Forensic Science लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
Forensic Science लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

बुधवार, 6 नवंबर 2024

डिजिटल अरेस्ट मानव अधिकारों पर हमला सम्पूर्ण जानकारी


डिजिटल अरेस्ट एक साइबर अपराध न सिर्फ भारत में बल्कि सम्पूर्ण विश्व में व्यक्तियों और संवेदनशील समुदाय के लिए एक गंभीर ख़तरा बन गया है |










   
 साइबर अपराध के क्षेत्र में नया वेरिएंट डिजिटल अरेस्ट 

परिचय 

आज कल एक तरफ डिजिटल तकनीकी ने हमारे जीवन को सुगम बनाया है वहीं दुसरी तरफ नयी चुनौतियों का सामना करने के लिए विवश कर दिया है | इन चुनौतियों में से एक है डिजिटल अरेस्ट | यह विषय आज के वैश्विक परिदृश्य के साथ-साथ देश के स्तर पर भी अत्यधिक महत्वपूर्ण हो गया है | साइबर अपराध की दुनिया में डिजिटल अरेस्ट नामक शब्द मानव अधिकारों के उल्लंघन का प्रतीक बन गया है तथा मानवअधिकारों के लिए भी गंभीर चुनौती है|   
भारतीय समाज में डिजिटल अरेस्ट का अपराध इतनी तेजी से फैला है जैसे अतीत में किसी समय स्माल पॉक्स की बीमारी फैला करती थी | भारत में डिजिटल अरेस्ट के अपराध की गंभीरता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि माननीय प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी को मन की बात के 115 वे एपीसोड में डिजिटल अरेस्ट के बारे में जनता को जागरूक करने के लिए हस्तक्षेप करना पड़ा है | 
समाज में लोगों के साथ ठगी करना सभ्यताओं के विकास की शुरुआत से ही चला आ रहा है | हालांकि समय के साथ -साथ ठगने के तरीकों में आमूलचूक परिवर्तन आता रहा है | वर्तमान के डिजिटल युग में तो ठगी और जालसाजी के तरीके पूरी तरह से बदल गए हैं तथा वे समय के साथ -साथ अत्यधिक आधुनिक और नए रूप में  समाज के सामने आ रहे हैं, और यह नया तरीका है डिजिटल अरेस्ट | 
अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक(ADGP), उत्तर प्रदेश तथा फाउंडर डायरेक्टर ,उत्तर प्रदेश स्टेट इंस्टिट्यूट ऑफ़ फॉरेंसिक साइंस ,लखनऊ ,प्रोफेसर (डॉ) जी.के. गोस्वामी, IPS के अनुसार डिजिटल अरेस्ट साइबर क्राइम का एक नया वेरिएंट है | वर्तमान परिदृश्य में उनका यह भी कहना है कि ऐसे मामले प्रति दिन बड़ी संख्या में हो रहे हैं कुछ लोग बता भी नहीं पाते | 
डिजिटल तकनीकी का विकास समाज की भलाई और जीवन को सरल बनाने के लिए किया गया है लेकिन यह भी सत्य है कि अपराधी हमेशा से ही अच्छी और उच्चस्तरीय तकनीकी का दुरूपयोग व्यक्ति और समाज के विरुद्ध तथा अपने हितार्थ करते आये हैं | 
आज के वैज्ञानिक और तकनीकी युग में जहाँ डिजिटल तकनीकी की उन्नति तेजी से हो रही है | वहीं अपराधियों द्वारा तकनीकी खामियों का लाभ उठाकर अनेक लोगों के साथ ठगी और जालसाजी की जा रही है | यह साइबर अपराध एक भयाभय प्रबृति के रूप में डिजिटल तकनीकी की जानकारी रखने वाले नवयुवकों में तेजी से उभर कर सामने आया है |
इस प्रकार की जालसाजी और ठगी में ठग पीड़ितों को अवैध बित्तीय लेनदेन करने के लिए विवश करते हैं तथा धन की डिजिटल वसूली होने पर उन्हें उनके द्वारा किये गए आभासीय तथा मनगढंत अपराध से मुक्त करने का आश्वासन भी देते हैं | यही डिजिटल अरेस्ट का महत्वपूर्ण घटक है | 

डिजिटल अरेस्ट क्या है ?

सामान्य भाषा में डिजिटल अरेस्ट का अर्थ है कि किसी व्यक्ति की ऑनलाइन गतिविधियों,उसके डाटा, और उसकी व्यक्तिगत जानकारी पर निगरानी और नियंत्रण कर उसे झांसे या भय में फँसा कर उससे ठगी या जालसाजी करना है | यद्धपि डिजिटल अरेस्ट की अभी तक कोई सर्वमान्य परिभाषा उपलब्ध नहीं है | इसका कारण विषय विशेषज्ञों द्वारा डिजिटल अरेस्ट के विषय का अन्तरविषयक(इंटरडिसिप्लिनरी) होना बताया है |  
डिजिटल अरेस्ट कोई वास्तविक गिरफ्तारी नहीं है, बल्कि इसमें व्यक्ति डिजिटल उपकरण जैसे कि मोबाइल, लेपटॉप या इलेक्ट्रॉनिक टेबलेट आदि के माध्यम से बातचीत करने के दौरान पीड़ित ठगों के आभासीय गिरफ्त में रहते है | इस दौरान ठग या जालसाज पीड़ितों को किसी संगीन अपराध में फसाने या उन्हें  गिरफ्तार करने या उनके किसी परिवारीजनों या प्रियजनों को किसी अपराध में फ़साने का झांसा दे कर उनसे मनमानी रकम डिजिटल माध्यम से वसूलने का प्रयास करते हैं या वसूल कर लेते हैं | 

डिजिटल अरेस्ट के मामलों में फंसाने के तरीके क्या हैं ?

डिजिटल अरेस्ट के माध्यम से ठगने या जालसाजी करने के तरीके यद्धपि निश्चित नहीं हैं फिर भी कई अलग -अलग तरीकों से ठगी या जालसाजी को अंजाम दिया जाता है | 
पहले तरीके में अच्छे पढ़े लिखे और कानून के जानकार लोगों को अधिकांशतः मनी लॉन्डरिंग का डर दिखाकर फंसाया जाता है |दूसरे तरीके में किसी व्यक्ति के कूरियर में ड्रग्स होने का भरोसा दिलाया जाता है | जिसकी वजह से उसे गंभीर अपराध में फंसने का डर दिखाया जाता है | तीसरे तरीके में व्यक्ति के बैंक के खाते से ट्रांजेक्शन्स में फाइनेंश्यिल फ्रॉड होने का डर दिखाया जाता है | 
चौथे तरीके में अधिकांशतः गरीब लोगों को, जिनके खाते में पैसे नहीं होते है, उन्हें लोन लेने वाला ऍप डाउनलोड करा दिया जाता है | बाद में उनको बसूली के लिए धमकाया जाता है और लोन के पैसे बापस करने को कहा जाता है, जो उन्होंने कभी उधार लिए ही नहीं | 
पाँचवा तरीका है जिसमे युवाओं से लेकर बुजुर्ग तक आते है | इस तरीके में व्यक्ति अपने अंतरंग क्षणों को ऑनलाइन प्रस्तुत करने का प्रस्ताव प्रस्तुत करता है, जिसे दूसरे व्यक्ति द्वारा स्वीकार कर लिया जाता है | धीरे धीरे प्रस्ताव देने वाला व्यक्ति दूसरे का विशवास जीत लेता है और दूसरे को अपने वस्त्र उतारने के लिए उकसाता है | पहला वाला व्यक्ति इन्ही अंतरंग क्षणों की ऑनलाइन तस्वीरें या वीडिओ बना लेता है और उसके बाद प्रारम्भ होता है दूसरे व्यक्ति का डिजिटल अरेस्ट | दूसरे व्यक्ति द्वारा पैसे न देने की सूरत में उसकी अश्लील तस्वीरें या वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल करने की धमकी दी जाती है |
समय के साथ -साथ साइबर खतरों का क्षेत्र दिन पर दिन व्यापक होता जा रहा है | इस क्षेत्र में डिजिटल अरेस्ट की अवधारणा समाज के लिए एक गंभीर खतरे के रूप में अत्यधिक तेजी से उभरी है | 
ठगी करने वाले स्वयं को क़ानून प्रवर्तन अधिकारी,जो पुलिस,सीबीआई, प्रवर्तन निदेशालय, फ़ेडरल ब्यूरो ऑफ़ इन्वेस्टीगेशन,आरबीआई, टेलिकॉम रेगुलेटरी अथॉरिटी ऑफ़ इंडिया आदि में से किसी के भी रूप में पेश कर सकते हैं, आवश्यकता अनुसार पीड़ितों को यह विस्वास दिलाते है कि उनके वैधानिक दस्तावेजों जैसे कि आधार कार्ड, बैंक खाते,आदि का अवैध रूप से उपयोग किया गया है | 
जिसके लिए उनके विरुद्ध तत्काल कानूनी कार्यवाही किये जाने का दबाब बनाया जाता है | जिन पीड़ितों ने कभी किसी कोर्ट-कचहरी के चक्कर नहीं लगाए तथा वे किसी कानूनी लफड़े में नहीं पड़ना चाहते है, अपने विरुद्ध या अपने किसी परिवारीजन या किसी अजीज के विरुद्ध डिजिटल रूप से कानूनी कार्यवाही की बात सुनकर घबरा जाते है | इसके बाद शुरू होता है ठगों का पीड़ितों को पैसा देने के लिए मजबूर करने का सिलसिला | 
डिजिटल अरेस्ट के माध्यम से ठगने या जालसाजी करने के तरीके यहाँ बताये गए तरीकों तक सीमित नहीं हैं, बल्कि साइबर अपराधी आये दिन नए -नए तरीके गढ़ रहे हैं | 

