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शनिवार, 27 सितंबर 2025

जनरेटिव एआई और मानवाधिकार: चैटजीपीटी के बढ़ते प्रभाव का विश्लेषण

जनरेटिव आर्टिफिशल इंटेलिजेंस (AI) तकनीक,विशेषकर चैट जीपीटी जैसे औजारों का मानवीय जीवन में महत्व बहुत बढ़ गया है |
Image by Markus Winkler from Pixabay

प्रस्तावना 

आजकल जनरेटिव आर्टिफिशल इंटेलिजेंस(AI) तकनीक, विशेषकर चैटजीपीटी जैसे औजारों का मानवीय जीवन में महत्व बहुत बढ़ गया है | 

यह तकनीकी मनुष्य के जीवन, कार्य और उसके संवाद तथा भाषा को बदल रही हैं | समय के साथ इस तकनीकी में जितना बदलाव आ रहा है, उसी तरह मानव अधिकारों पर इसके प्रभाव को लेकर चिंताएँ भी तेजी से बढ़ रहीं हैं |  

प्रश्न उठ रहा है कि क्या चैट जीपीटी जैसी अत्याधुनिक आर्टिफिशल इंटेलिजेंस (AI) जैसी तकनीकी मनुष्य के लिए केवल मददगार है ? या मनुष्य की गोपनीयता, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, और रोज़गार जैसे मौलिक अधिकारों  के लिए खतरे की एक घंटी है ?

इस लेख में हैं हम समझने का प्रयास करेंगे कि जनरेटिव एआई कैसे मानव अधिकारों को प्रभावित कर सकता है ? भविष्य में मानव अधिकार उलंघन रोकने के लिए हम क्या -क्या कदम उठा सकते हैं ?  इसके अतिरिक्त भविष्य में  कैसे जनरेटिव एआई का भी मानव हित में भरपूर उपयोग कर सकें ? 

जनरेटिवे एआई क्या है ? 

जनरेटिव एआई (Ganerative AI) डेटा प्रोसेसिंग  करके नया कंटेंट जैसे टेक्स्ट, इमेज या म्यूजिक निर्मित करती है
Image by Riekus from Pixabay

जनरेटिव एआई (Ganerative AI) एक ऐसी तकनीकी है, जो डेटा को प्रोसेस करती है, जिसके परिणामस्वरुप उत्पाद के रूप में नया कंटेंट जैसे कि टेक्स्ट, इमेज या म्यूजिक निर्मित होता है | 

चैटजीपीती  एक जनरेटिव AI मॉडल है इसका विकास Open AI  द्वारा हुआ है | यह मशीन लर्निंग के माध्य्म से सीखता है तथा इसका कार्य बड़े स्तर पर टेक्स्ट डेटा पर आधारित होता है


चैटजीपीटी, जनरेटिव एआई और मानवाधिकार: मुख्य चिंता के क्षेत्र

चैटजीपीटी, जनरेटिव  AI और मानव अधिकारों के बीच गहरा सम्बन्ध है | जहाँ एक ओर ये आधुनिक तकनीकी मनुष्य का जीवन अत्यधिक सरल और सुगम बना रही है, वहीं दूसरी तरफ इनके कारण मनुष्य के सामने उनके मानव अधिकारों के उललंघन से जुड़े मुद्दों की चुनौती खड़ी हो गई है | वर्तमान में चैटजीटीपी का लेटेस्ट वर्शन Chat GTP-5 आया हुया है | 

विशेष तौर पर इन मुद्दों में रोजगार का अधिकार, निजता का अधिकार, समूह विशेष के विरुद्ध दुराग्रह तथा भेदभाव का ख़तरा, अभिव्यक्ति की स्वंत्रता को चुनौती,डीपफेक, भ्रामक सूचना और हेट स्पीच का ख़तरा आदि आते हैं |  

पूर्वाग्रह और भेदभाव (Bias and Discrimination)

जनरेटिव एआई का कार्य उस डेटा पर आधारित होता है जो कही न कही  मानव समाज द्वारा निर्मित होता है | 

डेटा जातिवाद, नस्लवाद, भाषावाद, क्षेत्रवाद, रंग, नस्ल या लिंग आधारित भेदभाव या पूर्वाग्रह से युक्त है, तो एआई भी अपने उत्तर में उस भेदभाव और पूर्वाग्रहों को दुहरा सकता है|
Image by UnratedStudio from Pixabay

