल रहा है | 

ग्रामीण और पिछड़े क्षेत्रों में सौर ऊर्जा की भूमिका

ग्रामीण क्षेत्रों में सौर ऊर्जा का महत्व विस्मयकारी है | अनेक ग्रामीण और पिछड़े इलाके अभी भी ऐसे है जहाँ बिजली की बहुत किल्लत रहती है ऐसी स्थति में ग्रामीणों की मददगार बनती है सौर ऊर्जा की उपलब्ध्ता | 

यह ऊर्जा ग्रामीणों की बिजली तक पहुंच के अधिकार की रक्षा करने का काम कर रही है | यह स्वच्छ और सतत ऊर्जा, शिक्षा, स्वास्थ्य, स्थानीय रोजगार और कृषि उत्पादों में बृद्धि में योगदान करती है| 

यह अन्य ऊर्जा अन्य श्रोतों पर निर्भरता कम करती है तथा सतत और टिकाऊ विकास की और ले जाती है | सौर समाधान से ग्रामीण विकास में भी तेजी आई है | 

भारत ने गावों में शतप्रतिशत (100 %) विधुतीकरण का लक्ष्य हासिल कर लिया है | लेकिन अभी सौर ऊर्जा के क्षेत्र में कार्य तेजी से किया जाना बाकी है | 

ऊर्जा तक पहुँच में मौजूद सामाजिक और आर्थिक बाधाएँ

अनेक प्रकार की सामाजिक और आर्थिक बाधाएँ अस्तित्व में हैं ,जो आम आदमी और गरीबों की ऊर्जा तक पहुंच में रोड़ा हैं | इन बाधाओं में सबसे प्रमुख गरीबी है | गरीबी मानवाधिकारों की सबसे बड़ी आक्रांता है | 

इसके अलावा बित्तीय संसाधनों की कमी, मॅहगी परम्परागत ऊर्जा उत्पादन प्रणाली, ऊर्जा उत्पादन के लिए बुनियादी ढांचे का अभाव,समाज में व्याप्त लैंगिक असमानता आदि इन बाधाओं में शामिल हैं | 

ये बाधाएं गरीब आदमी और वंचित समूहों को सौर ऊर्जा तक पहुँच से रोकती हैं | जिसके परिणाम स्वरुप उनके स्वास्थ्य, शिक्षा, भोजन और विकास के अधिकार पर बुरा असर पड़ता है | 

ऊर्जा गरीबी आर्थिक असमानता और सामाजिक अन्याय को जन्म देती है | क्यों कि अधिकाँश मानव अधिकारों की पूर्ती की बुनियाद ऊर्जा तक आसान पहुंच का अधिकार पर टिकी हुई है | 

भारत और वैश्विक स्तर पर नीति निर्माण की दिशा

सौर ऊर्जा के क्षेत्र में भारत विश्व में एक अग्रणी की भूमिका निभा रहा है | सौर ऊर्जा के क्षेत्र में भारत की देसी और विदेशी नीति के द्वारा नवाचार और आत्मनिर्भरता पर अधिक बल दिया जा रहा है | 

प्रगति की इसी कड़ी में भारत नेट-जीरो लक्ष्यों को हासिल करने की ओर अग्रसर है | इसका लक्ष्य 2070 तक निर्धारित किया गया है और वर्ष 2030 तक 500 गीगावाट्स क्लीन एनर्जी का लक्ष्य रखा गया है | 

इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए बड़े स्तर पर निवेश, नमोन्वेषण, नई तकनीकों का विकास  तथा अन्तराष्ट्रीय सहयोग महत्वपूर्ण है |

सौर ऊर्जा के क्षेत्र में भारत की मुख्य रणनीतियों में बड़े सौर पार्क बनाना, छत पर सौर पैनल लगाना और प्रधानमंत्री सूर्य घर योजना से ऊर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता हासिल करना शामिल है | 

प्रधान मंत्री सूर्य घर योजना के तहत घरों को सौर पैनल लगाने के लिए सब्सिडी (एक प्रकार की आर्थिक सहायता) प्रदान की जाती है।

भारत सरकार ने वर्ष 2024 में प्रधानमंत्री सूर्य घर : मुफ्त बिजली योजना के लिए 75,021 करोड़ रुपये की मंजूरी दी है | जिससे सौर ऊर्जा उत्पादन में बृद्धि हो तथा आवासीय घरों को स्वयं बिजली उत्पादन हेतु स्वावलम्बी बनाया जा सके | 

नेशनल इंस्टीटूशन ऑफ़ सोलर एनर्जी की भव्य इमारत
स्रोत:नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय की वेबसाइट 

नेशनल इंस्टीटूशन ऑफ़ सोलर एनर्जी की स्थापना भारत सरकार के ऊर्जा मंत्रालय द्वारा सौर ऊर्जा प्रौद्योगिकियों के क्षेत्र में अनुसंधान और नवोन्वेषण के लिए किया गया है | 






संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्य (SDGs) और ऊर्जा अधिकार

17 सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) पर प्रकाश डालता हुया यह चित्र