डिजिटल अरेस्ट की कुछ हालिया घटनाएँ 

विगत कुछ वर्षों में डिजिटल अरेस्ट की घटनाओं की बाड़ सी आ चुकी है | जिनमे से कुछ घटनाओं का जिक्र यहाँ किया जा रहा है | गृह मंत्रालय द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार 1 जनवरी 2023 से 31 दिसंबर 2023 की अवधि के दौरान भारत में वित्तीय साइबर धोखाधड़ी  के कुल 1128265 प्रकरण दर्ज किये गए जिनसे जुडी कुल धनराशि 748863.9 लाख रुपये रही है |  
उत्तर प्रदेश के जिला आगरा निवासी शिक्षिका मालती वर्मा 30 सितम्बर, 2024 को अपने स्कूल में थी | दोपहर 12 बजे उसके मोबाइल पर फोन आया | फोन करने वाले ने बताया कि वह इंस्पेक्टर विजय कुमार बोल रहा है | उनकी बेटी रैकेट में पकड़ी गयी है| उन्हें  लड़की की आवाज सुनाई गयी | लड़की को जेल जाने से बचाना है तो 15 मिनट में एक लाख रूपये खाते में ट्रांसफर कर दो |अपनी बेटी को परेशानी में देख विमला वर्मा सदमे से बेहोश हो गयीं | परिवारीजन अस्पताल ले गए जहाँ उनकी मृत्यु हो गयी | यह सब हुया डिजिटल अरेस्ट के कारण | यह रोंगटे खड़े कर देने वाला वाकया है | 
बेंगलूरु स्थित एक ७० वर्षीय वरिष्ठ पत्रकार को साइबर ठगों ने 15 से 23 दिसंबर तक 8 दिन डिजिटल अरेस्ट में रहने की धमकी दी | ठगों ने अपना परिचय मुंबई पुलिस और सीबीआई के अधिकारी के रूप में दिया | पत्रकार को धमकी दी कि उसे गिरफ्तार कर लिया जाएगा यदि वह घर से बाहर निकला और उसे बताया गया कि उसके नाम पर ड्रग्स की एक खेप भेजी गयी है तथा उसके बैंक खातों का उपयोग हवाला लेनदेन के लिए किया गया है | ठगों ने उनसे 1.2 करोड़ की अवैध वसूली कर ली | 
एक अन्य मामले में 13 जुलाई 2024 को नोएडा की रहने वाली एक डॉक्टर पूजा गोयल को साइबर ठगों ने 48 घंटे तक डिजिटल अरेस्ट करके रखा | उसे पोर्न वीडियो स्कैम में शामिल होने का भय दिखा कर उससे 59 लाख रूपये ठग लिए । डॉक्टर को कॉल कर साइबर ठगों ने खुद को टेलीफोन रेगुलेटरी ऑफ़ इंडिया का कर्मचारी बताते हुए कहा कि उसके फोन से पोर्न वीडियो भेजे जा रहे है और इसके उसके गिरफ्तारी वारंट जारी होने की बात कही |  वह लगातार पोर्न वीडियो स्कैम में शामिल होने से इंकार करती रही | लेकिंग ठगों ने कहा कि उनके पास सबूत है | इसके बाद डॉक्टर गोयल डर गयी और ठगों द्वारा बताये गए खातों में रुपये ट्रांसफर कर दिए | इस घटना में डिजिटल अरेस्ट के सम्बन्ध में सर्वाधिक चिंता का विषय यह है कि इस घटना की पीड़िता एक उच्च शिक्षित व्यक्ति है |
डॉ. रुचिका टंडन उत्तर प्रदेश के लखनऊ में स्थित मेडिकल कॉलेज के न्यूरोलॉजी बिभाग में कार्यरत हैं | साइबर ठगों ने उन्हें कृष्णानगर में डिजिटल अरेस्ट कर लिया तथा उनसे 2.81 करोड़ करोड़ रूपये ठग लिए |
डॉ टंडन द्वारा पुलिस को दी गयी अपनी शिकायत में बताया कि 1 अगस्त 2024 को उनके फ़ोन पर किसी अज्ञात मोबाइल नंबर से कॉल आई | कॉल करने वाले ने स्वयं को टेलीफोन रेगुलेटरी अथॉरिटी ऑफ़ इंडिया का सदस्य बताया तथा सभी फोन्स की सेवाएं बंद करने की चेतावनी दी तथा बताया गया कि उनके मोबाइल सिम के बारे में उनके विरुद्ध कई शिकायते है | सीबीआई अफसर उनसे बात करेंगे | बातचीत के दौरान टंडन को बताया गया कि उनका नाम मनीलॉंड्रिंग के अपराध में सामने आया है तथा उनके खाते का उपयोग पैसा जमा करने के लिए किया गया जिसका उपयोग बच्चों और महिलाओं की तस्करी के लिए किया गया है | डिजिटल अरेस्ट के दौरान उसे आश्वासन दिया गया कि जांच में सहयोग पर  छोड़ दिया जाएगा | 
10 सितम्बर 2024 को हैदराबाद के एक सेवा निवृत सलाहकार ए वी मोहन राव को अज्ञात मोबाइल नंबर से कॉल आयी | जिसके बाद साइबर अपराधियों ने स्वयं को मुंबई पुलिस का अफसर बताते हुए डिजिटल अरेस्ट कर लिया | तथाकथित अफसर ने राव को बताया कि उसके आधार कार्ड की डिटेल और फोन नंबर मनीलॉन्ड्रिंग तथा पोर्नोग्राफी के वितरण से जुड़े हुए हैं | पीड़ित को फर्जी वारंट का भय दिखाकर उससे उसके बैंक खाते का नंबर साझा करने का दबाब बनाया गया और 2 करोड़ की ठगी कर ली |  

डिजिटल अरेस्ट के प्रति संवेदनशील व्यक्ति और समुदाय 

डिजिटल युग का सबसे बड़ा नुक्सान उन लोगो को उठाना पढ़ रहा जो डिजिटल तकनीकी के सामान्य ज्ञान या बेसिक शिक्षा से वंचित हैं या उम्र के ऐसे पड़ाव पर है कि प्रौढ़ शिक्षा के रूप में भी डिजिटल तकनीकी की बेसिक शिक्षा भी नहीं लेना चाहते है, जिससे स्वयं को डिजिटल अरेस्ट से बचा सकें | यद्यपि डिजिटल अरेस्ट की अखबारों या मीडिया के माद्यम से समाज के सामने आयी घटनाओं से पता चलता है कि डिजिटल अरेस्ट की चपेट में अच्छे खासे पढ़े लिखे लोग भी आ चुके हैं |
तकनीकी निगरानी के माध्यम से न सिर्फ पड़े लिखे लोगों को बल्कि ऐसे लोगों को भी डिजिटल अरेस्ट किया जा  रहा है, जो गोपनीय रूप से प्रौढ़ वैब साइट्स पर कंटेंट को पड़ने या देकने का शौक रखते हैं या विवाह सम्बन्धी साइट्स पर योग्य वर या वधु की तलाश में रहते हैं या डेटिंग साइट्स पर अपना समय बिताते हैं |
बच्चे मन के सच्चे होते है, बच्चों को भगवान् का रूप भी माना जाता है लेकिन साइबर अपराधियों के लिए डिजिटल अरेस्ट के मकसद से बच्चे सर्वाधिक आसान शिकार होते हैं |   
डिजिटल अरेस्ट के प्रति बच्चों का समुदाय अत्यधिक संवेदनशील पाया गया है | अधिकाँश मामलों में डिजिटल अरेस्ट में फंस चुके बच्चे किसी को कुछ नहीं बताते जब तक उनके सामने जीने मरने की नौबत नहीं आ जाती है या उन्हें या उनके परिजनों को जान से मारने की धमकी नहीं मिल जाती है | 
डिजिटल अरेस्ट के सम्बन्ध में मोबाइल या इंटरनेट पर गुमनामी से अपराध करने की स्तिथियाँ बच्चों की मासूमियत और डिजिटल तकनीकी के शातिरों द्वारा अपराध के लिए उपयोग के चलते बच्चों के लिए जोखिम अत्यधिक बढ़ जाता है |
डिजिटल दुनिया से जुड़ने के बाद बच्चों के लिए अपने माता-पिता और शिक्षकों से अधिक प्रिय और सच्चे मददगार, उन्हें बहलाने और फुसलाने वाले लगने लगते है | इसी स्थति का लाभ उठाते हुए साइबर अपराधी मासूम बच्चों को डिजिटल अरेस्ट की चपेट में ले लेते हैं | उसके बाद स्तिथियाँ बच्चों के माँ-बाप या अन्य परिजनों के हाथ से निकल जाती हैं | 
बच्चों के साथ डिजिटल अरेस्ट के रूप में साइबर बदमासी कई रूपों में होती है तथा यह आम बात होती जा रही है | इसमें बच्चे जब ऑनलाइन होते है उस समय दूसरे लोगों द्वारा बच्चों को धमकाए जाने की बहुत सम्भावनाये रहती हैं | डिजिटल अरेस्ट के कारण बच्चों के मानसिक, शारीरिक और शिक्षा सम्बन्धी प्रयासों पर अत्यधिक बुरा प्रभाव पड़ता है | बच्चे बिना किसी कारण के बेचैन और असहज लगने लगते हैं |

