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शनिवार, 11 अक्टूबर 2025

करवा चौथ और मानव अधिकार: परंपरा बनाम स्वतंत्रता का विश्लेषण

करवा चौथ के पर्व के लिए अपने हाथों पर महदी लगवातीं महिलाएँ
Image by Mike Lukin from Pixabay edited by Canva
प्रस्तावना

भारत विश्व भर में विविधताओं के देश के रूप में जाना जाता है | यहाँ अनेक त्यौहार मनाये जाते हैं और उनके पीछे एक परम्परा होती है जो समाज की सोच और संस्कृति के दर्शन कराती है | 

करवा चौथ भी एक त्यौहार है जिसे मुख्य रूप से उत्तर भारत की विवाहित महिलाओं द्वारा अपने पतियों की दीर्घायु की कामना करते हुए व्रत रख कर मनाया जाता है | 

यह त्यौहार महिलाओं के प्रेम, समर्पण और त्याग का प्रतीक माना जाता है | लेकिन, क्या यह परंपरा महिलाओं के मानव अधिकारों, लैंगिक समानता और स्वतंत्रता के मूल्यों और अधिकारों के अनुकूल है? 

इस लेख में हम करवा चौथ के पावन त्यौहार का मानव अधिकारों के सन्दर्भ में विश्लेषण करेंगे और यह जानने का प्रयास करेंगे कि यह परम्परा आज की मानव अधिकार केंद्रित सोच के अनुकूल है | 

करवा चौथ: एक सांस्कृतिक परंपरा

करवा चौथ  एक सांस्कृतिक परम्परा का  हिस्सा है | यह परम्परा प्राचीन काल से चली आ रही है | इस दिन विवाहित स्त्रियाँ  सुबह से लेकर और चंद्रमा दर्शन तक व्रत रखती हैं। 

इस त्यौहार से कई लोक कथाये जुडी हुई हैं | जिसमे एक स्त्री के पति की मृत्यु होने की बाद उसकी जान बचाने के लिए अथक प्रयास करती है और अंत में व्रत और कठोर आस्था के बूते पर वह अपने पति को जीवित करने में सफल हो जाती है | 

इस प्रकार करवा चौथ का त्यौहार विशेषकर सिर्फ महिलाओं के लिए, बल्कि पुरुषों के लिए भी  न सिर्फ धार्मिक महत्व रखता है बल्कि सामाजिक और भावनात्मक महत्व भी रखता है | 

करवा चौथ पर ह्रदय विदारक घटना

अभी हाल ही में करवा चौथ के दिन उत्तर प्रदेश के उरई जिले में एक दुर्घटना हुई | एक व्यक्ति करवा चौथ से पहले जूए में रूपये हार गया और उसने पत्नी के गहने गिरवी रख दिए | 

पत्नी से वादा किया था की करवा चौथ पर गहने छुड़ा लाएगा | लेकिन यह हो न सका | इससे छुब्ध होकर उसने आत्महत्या कर ली | पत्नी ने व्रत रखा था  तथा उसके ३ बच्चे हैं |  

मानव अधिकार और करवा चौथ

1. व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार

हर व्यक्ति को यह स्वंत्रता और अधिकार है कि वह अपने अनुसार धार्मिक, सामाजिक मामलों में   निजी पसंद के अनुसार निर्णय ले सके | जब कोई महिला अपनी इच्छा के अनुसार व्रत रखती है तो यह उसकी स्वयं की व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अभिन्न अंग है | 

लेकिन यदि यदि ये परंपरा वह किसी सामाजिक या पारिवारिक अपेक्षा या दबाब में निभाने को विवश होती है तो यह उसके मानव अधिकार का उल्लंघन का रूप धारण कर लेता है | 

हर इंसान को यह अधिकार है कि वह अपनी धार्मिक, सामाजिक और निजी पसंद के अनुसार निर्णय ले सके। 

जब कोई महिला अपनी इच्छा से करवा चौथ का व्रत रखती है, तो यह उसकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता का हिस्सा है। 

समाज ने पीरियड्स के समय किचन में न घुसने देने की घिसी- पिटी परम्परा को दरकिनार करते हुए स्त्रियों के लिए घर में ओप्पन किचिन (खुली रसोई जिसमे प्रवेश करने के लिए कोई दरवाजा ही नहीं होता है ) की व्यवस्था को तहे दिल से अपना लिया है |
Image by Rudy and Peter Skitterians from Pixabay
लेकिन यदि यह परंपरा, सामाजिक दबाव, परिवार की अपेक्षा या डर के कारण निभाई जाती है, तो यह अधिकार का उल्लंघन बन जाता है।

एक दौर था जब भारत में पीरियड्स से गुजर रही महिलाओं को घर की किचिन (रसोई ) में जाने से रोक दिया जाता था | 

लेकिन आज उसी उन्नत समाज ने उस घिसी- पिटी परम्परा को दरकिनार करते हुए स्त्रियों के लिए घर में ओप्पन किचिन (खुली रसोई जिसमे प्रवेश करने के लिए कोई दरवाजा ही नहीं होता है ) की व्यवस्था को तहे दिल से अपना लिया है | यह कैसी परम्परा थी जिसमे रसोई की मालकिन को ही रसोई में घुसने का अधिकार नहीं होता था | 

2. करवा चौथ की परंपरा क्यों है लैंगिक समानता का मुद्दा?

करवा चौथ की परंपरा का केंद्र बिंदु मुख्य रूप से महिलाये हैं। करवा चौथ की परंपरा में पुरुषों से अपनी पत्नी की दीर्घायु के लिए व्रत रखने की किसी भी पारिवारिक या सामाजिक अपेक्षा की उम्मीद नहीं की जाती है | बस यही है जो समाज में लैंगिक असमानता को दर्शाता है।

हालांकि हाल के कुछ वर्षों में पुरुषों ने भी इस परम्परा को आगे बढ़ाते हुए महिलाओं के साथ व्रत रखने में कंधे से कंधा मिलाया है, लेकिन यह अभी तक अपवाद स्वरूप ही है | 

जब तक इस परम्परा का स्वरुप एकतरफा बना रहेगा तब तक बराबरी के मूल सिद्धांत और लैंगिक समानता का प्रश्न उठता रहेगा |  

3. महिला का स्वास्थ्य और शारीरिक अधिकार

करवा चौथ में महिलाएं सुबह से लेकर चाँद दिखाई देने तक निर्जला व्रत रखती हैं, चाहे वे किसी भी स्थति में हों, जैसे कि वे बीमार हों, गर्भवती हों या अन्य स्वास्थ्य कारणों से व्रत रखने में सक्षम न हों, फिर भी पारिवारिक या सामाजिक दबाब के वसीभूत होकर उन्हें व्रत रखना पड़ता है | यह स्थति उनके शरीर पर उनका अधिकार (Right  to Bodily Autonomy) के उल्लंघन में मानी जाती है |   

मीडिया और बाजारवाद की भूमिका

आधुनिक समाज पर मीडिया और बाजारवाद का गहरा असर हुया है | मीडिया और कॉर्पोरेट घरानो ने महिलाओं के इस पवित्र परम्परा आधारित पर्व को आधुनिक "फैशन इवेंट"  बना दिया है | 

करवा चौथ पर महिलाओं की खरीददारी के लिए सजती दुकाने और बाजार
Image by Suket Dedhia from Pixabay
कॉर्पोरटे घराने  इस उत्सव का भरपूर व्यवसायिक लाभ उठाते हैं | महिलाएं इस पर्व का महीनो पहले से इन्तजार और तैयारी शुरू कर देती है |  