अगर यह डेटा जातिवाद, नस्लवाद, भाषावाद, क्षेत्रवाद, रंग, नस्ल या लिंग आधारित भेदभाव या पूर्वाग्रह से भरा हुआ है, तो एआई भी अपने उत्तर में उस भेदभाव और पूर्वाग्रहों को दुहरा सकता है| 

जिससे सामाजिक नियंत्रण गंभीर रूप से प्रभावित हो सकता है तथा मानव अधिकारो के लिए भी यह गंभीर खतरे का कारण बन सकता है |

उदाहरण स्वरुप यदि कोई चैटजीपीटी किसी समुदाय विशेष के विरुद्ध पक्षपातपूर्ण तथा नकारात्मक सूचनाएं देता है, तो उस समुदाय विशेष के मानव अधिकारों का उलंघन हो सकता है तथा वह समुदाय उग्र और आक्रोशित हो सकता है | 

किसी भी तरह का दुराग्रह और भेदभाव किसी भी समुदाय की मानव गरिमा (Human Dignity) और बराबरी के अधिकार को प्रभावित करता है।

निजता के अधिकार का उलंघन 

गोपनीय जानकारी का चैट जीपीटी या  जनरेटिवे एआईद्वारा उपयोग निजता के अधिकार के उलंघन की श्रेणी में आएगा | निजता का अधिकार एक मौलिक मानव अधिकार होता है
Image by Miloslav Hamřík from Pixabay

चैटजीपीटी जैसे औजारों को प्रशिक्षित करने के लिए लाखों पन्नों के डेटा की आवश्यकता होती है | यदि उन पन्नों में उपयोगकर्ता की निजी  या गोपनीय जानकारी है तो चैटजीपीटी जैसा औजार उसका उपयोग कर सकता है | 

इन लाखों पन्नों में से किसी की गोपनीय जानकारी का चैट जीपीटी द्वारा उपयोग निजता के अधिकार के उलंघन की श्रेणी में आएगा | निजता का अधिकार एक मौलिक मानव अधिकार होता है इसलिए यह एक गंभीर चिंता का विषय है | 

AI और चैट जीपीटी का रोजगार पर मड़राता खतरा 

चैट जीपीटी जैसे एआई (AI) मॉडल कई मानवीय कार्यों को तेजी और सटीकता के साथ कई व्यक्तियों के बराबर कार्य करने में सक्षम हैं |
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चैट जीपीटी जैसे एआई (AI) मॉडल कई मानवीय कार्यों को करने में तेजी और सटीकता के साथ करने में सक्षम हैं | यह कई व्यक्तियों के बराबर कार्य कर सकने में सक्षम है |  

ऐसी स्तिथि में विकासशील देशों में श्रम की कीमत में कटौती करने ले लिए चैट जीपीटी जैसे एआई (AI) मॉडल के उपयोग को बढ़ावा दे सकते हैं |  

जनरेटिवे एआई और चैटजीपीटी से बेरोजगारों की लम्बी लाइन लगने की संभावना से मानवाधिकार उल्लंघन के आसार
Image by Simp1e123 from Pixabay

ऐसी स्थति में लेखन, कस्टमर सपोर्ट, कोडिंग, डाटा एनालिसिस, डिजाइनिंग आदि जैसे क्षेत्रों में कार्यरत लोगों की नौकरियां निश्चित रूप से नकारात्मक रूप से प्रभावित होने की संभावना रहेगी|

परिणामस्वरूप बेरोजगारों की लम्बी लाइन लग जाएगी इस बात की प्रबल सम्भावनाये हैं | 

इस प्रकार काम करने का अधिकार(Right to Work) गंभीर रूप से खतरे में पड़ सकता है | ऐसी परिस्थितियों में समाज के भीतर उथल-पुथल होती है और कभी -कभी युवाओं में आक्रोश की स्थिति भी बन जाती है |  


चैटजीपीटी और AI का अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रभाव

प्रशिक्षित एआई मॉडल तथा चैटजीपीटी कुछ विचारो या भाषा को सेंसर करने में सक्षम है, जो अभिव्यक्ति के अधिकार का उलंघन करता है |
Image by Steve Buissinne from Pixabay

आप भली-भांति जानते होंगे कि किस प्रकार सरकारें अपने विरोधियों के अभिव्यक्ति के अधिकार में रोड़ा अटकाती हैं ?  