डिजिटल अरेस्ट से मानव अधिकारों का उल्लंघन

डिजिटल अरेस्ट में साइबर अपराधियों का पहला कदम होता है शिकार बनाये जाने वाले व्यक्ति, उसके परिवार या इष्टमित्रों या रिश्तेदारों के बारे में जानकारी इक्क्ठा करना तथा दूसरा कदम होता हे डिजिटल तकनीकी जैसे व्हाट्स एप्प, स्काइपे या ऑडियो या वीडियो कॉल द्वारा पीड़ित से संपर्क करना | 
संपर्क करने के बाद तीसरा कदम होता है व्यक्ति पर गंभीर अपराधों के आरोप लगाकर उस पर मानसिक दबाब बनाना |अंतिम या चौथा कदम होता है  पीड़ित को उन अपराधों से बचाने के लिए झांसा देना और उसके बदले में उनके द्वारा दिए गए बैंक खातों में जल्द से जल्द डिजिटल रूप में पैसे ट्रांसफर करने की धमकी | जैसा कि ऊपर बताया गया है कि डिजिटल अरेस्ट के प्रथम चरण में साइबर अपराधी शिकार बनाये जाने वाले व्यक्ति या परिजनों या इष्टमित्रों की पृष्टिभूमि के बारे में सोशल मीडिया या अन्य गैर कानूनी तरीके से व्यक्तिगत तथा गोपनीय जानकारियां इकट्ठा करते हैं | 
गोपनीयता  का अधिकार हर व्यक्ति का मौलिक अधिकार है | यह अधिकार भारतीय संविधान द्वारा सभी नागरिकों को मिला हुया है | भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा भी इसका समर्थन किया गया है | डिजिटल अरेस्ट के कारण गोपनीयता के अधिकार का सीधा -सीधा उलंघन होता है | 
जब किसी व्यक्ति की ऑनलाइन गतिविधियों की बिना उसकी अनुमति के निगरानी की जाती है या उसे गैर कानूनी रूप से हासिल किया जाता है तो यह उसके व्यक्तिगत जीवन मे दखल होता है तथा उसके गोपनीयता के अधिकार का उल्लंघन होता है | मानव अधिकार उल्लंघन की यह स्तिथि न सिर्फ व्यक्तिगत रूप में कष्ट और हानि पहुंचाने वाली है बल्कि समाज में भी भय का माहौल पैदा करती है | जनता पहले से ही अनेक प्रकार के आर्थिक अपराधों से जूझ रही है तथा डिजिटल अरेस्ट के रूप में नयी आफत सामने आ गई है |
मानव अधिकारों को सामान्यतः ऐसे अधिकारों के रूप में जाना जाता है जिनका उपयोग करने और जिनकी रक्षा करने की अपेक्षा करने का हकूक हर व्यक्ति को है | ये अधिकार हर व्यक्ति को उनके मानव होने के नाते प्राप्त हैं | विएना घोषणा के अनुसार सभी मानव अधिकार सार्वजनीन,अविभाज्य, अंतर्निर्भर और अन्तर्संबध  हैं |
अर्थात मानव अधिकार अंतर्निर्भर और अन्तर्संबध होने के कारण एक दूसरे को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करते हैं | गोपनीयता के मानव अधिकार का उल्लंघन व्यक्ति के अन्य कई अधिकारों पर सीधा असर डालता है | उदाहरण के लिए गोपनीयता के अधिकार के उल्लंघन से ही डिजिटल अरेस्ट के अधिकाँश मामलों में अनेक लोगों को जीवन भर की जमा पूंजी से वंचित होना पड़ता है जिससे पुनः जीवन के अधिकार का भी उल्लंघन होता है | 
साइबर अपराधी डिजिटल अरेस्ट द्वारा व्यक्ति  को मनमाने ढंग से उसकी सम्पति से वंचित कर देते हैं जो कि मानव अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा के अनुछेद 17(2) का सीधा उल्लंघन है जिसके अनुसार अनुसार किसी को भी मनमाने ढंग से उसकी सम्पति से वंचित नहीं किया जा सकता है | 
डिजिटल अरेस्ट के कारण पीड़ित को होने वाला आर्थिक नुक्सान उसके स्वास्थ्य को प्रत्यछ रूप से प्रभावित करता है | जिससे घोषणा के अनुछेद 25 में दिए गए स्वास्थ्य के अधिकार का उल्लंघन होता है |   
डिजिटल अरेस्ट के कारण ठगी होने के बाद अनेक लोग गरीबी के कुचक्र में फंसने के लिए विवश हो रहे हैं | गरीबी मानवाधिकारों का सर्वाधिक अतिक्रमण करती है |गरीबी के कारण भोजन के अधिकार,शिक्षा का अधिकार तथा आवास के अधिकार का भी उलंघन होता है | उपरोक्त से स्पष्ट है कि डिजिटल अरेस्ट व्यक्ति के कई मानव अधिकारों के उल्लंघन के लिए जिम्मेदार है | 
साइबर अपराधियों द्वारा डिजिटल अरेस्ट के रूप में कारित की गयी घटनाओं या अपराधों में पीड़ित या उसके परिजन या इष्टमित्रों के सम्बन्ध में कई रूपों में धमकियां दी जाती हैं | पीड़ित को कई- कई दिनों तक डिजिटल अरेस्ट में रखा जाता है अर्थात पीड़ित को संविधान प्रदत्त स्वतंत्र विचरण की स्वंत्रता और जीवन के अधिकार का सीधा -सीधा उलंघन होता है | 
इस सम्बन्ध में सर्वोच्च न्यायालय की विधि व्यवस्था रामवीर उपाध्याय बनाम स्टेट ऑफ़ उत्तर प्रदेश ए आई आर 1996 इला० 131 में स्थापित किया गया है कि "भारत के संविधान के अनुछेद 19(1 )डी  तथा 21 के अधीन नागरिकों को प्राप्त स्वतंत्र विचरण की स्वंत्रता तथा जीवन का अधिकार में ,यह स्पष्ट है कि जीवन को भय तथा धमकी से मुक्त होना चाहिए क्यों कि मृत्यु के भय या धमकी के अधीन जीवन कोई जीवन नहीं होगा | स्वतंत्र विचरण और निजी स्वंत्रता के लिए दी गई धमकी के लिए न्यायालय शक्ति विहीन नहीं होता है तथा वह नागरिकों की सुरक्षा के लिए सम्बंधित प्राधिकारिओ को सुरक्षा के निर्देश दे सकता है| जीवन का मतलब पशुवत जीवन जीना नहीं है और इसमें मानव मर्यादा के साथ शांतिपूर्वक जीवन जीने का अधिकार सम्मिलित होगा |" 

डिजिटल साक्ष्य की अदालत तक पहुंचने की प्रक्रिया 

अदालत में प्रस्तुत करने के लिए डिजिटल साक्ष्य की एक प्रक्रिया होती है | इस प्रक्रिया के कई चरण है | जिसके तहत डिजिटल साक्ष्य को सर्व प्रथम पहचानना पड़ता है | उसके बाद उसका संकलन किया जाता है | फिर उसे संरक्षित किया जाता है | अंत में डिजिटल साक्ष्यों को मौजूदा आपराधिक प्रक्रियात्मक कानून और तकनीकी के अनुसार अदालत में प्रस्तुत किया जाता है | क़ानून का यह स्वरुप साक्ष्य और आपराधिक प्रक्रिया के नियमो को निर्धारित करता है तथा उसे प्रमाणिकता प्रदान करता है |
किसी अपराध का सुबूत प्रदान करने में सूचना अवं संचार प्रौद्योगिकी बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है | सूचना अवं संचार प्रौद्योगिकी से प्राप्त डेटा को न्यायलय में उपयोग में लाया जा सकता है |इसी को डिजिटल साक्ष्य या इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य कहते हैं |इन सबूतों को पहचाने,संकलन करने,संरक्षण करने तथा विश्लेषण कर उन्हें क़ानून की अदालत में प्रस्तुत करने की प्रक्रिया को डिजिटल फॉरेंसिक के रूप में जाना जाता है | 
सूचना और संचार प्रौद्योगिकी का उपयोग करने वाला व्यक्ति अक्सर अपने पीछे डिजिटल निशाँन छोड़ देता है | ये  डिजिटल निशान उपयोगकर्ता द्वारा छोड़े गए डेटा के रूप में होते हैं जो उसके बारे में अनेक प्रकार की जानकारी दे सकता है | जैसे कि आयु ,जाती,लिंग ,राष्ट्रीयता, रंग, नस्ल, मूलवंश, चिकत्सकीय इतहास आदि | 
सूचना अवं संचार प्रौद्योगिकी के माध्यम से डिजिटल चिन्ह के रूप में छोड़े गए डेटा सक्रिय और निष्क्रिय दो रूपों में मिलते है | निष्क्रिय डिजिटल चिन्ह के रूप में डिजिटल तकनीकी के उपयोगकर्ताओं द्वारा ब्रॉजिंग हिस्ट्री एक अच्छा उदाहरण है | जबकि सक्रीय डिजिटल चिन्ह उपयोगकर्ताओं द्वारा प्रदान किये गए डेटा के रूप में होते हैं, जिसमें चित्र, वीडियो, निजी जानकारी, एप्स, वेबसाइट पर अपलोड की गयी सामिग्री समाहित है | सक्रिय और निष्क्रिय डिजिटल चिन्ह  के रूप में डेटा का उपयोग साइबर अपराध के अलावा अन्य अपराध के साक्ष्य के रूप में भी किया जा सकता है | इस डेटा का उपयोग किसी अपराध के साबित करने या उसके खंडन करने की लिए भी किया जा सकता है | 

डिजिटल साक्ष्य की अदालत में स्वीकार्यता

डिजिटल साक्ष्यों को अदालत में प्रस्तुत किया जाना उतना महत्वपूर्ण नहीं है जितना महत्वपूर्ण है उन्हें प्रमाणिकता के साथ अदालत में प्रस्तुत कर उन्हें स्वीकार करना |यद्धपि विधि अनुसार यह सही है कि डिजिटल साक्ष्य को स्वीकार या अस्वीकार करना न्यायिक विवेक पर निर्भर होता है |
भारत में 1 जुलाई 2024 से नया साक्ष्य अधिनियम अर्थात भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 2023 (बीएसए) लागू हो गया है| जिसमे डिजिटल साक्ष्य से सम्बंधित प्रावधान नए और व्यापक रूप में लाये गए हैं | बीएसए में दी गयी  "दस्तावेज" की परिभाषा में इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल रिकॉर्ड को भी शामिल किया गया है | इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल दस्तावेज में इ-मेल, सर्वर लॉग,कंप्यूटर पर दस्तावेज,लेपटॉप या स्मार्ट फोन, मैसेज, वेबसाइट,अवस्थिति साक्ष्य में इलेक्ट्रॉनिकी अभिलेख और डिजिटल युक्तियों में भण्डार किये गए वॉयस मेल मैसेज समाहित हैं | 
बीएसए की धारा 61 के अनुसार इलेक्ट्रॉनिक या डिजिटल दस्तावेज साक्ष्य के रूप में स्वीकार्य होंगे तथा इलेक्ट्रॉनिक या डिजिटल दस्तावेज भी वही विधिक प्रभाव, विधिक मान्यताऔर प्रवर्तनशीलता रखेंगे जो कोई अन्य दस्तावेज रखता है| 
इसी एक्ट की धारा 63(4) इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य की प्रमाणिकता पर बल देती है | जिसके लिए एक प्रमाण -पत्र की आवश्यकता होती है | इस प्रमाण -पत्र पर कंप्यूटर या संचार-युक्ति या सुसंगत क्रियाकलाप के प्रबंध, जो भी समुचित हो, के भारसाधक और विशेषज्ञ के हस्ताक्षर होने चाहिए तब डिजिटल साक्ष्य न्यायालय में स्वीकार्य योग्य माना जाएगा, अन्यथा की स्थति में नहीं | 
यद्धपि कानूनी रूप से किसी की आडियो -वीडियो रिकॉर्डिंग करना अपराध की श्रेणी में आता है लेकिन बीएसए के तहत कुछ विशेष परिस्थितियों में रिकॉर्डिंग करना भी अनिवार्य बनाया गया है | उदाहरण के तौर पर अपराध स्थलों पर या यौन अपराधों के पीड़ित प्रकरणों में | 
बीएसए में डिजिटल साक्ष्यों को दस्तावेजी साक्ष्यों के बराबर का दर्जा देने का उद्देश्य कानूनी प्रक्रिया को सरलता प्रदान करना है | यधपि ,डिजिटल साक्ष्यों को बिना पुख्ता डेटा प्रोटेक्शन क़ानून के लागू करना भी गोपनीयता के मानवाधिकार के लिए चिंता का सबब है |  