महिलाओं द्वारा इस पर्व पर मॅहगी साज-सज्जा, मेहंदी, महंगे कपड़े, गहने और उपहार खरीदे जाते हैं| मीडिया और कॉर्पोरेट के प्रभाव ने इस मॅहगी  खरीददारी को इस त्यौहार का एक अनिवार्य हिस्सा बना हैं। 

त्यौहार के आने से पहले ही वॉलीवुड फिल्मो के सितारे और विज्ञापन करवा चौथ के पर्व को एक महिला के सम्बन्ध में आदर्श पत्नी के रूप में प्रस्तुत करते हैं | जो अपने पति के लिए व्रत रखती है | भूखी रहती है | त्याग करती है | प्रेम का अथाह प्रदर्शन करती है | 

इस सारी मीडिया और कॉर्पोरेट गठजोड़ की कवायत से  महिलाओं और पुरुषों दोनों पर एक सामाजिक दबाब निर्मित होता है | 

विशेष रूप से महिलाओं पर अलग तरह का दबाब पड़ता है जिमे वह सोचने लगती है कि  वह त्यौहार सम्बन्धी परम्परागत गतिविधयों का अनुसरण नहीं करेगी तो वह अपने रिश्ते को पूर्ण सम्मान नहीं दे पाएगी | 

यही दबाब उसको जीने नहीं देता है और परिणाम स्वरुप घर में नई - नई  समस्याएं जन्म लेने लगती हैं तथा संबंधों में दरार आ जाती है | अक्सर इनके नतीजे अख़बारों की सुर्खियाँ बन जाते हैं |

सामाजिक तथा पारिवारिक दबाव और मानसिक स्वास्थ्य

आजकल अधिकांश माँ- बाप अपने बच्चों को अंगरेजी स्कूलों में पढ़ाना पसंद करते हैं | जिसके चलते उनके मन वैज्ञानिक प्रबृति की ओर झुकने लगते हैं और बच्चे खुले स्वभाव के भी हो जाते हैं |

पति-पत्नी दोनों करवा चौथ का व्रत करते हुए - लैंगिक समानता की ओर कदम
Image by Anil sharma from Pixabay
अधिकांश परिवार बेटी के तौर पर किसी किसी प्रकार की बंदिश, चाहे वह धार्मिक या परंपरा से जुडी हो, पसंद नहीं करते हैं, लेकिन बहु के रूप में सभी परम्पराओं के पालन की उम्मीद करते हैं | यही टकराव का केंद्र बिंदु बनता है | 

कई महिलायों को पति, सास -ससुर का डर करवा चौथ का व्रत रखने के लिए विवश कर सकता है | 

इससे महिलाओं में उनके भविष्य के प्रति डर, मानसिक तनाव, आत्मबल का अभाव, अपराध बोध जैसे भाव पैदा हो सकते हैं | 

यह अपराध बोध के लक्षण धीरे - धीरे  पारिवारिक कलह और विवादों में बदल जाते है | जो उनके शारीरिक मानसिक स्वास्थ्य के लिए घातक सिद्ध हो सकते हैं और उनके मानव अधिकारों के उल्लंघन के लिए उत्तरदाई हो सकते हैं | 

महिलाओं पर किसी तरह की परम्परा की अनिवार्यता उनके मानव अधिकारों पर गंभीर आघात होता है | आजकल किसी भी धार्मिक परम्परा को महिलाओं के अधिकारों का उलंघन करके आगे नहीं बढ़ाया जा सकता है | 

उन्हें सिर्फ और सिर्फ प्रेम और श्रद्धा के साथ ही आगे बढ़ाया जा सकता है, किसी तरह के डर और दबाब के साथ नहीं | 

सकारात्मक बदलाव के लिए बदलती युवाओं की सोच 

लैंगिक असमानता की बेड़ियों को तोड़ने के लिए तैयार भारतीय युवा पुरुष वर्ग
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समाज सदैव परिवर्तनशील रहता है | समय के साथ- साथ आज भी समाज में बदलाव दिखाई दे रहा है | नई पीढ़ी की महिलाएँ और पुरुष अब इन परंपराओं को नए दृष्टिकोण से देखने लगे हैं। 

नए युवा समाज में नए उदाहरण पेश कर रहे हैं | कई पति- पत्नी दोनो मिलकर अब उपवास रखते हैं | परंपरागत लैंगिक असमानता ध्वस्त हो रही है | क्या पत्नी को ही पति की दीर्घायु की आवश्यकता है ?

क्या पति को पत्नी की दीर्घ आयु की कोई आवश्यकता नहीं है ? वास्तव में दोनों को दोनों की बराबर आवश्यकता है तथा दोनों एक दुसरे के पूरक हैं | 

आज का युवा पितृ सत्तात्मक सोच का त्याग करने को धीरे -धीरे ही सही लेकिन तैयार जरूर हो रहा है| इस बात की तस्दीक सोशल मीडिया पर समय समय पर युवाओं द्वारा चलाये गए  "Mutual Karwa Chauth" और "Choice-based fasting" जैसे ट्रेंड्स को देख कर की जा सकती है | 

परम्परा बनाम अधिकार: संतुलन की आवश्यकता 

परम्पराएं सदैव से धर्म और संस्कृति का अभिन्न अंग रही हैं | वर्तमान में धार्मिक स्वतंत्रता को भी एक मौलिक मानव अधिकार का दर्जा दिया हुया है। 

लेकिन परम्परा के नाम पर जब किसी की स्वतंत्रता, समानता या स्वास्थ्य के अधिकारों का उल्लंघन हो, तब प्रश्न उठना लाजमी हो जाता  है | 

करवा चौथ से मुँह मोड़ने की बजाय महिलाओं को व्रत रखने या न रखने की स्वतंत्रता दी जाए | पुरुष भी बराबर की भागीदारी निभाए | 

शारीरिक स्वास्थय और मानसिक स्वास्थ्य के मानव अधिकारों को व्रत की परम्परा पर प्राथमिकता दी जाए |   

निष्कर्ष

करवा चौथ भारतीय त्यौहारों में से एक अनोखा त्यौहार है जिसमे महिलाओं की सक्रीय भागीदारी होती है | यह महिला केंद्रित अद्भुत परम्परा है, जो महिलाओ के प्रेम, समर्पण और त्याग की भावनाओं को दर्शाती है | 

लेकिन आजकल के समय में इसे आंखमूंद कर अनुसरण करने की बजाय सोच समझ कर अनुसरण करना जरूरी है | इसके पीछे कुछ वास्तविकताएं हैं जिन्हे झुठलाना या नजर अंदाज करना उनके लिए हानिकारक हो सकता है | 

मानव अधिकारों, जिसमें महिला अधिकार और लैंगिक समानताएँ भी शामिल हैं, के नजरिये से यह अत्यधिक तार्किक और आवश्यक है |  

इस त्यौहार को स्वेच्छा, समझदारी, आपसी सूज-बूझ, और पारस्परिक सम्मान के साथ मनाया जाए -ना कि सामाजिक दबाब, दिखावे और परम्परा के बोझ के तहत | जबकि हर घर की आर्थिक स्थति अलग-अलग होती है | 

यदि कोई स्त्री अपनी इच्छा से पूरी आजादी से  स्वयं की प्रेरणा से करवा चौथ का व्रत रखती है तो यह उसका अधिकार है | 

लेकिन उसे उसकी इच्छा के विरुद्ध यह सब करने के लिए कहा जाता है तो यह यह परम्परा नहीं बल्कि एक सामाजिक दबाब है | हर सामाजिक और पारिवारिक दबाब महिला मानवाधिकारों के विरुद्ध है | 

यदि महिला गर्भवती है या किसी गंभीर रोग से ग्रस्त है या वह स्वयं व्रत रखने की इच्छुक नहीं है, ऐसी स्थति में उसे प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से व्रत रखने के लिए विवश करना उसके अधिकारों के खिलाफ है | यह उसके स्वास्थ्य के मानव अधिकार का उल्लंघन होगा | 

करवा चौथ के पावन पर्व को परम्परा और महिला मानवाधिकार के बीच संतुलन बनाते हुए एक समावेशी और लैंगिक समानता के रूप में अपनाना वर्तमान समय की बड़ी आवश्यकता है | जिससे परम्परा और महिला अधिकार दोनों साथ साथ चल सकेंगे |  


अक्सर पूछे जाने वाले सवाल (FAQ ):-

प्रश्न : करवा चौथ  का पर्व  क्यों मनाया जाता है?