सयुंक्त राष्ट्र ने विश्व भर में लोगों के लिए एक अच्छा और टिकाऊ भविष्य प्रदान करने के उद्देश्य से 17 सतत विकास लक्ष्य (SDGs) को लेकर एक वैश्विक कार्य योजना तैयार की है | इन्हें सतत विकास लक्ष्य (SDGs)(Sustainable Development Goals) के नाम से जाना जाता है|

इन लक्ष्यों में से एक SDG -7 का उद्देश्य सभी के लिए सस्ती, सुगमता से उपलब्ध, टिकाऊ, स्वच्छ और आधुनिक ऊर्जा तक आसान पहुंच सुनिश्चित करना है | इसे ऊर्जा अधिकारों के समतुल्य स्वीकार किया गया है | 

इसके अतिरिक्त SDG -7  का उद्देश्य आम आदमी की ऊर्जा तक आसान पहुंच को एक मौलिक अधिकार के रूप में स्थापित करना है | क्यों कि अन्य मानव अधिकारों की सुनिश्चितता SDG -7 के लक्ष्य की आपूर्ति पर आधारित है | 

सौर ऊर्जा और जलवायु न्याय का आपसी संबंध

वैश्विक स्तर पर जलवायु परिवर्तन न्याय एक विस्तृत अवधारणा है | जलवायु परिवर्तन का प्रभाव असमान रूप से सर्वाधिक संख्या में हासिये पर स्थित लोग झेलने को विवश हैं | 

सौर ऊर्जा और जलवायु परिवर्तन न्याय एक दुसरे के पूरक है | सौर ऊर्जा स्वच्छ, सतत और सस्ती है जिसके उपयोग से ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कमी आती है और हमें जलवायु पर पड़ने वाले बुरे परिणामों से बचा सकती है | 

इनके अतिरिक्त हमें स्वच्छ वातावरण उपलब्ध होता है | जिससे हमारे स्वच्छ वातावरण के अधिकार की भी रक्षा होती है | 

सौर ऊर्जा तक ग्रामीण और पिछड़े क्षेत्रों में गरीब और हासिये पर स्थित लोगों की आसान पहुंच उन्हें  पर्यावरणीय न्याय (Climate Justice) दिलाने में सहायक है | 

ऊर्जा तक समान पहुँच को सुनिश्चित करने के लिए समाधान और सुझाव

सरकारों को ऊर्जा तक सामान पहुंच सुनिश्चित करने के लिए सौर समाधान के रूप में प्रबल राजनैतिक इच्छा शक्ति के साथ  प्राथमिकता के साथ सौर ऊर्जा जैसे ऊर्जा के वैकल्पिक श्रोतों में निवेश को बढ़ाना चाहिए | 

इसके साथ ही सौर ऊर्जा के क्षेत्र में ढांचागत सुधार, नवोन्वेषण, स्वच्छ सौर ऊर्जा के प्रति लोगों में जागरूकता कार्यक्रम योजना और इनके सुचारू संचालन और निगरानी तंत्र हेतु न्याय संगत और मानव अधिकार केंद्रित नियामक ढांचा तैयार किया जाना चाहिए | 

इसमें गरीबों और हासिये पर स्थित लोगों और समुदायों की जरूरतों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए | 

ग्रामीण और पिछड़े इलाकों में स्थापित की जाने वाली सामुदायिक सौर परियोजनाओं में बिना किसी भेदभाव के स्थानीय लोगो की भागीदारी सुनिश्चित की जानी चाहिए | 

ये ऊर्जा साझीदारी, सहस्वामित्व और सामूहिक स्वामित्व के सिद्धांत पर आधारित होने चाहिए | जिससे ऊर्जा न्याय की अवधारणा को साकार किया जा सके | 

सौर ऊर्जा क्षेत्र में नवीन वित्तीय ढाँचे का विकास और जनजागरूकता अभियान के माध्यम से लोगों को पारम्परिक ऊर्जा के उपयोग की बजाय सौर ऊर्जा के अधिक से अधिक उपयोग के लिए प्रेरित किया जा सकता है | 

जो परंपरागत ऊर्जा का वैकल्पिक श्रोत के रूप में दीर्घ कालीन समाधान सौर्य ऊर्जा के रूप में प्रदान करते है | 

निजी क्षेत्र को भी ऊर्जा तकनीकी में इन्नोवेशन के साथ निवेश करना होगा | वैश्विक स्तर पर नीति निर्माताओं को सौर नीतियों को मानवाधिकार केन्द्रित बनाने पर बल देना चाहिए | 

जिससे ऊर्जा वितरण में असमानता न पैदा हो सके तथा ऊर्जा न्याय संभव हो सके |अक्षय ऊर्जा रणनीति के सम्बन्ध में वैश्विक नीति निर्माताओं को यह भी ध्यान रखना होगा कि सौर ऊर्जा निति सम्बन्धी राजस्व का बटवारा कमजोर वर्गों और कमजोर देशों की आवश्यकताओं की पूर्ती के अनुकूल होना चाहिए |   