भारत में डिजिटल अरेस्ट की कानूनी वैधता

भारत में डिजिटल अरेस्ट के सम्बन्ध में कोई भी कानूनी प्रावधान अभी तक उपलब्ध नहीं है | यदि किसी व्यक्ति को डिजिटल अरेस्ट के सम्बन्ध में कोई वीडियो या ऑडियो कॉल आती है तो निश्चित तौर पर वह एक ठगी या जालसाजी करने के लिए  की गयी कॉल है | दरअसल 1 जुलाई 2024 से लागू नए आपराधिक कानून में कानून लागू करने के लिए डिजिटल गिरफ्तारी करने का कोई प्रावधान नहीं किया गया है | नए क़ानून में केवल सम्मन की सेवा का तथा इलेक्ट्रॉनिक मोड में कार्यवाही का प्रावधान किया गया है | 
डिजिटल अरेस्ट के सम्बन्ध में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने "मन की बात" के 155 वें एपीसोड में भारतीय जनता को सम्बोधित करते हुए कहा कि डिजिटल अरेस्ट जैसी कोई व्यवस्था क़ानून में नहीं है | यह सिर्फ फ्रॉड है, फरेब है, झूठ है, बदमाशों का समूह है | 

डिजिटल अरेस्ट की घटनाओं को रोकने के लिए सरकार के प्रयास

सरकार साइबर अपराध के नए रूप डिजिटल अरेस्ट से लड़ने के लिए सचेत और चिंतित  है | इसका अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी को  मन की बात के 115 वे एपिसोड में डिजिटल अरेस्ट विषय पर भारतीय जनता को सम्बोधित करना पड़ा तथा उससे बचने के उपाय के रूप में  जनता को रुको -सोचो -एक्शन लो नामक  मंत्र दिया गया | 
प्रधान मंत्री ने बताया कि राष्ट्रीय साइबर हेल्पलाइन का एक नंबर 1930 जारी किया गया है जिस पर कोई भी पीड़ित या उसकी ओर से किसी भी प्रकार के साइबर अपराध के सम्बन्ध अपनी शिकायत दर्ज करा सकता है | इसके अलावा एक राष्ट्रीय साइबर अपराध रिपोर्टिंग पोर्टल https://cybercrime.gov.in भी प्रारम्भ किया गया है, जिस पर डिजिटल अरेस्ट से पीड़ित व्यक्ति अपनी ऑनलाइन शिकायत दर्ज करा सकता है | साइबर अपराधों पर प्रभावी नियंत्रण पाने के लिए केंद्र सरकार सभी राज्य सरकारों और केंद्र साशित प्रदेशों से मिलकर काम कर रही है | जिसके लिए सरकार ने नेशनल साइबर को आर्डिनेशन सेंटर की स्थापना भी की है | 
साइबर अपराध जिसमें डिजिटल अरेस्ट भी शामिल है, के बारे में एसएमएस,सोशल मीडिया अक्स (पूर्व में ट्विटर)@ साइबरदोस्त, फेसबुक, इंस्टाग्राम, टेलीग्राम आदि के माध्यम से जन-जागरूकता फैलाने के लिए केंद्र सरकार गंभीरता से प्रयासरत है | 
गृह मंत्रालय द्वारा साइबर धोखाधड़ी के मामलों पर 6 फ़ेरबरी 2024 को जारी की गई प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार भारत सरकार द्वारा 3.2 लाख से अधिक सिम कार्ड और 49,000 IMEI ब्लॉक किए गए हैं।

डिजिटल अरेस्ट से बचाव के कुछ सरल उपाय 

साइबर अपराध के क्षेत्र में ठगी और जालसाजी के लिए "डिजिटल अरेस्ट" को हतियार के रूप में उपयोग की समाज में एक बाढ़ सी आ गयी है, जो तत्काल मानव अधिकार संरक्षण हेतु निवारण उपायों और सार्वजनिक जागरूकता की मांग करता है | सार्वजनिक जागरूकता में आपराधिक न्याय व्यवस्था और पुलिस प्रशाशन से लेकर  डिजिटल शिक्षा से वंचित हर आम नागरिक शामिल है |   
कोई भी व्यक्ति व्हाट्स- ऍप कॉल की अपनी डीपी पर पुलिस की वर्दी में किसी व्यक्ति का फोटो लगाकर या साधारण काल के जरिये किसी अनजान नंबर से काल करके फ़साने का प्रयास करे और किसी को न बताने की बात कहे तो तत्काल काल कट करके बिना घबराये पुलिस या परिवारीजन या परिचित को  सूचित करें | प्रोफेसर (डॉ) जी.के. गोस्वामी, IPS का कहना है कि जब आपने कोई अपराध किया ही नहीं है तो डर किस बात का है |  
साइबर अपराधी साधारण कॉल या व्हाट्स- ऐप या वेबसाइट या किसी एप्लीकेशन आदि के माध्यम से धमकाकर, झांसा देकर या आपके किसी परिजन के संकट में होने की सूचना देकर या जालसाज कहते है कि मनी लॉन्ड्रिंग या ड्रग तस्करी में आपकी संलिप्तता पाई गई है और आपको डिजिटल अरेस्ट  करने का प्रयास कर सकते हैं |ऐसी स्थती में तत्काल पुलिस को सूचना या संपर्क करना चाहिए| 
यदि कोई अपरिचित काल करने वाला आपके पुत्र या पुत्री के किसी रैकेट या यौन अपराध में फसने और उसे अरेस्ट करने की बात कहता है तथा तुरंत रूपये भेजने पर उन्हें छोड़ने का आश्वासन देता है तो तुरंत समझ जाना चाहिए कि कॉल साइबर ठगों या जालसाजों की है | डिजिटल तरीके से ठगी या जालसाजी करने वाले अपराधी पीड़ित व्यक्ति को किसी अपराध से बचाने के ऐवज में रूपये की मांग करते हैं | 
मोबाइल इंटरनेट पर अपनी निजी जानकारियों को साजा करने से तथा संदिग्ध  लिंक पर क्लिक करने और अज्ञात और अपुष्ट श्रोतों से उससे अटैच्ड फाइलें डाउनलोड करने से बचें | 
डिजिटल अरेस्ट करने वाले साइबर अपराधी पीड़ित को कॉल करके स्वयं को सीबीआई ,एनआईए या किसी अन्य विभाग में अधिकारी आदि बताकर ठगीका गैरकानूनी कारोबार करते हैं |
अक्सर देखा गया है कि 92 कोड वाले नंबर से डिजिटलअरेस्ट के लिए कॉल्स की जाती है इसलिए इस कोड वाली काल को नदरअंदाज करें |  
पुलिस विभाग में डिजिटल अरेस्ट जैसा कोई विधिक प्रावधान नहीं है | इसलिए पुलिस कभी भी लोगों को कॉल करके डिजिटल अरेस्ट नहीं करती है |
प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने "मन की बात" में डिजिटल अरेस्ट से बचने के लिए सरल उपाय के रूप में डिजिटल सुरक्षा के तीन चरण बताये | ये चरण हैं -रुको- सोचो-एक्शन लो |  

निष्कर्ष 

वर्तमान समय में जरायम पेशे अर्थात आपराधिक कारोबार की दुनिया का सिरमौर शब्द  डिजिटल अरेस्ट का व्यक्ति, परिवार, समाज और सरकार पर गहरा और व्यापक असर दृष्टिगोचर हो रहा है | यह न सिर्फ आभासीय बल्कि वास्तविक रूप में भी व्यतिगत स्वंत्रता को सीमित कर रहा है बल्कि समाज के लोकतांत्रिक ढाँचे को भी कमजोर कर रहा है | इस लिए यह आवश्यक है कि इस मुद्दे के निराकरण के सम्बन्ध में बिना समय गवाए हर मोर्चे पर ध्यान दिया जाए और नागरिकों की डिजिटल अरेस्ट से रक्षा के लिए हर स्तर से और हर संभव कानूनी और नीतिगत पुख्ता कदम उठाये जायें | डिजिटल दुनिया में डिजिटल अरेस्ट से मानव अधिकारों की रक्षा के लिए एक समर्पित और मानवाधिकार केंद्रित समग्र दृष्टिकोण की आवश्यकता है,ताकि सभी लोग स्वंत्रता और गोपनीयता के मानवअधिकार के साथ जी सकें |  

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)

प्रश्न : डिजिटल अरेस्ट क्या है ?
उत्तर :डिजिटल अरेस्ट एक नए किस्म का साइबर अपराध है | इसमें पीड़ित पर डिजिटल उपकरणों का उपयोग करते हुए झूठे आपराधिक आरोप लगा दिए जाते है और उन्हें आपराधिक कानूनी कार्यवाही से बचने के बदले में उन्हें पैसे देने के लिए धमकाया या राजी किया जाता है | यह एक प्रकार की ठगी या जालसाजी के लिए किया जाता है |
प्रश्न : यदि कोई संदिग्ध कॉल आये तो क्या करें ?
उत्तर : यदि कोई संदिग्ध काल आये तो  पहले रुकें  फिर सोचें  उसके बाद एक्शन ले अर्थात परिजनों या पुलिस को सूचित करें 
प्रश्न : मुझे सबूत जुटाने के लिए क्या करना चाहिए ?
उत्तर : संदिग्ध काल आने की बाद आप मोबाइल या लेपटॉप स्क्रीन का स्क्रीन शॉट ले सकते हैं तथा ऑडियो या वीडियो काल होने की स्तिथि में उसे रिकॉर्ड भी कर सकते हैं | 