उत्तर: करवा चौथ मुख्य रूप से विवाहित स्त्रियों द्वारा मनाया जाता है | इस पर्व पर स्त्रियाँ पूरे दिन निर्जला व्रत रखती हैं और अपने पति की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि की कामना करती हैं | 

प्रश्न : क्या करवा चौथ महिला अधिकारों का उल्लंघन करता है?

उत्तर: नहीं | यदि महिला स्वेच्छा से व्रत रखती है तो यह उसका अधिकार है | लेकिन किसी महिला को करवा चौथ का व्रत सामाजिक दबाब, पारिवारिक  मजबूरी या डर के कारण रखना पड़ता है| तो यह निश्चित तौर पर उसके मानव अधिकारों का उल्लंघन माना जा सकता है, जिसमे व्यक्तिगत स्वतंत्रता भी शामिल है | 

प्रश्न : क्या पुरुष भी करवा चौथ का व्रत रखते हैं?

उत्तर: हाँ | हाल के वर्षों में अनेक पुरुष भी करवा चौथ का व्रत रखने लगे हैं ताकि अपनी पत्नी  के प्रति सम्मान और समानता प्रदर्शित कर सके | 

यधपि अभी भी यह सामान्य अभ्यास नहीं है | लेकिन यह लैंगिक समानता की दिशा में एक महत्वपूर्ण सकारात्मक पहल है।

प्रश्न : करवा चौथ का व्रत न रखना क्या गलत माना जाता है?

उत्तर: कुछ पुरातन सोच रखने वाले परिवारों में करवा चौथ का व्रत न रखने वाली महिलाओं को बुराई का सामना करना पड़ सकता है। लेकिन आधुनिक परिवारों में व्रत रखना या न रखना नितांत व्यक्तिगत विषय है और इसके लिए किसी महिला को तंग तथा परेशान नहीं किया जाना चाहिए |

प्रश्न : क्या करवा चौथ की परंपरा और आधुनिकता में संतुलन संभव है?

उत्तर: क्यों नहीं संभव है, हाँ संभव है | यदि करवा चौथ को पति-पत्नी दोनों बिना किसी लैंगिक भेदभाव के अपनाएँ, सिर्फ महिला के ऊपर न थोपा जाए तो निश्चित रूप से परम्परा और स्वंत्रता के बीच बेहतर संतुलन की गुंजाइश है | 

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शुक्रवार, 10 अक्टूबर 2025

डिजिटल डिटॉक्स: टेक्नोलॉजी से ब्रेक लेकर मानव अधिकारों की सुरक्षा कैसे करें?

आज डिजिटल टेक्नोलॉजी ने हमारे जीवन के हर हिस्से में अपना स्थान बना लिया है | एक लड़की डिजिटल उपकरणों के साथ |
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प्रस्तावना 

आज का दौर डिजिटल टेक्नोलॉजी की क्रांति का दौर है | आज डिजिटल टेक्नोलॉजी ने हमारे जीवन के हर हिस्से में अपना स्थान बना लिया है | 

चाहे वो कुछ भी हो -हमारे काम हों, आपसी संवाद हों, मनोरंजन हो, घूमना-फिरना हो, या सामाजिक मेल -जोल हो | डिजिटल टेक्नोलॉजी ने मोबाइल, टेबलेट, कंप्यूटर, लेपटॉप जैसे आधुनिक औजार उपलब्ध कराएं हैं | जिनके कारण सम्पूर्ण विश्व एक गाँव के रूप में तब्दील हो गया है|

डिजिटल टेक्नोलॉजी के ये औजार इतने सशक्त हैं  कि इनके कारण आम आदमी का जीवन सरल और सुगम बन गया है | लेकिन दूसरी ओर मनुष्य के समक्ष शारीरिक, मानसिक, पारिवारिक और सामाजिक समस्याएं भी खड़ी कर दी हैं | 

प्रश्न यह है की क्या इस डिजिटल टेक्नोलॉजी की कीमत हमें चुकानी होगी ? क्या इस आधुनिक डिजिटल टेक्नोलॉजी से हमारा स्वास्थ्य भी प्रभावित  हो रहा है ? 

इस लेख में हम जानेगे कि डिजिटल डिटॉक्स क्या है ? और क्यों यह हमारे मानव अधिकारों की रक्षा के लिए एक अच्छा और आवश्यक उपचार है? 

साथ ही जानेंगे डिजिटल डिटॉक्स लेने की कला और इसके फायदे | डिजिटल टेक्नोलॉजी से ब्रेक लेने के प्रभावी तरीकों को भी समझने का प्रयास करेंगे | 

डिजिटल डिटॉक्स क्या है ?

डिजिटल डिटॉक्स का तात्पर्य ऐसी छुट्टी से है जो अपने रोज मर्रा के डिजिटल उपकरणों या डिजिटल स्क्रीन से कुछ समय के लिए या अधिक समय के लिए ली जाती है | 

जिससे हमारा मस्तिष्क समय -समय पर डिजिटल टेक्नोलॉजी के शोर शराबे से दूर होकर पूरी तरह कुछ आराम पा सके | इस छुट्टी का मतलब सिर्फ डिजिटल टेक्नोलॉजी से दूरी नहीं है बल्कि डिजिटल टेक्नोलॉजी के चलते अनायास खोते जा रहे  शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के पुनर्निर्माण और दुबारा पाने की प्रक्रिया है | 

फोन की लत लगने से हुईं कुछ हृदय बिदारक घटनाएं 

मोबाइल फोन की लत और उसके गैर जिम्मेदाराना उपयोग से अनेक लोग ट्रैन से काट कर जान गवां देते है  |
Source: Pixabay

छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले में लगभग 14 साल की उम्र के दो लड़के पद्मनाभपुर पुलिस थाना क्षेत्र के अंतर्गत रिसाली इलाके में रेलवे ट्रैक पर बैठकर मोबाइल फोन पर गेम खेल रहे दो लड़कों की ट्रेन की चपेट में आने से  मौके पर ही मौत हो गई। पता चला कि दोनों अपने मोबाइल फोन में इतने मग्न थे कि वे दल्ली राजहरा-दुर्ग लोकल ट्रेन का हॉर्न नहीं सुन सके। 

जर्मनी में एक रेल दुर्घटना हुई जिसमे 11 लोग मारे गए | दुर्घटना के सम्बन्ध में ट्रेन नियंत्रक को गिरफ्तार कर लिया गया | अभियोजकों को संदेह था कि दुर्घटना के समय वह कंप्यूटर गेम में मग्न था