निष्कर्ष: सौर ऊर्जा एक न्यायपूर्ण और टिकाऊ भविष्य की ओर

आज के समय में सौर ऊर्जा परम्परागत ऊर्जा के मुकाबले स्वच्छ और नया ऊर्जा श्रोत है, बल्कि यह मानव जीवन के लिए घातक कार्बन उत्सर्जन और जलवायु परिवर्तन जैसी स्थतियों से निपटने में सक्षम है | 

सौर ऊर्जा आम आदमी और हासिये पर स्थित लोगो तक ऊर्जा की आसान पहुंच भी सुनिश्चित करने का बेहतरीन माध्यम है | यह परम्परागत जीवाश्म ईंधन श्रोतों पर लोगों की निर्भरता कम करता है |  

यह पर्यावरण का संरक्षण कर आमजन को स्वच्छ वातावरण उपलब्ध कराने में सहायक है | सौर ऊर्जा से बिजली की लागत कम होने से सरीबों और हासिये पर स्थित लोगों को रोजगार के अच्छे अवसर मुहैया होने के अवसरों में बृद्धि होती है | 

भारत जैसे विकासशील देश ने न सिर्फ सौर ऊर्जा को अपनाया है, बल्कि अपने नेट-जीरो उत्सर्जन लक्ष्य की दिशा में गंभीरता से आगे बढ़ रहा है | 

यही नहीं भारत सभी के लिए सस्ती, सुरक्षित और सतत सौर ऊर्जा की उपलब्धता सुनिश्चित करने की दिशा में भी भागीरथ प्रयास कर रहा है | 

एक न्याय संगत, समावेशी और मानवाधिकार केंद्रित ऊर्जा सतत भविष्य के निर्माण में सौर ऊर्जा की उपयोगिता केवल विकल्प नहीं ,बल्कि आवश्यकता बन चुकी है |

इसमें कोई अतिश्योक्ति नहीं है कि आज सौर ऊर्जा एक न्याय संगत और टिकाऊ भविष्य का पर्याय बन गई है |      

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs) :-

प्रश्न : भारत में सौर ऊर्जा का मानवाधिकारों से  किस प्रकार से सम्बंधित है?

उत्तर: भारत में सौर ऊर्जा तक आम आदमी, गरीबों और वंचित समूहों की समान पहुँच एक ऊर्जा न्याय और मानवाधिकार का मुद्दा है, जिससे उन्हें सौर ऊर्जा की सुलभ, सुरक्षित और सस्ती आपूर्ति सुनिश्चित की जा सकती है।

प्रश्न :  क्या ऊर्जा तक व्यक्ति  की पहुँच को मानवाधिकार माना गया है?

उत्तर: हाँ, संयुक्त राष्ट्र ऊर्जा तक समान पहुँच को मानवाधिकार का अभिन्न हिस्सा मानता हैं, खासकर जलवायु न्याय और सतत विकास लक्ष्य संख्या -7 के तहत।

प्रश्न : भारत सरकार सौर ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिए कौन-सी योजनाएँ चला रही है?

उत्तर: भारत सरकार ने ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में  सौर ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिए राष्ट्रीय सौर मिशन, और प्रधानमंत्री सूर्य घर : मुफ्त बिजली योजना, PM-KUSUM जैसी कई पहलें शुरू की हैं | 

प्रश्न : ऊर्जा न्याय से क्या तात्पर्य है?

उत्तर: ऊर्जा न्याय का अर्थ है कि सरकार द्वारा सभी लोगों और वर्गों को बिना भेदभाव के, सस्ती, स्वच्छ और सतत ऊर्जा उपलब्ध  कराना है । ऊर्जा न्याय पर्यावरण संरक्षण,,सतत विकास और मानव अधिकारों से जुड़ा हुया है |

प्रश्न :भारत में ऊर्जा समानता का अभाव किन क्षेत्रों में सबसे ज्यादा है?

उत्तर: भारत ऊर्जा समानता का अभाव ग्रामीण, आदिवासी और दूरदराज के क्षेत्रों में  सबसे ज्यादा है |

प्रश्न : सौर ऊर्जा में निवेश से मानवाधिकार कैसे सुरक्षित होते हैं?

उत्तर: सौर ऊर्जा में निवेश से गरीब और हाशिए पर मौजूद समुदायों को सस्ती और सतत ऊर्जा मिलती है, जिससे होने वाली बचत से उनकी शिक्षा, स्वास्थ्य और जीवन स्तर में सुधार होता है | यह सुधार उनकी मौलिक अधिकारों का संवर्धन करता है | 

प्रश्न : भारत में सौर ऊर्जा की स्तिथि क्या है ?

उत्तर : भारत विश्व का तीसरा सबसे बड़ा सौर ऊर्जा  उत्पादक देश बन गया है | जिसमे 2025 तक स्थापित क्षमता 105.65 गीगावाट से अधिक है | 

आशा है कि लेखक द्वारा सौर ऊर्जा और ऊर्जा तक समान पहुँच: एक मानवाधिकार दृष्टिकोण विषय पर दी हुई जानकारी आपको पसंद आई होगी | कृपया टिप्पणी  और फॉलो करना न भूलें | 

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