 

 










बुधवार, 25 सितंबर 2024

फॉरेंसिक साइंस और मानव अधिकार के बीच अन्तर्सम्बन्ध -Interlinkage between Forensic Science & Human Rights(In Hindi)

Forensic Science and Human Rights

फॉरेंसिक साइंस और मानव अधिकार के बीच रिस्ते 

फॉरेंसिक साइंस और मानव अधिकार के बीच अन्तर्सम्बन्ध एक महत्वपूर्ण और जटिल विषय है | फॉरेंसिक साइंस का मुख्य उद्देश्य गंभीर अपराधों की जांच कर उसकी तह तक पहुंचना है तथा आपराधिक न्याय प्रणाली के समक्ष उच्च कोटि के साक्ष्य उपलब्ध कराकर सत्य की स्थापना में न्यायालय की सहायता करना है |
दूसरी ओर मानव अधिकार वे अधिकार है जो मनुष्य होने के नाते हर व्यक्ति को उसके जन्म से प्राप्त है | इन अधिकारों में गरिमा,समानता,स्वतंत्रता, जीवन, सुरक्षा और सक्षम न्यायालय से न्याय की मांग करने का अधिकार    हर व्यक्ति के चहुमुखी विकास के लिए आवश्यक है | ये सभी मनुष्यों को बिना किसी मूल,वंश ,घर्म,जाति,नस्ल,रंग,भाषा,क्षेत्र, लिंग,आदि के भेदभाव के प्राप्त होते हैं। यही नहीं गरिमा का अधिकार व्यक्ति की मृत्यु या ह्त्या के उपरांत उनके शवों को भी  प्राप्त होता  है |
किसी भी देश में मानव अधिकारों का संरक्षण एक सुदृढ़ लोकतंत्र के लिए अति आवश्यक है | अक्सर फॉरेंसिक साइंस का उपयोग मानव अधिकारों के उल्लंघन की घटनाओं से सम्बंधित जटिल तथ्यों को उजागर करने के लिए  किया जाता है | जब नियम विरुद्ध किसी व्यक्ति को किसी झूठे अपराध में फंसाया जाता है और उसे यातनाये दी जाती है या हिरासत में ही उसकी ह्त्या कर दी जाती है | ऐसी स्थति में अपराधियों के विरुद्ध कोई भी व्यक्ति गवाही देने वाला सामने नहीं आता है  जिसके कारण सरकार पोषित या संरक्षण पाए व्यक्तियों के विरुद्ध कोई कानूनी कार्यवाही पहले तो प्रारम्भ नहीं होती है और यदि प्रारम्भ हो भी जाए तो साक्ष्य के अभाव में न्यायलय से दोषमुक्त हो जाते है | ऐसी स्थति में पीड़ितों के लिए फॉरेंसिक साइंस ही न्याय और मानव अधिकार संरक्षण के द्वार खोलती है |
विश्व के अलग-अलग देशों में नरसंहार की कई घटनाएं इतनी भीभत्स और भयानक हुयी है कि उन घटनाओं का कोई चश्मदीद जीवित नहीं बचा, जो घटना के सम्बन्ध में परिथितिजन्य विवरण उपलब्ध करा सके | जो  जीवित बचे वे आताताईयों के भयवस अपना मुँह खोलने के लिए तैयार नहीं  थे | 
जो जीवित बचे उनके द्वारा दिए गए घटना सम्बन्धी विवरण की सत्यता की पुष्टि के बिना घटना की सच्चाई को उजागर करना अपने आप में अत्यधिक दुरूह कार्य था| इस जटिल कार्य को आसान बनाया फॉरेंसिक साइंस के विशेषज्ञों द्वारा फॉरेंसिक साइंस का उपयोग करके | 
आज फॉरेंसिक साइंस में बहुत उन्नति हो चुकी है| यही कारण है कि फॉरेंसिक साइंस के उपयोग से विश्व के कई देशों में मानवाधिकार उलंघन की भीभत्स आपराधिक घटनाओं का खुलासा संभव हो सका है | 
विश्वभर में फॉरेंसिक साइंस का मानव अधिकार उल्लंघन के वैज्ञानिक दस्तावेजीकरण के सशक्त माध्यम के रूप में उपयोग होता रहा है | कई देशों के फॉरेंसिक साइंस के वैज्ञानिकों ने मानवता के विरुद्ध अपराध के रूप में नरसंहार की घटनाओं से सम्बंधित विशेष तथ्यों को उजागर करने का काम किया है| यही नहीं आज यह विज्ञान प्रयोगशालाओं से बाहर निकलकर दूर दराज स्थित आपराधिक घटना स्थलों तक पहुंच रहा है। वर्तमान में इसके अनेक उदाहरण उपलब्ध है |  जिनमे से कुछ यहाँ प्रस्तुत किये जा रहे हैं | 
उदाहरण स्वरुप, वर्ष १९९५ में स्रेवेनिका के बोसनियन गांव में सर्वों द्वारा मारे गए बोसनियन लोगों के शवों को बरामद किया गया | उनका सावधानी पूर्वक उत्खनन और विश्लेषण के परिणाम स्वरुप सामने आये वैज्ञानिक सबूतों को साक्षियों के ब्यानो के साथ मिलाया गया |  इस घटना में  ८००० लोगों की सामूहिक हत्या हुई थी |  
उसी प्रकार वर्ष १९९० में ग्वाटेमाला कमीशन फॉर हिस्टोरिकल क्लेरिफिकेशन ने अनेकों सामूहिक कब्रों की खुदाई के आदेश दिए | अनेकों वर्ष बीतने के बावजूद पीड़ित और स्थानीय लोग जोर से यह नहीं कह सकते थे कि उनके पास ही उनके परिजनों या रिश्तेदारों के शवों को दफनाया गया था | उक्त सामूहिक कब्रों को तहसनहस  और हेरफेर करने के प्रयास किये गए | परन्तु सामूहिक कब्रों के उत्खनन के उपरान्त निकले परिणामों ने स्पष्ट साक्ष्य उपलब्ध कराये कि ग्वाटेमाला आर्मी ने वर्ष १९८० में अत्याचार किये थे | 
73 वर्षीय ओकलाहोमा निवासी क्लाइड स्नो दुनिया के जाने-माने फोरेंसिक मानवविज्ञानी माने जाते है | वे  आपदाओं, दुर्घटनाओं और हिंसक अपराधों में मारे गए लोगों का वैज्ञानिक विधि से परीक्षण कर घटना के पीछे छिपे रहस्यों को उजागर करते है | वर्ष १९७९ में अमेरिकन एयर लाइन्स की १९१ दुर्घटनाग्रस्त हुई जिसमे २७३ लोग मारे गए | क्लाइड स्नो ने जांच करने के लिए एक टीम बनाई जिसमे चिकित्स्कीय जांचकर्ता ,दन्त चिकित्सक तथा एक्स -रे तकनीसियन शामिल थे | दुर्घटनाग्रस्त लोगों के अवशेषों की जांच  पूरी करने के परिणामस्वरूप  २७३ लोगों में से २४४ लोगों की पहचान कर ली गयी थी सिर्फ २९ लोग ही अज्ञात बचे थे | 
यह फॉरेंसिक साइंस ही है जिसकी बदौलत मानवता के विरुद्ध गंभीरऔर भीभत्स अपराधों का खुलासा संभव हो सका है  |  
सयुंक्त राष्ट्र  संघ की सुरक्षा परिषद् ने सशस्त्र संघर्ष के दौरान लापता हुए लोगों पर ११ जून २०१९ को पहली बार प्रस्ताव पारित किया जिसमे इस बात पर चिंता जाहिर की गयी गयी कि लापता होने वाले लोगों की संख्या में कमी आने के कोई संकेत नहीं मिल रहे हैं | 
परिषद् ने सर्व सम्मिति से संकल्प २४७४ (२०१९ ) को अपनाते हुए कहा कि संघर्ष के दोनों पक्षों को वह सभी उचित उपाय करने चाहिए जिनसे लापता लोगों की अनवरत खोज चलती रहे तथा उनके अवशेषों  की वापसी सुनिश्चित हो| दोनों पक्ष बिना किसी दुराग्रह के लापता लोगों का हिसाब दें और लापता लोगों की शीघ्र ,गहन और प्रभावी जांच सुनिश्चित हो | 
सुरक्षा परिषद् के प्रस्ताव में कहा गया कि  हम महान वैज्ञानिक और तकनीकी प्रगति से परिचित है जिससे अन्य बातों के साथ -साथ लापता लोगों की खोज और पहचान की प्रभावी विधियों में उल्लेख्नीय बृद्धि हुई है जिसमे फॉरेंसिक साइंस ,डीएनए  विश्लेषण ,उपग्रह मानचित्र और इमेजनरी ,तथा जमीन भेदने वाला रडार शामिल है | 
सुरक्षा परिषद् के उक्त प्रस्ताव में शास्त्र संघर्ष से जुड़े पक्षों से सशस्त्र संगर्ष के बाद मृतकों की तलाश करने ,उन्हें बरामद करने,उनकी पहचान करने ,दफ़न स्थलों का मानचित्र बनाने ,मृतकों के शवों का सम्मान करने करने और उचित रूप में रख रखाव का आग्रह किया गया है |  
सुरक्षा परिषद् के उक्त प्रस्ताव के अवलोकन से स्पष्ट हो जाता है कि प्रस्ताव में शवों और उसके परिजनों या रिश्तेदारों के मानव अधिकारों के प्रति संघर्ष के दोनों पक्षों को सम्मान दिए जाने का आग्रह किया है साथ ही लापता, लोगों की खोज में वैज्ञानिक विधियों के रूप में फॉरेंसिक साइंस ,डीएनए  विश्लेषण ,उपग्रह मानचित्र और इमेजनरी तथा जमीन भेदने वाला रडार के उपयोग की वकालत की है |
फॉरेंसिक साइंस की बदौलत अपराधी को सजा दिलाकर पीड़ित के मानव अधिकारों को संरक्षित किया जाता है उसी तरह अभियुक्त के निर्दोष साबित होने पर अभियुक्त की स्वतंत्रता और न्याय प्राप्ति के अधिकार का संरक्षण होता है | 
अनेक मामलों में जानबूज कर की गयी आगजनी और हत्याओं को दुर्घटना का रूप दे दिया जाता है लेकिन फॉरेंसिक साइंस के उपयोग से की जाने वाली जांच पड़ताल से दूद का दूध और पानी का पानी हो जाता है | आगजनी या ह्त्या करने वालों का पता चल जाता है तथा पीड़ितों को फॉरेंसिक साइंस की बदौलत छतिपूर्ति संभव हो पाती है | 