यदि एआई मॉडल को इस प्रकार प्रशिक्षित किया जाता है कि कुछ विचारो या भाषा को सेंसर करे तो वह इस काम को करने में सक्षम है और करता है | 

इस कार्य से निश्चित रूप से लोगों के अभिव्यक्ति के अधिकार का उलंघन होता है | 

एआई द्वारा डीपफेक, भ्रामक सूचना और हेट स्पीच का खतरा 

चैट जीपीटी जैसे  डिजिटिल औजारों का दुरूपयोग करके आसानी से  फेक न्यूज़ बनाई जा सकती है और इसके प्रसार से समाज में दुष्प्रचार और नफरत भी फैलाई जा सकती है |

चैट जीपीटी जैसे  डिजिटिल औजारों का दुरूपयोग करके आसानी से  फेक न्यूज़ बनाई जा सकती है और इसके प्रसार से समाज में दुष्प्रचार और नफरत भी फैलाई जा सकती है | 

आर्टिफीसियल इंटेलीजेंस (AI) आधारित डीपफेक तकनीकी तेजी से बढ़ रही है | कुछ वर्ष पूर्व पीएम मोदी ने मीडिया को बताया कि एक वीडिओ आया है जिसमे वे गरबा खेलते हुए दिखाए गए हैं | जबकि वह वीडियो नकली है | 

यही नहीं प्रधानमंत्री ने कहा कि इसके दुरूपयोग से झूठी जानकारी फ़ैल सकती हैं | पीएम ने AI तकनीकी के दुरुपयोग को रोकने के लिए जनता को इसके बारे में जाग्रत करने के लिये मीडिया की मदद भी मांगी है | 


वीडियो, चित्र और ऑडियो सामग्री से एक एक अति-यथार्थवादी डिजिटल मीडिया बनता है जो अवास्तविक होते हुए भी वास्तविक जैसा  जैसा लगता है | यह न सिर्फ गलत सूचना का प्रसार करता है, बल्कि यह गोपनीयता और सुरक्षा के के मानव अधिकारों को भी खतरे में डालता है |
Image by Sammy-Sander from Pixabay edited at Canva

अभी कुछ महीने पहले तेलंगाना के मुख्यमंत्री का डीपफेक वीडियो वायरल कर दिया  गया | 

अभी हाल ही में बेंगलूरू के 57 वर्षीय एक व्यक्ति ने विश्व प्रसिद्ध आध्यात्मिक गुरु सद्गुरु के AI -जनरेटेड डीपफेक वीडियो पर भरोसा करते हुए 3.75 करोड़ रुपये का इन्वेस्ट कर दिया | बाद में उसके पैसे वापस न होने पर उसे पता लगा कि उसके साथ ठगी हो गई है | 

कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) के टूल्स का उपयोग करते हुए बनाई गई डीपफेक डिजिटल सामिग्री का न सिर्फ 27 वर्षीय अभिनेत्री रश्मिका मंदाना शिकार हुई बल्कि विश्व प्रसिद्ध मेगास्टार प्रियंका चोपड़ा जोनास, आलिया भट्ट जैसे वॉलीवुड सितारे भी इसकी चपेट में आ चुके हैं |

देश की आधी आबादी, जो कि महिलाएं हैं, के लिए यह अत्यधिक चिंता का विषय है | 

आजकल राजनैतिक पार्टियां डीपफेक का उपयोग अपने इलेक्शन को जीतने के लिए भी कर रही हैं | लेकिन यह सबकुछ प्रत्यक्ष रूप से नहीं होता है |     

 AI नीति निर्माण में नागरिक समाज की भागीदारी

नागरिक समाज, मानवाधिकार संगठनों, लोकतंत्र के चौथे स्थम्ब से पत्रकारों, शिक्षकों और तकनीकी विशेषज्ञों,आम नागरिकों आदि सभी की AI नीति निर्माण में भागीदारी सुनिश्चित करनी चाहिए |
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भविष्य में आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस (AI) तकनीकी को मानव अधिकार केंद्रित बनाये रखने के लिए सिर्फ कंपनियों और सरकार को कार्य नहीं करना चाहिए | 

बल्कि नागरिक समाज, मानवाधिकार संगठनों, लोकतंत्र के चौथे स्तंभ से पत्रकारों, शिक्षकों और तकनीकी विशेषज्ञों,आम नागरिकों आदि सभी की AI नीति निर्माण में भागीदारी सुनिश्चित करनी चाहिए | 

इसके बाद ही संभव है कि AI आम लोगो के मानवाधिकार समर्थन में कार्य करेगा, न कि उनके बिरोध में | 