राजस्थान के जयपुर में बेटे ने वाई-फाई विवाद के कारण मां की बेरहमी से पीट-पीट कर हत्या कर दी | ये घटनाएं स्पष्ट करती हैं कि डिजिटल टेक्नोलॉजी किस कदर मनुष्य के दिलो-दिमाग पर हावी हैं | 
एक और घटना में केरल में मोबाइल की लत पर 63 वर्षीय माँ द्वारा 34 वर्ष के बेटे को टोके जाने से नाराज बेटे ने  माँ की ह्त्या कर दी | 

डिजिटल युग, डिजिटल डिटॉक्स और मानव अधिकार 

उत्तर प्रदेश स्थित बरेली में पूर्वोत्तर रेलवे के इज्जतनगर स्टेशन के निकट फोन पर चिपके दो नाबालिग लड़के रेलवे ट्रैक पार कर रहे थे | इस दौरान ट्रेन के इंजन की चपेट में आने से दोंनो की मौत हो गई। ये मोबाइल की लत का गंभीर परिणाम है | 

मानव अधिकार सार्वभौमिक होते हैं | ये प्रत्येक व्यक्ति  को स्वाभाविक और सामान रूप से प्राप्त होते हैं |आज की उभरती डिजिटल दुनिया में मानव अधिकारों का उपभोग बहुत जटिल हो गया है|

डिजिटल युग में मानव अधिकारों के नए -नए आयाम जुड़ गए हैं | उदाहरण के तौर पर ये आयाम हैं गोपनीयता का अधिकार, सूचना तक पहुंच का अधिकार, डिजिटल स्वंत्रता और अभिव्यक्ति का अधिकार, मानसिक स्वास्थ्य का अधिकार | 

इस सम्बन्ध में यह समझना जरूरी है कि डिजिटल टेक्नोलॉजी के अत्यधिक और गैरजिम्मेदाराना उपयोग से आपके अधिकार खतरे में पड़ सकते हैं | बस यहीं पर डिजिटल डिटॉक्स का महत्व सामने आता है  

1. डिजिटल डिटॉक्स और मानव अधिकारों में सम्बन्ध 

विश्व स्वास्थ्य संघटन ने मानसिक स्वास्थय को स्वास्थय के अधिकार का अभिन्न अंग माना है | डिजिटल उपकरणों के लगातार और अनियंत्रित उपयोग से न सिर्फ डिजिटल टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में कार्य करने वाले, बल्कि आमजन जिनमे नौनिहाल बच्चे भी शामिल हैं, में तनाव, चिंता, डिप्रेशन, नीद की कमी जैसी स्वास्थ्य समस्याएं बढ़ रही हैं | जो की हम सभी के लिए एक चिंत्ता का विषय है तथा मानव अधिकारों के लिए भी गंभीर ख़तरा है | 

शोध कार्यों से पता चलता है कि 13 साल की उम्र से पहले स्मार्टफोन का इस्तेमाल बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य  के लिए हानि कारक है
Source: Pixabay

एक शोध के परिणाम स्वरूप पाया गया कि 13 साल की उम्र से पहले स्मार्टफोन का इस्तेमाल बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य  के लिए हानि कारक है | 

माता पिता को बच्चों को स्मार्ट फोन और सोशल मीडिया का उपयोग करने से रोकना चाहिए | 

ऐसी स्तिथि में आसानी से और निःशुल्क रूप में उपलब्ध डिजिटल डिटॉक्स उपाय से मानसिक शकुन और शांति मिलती है ,तनाव घटता है ,डिप्रेशन समाप्त होता है | इस प्रकार जीवन की गुणवत्ता और वैलनेस बढ़ती है | 

2. गोपनीयता का अधिकार 

डिजिटल युग में व्यवसायिक कंपनियां व्यक्ति के ऑनलाइन गतिविधियों को ट्रैक करती हैं | जिससे आपका डेटा कंपनियों के पास पहुंच जाता है और एकत्रित हो जाता है |
Image by Miran Lesnik from Pixabay

डिजिटल युग में व्यवसायिक कंपनियां व्यक्ति के ऑनलाइन गतिविधियों को ट्रैक करती हैं | जिससे आपका डेटा कंपनियों के पास पहुंच जाता है और एकत्रित हो जाता है | 

जिसके बाद कंपनियां आपके डेटा का विश्लेषण कर आपके व्यवहार  को समझ लेती हैं और फिर उस व्यवहार  को  नियंत्रित करने लगती हैं | 

इस दौरान कंपनियां उसी तरह की सामिग्री आपकी ओर प्रेषित करतीं हैं जिसमे आपने अपनी दिलचस्पी दिखाई है | लेकिन जब हम डिजिटल डिटॉक्स करते हैं तो  हम डेटा को नियंत्रित कर रहे होते हैं|

इस प्रकार हम अपनी निजता की भी रक्षा कर रहे होते हैं | डिजिटल डिटॉक्स हमारे निजता के अधिकार की रक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है | 

3. समय, डिजिटल डेटॉक्स और जीवन का अधिकार 

हर व्यक्ति का अधिकार है कि वह अपना जीवन तथा समय अपने अनुसार व्यतीत करे |  दिग्गज डिजिटल कम्पनिया हमारा आचरण ट्रेक कर लेती हैं | 

कंपनियां अल्गोरथिम का उपयोग करते हुए हमारे चॉइस की सामिग्री आगे बढ़ती रहती हैं इसके कारण आम आदमी एक के बाद एक सामिग्री को लगातार बिना रुके उपयोग करता रहता है | 

ऐसी स्थति में उन्हें होश ही नहीं रहता कि दरअसल वे कर क्या रहे है ? असल में उन्हें डिजिटल सामिग्री की लत लग जाती है और आदमी अपने शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य की चिंता नहीं करता है | जबतक कि उसे उपचार की जरूरन महसूस नहीं होने लगती है | 

यदि हम लगातार डिजिटल उपकरणों में व्यस्त्त रहेंगे तो निश्चित रूप से हमारा पारिवारिक जीवन प्रभावित होगा, जिससे धीरे- धीरे परिवार, दोस्त, शारीरिक स्वास्थ्य तथा मानसिक स्वास्थ्य के साथ साथ व्यक्तिगत विकास पर असर पडेगा | 

डिजिटल डिटॉक्स हमें वास्तविक जीवन से जुड़े रहने तथा जीवन के अधिकारों को दुबारा स्थापित करने में मदद करता है |  

डिजिटल उपकरणों का अत्यधिक उपयोग क्यों है खतरनाक 

1.  शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव 

डिजिटल टेक्नोलॉजी की लत या मजबूरी के चलते आज- कल व्यक्ति अनेक तरह की स्वास्थ्य समस्याओं, जिनमे मानसिक समस्याएं भी शामिल हैं, से जूझने को विवश है | 

2. नींद की गुणवत्ता में कमी का आना

डिजिटल उपकरणों की लत के चलते लोग बिना रुके मनोरंजन, गेम या कार्य करते रहते है, जिसके कारण अनेक लोग नींद की समस्या के शिकार हो जाते हैं | कभी कभी यह समस्या इतनी बढ़ जाती है कि यह मानसिक बीमारी का रूप धारण कर लेती है |

3. ध्यान केंद्रित करने में कठिनाई  

डिजिटल उपकरणों के उपयोग की लत के चलते अनेक लोगों में ध्यान केंद्रित करने की क्षमता में कमी देखी गई है | 

यह कमी उस व्यक्ति  के विकास में बड़ी बाधा बनती है | सवास्थ्य शरीर और स्वास्थ्य मन में ही ध्यान केंद्रित करने की क्षमता पाई जाती है |   

4. पारिवारिक तथा सामाजिक दूरी में वृद्धि 

डिजिटल उपकरणों पर अधिक समय बिताने के कारण परिवार और समाज में आदमी का उठना  बैठना कम हो जाता है | 

जिसके परिणाम स्वरूप आदमी परिवार और समाज से कट जाता है और संकट के समय वह स्वयं को अकेला पाता  है |  

ऐसी स्थति में वह छोटी मोटी पारिवारिक समस्याओं को झेलने में असमर्थ पाता है | डिजिटल डिटॉक्स का उपयोग नहीं किये जाने पर अक्सर यह स्थति आत्मदाह जैसे कदमो की ओर ले जाती है |  

डिजिटल डिटॉक्स लेने के फायदे क्या हैं ? 

1. शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार 

डिजिटल डिटॉक्स की कला को अपनाने से शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार आता है क्यों कि शरीर आखिर शरीर होता है | शरीर को भी किसी भी काम को करने के दौरान बीच बीच में आराम की जरूरत होती है | 

डिजिटल डिटॉक्स में कुछ और नहीं बल्कि डिजिटल उपकरणों का उपयोग करने के दौरान बीच- बीच में आराम करना होता है | जिससे लगातार काम के कारण बढ़ रही शारीरिक समस्याओं को नियंत्रित करने में मदद मिलती है |  

2. नींद की गुणवत्ता में सुधार 

डिजिटल स्क्रीन पर लगातार काम करते रहने से आखों  पर बुरा प्रभाव पड़ता है यहाँ तक कि व्यक्ति की नींद भी बुरी तरह प्रभावित हो जाती है | 

आजकल ऑनलाइन वर्क फ्रॉम होम का चलन तेजी से बढ़ा है | इस कार्य के दौरान कभी दिन और कभी रात अर्थात कब रात की ड्यूटी लग जाए और कब दिन की ड्यूटी लग जाए पता ही नहीं रहता है |

इसके कारण भी डिजिटल स्क्रीन पर काम करने वाले लोगों की नींद की समस्याओं का सामना करना पड़ता है | लेकिन डिजिटल डिटॉक्स अपनाकर नींद जैसी गंभीर समस्या से निजात पाई जा सकती है | 

3. सामाजिक और पारिवारिक रिश्तों में सुधार 

लगातार डिजिटल उपकरणों पर काम करना या मनोरंजन करना या गेम खेलना व्यक्ति को रूखा, चिड़चिड़ा और अंतर्मुखी बना देता है, जिसके कारण उसका परिवार और समाज से संपर्क समाप्त हो जाता है | 

परिवार और समाज के साथ संबंधों की पुनर्स्थापना में डिजिटल डिटॉक्स का उपयोग महत्वपूर्ण योगदान देता है | इससे पारिवारिक और सामाजिक रिश्तों में सुधार की संभावनाएं बहुत बढ़ जाती हैं |

4. सृजन क्षमता में सुधार 

व्यक्ति के डिजिटल स्क्रीन या डिजिटल उपकरणों के साथ अधिक समय गुजारने के कारण शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में गिरावट आ जाती है और इस गिरावट के कारण उसकी सृजन शीलता में कमी आ जाती है | 

डिजिटल डिटॉक्स उपचार विधि के उपयोग से इस कमी में सुधार किया जा सकता है | 

5. आधुनिक जीवन की हानिकारक लत से मुक्ति  

आधुनिक जीवन में मोबाइल की लगती हानिकारक लत ,जिसे व्यक्ति स्वयं नहीं समझ पाता ,जब तक उसे कोई शारीरिक या मानसिक बीमारी न घेर ले |
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लगातार डिजिटल उपकरणों के उपयोग की लत लोगों के लिए नरक का द्वार खोल रही है | 

इन उपकरणों की लत के चलते छोटे बच्चों से लेकर बुजुर्ग तक उग्र और हिंसक हो रहे हैं | किसी भी चीज की लत हमेशा बुरी होती है | 

डिजिटल उपकरणों की लत समाज में एकाकीपन पैदा कर रही है जिससे अनेक तरह की शारीरिक, मानसिक और सामाजिक समस्याएं उत्त्पन्न हो रही हैं | 

लोगों में इस लत को छुड़ाने के लिए डिजिटल डिटॉक्स उपचार विधि एक बहुमूल्य निःशुल्क और सर्वसुलभ साधन है |  

डिजिटल डीटॉक्स कैसे लें ? जानें इसकी कला 

1. धीरे -धीरे शुरू करें 

डिजिटल डिटॉक्स प्रक्रिया को अपनाने का सही तरीका उसे धीरे -धीरे शरु करने का होता है | जिस तरह से मधपान की लत का शिकार व्यक्ति यदि एक साथ मधपान छोड़ता है तो वह बीमार पड़ जाता है | 

इस प्रक्रिया में शरुआती समय में छोटे -छोटे ब्रेक देने है तथा उसके बाद उसे आवश्यकता अनुसार बढ़ाते जाएँ | 

2. मोबाइल पर नोटिफिकेशन नियंत्रित करें 

आप अपने डिजिटल उपकरण के मालिक हैं | आप आसानी से नोटिफिकेशन विकल्पों को सेट कर सकते है | यदि आप एक साथ सभी नोटिफिकेशन्स को बंद करना चाहते है तो आप इसे फोन सेटिंग में जाकर डू नॉट डिस्टर्ब (DND) मोड  पर लगा सकते हैं | 

3. डिजिटल समय ट्रैकिंग सिस्टम से सोशल मीडिया की समय सीमा तय करें 

सबसे पहले आप अपने फोन में स्क्रीन टाइम फीचर /डिजिटल समय ट्रैकिंग सिस्टम का उपयोग करे |  जिससे आपको यह पता लग सकेगा की आप सोशल मीडिया पर कितना समय बिताते है | 

उसके बाद आधा घंटे से लेकर 1 घंटे  तक अपनी समय सीमा को निर्धारित करने का प्रयास करें | इसके लिए फोन में ऑटो ऑफ का प्रावधान सेट करें | धीरे -धीरे आप इसका जादुई लाभ लेने लगेंगे | 

4. योगा या ऑफ लाइन क्रियाकलापों में भाग लें 

डिजिटल डिटॉक्स के लिए योगा एक बेहतर विकल्प
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डिजिटल डिटॉक्स के लिए आप ऑफ लाइन क्रियाकलापों में हिस्सा ले सकते हैं | 

इससे आपकी पारवारिक और सामाजिक स्वीकार्यता बढ़ेगी और आपका भी एकाकीपन दूर होगा |

इसके साथ -साथ आपके पास योग करने का बेहतरीन विकल्प भी उपलब्ध है | 

भारतीय प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने योगा को वैश्विक पहचान दिलाने के लिए बहुत काम किया है | मोदी के प्रयासों से संयुक्त राष्ट्र ने 2014 में 21 जून को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस घोषित किया, इस प्रस्ताव का 175 देशों ने समर्थन किया था। 

यहाँ तक कि उच्च शिक्षा में योग विषय में स्नातकोत्तर और पीएचडी के पाठ्यक्रम चालू करा दिए हैं | जिन्हे विश्व विद्यालय अनुदान आयोग, दिल्ली ने भी मान्यता प्रदान की है |  

5. विपसना कार्यक्रमों में भाग लें 

डिजिटल डिटॉक्स के लिए विपसना एक बेहतरीन उपचार
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विपसना करने से मन की शांति और एकाग्रता का विकास,मानसिक चिंता और तनाव में कमी, भावनात्मक सुदृढ़ता, शारीरिक स्वास्थ्य में सुधार, आत्म विश्वास में बृद्धि, नकारात्मक विचारों में कमी जैसे लाभ मिलते हैं | 