शवों /मृतकों का सम्मान और उचित व्यवहार का मानव अधिकार  

विश्वभर में अनेक उदाहरण उपलब्ध हैं जिनमे कब्रों में दफ़न लोगों को उत्खनन द्वारा निकाला गया और उनकी फॉरेंसिक साइंस के तहत जांच की गयी और उसके बाद उन शवों की पहचान होने पर वे उनके परिजनों और रिश्तेदारों को सौंपे गए जिससे वे अपनी रीती रिवाज के साथ उनका अंतिम संस्कार कर सके | मृत्यु या ह्त्या के बाद भी उनके शवों को सम्मान दिया जाना पीड़ितों के परिवारीजनों और रिश्तेदारों को दर्द भरा सकून देता है जिससे उन्हें भी गरिमा के अधिकार का अहसास होता है |
सर्वोच्च न्यालय की विधि व्यवस्था आश्रय अधिकार अभियान  बनाम यूनियन ऑफ़ इंडिया, ए आई आर २००२ एस सी ५५४  में सड़क पर मरने वाले आश्रयहीन व्यक्तियों के अदावाकृत  शवों को उनके धर्म के अनुसार रीति रिवाज  से अंतिम संस्कार के अधिकार को स्थापित किया गया है | 
फॉरेंसिक साइंस और मानव अधिकारों के बीच अंतर्रसम्बन्धों के बारे में जानकर आप आश्चर्यचकित होंगे कि स्पेन में हिंसा के इतिहास को चुनौती देने के लिए एक बहुत व्यापक फॉरेंसिक साइंस -आधारित मानवाधिकार आंदोलन खड़ा हो गया | इस आंदोलन के उद्देश्यों में परिवार के मारे गए या लापता परिजनों को खोजने,उन्हें वापस लाने और उनको पुनः दफनाने में सहायता करना और राज्य के अत्याचारों और नरसंहार के समय घटित घटनायों को वैज्ञानिक तथ्यों से पुष्ट करना शामिल था | 
सही मायने में यह एक अधिकार आधारित वैज्ञानिक आंदोलन था जो कि अतीत की हिंसक और भीभत्स कहानियों को उजागर करने पर आधारित था | इस आंदोलन में मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के लिए अवशेषों को प्राप्त करना और विज्ञान के सुस्थापित सिद्धांतों का उपयोग सुनिश्चित कर उनकी पहचान कराना था | यह अत्यधिक दुरूह कार्य था | शव परीक्षण भी फॉरेंसिक साइंस का एक विषय है | 
इस आंदोलन की खास  बात यह थी कि इस आंदोलन में फॉरेंसिक साइंस अर्थात विज्ञान को परिवारों के मानव अधिकारों की प्राप्ति का एक सशक्त माध्यम बनाया गया | जिसकी की बदौलत अर्जेंटीना में डीएनए परीक्षण से कम से कम 130 लापता बच्चों की पहचान संभव हो सकी
जिन परिवारों से उनके परिजन लापता होते हैं उनके पता न लगने तक परिवारीजन हमेशा शोक में डूबे रहते हैं  और उनके मिलने का इंतज़ार ख़त्म नहीं होता है | इस दौरान परिवारीजन अपने प्रियजनों का अपनी आस्था और परम्पराओं के अनुसार अंतिम संस्कार के अधिकार से वंचित रहते हैं और उनके इस इन्तजार को अनेकों मामलों में समाप्त किया है फॉरेंसिक साइंस के उपयोग ने | 
भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने विधि व्यवस्था पंडित परमानंद कतरा बनाम भारत संघ ,१९९५ (३)एस सी सी २४८ में स्थापित किया है कि,"भारत के संविधान के अनुछेद २१ के तहत सम्मान और उचित व्यवहार का अधिकार न सिर्फ जीवित व्यक्ति को है बल्कि उसकी मृत्यु के बाद उसके मृत शरीर को भी उपलब्ध है |"
इलाहाबाद उच्च न्यायालय की विधि व्यवस्था रामजी सिंह मुजीब भाई बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य ,(२००९)५ एआईआईऐलजे ३७६  में  माना गया कि भारत के संविधान के अनुछेद २१ में "व्यक्ति" शब्द में एक मृत व्यक्ति भी समाहित है और सम्मान के साथ जीवन के अधिकार का विस्तार इस प्रकार किया जाना चाहिए कि उसमे उसके मृत शरीर को भी उसकी परंपरा,संस्कृति और धर्म के अनुसार सम्मान दिया जाए, जिसका वह हकदार होता है तथा समाज को मृतक के प्रति किसी प्रकार का अपमान करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है | 
भारत के राष्ट्रीय विधायन और विधि व्यवस्थायों  में ही नहीं बल्कि अंतराष्ट्रीय स्तर पर भी संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग ,संकल्प २००५ /२६ ,१९ अप्रैल २००५ , में मानव अधिकार और फॉरेंसिक विज्ञानं पर एक प्रस्ताव में, संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग ने "मानव अवशेषों के सम्मानजनक तरीके से निपटाने के महत्व, जिसमे उनका उचित प्रबन्धन और निपटारा शामिल है, तथा साथ ही परिवारों की आवश्यकताओं के प्रति सम्मान" को रेखांकित किया गया है |  
उपरोक्त से स्पष्ट है कि न सिर्फ जीवित व्यक्ति को गरिमा का अधिकार प्राप्त है बल्कि मृत शरीर को भी जीवित व्यक्ति के सामान गरिमा का अधिकार प्राप्त है |    

फोरेंसिक साइंस  का तात्पर्य एवम क्षेत्र 

फोरेंसिक साइंस की आधुनिक और उत्कृष्ट परिभाषा के अनुसार कानूनी उद्देश्यों को पूरा करने के लिए उपयोग में लाए जाने वाला कोई भी विज्ञान फोरेंसिक विज्ञान है। फॉरेंसिक साइंस या न्यायालयीय विज्ञान मुख्य रूप से किसी आपराधिक घटना या अपराध की जांच तथा उसका विश्लेषण करने के लिए वैज्ञानिक सिद्धांतों औरअत्याधुनिक प्रौद्योगिकी के उपयोग से संबंधित है। फॉरेंसिक वैज्ञानिक अपराध स्थल से एकत्र किए गए सबूतों/सुरागों को अदालत में प्रस्तुत करने के वास्ते ग्राहीय साक्ष्य के तौर पर इन्हें परिवर्तित करने का प्रयास करता है।
अर्थात यह विज्ञान आपराधिक घटनाओं की जांच में वैज्ञानिक  विधियों का उपयोग करता है | जिससे आपराधिक घटना से सम्बंधित तथ्यों की पुष्टि सटीकता के साथ हो सके | एक फॉरेंसिक साइंटिस्ट किसी प्रकरण से सम्बंधित जटिल तथ्यों की उपस्थिति के बाबजूद एक निश्चित सटीकता के साथ उसके समक्ष आने वाले  प्रश्नो का उत्तर दे सकता हैं | यह विज्ञान आपराधिक न्याय व्यवस्था में समाज और मानवता के विरुद्ध होने वाले जघन्य अपराधों में अत्यधिक सटीक और ग्राहीय  साक्ष्य उपलब्ध करती है | इस विज्ञान का मूलमंत्र है सत्य की खोज करना | 
समाज में अनेक आपराधिक घटनाएं ऐसी होती है जो किसी की उपस्थिति में नहीं होते हैं अर्थात जिसके कोई प्रत्यक्ष सबूत नहीं होते है | ऐसी स्तिथि में अपराधी को पहचान कर घटना से सटीकता से जोड़ना तथा अपराधी को सजा दिलवाना सम्पूर्ण आपराधिक न्याय व्यवस्था के लिए कोई आसान कार्य नहीं होता है | बस यही वह स्थति होती है जहाँ आपराधिक न्याय व्यवस्था का ध्यान फॉरेंसिक साइंस की ओर जाता है |
फॉरेंसिक विज्ञान के तहत घटना स्थल पर मौजूद सुबूतों ,जैसे कि मृतक का शव,खून के धब्बे,वीर्य,नाखून,बाल,अन्य वस्तुएं,अँगुलियों के निशान,हतियार तथा शरीर पर लगे गोलियों के निशान तथा उन पर लगा गन पाउडर आदि,  के अतिरिक्त अन्य शारीरिक, रासायनिक और जैविक तथ्यों का संकलन किया जाता है और आवश्यकता अनुसार प्रयोगशाला में उन नमूनों का उपयोग किया जाता है | जिसके परिणाम स्वरुप विश्लेषण के आधार पर सटीक जानकारी, तथ्यों औरअपराधियों की पहचान की जाती है | 
न्याय और मानव अधिकार संरक्षण के लिए किसी आपराधिक घटना या दुर्घटना के तथ्यों के सम्बन्ध में सटीकता, पारदर्शिता और निष्पक्षतापूर्ण जानकारी का होना आवश्यक है और यह जानकारी एकत्रित होती है फोरेंसिक साइंस में उपलब्ध उन्नत तकनीकी और वैज्ञानिक तरीकों के उपयोग से |
इस विज्ञान का मुख्य उद्देश्य न केवल दोषियों को सजा दिलाना है बल्कि बल्कि निर्दोष व्यक्तियों को उनके विरुद्ध हो रहे अन्याय से बचाना भी है | न्यायालय में इन साक्ष्यों के स्वीकार किये जाने योग्य होने पर अपराध के दोषी को सजा मुकर्रर होती है या निर्दोष होने की स्तिथि में बाइज्जत मुक्त कर दिया जाता है | 
साक्ष्य विहीन मुकद्द्मों में न्यायालय का निर्णय मुख्य्तया फॉरेंसिक साइंस द्वारा इकट्ठे किये गए सबूत के सम्बन्ध में निकाले गए निष्कर्षों पर ही निर्भर करता है | इस विज्ञान द्वारा न्यायालय को किसी अपराध के सम्बन्ध में सटीक जानकारी मिलती है जो आपराधिक न्याय व्यवस्था को अधिक प्रभावी और पारदर्शी बनाती है खासकर जब न्यायालय के समक्ष अँधा मामला होता है| अर्थात मामले में निर्णय लेने के लिए किसी प्रकार के साक्ष्य उपलब्ध नहीं होते है लेकिन सबूत के रूप में वैज्ञानिक साक्ष्य उपलब्ध होने की सम्भावनाये होती हैं |इससे वर्तमान न्याय प्रणाली में फॉरेंसिक साइंस की भूमिका का अंदाजा बखूबी लगाया जा सकता है | 
फोरेंसिक साइंस का विस्तार आज बहुत व्यापक तथा एक बहु-विषयक क्षेत्र के रूप में हो चुका है। वर्तमान और भविष्य की चुनौतियों के चलते आये दिन इस क्षेत्र में व्यापक विस्तार हो रहा है | फोरेंसिक विज्ञान में फिंगरप्रिंट से लेकर फोरेंसिक मनोविज्ञान, फोरेंसिक नृविज्ञान, फोरेंसिक ओडोन्टोलॉजी, फोरेंसिक पैथोलॉजी, फोरेंसिक जीवविज्ञान और सीरोलॉजी,फोरेंसिक रसायन विज्ञान, फोरेंसिक भौतिकी, फोरेंसिक कीट विज्ञान, विष विज्ञान, डीएनए विश्लेषण, डीएनए फिंगरप्रिंटिंग, डिजिटल फोरेंसिक, फोरेंसिक इंजीनियरिंग, फोरेंसिक बैलिस्टिक, फोरेंसिक अकाउंटिंग, प्रश्नगत दस्तावेज, फोरेंसिक पोडियाट्री, फोरेंसिक भाषाविज्ञान और वन्यजीव फोरेंसिक तक कई तरह के विषय शामिल हैं जो उसके बहु-विषयक होने की स्पष्ट गवाही देते हैं | 