व्यवसायों के नैतिक और कानूनी उत्तरदायित्व 


व्यवसायों को AI तकनीकी सम्बन्धी उत्पाद बनाते समय मानवाधिकार सिद्धांतों को केंद्र में रखना चाहिए अर्थात उत्पाद डिजायन में मानव अधिकार सिद्धांतों का ध्यान रखा गया हो |  

कम्पनी का उत्पाद ,मॉडल पारदर्शी, उत्तरदायी और सुरक्षित हो, उपयोगकर्ताओं की गोपनीयता का उलंघन नहीं करता हो तथा पूर्वाग्राग अवं भेदभाव से मुक्त होना चाहिए | 

AI द्वारा हानि की स्थति में जवाबदेही  की सुनिश्चितता 


अनेको बार चैटबॉट्स उपयोगकर्ता को गलत या हानिकारक जानकारी दे देते हैं, जिसके कारण उसे छति उठानी पड़ती है| इस स्थति में कंपनियां तकनीकी सीमा का हवाला देकर अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लेती हैं | 

इस समस्या के समाधान के लिए आवश्यक है कि सरकार कंपनियों के लिए नीतिया बनाएं, जिसके तहत उनका जिमेदारी से भागना संभव न हो सके | जिसके लिए आवश्यक है कि उपयोगकर्ता के लिए शिकायत तंत्र स्थापित किया जाए तथा उलंघन की स्तिथि में कार्यवाही सुनिश्चित की जाय|  

निष्कर्ष:

यद्धपि जनरेटिव एआई और चैटजीपीटी जैसे आधुनिक डिजिटल औजार  टिकाऊ/सतत विकास के लिए अत्यधिक आवश्यक हैं | 

फिर भी यदि इन्हे बिना निगरानी और दिशा निर्देशों के बेलगाम छोड़ा गया तो भविष्य में ये मानव अधिकारों के लिए के लिए गंभीर खतरा पैदा कर सकते हैं। इनकी निगरानी, दिशानिर्देशों और कानूनी बाध्यताओं के लिए एक कठोर क़ानून की आवश्यकता है |  

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न ( FAQs);-

प्रश्न :  जनरेटिव एआई क्या है ? 

उत्तर: जनरेटिव एआई एक प्रकार की कृत्रिम बुद्धिमत्ता (Artificial Inteligence ) तकनीक है, जो टेक्स्ट, चित्र, वीडियो, और संगीत जैसी नई सामग्री बना सकता है | 

प्रश्न :  जनरेटिव एआई कैसे काम करता है?

उत्तर : यह मशीन लर्निंग एल्गोरिद्म के आधार पर बड़े डेटा सेट्स से पैटर्न सीखकर नए टेक्स्ट, चित्र, म्यूजिक, वीडियो आदि बना सकता है।

प्रश्न : ChatGPT (चैटजीपीटी) क्या है ? 

उत्तर : ChatGPT (चैटजीपीटी) एक कृत्रिम बुद्धिमत्ता(AI)चैटबॉट है, जिसे ओपन एआई द्वारा विकसित किया गया है, जो उपयोगकर्ताओं के सवालों और अनुरोधों पर प्राकृतिक भाषा में उत्तर देता है। 

प्रश्न : चैटजीपीटी मानवाधिकारों को कैसे प्रभावित कर सकता है?

उत्तर: चैटजीपीटी बिना नियमन के पूर्वाग्रह, भेदभाव, निजता हनन, गलत सूचना फैलाना, और नौकरियों के नुकसान जैसे मानवाधिकार उल्लंघन को बढ़ावा दे सकते हैं | अर्थात ये तकनीकें सामाजिक असमानता को बढ़ा सकती हैं।

प्रश्न :  क्या चैटजीपीटी जैसे AI टूल्स के लिए कोई कानूनी प्रावधान हैं?

उत्तर: अभी तक जनरेटिव एआई के लिए वैश्विक स्तर पर कोई एक समान कानून नहीं है। लेकिन, कई देश इसके सम्बन्ध नीतियां और क़ानून बना रहे हैं | ताकि इन तकनीकों का उपयोग मानवाधिकारों के  संरक्षण में हो सके।

प्रश्न : क्या चैटजीपीटी से नौकरियों पर असर पड़ सकता है?

उत्तर: हाँ ,क्यों कि चैटजीपीटी कई कार्यों को बहुत तेजी के साथ करता है | इस कारण अनेक लोगो की नौकरी पर ख़तरा हो सकता है तथा रोजगार के अवसर में कमी आ सकती है | 

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