इसके लिए भारत में अनेक केंद्र संचालित हो रहे हैं | इसमें विपश्यना शुरू होते ही आपसे आपके डिजिटल औजार लेकर अलग रख दिए जाते है |

अत्यधिक आवश्यकता पर ही आप डिजिटल उपकरणों का उपयोग कर सकते हैं | यह डिजिटल डिटॉक्स के अत्यधिक प्रभावशाली विधियों में से एक है | 

7. सामाजिक या पारिवारिक क्रियाकलापों में हिस्सा लें  

पारिवारिक और सामाजिक कार्यक्रमों में भागीदारी के लिए जाते भारतीय पुरुष और महिलाये और बच्चे
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डिजिटल डिटॉक्स की सर्वाधिक व्यवहारिक और स्वभाविक विधि परिवार और समाज के क्रियाकलापों में भागीदारी सुनिश्चित करना है | 

परिवार और समाज की सामान्य गतिविधियों में भागीदारी के कारण व्यक्ति  का ध्यान बात जाने के कारण उसका डिजिटल डिटॉक्स स्वयं संभव हो जाता है उसके लिए उसे कोई विशेष प्रयास नहीं करने पड़ते हैं |  


निष्कर्ष 

जब आप परिवार और समाज की अनवरत चलने वाले सामान्य क्रियाकलापों में भाग लेते हैं तो डिजिटल डीटॉक्स  स्वाभाविक रूप से हो जाता है |इससे आत्मबल में बृद्धि होती है और एकाकीपन भी समाप्त होता है | जिससे शारीरिक व् मानसिक  स्वास्थ्य बेहतर स्तिथि में रहता है | 

डिजिटल टेक्नोलॉजी आज हर व्यक्ति के जीवन को सरल और सुलभ बनाने के लिए जरूरत है लेकिन उसकी लत उसके लिए उतनी ही विनाशकारी है | इसकी लत को कम करने या समाप्त करने के लिए हमारे पास एक निःशुल्क और आसानी से सुलभ उपचार भी उपलब्ध है | 

आज डिजिटल डिटॉक्स न केवल हर व्यक्ति की जरूरत है बल्कि यह मानव अधिकारों के संवर्धन और संरक्षण के लिए भी आवश्यक है |  

अनेक शोध रिपोर्टों से स्पष्ट हो चुका है कि निरंतर डिजिटल टेक्नोलॉजी से जुड़ाव हमारे शारीरिक, मानसिक स्वास्थ्य और निजता के अधिकार पर भी विपरीत प्रभाव डाल रहा है | 

ऐसे में  डिजिटल टेक्नोलॉजी तथा उपकरणों से समय-समय पर ब्रेक लेना शारीरिक, मानसिक स्वास्थ्य की भलाई के लिए आवश्यक है |  

डिजिटल डिटॉक्स के जरिये व्यक्ति न केवल अपने शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बना सकता है, बल्कि वह अपने  मानव अधिकारों को भी सुरक्षित कर सकता है | 

इस तरह, डिजिटल डिटॉक्स का अभ्यास स्वास्थ समाज के निर्माण में सहायक हो सकता है | जहाँ  डिजिटल टेक्नोलॉजी मानव  के शोषण का हतियार न हो  बल्कि उसकी सेवा में उसकी भलाई के लिए हो | 

अतः डिजिटल टेक्नोलॉजी के साथ डिजिटल डेटॉक्स का उपयोग करते हुए  न सिर्फ हम अपने  मानव अधिकारों की रक्षा कर सकते हैं, बल्कि  एक  स्वंत्रत, संतुलित, सुरक्षित और  टिकाऊ डिजिटल भविष्य की आशा भी कर सकते हैं |

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न( FAQ )

प्रश्न : डिजिटल डिटॉक्स क्या है?

उत्तर : डिजिटल डिटॉक्स डिजिटल टेक्नोलॉजी और उपकरणों जैसे इंटरनेट ,मोबाइल फोन या कंप्यूटर के उपयोग से कुछ समय तक दूर रहने या स्थाई तौर पर बंद कर देने की एक सोची -समझी प्रक्रिया है |  इसका मुख्य उद्देश्य डिजिटल टेक्नोलॉजी के उपकरणों की उपयोग से  कुछ समय के लिए आराम करना होता है | 

जिससे मानसिक स्वास्थय, पारिवारिक और सामाजिक रिश्तों और दैनिक गतिविधियों में सुधार हो सके | स्मार्टफोन, कंप्यूटर और इंटरनेट जैसे डिजिटल उपकरणों और प्रौद्योगिकी के उपयोग को सीमित करने या पूरी तरह से बंद करने की एक सचेत प्रक्रिया है, ताकि स्क्रीन टाइम से ब्रेक लिया जा सके और तकनीक पर निर्भरता कम हो सके। 

इसका मुख्य उद्देश्य मानसिक स्वास्थ्य में सुधार, वास्तविक दुनिया की गतिविधियों और रिश्तों पर ध्यान केंद्रित करना, तथा स्क्रीन के माध्यम से होने वाले तनाव और व्याकुलता को कम करना है। 

विशेष : दोस्तों टिप्णी और फॉलो करना न भूलें | आप बने रहिये हमारे साथ | 





शनिवार, 27 सितंबर 2025

जनरेटिव एआई और मानवाधिकार: चैटजीपीटी के बढ़ते प्रभाव का विश्लेषण

जनरेटिव आर्टिफिशल इंटेलिजेंस (AI) तकनीक,विशेषकर चैट जीपीटी जैसे औजारों का मानवीय जीवन में महत्व बहुत बढ़ गया है |
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प्रस्तावना 

आजकल जनरेटिव आर्टिफिशल इंटेलिजेंस(AI) तकनीक, विशेषकर चैटजीपीटी जैसे औजारों का मानवीय जीवन में महत्व बहुत बढ़ गया है | 

यह तकनीकी मनुष्य के जीवन, कार्य और उसके संवाद तथा भाषा को बदल रही हैं | समय के साथ इस तकनीकी में जितना बदलाव आ रहा है, उसी तरह मानव अधिकारों पर इसके प्रभाव को लेकर चिंताएँ भी तेजी से बढ़ रहीं हैं |  

प्रश्न उठ रहा है कि क्या चैट जीपीटी जैसी अत्याधुनिक आर्टिफिशल इंटेलिजेंस (AI) जैसी तकनीकी मनुष्य के लिए केवल मददगार है ? या मनुष्य की गोपनीयता, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, और रोज़गार जैसे मौलिक अधिकारों  के लिए खतरे की एक घंटी है ?

इस लेख में हैं हम समझने का प्रयास करेंगे कि जनरेटिव एआई कैसे मानव अधिकारों को प्रभावित कर सकता है ? भविष्य में मानव अधिकार उलंघन रोकने के लिए हम क्या -क्या कदम उठा सकते हैं ?  इसके अतिरिक्त भविष्य में  कैसे जनरेटिव एआई का भी मानव हित में भरपूर उपयोग कर सकें ? 

जनरेटिवे एआई क्या है ? 