न्यायालय में फॉरेंसिक साक्ष्य का महत्त्व 

फॉरेंसिक साइंस के उपयोग से संकलित सबूतों के सम्बन्ध में यह आवश्यक नहीं कि न्यायालय हर मामले में उन्हें साक्ष्य के रूप में स्वीकार कर ले | यह न्यायालय के विवेक पर निर्भर होता है कि फॉरेंसिक साइंस के द्वारा किसी घटना के सम्बन्ध में जांच के नतीजों को स्वीकार करे या ना करे | 
यदि फॉरेंसिक साइंस के नतीजों को किसी न्यायालय द्वारा स्वीकार कर लिया जाता है तो वह न्यायालय के समक्ष उपस्थित प्रकरण में साक्ष्य का रूप धारण कर लेता है तथा वह न्यायालय द्वारा दिए जाने वाले निर्णय का आधार बनता है | 
यद्यपि १ जुलाई २०२४ से पहले फॉरेंसिक साइंस के तहत संग्रह किये गए सबूत भारतीय साक्ष्य अधिनियम,१८७२ की धरा ४५ के अधीन विशेषज्ञ की राय के तहत आते थे परन्तु उक्त अधिनियम के समाप्त किये जाने के बाद लाये गए नए भारतीय साक्ष्य अधिनियम,२०२३ की धरा ३९ में भी विशेषज्ञ की राय को सम्मिलित किया गया है | 
फॉरेंसिक साइंस के सबूत स्वतः ही साक्ष्य का रूप धारण नहीं करते हैं बल्कि उन सबूतों के सम्बन्ध में उस फॉरेंसिक साइंस विशेषज्ञ की जिसने सबूतों का संकलन या उनकी प्राप्ति के के बाद वैज्ञानिक विश्लेषण किया है उसकी मुख्य-परीक्षा और प्रति-परीक्षा के बाद ही वे सबूत साक्ष्य में बदलते है अन्यथा की स्थति में उस फॉरेंसिक साइंस के सबूत का भी कोई महत्त्व नहीं होता है |
ऐसी अपराधिक घटनाओं, जिनके सम्बन्ध में चच्छुदर्शी साक्ष्य उपलब्ध नहीं होते है, वहां अपराधियों को सजा दिलाने या निर्दोषों को दोषमुक्त करने के लिए परिस्थितिजन्य साक्ष्य के अलावा एक मात्र विकल्प के रूप में फॉरेंसिक साइंस का महत्त्व अत्यधिक बढ़ जाता है | क्यों कि कानूनी प्रक्रिया में भौतिक साक्ष्य अत्यधिक महत्व के होते हैं  साक्षी की तुलना में भौतिक साक्ष्य में हेरफेर करना मुश्किल होता है तथा ये साक्ष्य अत्यधिक भरोसेमंद, प्रमाणिक तथा वैज्ञानिक समुदाय द्वारा स्वीकृति प्राप्त होते है |
न्याय और मानव अधिकार संरक्षण के लिए किसी आपराधिक घटना या दुर्घटना के तथ्यों के सम्बन्ध में सटीकता, पारदर्शिता और निष्पक्षतापूर्ण जानकारी का होना आवश्यक है और यह जानकारी एकत्रित होती है फोरेंसिक साइंस में उपलब्ध उन्नत तकनीकी और वैज्ञानिक तरीकों के उपयोग से, जो किसी भी न्यायालय में किसी प्रकरण में निर्णय और आदेश देने के लिए आवश्यक है |  

फोरेंसिक साइंस का भारतीय परिदृश्य 

वर्तमान समय में न्याय प्रणाली में आये दिन अनेक आमूलचूक परिवर्तन हो रहे हैं | जिसके कारण भारत में अपराधों की जांच प्रक्रिया के दौरान साक्ष्य संकलन में फॉरेंसिक साइंस की भूमिका अत्यधिक महत्वपूर्ण हो गयी है | फॉरेंसिक साइंस को हिंदी भाषा में न्यायिक या न्यायालयिक विज्ञान भी कहा जाता है | यह विज्ञानं किसी आपराधिक घटना की तह तक जाने का अवसर प्रदान करती है | 
भारतीय न्याय व्यवस्था में फोरेंसिक विज्ञान का उपयोग भारतीय साक्ष्य अधिनियम,1872  के लागू होने के साथ ही  शुरू हो गया था। इस अधिनियम ने भारतीय न्यायालयों में वैज्ञानिक साक्ष्य की ग्राहीयता को मान्यता प्रदान की। आपराधिक जांचपड़ताल में वैज्ञानिक तरीकों के उपयोग के बढ़ने के साथ ही भारत में फोरेंसिक प्रयोगशालाओं की संख्या में इजाफा हुया है लेकिन न्यायालयों में लंबित मुकदद्मों की तुलना में अभी भी फोरेंसिक प्रयोगशालाओं और  फॉरेंसिक विज्ञान में में कुशल मानव संसाधन की अत्यधिक कमी है | 
इस बात की तस्दीक होती है फॉरेंसिक साइंस पर नयी दिल्ली में आयोजित एक वेबिनार से | अगस्त, २०२० में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग,इंडिया द्वारा भारत में फॉरेंसिक साइंस  की स्थापना और सम्बंधित मुद्दों पर आयोजित वेबिनार की समाप्ति इस निष्कर्ष के साथ हुई कि भारत में फॉरेंसिक लैब्स और उनके सञ्चालन के लिए पर्याप्त संख्या में मानव संसाधन की कमी है | 
केंद्रीय गृह मंत्री श्री अमित शाह ने, वर्ष २०२३ में गुजरात के गाँधीनगर में राष्ट्रीय फॉरेंसिक विज्ञानं विश्वविद्यालय (NFSU) के ५ वे अंतर्राष्ट्रीय अपराध विज्ञान सम्मलेन को सम्बोधित करते हुए कहा कि प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में ऐसी व्यवस्था की गयी है कि ५ वर्षों के बाद देश को हर वर्ष ९ हजार से अधिक वैज्ञानिक अधिकारी और फॉरेंसिक विज्ञान विशेषज्ञ मिलेंगे |  
लेखक उक्त वेबिनार में आये सुझावों में से एक महत्वपूर्ण सुझाव को पाठकों के साथ साझा कर रहा है और यह सुझाव था एकीकृत बीएससी (फॉरेंसिक) एलएलबी में एक अलग पाठ्यक्रम के रूप में फॉरेंसिक क़ानून की पढ़ाई शरू करना | इस सुझाव पर अमल करते हुए उत्तर प्रदेश स्टेट इंस्टिट्यूट ऑफ़ फॉरेंसिक साइंस (UPSIFS) के संस्थापक निदेशक डॉ जी के गोस्वामी, (IPS) ने इंस्टिट्यूट में एकीकृत बीएससी (फॉरेंसिक) एलएलबी (ऑनर्स) का पाठ्यक्रम भारत में संभवतः सर्वप्रथम प्रारम्भ कराकर न्याय और मानव अधिकार संरक्षरण की दिशा में मानव अधिकार आयोग की अनुसंसा का अनुसरण किया है |
फॉरेंसिक विज्ञान में डीएनए फिंगरप्रिंट के महत्त्व को समझते हुए एनडीए सरकार द्वारा डीएनए प्रौद्योगिकी (उपयोग और अनुप्रयोग)विनियम विधेयक,२०१९ को लाया गया लेकिन बाद में इसे वापस ले लिया गया है |  
कानून के क्षेत्र में आपराधिक न्याय प्रणाली की वर्तमानआवश्यकताओं को देकते हुए भारत में मुख्य रूप से भारतीय दंड संहिता, १८६० ,दंड प्रक्रिया संहिता ,१९७३ ,और भारतीय साक्ष्य अधिनियम ,१८७२ को समाप्त कर दिया है | इनके स्थान पर नए सिरे से क्रमशः तीन नए कानूनों भारतीय न्याय संहिता,२०२३,भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता ,२०२३ तथा भारतीय साक्ष्य अधिनियम,२०२३ को भारतीय संसद द्वारा पास करा कर १ जुलाई, २०२४ से लागू कर दिया गया है | 
कहना न होगा कि आपराधिक न्याय व्यवस्था की वर्तमान आवश्यकताओं को ध्यान में रकते हुए उसको अधिक गतिशील ,सुदृढ़ और पारदर्शी बनाने के लिए भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता,२०२३ में आमूलचूक परिवर्तन किया गया है |इस परिवर्तन के तहत अधिनियम की धारा १७६(३) के तहत एक नया प्रावधान लाया गया है|  यह प्रावधान स्पष्ट करता है कि,
            "किसी ऐसे अपराध के जो सात वर्ष या अधिक के लिए दंडनीय बनाया गया है ,के होने से सम्बंधित पुलिस थाने का भारसाधक अधिकारी को कोई सूचना प्राप्त होती है तो अपराध में कारणों का पता लगाने के लिए न्याय सम्बन्धी दल को न्याय सम्बन्धी साक्ष्य संग्रह करने के लिए अपराध स्थल पर भेज सकेगा और कार्यवाही की वीडियो भी किसी इलेक्ट्रॉनिक साधन से बनाएगा जिसमे मोबाइल फोन भी शामिल है | " 
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता,२०२३ के उक्त प्रावधान के अवलोकन से प्रतीत होता है  कि सरकार द्वारा न्याय प्रक्रिया में तेजी लाने के लिए उपचार के रूप में फॉरेंसिक विज्ञान पर बहुत बल दिया जा रहा  है | 
यद्धपि वर्तमान में फॉरेंसिक विज्ञान प्रयोगशालाओं में पहले से ही अनेक मामले जांच की राह टोह रहे हैं | इन प्रयोगशालाओं में जांच के लिए भेजे गए नमूनों की समय से जांच न होने तथा उसके न्यायालय के समक्ष उपलब्ध न होने के कारण अनेक आपराधिक मुकदद्मे के निस्तारण में अत्यधिक विलम्ब होता है | जिसके कारण न्यायालयों पर भी अत्यधिक बोझ बढ़ता है | 