जनरेटिव एआई (Ganerative AI) डेटा प्रोसेसिंग  करके नया कंटेंट जैसे टेक्स्ट, इमेज या म्यूजिक निर्मित करती है
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जनरेटिव एआई (Ganerative AI) एक ऐसी तकनीकी है, जो डेटा को प्रोसेस करती है, जिसके परिणामस्वरुप उत्पाद के रूप में नया कंटेंट जैसे कि टेक्स्ट, इमेज या म्यूजिक निर्मित होता है | 

चैटजीपीती  एक जनरेटिव AI मॉडल है इसका विकास Open AI  द्वारा हुआ है | यह मशीन लर्निंग के माध्य्म से सीखता है तथा इसका कार्य बड़े स्तर पर टेक्स्ट डेटा पर आधारित होता है


चैटजीपीटी, जनरेटिव एआई और मानवाधिकार: मुख्य चिंता के क्षेत्र

चैटजीपीटी, जनरेटिव  AI और मानव अधिकारों के बीच गहरा सम्बन्ध है | जहाँ एक ओर ये आधुनिक तकनीकी मनुष्य का जीवन अत्यधिक सरल और सुगम बना रही है, वहीं दूसरी तरफ इनके कारण मनुष्य के सामने उनके मानव अधिकारों के उललंघन से जुड़े मुद्दों की चुनौती खड़ी हो गई है | वर्तमान में चैटजीटीपी का लेटेस्ट वर्शन Chat GTP-5 आया हुया है | 

विशेष तौर पर इन मुद्दों में रोजगार का अधिकार, निजता का अधिकार, समूह विशेष के विरुद्ध दुराग्रह तथा भेदभाव का ख़तरा, अभिव्यक्ति की स्वंत्रता को चुनौती,डीपफेक, भ्रामक सूचना और हेट स्पीच का ख़तरा आदि आते हैं |  

पूर्वाग्रह और भेदभाव (Bias and Discrimination)

जनरेटिव एआई का कार्य उस डेटा पर आधारित होता है जो कही न कही  मानव समाज द्वारा निर्मित होता है | 

डेटा जातिवाद, नस्लवाद, भाषावाद, क्षेत्रवाद, रंग, नस्ल या लिंग आधारित भेदभाव या पूर्वाग्रह से युक्त है, तो एआई भी अपने उत्तर में उस भेदभाव और पूर्वाग्रहों को दुहरा सकता है|
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अगर यह डेटा जातिवाद, नस्लवाद, भाषावाद, क्षेत्रवाद, रंग, नस्ल या लिंग आधारित भेदभाव या पूर्वाग्रह से भरा हुआ है, तो एआई भी अपने उत्तर में उस भेदभाव और पूर्वाग्रहों को दुहरा सकता है| 

जिससे सामाजिक नियंत्रण गंभीर रूप से प्रभावित हो सकता है तथा मानव अधिकारो के लिए भी यह गंभीर खतरे का कारण बन सकता है |

उदाहरण स्वरुप यदि कोई चैटजीपीटी किसी समुदाय विशेष के विरुद्ध पक्षपातपूर्ण तथा नकारात्मक सूचनाएं देता है, तो उस समुदाय विशेष के मानव अधिकारों का उलंघन हो सकता है तथा वह समुदाय उग्र और आक्रोशित हो सकता है | 

किसी भी तरह का दुराग्रह और भेदभाव किसी भी समुदाय की मानव गरिमा (Human Dignity) और बराबरी के अधिकार को प्रभावित करता है।

निजता के अधिकार का उलंघन 

गोपनीय जानकारी का चैट जीपीटी या  जनरेटिवे एआईद्वारा उपयोग निजता के अधिकार के उलंघन की श्रेणी में आएगा | निजता का अधिकार एक मौलिक मानव अधिकार होता है
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चैटजीपीटी जैसे औजारों को प्रशिक्षित करने के लिए लाखों पन्नों के डेटा की आवश्यकता होती है | यदि उन पन्नों में उपयोगकर्ता की निजी  या गोपनीय जानकारी है तो चैटजीपीटी जैसा औजार उसका उपयोग कर सकता है | 

इन लाखों पन्नों में से किसी की गोपनीय जानकारी का चैट जीपीटी द्वारा उपयोग निजता के अधिकार के उलंघन की श्रेणी में आएगा | निजता का अधिकार एक मौलिक मानव अधिकार होता है इसलिए यह एक गंभीर चिंता का विषय है | 

AI और चैट जीपीटी का रोजगार पर मड़राता खतरा 

चैट जीपीटी जैसे एआई (AI) मॉडल कई मानवीय कार्यों को तेजी और सटीकता के साथ कई व्यक्तियों के बराबर कार्य करने में सक्षम हैं |
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चैट जीपीटी जैसे एआई (AI) मॉडल कई मानवीय कार्यों को करने में तेजी और सटीकता के साथ करने में सक्षम हैं | यह कई व्यक्तियों के बराबर कार्य कर सकने में सक्षम है |  

ऐसी स्तिथि में विकासशील देशों में श्रम की कीमत में कटौती करने ले लिए चैट जीपीटी जैसे एआई (AI) मॉडल के उपयोग को बढ़ावा दे सकते हैं |  

जनरेटिवे एआई और चैटजीपीटी से बेरोजगारों की लम्बी लाइन लगने की संभावना से मानवाधिकार उल्लंघन के आसार
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ऐसी स्थति में लेखन, कस्टमर सपोर्ट, कोडिंग, डाटा एनालिसिस, डिजाइनिंग आदि जैसे क्षेत्रों में कार्यरत लोगों की नौकरियां निश्चित रूप से नकारात्मक रूप से प्रभावित होने की संभावना रहेगी|

परिणामस्वरूप बेरोजगारों की लम्बी लाइन लग जाएगी इस बात की प्रबल सम्भावनाये हैं | 

इस प्रकार काम करने का अधिकार(Right to Work) गंभीर रूप से खतरे में पड़ सकता है | ऐसी परिस्थितियों में समाज के भीतर उथल-पुथल होती है और कभी -कभी युवाओं में आक्रोश की स्थिति भी बन जाती है |  


चैटजीपीटी और AI का अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रभाव

प्रशिक्षित एआई मॉडल तथा चैटजीपीटी कुछ विचारो या भाषा को सेंसर करने में सक्षम है, जो अभिव्यक्ति के अधिकार का उलंघन करता है |
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आप भली-भांति जानते होंगे कि किस प्रकार सरकारें अपने विरोधियों के अभिव्यक्ति के अधिकार में रोड़ा अटकाती हैं ?  

यदि एआई मॉडल को इस प्रकार प्रशिक्षित किया जाता है कि कुछ विचारो या भाषा को सेंसर करे तो वह इस काम को करने में सक्षम है और करता है | 

इस कार्य से निश्चित रूप से लोगों के अभिव्यक्ति के अधिकार का उलंघन होता है | 

एआई द्वारा डीपफेक, भ्रामक सूचना और हेट स्पीच का खतरा 

चैट जीपीटी जैसे  डिजिटिल औजारों का दुरूपयोग करके आसानी से  फेक न्यूज़ बनाई जा सकती है और इसके प्रसार से समाज में दुष्प्रचार और नफरत भी फैलाई जा सकती है |

चैट जीपीटी जैसे  डिजिटिल औजारों का दुरूपयोग करके आसानी से  फेक न्यूज़ बनाई जा सकती है और इसके प्रसार से समाज में दुष्प्रचार और नफरत भी फैलाई जा सकती है | 

आर्टिफीसियल इंटेलीजेंस (AI) आधारित डीपफेक तकनीकी तेजी से बढ़ रही है | कुछ वर्ष पूर्व पीएम मोदी ने मीडिया को बताया कि एक वीडिओ आया है जिसमे वे गरबा खेलते हुए दिखाए गए हैं | जबकि वह वीडियो नकली है | 

यही नहीं प्रधानमंत्री ने कहा कि इसके दुरूपयोग से झूठी जानकारी फ़ैल सकती हैं | पीएम ने AI तकनीकी के दुरुपयोग को रोकने के लिए जनता को इसके बारे में जाग्रत करने के लिये मीडिया की मदद भी मांगी है | 


वीडियो, चित्र और ऑडियो सामग्री से एक एक अति-यथार्थवादी डिजिटल मीडिया बनता है जो अवास्तविक होते हुए भी वास्तविक जैसा  जैसा लगता है | यह न सिर्फ गलत सूचना का प्रसार करता है, बल्कि यह गोपनीयता और सुरक्षा के के मानव अधिकारों को भी खतरे में डालता है |
Image by Sammy-Sander from Pixabay edited at Canva

अभी कुछ महीने पहले तेलंगाना के मुख्यमंत्री का डीपफेक वीडियो वायरल कर दिया  गया | 

अभी हाल ही में बेंगलूरू के 57 वर्षीय एक व्यक्ति ने विश्व प्रसिद्ध आध्यात्मिक गुरु सद्गुरु के AI -जनरेटेड डीपफेक वीडियो पर भरोसा करते हुए 3.75 करोड़ रुपये का इन्वेस्ट कर दिया | बाद में उसके पैसे वापस न होने पर उसे पता लगा कि उसके साथ ठगी हो गई है | 

कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) के टूल्स का उपयोग करते हुए बनाई गई डीपफेक डिजिटल सामिग्री का न सिर्फ 27 वर्षीय अभिनेत्री रश्मिका मंदाना शिकार हुई बल्कि विश्व प्रसिद्ध मेगास्टार प्रियंका चोपड़ा जोनास, आलिया भट्ट जैसे वॉलीवुड सितारे भी इसकी चपेट में आ चुके हैं |

देश की आधी आबादी, जो कि महिलाएं हैं, के लिए यह अत्यधिक चिंता का विषय है | 

आजकल राजनैतिक पार्टियां डीपफेक का उपयोग अपने इलेक्शन को जीतने के लिए भी कर रही हैं | लेकिन यह सबकुछ प्रत्यक्ष रूप से नहीं होता है |     

 AI नीति निर्माण में नागरिक समाज की भागीदारी

नागरिक समाज, मानवाधिकार संगठनों, लोकतंत्र के चौथे स्थम्ब से पत्रकारों, शिक्षकों और तकनीकी विशेषज्ञों,आम नागरिकों आदि सभी की AI नीति निर्माण में भागीदारी सुनिश्चित करनी चाहिए |
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भविष्य में आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस (AI) तकनीकी को मानव अधिकार केंद्रित बनाये रखने के लिए सिर्फ कंपनियों और सरकार को कार्य नहीं करना चाहिए | 

बल्कि नागरिक समाज, मानवाधिकार संगठनों, लोकतंत्र के चौथे स्तंभ से पत्रकारों, शिक्षकों और तकनीकी विशेषज्ञों,आम नागरिकों आदि सभी की AI नीति निर्माण में भागीदारी सुनिश्चित करनी चाहिए | 

इसके बाद ही संभव है कि AI आम लोगो के मानवाधिकार समर्थन में कार्य करेगा, न कि उनके बिरोध में | 

व्यवसायों के नैतिक और कानूनी उत्तरदायित्व 


व्यवसायों को AI तकनीकी सम्बन्धी उत्पाद बनाते समय मानवाधिकार सिद्धांतों को केंद्र में रखना चाहिए अर्थात उत्पाद डिजायन में मानव अधिकार सिद्धांतों का ध्यान रखा गया हो |  

कम्पनी का उत्पाद ,मॉडल पारदर्शी, उत्तरदायी और सुरक्षित हो, उपयोगकर्ताओं की गोपनीयता का उलंघन नहीं करता हो तथा पूर्वाग्राग अवं भेदभाव से मुक्त होना चाहिए | 

AI द्वारा हानि की स्थति में जवाबदेही  की सुनिश्चितता 


अनेको बार चैटबॉट्स उपयोगकर्ता को गलत या हानिकारक जानकारी दे देते हैं, जिसके कारण उसे छति उठानी पड़ती है| इस स्थति में कंपनियां तकनीकी सीमा का हवाला देकर अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लेती हैं | 

इस समस्या के समाधान के लिए आवश्यक है कि सरकार कंपनियों के लिए नीतिया बनाएं, जिसके तहत उनका जिमेदारी से भागना संभव न हो सके | जिसके लिए आवश्यक है कि उपयोगकर्ता के लिए शिकायत तंत्र स्थापित किया जाए तथा उलंघन की स्तिथि में कार्यवाही सुनिश्चित की जाय|  

निष्कर्ष:

यद्धपि जनरेटिव एआई और चैटजीपीटी जैसे आधुनिक डिजिटल औजार  टिकाऊ/सतत विकास के लिए अत्यधिक आवश्यक हैं | 

फिर भी यदि इन्हे बिना निगरानी और दिशा निर्देशों के बेलगाम छोड़ा गया तो भविष्य में ये मानव अधिकारों के लिए के लिए गंभीर खतरा पैदा कर सकते हैं। इनकी निगरानी, दिशानिर्देशों और कानूनी बाध्यताओं के लिए एक कठोर क़ानून की आवश्यकता है |  

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न ( FAQs);-

प्रश्न :  जनरेटिव एआई क्या है ? 

उत्तर: जनरेटिव एआई एक प्रकार की कृत्रिम बुद्धिमत्ता (Artificial Inteligence ) तकनीक है, जो टेक्स्ट, चित्र, वीडियो, और संगीत जैसी नई सामग्री बना सकता है | 

प्रश्न :  जनरेटिव एआई कैसे काम करता है?

उत्तर : यह मशीन लर्निंग एल्गोरिद्म के आधार पर बड़े डेटा सेट्स से पैटर्न सीखकर नए टेक्स्ट, चित्र, म्यूजिक, वीडियो आदि बना सकता है।

प्रश्न : ChatGPT (चैटजीपीटी) क्या है ? 

उत्तर : ChatGPT (चैटजीपीटी) एक कृत्रिम बुद्धिमत्ता(AI)चैटबॉट है, जिसे ओपन एआई द्वारा विकसित किया गया है, जो उपयोगकर्ताओं के सवालों और अनुरोधों पर प्राकृतिक भाषा में उत्तर देता है। 

प्रश्न : चैटजीपीटी मानवाधिकारों को कैसे प्रभावित कर सकता है?

उत्तर: चैटजीपीटी बिना नियमन के पूर्वाग्रह, भेदभाव, निजता हनन, गलत सूचना फैलाना, और नौकरियों के नुकसान जैसे मानवाधिकार उल्लंघन को बढ़ावा दे सकते हैं | अर्थात ये तकनीकें सामाजिक असमानता को बढ़ा सकती हैं।

प्रश्न :  क्या चैटजीपीटी जैसे AI टूल्स के लिए कोई कानूनी प्रावधान हैं?

उत्तर: अभी तक जनरेटिव एआई के लिए वैश्विक स्तर पर कोई एक समान कानून नहीं है। लेकिन, कई देश इसके सम्बन्ध नीतियां और क़ानून बना रहे हैं | ताकि इन तकनीकों का उपयोग मानवाधिकारों के  संरक्षण में हो सके।

प्रश्न : क्या चैटजीपीटी से नौकरियों पर असर पड़ सकता है?

उत्तर: हाँ ,क्यों कि चैटजीपीटी कई कार्यों को बहुत तेजी के साथ करता है | इस कारण अनेक लोगो की नौकरी पर ख़तरा हो सकता है तथा रोजगार के अवसर में कमी आ सकती है | 

विशेष : अगर आप इस विषय पर और अधिक पढ़ना चाहते हैं, नीचे ईमेल दर्ज करें|

 







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