फॉरेंसिक साइंस पर न्यायिक दृष्टिकोण 

भारत में सर्वोच्च न्यायालय और विभिन्न राज्यों के उच्च न्यायालयों ने फॉरेंसिक साइंस के अलग -अलग विषयों पर न्यायिक दृष्टिकोण के रूप में अनेक विधि व्यवस्थाएँ दी है | जिनमे से कुछ महत्वपूर्ण विधि व्यवस्थायों का इस लेख में वर्णन किया जा रहा है | 
सर्वोच्च न्यालय की विधि व्यवस्था उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य बनाम सुनील और अन्य ,एआईआर २०१७ एस सी २१५० में स्थापित किया गया है कि किसी भी व्यक्ति को साक्ष्य के समर्थन के लिए फुटप्रिंट देने के लिए आदेशित किया जा सकता है किन्तु ये भारतीय संविधान के अनुछेद २०(३) के अधीन संरक्षण की गारंटी का उलंघन नहीं माना जाएगा |  
सर्वोच्च न्यायालय के केस लॉ एच पी एडमिनिस्ट्रेशन बनाम ओम प्रकाश, एआईआर १९७२ एस सी ९७५ में माननीय न्यायालय द्वारा स्थापित किया गया है कि "फिंगरप्रिंट विज्ञान एकदम सही विज्ञान है |"  
सर्वोच्च न्यालय  द्वारा दिए गए एक निर्णय जसपाल सिंह बनाम राज्य ,एआईआर १९७९  एस सी १७०८  में माननीय न्यायालय द्वारा स्थापित किया गया है कि "फिंगरप्रिंग पहचान का विज्ञान किसी गलती एवम संदेह को नहीं स्वीकार करता है |" 
विधि व्यवस्था रामा सुब्रमण्यम बनाम केरला राज्य ,एआईआर २००६ एससी ६३९ में मृतक के बैडरूम में रखी अलमारी पर अभियुक्त की उँगलियों के चिन्ह पाए गए तथा उसके बाल मृतका की साड़ी और कच्छी पर पाए गए | इस प्रकरण में न्यायालय ने अभियुक्त को ह्त्या का दोषी पाया | 
सर्वोच्च न्यालय द्वारा निर्मित विधि फूल कुमार बनाम दिल्ली एडमिनिस्ट्रेशन, (१९७५ )१ एससीसी ७९७ में एक डकैती के दौरान छुए गए कैशबुक के कुंडे पर अभियक्त के अंगूठे के निशान पाए गए जिन्हे विशेषज्ञ की सहायता से न्यायालय में सिद्ध किया गया | इस प्रकरण में सर्वोच्च न्यायालय द्वाराअभियुक्त की सजा को बरकरार रखा गया | इस विधि व्यवस्था से फॉरेंसिक साइंस के सम्बन्ध में अवर न्यायालय से लेकर सर्वोच्च न्यायालय तक का न्यायिक दृष्टिकोण स्पष्ट होता है | 
आसाम राज्य बनाम यू एन रालखोवा ,१९७५ सी आर एल जे ३५४ के प्रकरण में अभियुक्त द्वारा अपनी पत्नी और तीन पुत्रियों की ह्त्या कर दी थी और उनके शवों को १० फरवरी १९७० रात्रि में जला दिया गया | अगले दिन पुलिस द्वारा उनके शवों को कब्जे में ले लिया गया | अभुक्त के विरुद्ध ह्त्या करने का आरोप लगा | अवशेषों के कंकाल का परीक्षण किया गया | जिमे उनकी खोपड़ी और फोटो का मिलान किया गया | जिसमे पाया गया कि ४ कंकाल उसकी पत्नी और पुत्रियों के थे| उक्त आधार पर अभियुक्त को दोषसिद्ध किया गया | 
मुकेश एवम अन्य बनाम स्टेट एनसीटी ऑफ़ दिल्ली अवं अन्य ,ए आई आर २०१७ एस सी २१६१ , जिसे निर्भया केस के नाम से भी जाना जाता है | भारत की राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में बलात्कार की घटना घटित हुई | पीड़िता के शरीर पर आए दाँतों से काटने के निशानों ने अपराधी को पहचानने के लिए महत्वपूर्ण सुराग दिए | इन सुरागों के तहत पीड़िता को दाँतों से आई चोटों के फोटो लिए गए साथ ही पांच अभियुक्तों के दाँतों के पैटर्न लिए गए |
उक्त दोनों के मिलान के विश्लेषण से आये परिणामो से स्पष्ट हुया कि पांच अभियुक्तों में से पीड़िता को दाँत से काटकर चोट पहुंचाने वाला अभियुक्त राम सिंह था | इस प्रकरण में भारतीय साक्ष्य अधिनियम ,१९७२ की धरा ४५ के अधीन विशेषज्ञ की राय माननीय न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत की गयी थी | 
विश्वभर में फॉरेंसिक साइंस के सिद्धांतों के उपयोग से संकलित किये गए सबूतों के आधार पर न्यायालयों द्वारा अनगिनत आपराधिक प्रकरणों में निर्णय दिए गए हैं | जनके आधार पर न सिर्फ पीड़ितों को न्याय और उनके मानव अधिकारों का संरक्षण हुया है बल्कि अनेक  अभियुक्तों को झूठे प्रकरणों में दोषमुक्त घोषित किये जाने से उनको न्याय और उनके मानव अधिकारों का संरक्षण संभव हो सका है |  

निष्कर्ष 

फॉरेंसिक साइंस और मानव अधिकार एक-दूसरे के पूरक हैं। फॉरेंसिक साइंस और मानव अधिकारों का मेल एकीकृत और समग्र आपराधिक न्याय प्रणाली के लिए आवश्यक है | फॉरेंसिक साइंस  का सही और सटीक तरीके से उपयोग किया जाए तो यह विधा परिस्थिति अनुसार अपराध के पीड़ितों और अभियुक्तों दोनों को न्याय दिलने और मानव अधिकारों की रक्षा में सहायता करती है। जब आपराधिक न्याय व्यवस्था फॉरेंसिक साइंस के सिद्धांतों का पालन करते हुए संकलित किये गए सही सबूतों के आधार पर निर्णय लेती है, तो यह न्याय और मानव अधिकारों की सुरक्षा में अत्यधिक सहायक होती है।
फॉरेंसिक साइंस और मानव अधिकारों के एकीकृत आंदोलनों और मिशनों ने  विश्व के अनेक देशों में फॉरेंसिक साइंस के सिद्धांतों का उपयोग करके मानव अधिकार उलंघन से पीड़ित असंख्य  लोगों  के आँसू  पौछे है तथा उन्हें न्याय और उनके मानव अधिकारों का संरक्षण  कराया है  
फॉरेंसिक विज्ञान के माध्यम से संकलित सबूतों का साक्ष्य के रूप में सही समय तथा सही उपयोग करके न्यायालय की प्रक्रिया में तेजी लाकर समय से मुकदद्मों का निपटारा किया जा सकता है | जिससे न्याय जल्दी सुलभ हो सकता है  | क्योंकि न्याय में देरी न्याय से इंकार के सामान होता है | 
फॉरेंसिक साइंस का बिना किसी दुराग्रह के सही और निष्पक्ष उपयोग मानव अधिकारों की रक्षा में महत्वपूर्ण योगदान होता हैं। इसलिए, एक स्वस्थ्य और मजबूत लोकतंत्र बनाये रखने के लिए आपराधिक न्याय व्यवस्था में मानव अधिकार पहुंच के सिद्धांत के तहत फॉरेंसिक साइंस का उपयोग करते समय मानव अधिकारों का सम्मान,संरक्षण और पूर्ति किया जाना आवश्यक और प्रथम शर्त है | 
विशेष रूप से भारतीय सन्दर्भ में उम्मीद की जानी चाहिए कि भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता,२०२३ की धारा १७६(३) के तहत फॉरेंसिक साइंस के लिए पर्याप्त मूलभूत ढांचा, जिसमे उसके उपयोग हेतु कुशल मानव संसाधन का निर्माण और पूर्ति शामिल है, की जल्द से जल्द पुख्ता व्यवस्था को कागजो से उतार कर अभ्यासिक रूप प्रदान किया जाएगा |  








 
 



भारत में महिला भ्रूण हत्या पर जस्टिस नागरत्ना की चिंता: एक मानवाधिकार विश्लेषण

प्रस्तावना   "लड़की का जन्म ही पहला अवरोध है; हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वह सिर्फ जीवित न रहे, बल्कि फल-फूल सके।”                 ...

डिजिटल अरेस्ट मानव अधिकारों पर हमला सम्पूर्ण जानकारी