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गुरुवार, 16 मई 2024

विधि का उल्लंघन करने वाले बालकों के मानव अधिकार: एक अवलोकन

Human Rights of Child in Conflict with Law













भारत में  पुलिस द्वारा अपनी चालानी रिपोर्ट में अक्सर विधि का उल्लंघन करने वाले बालकों की  अधिक उम्र दर्शाने के कारण उन्हें प्रौढ़ जेलों में बंद कर दिया जाता है जिसके कारण उन्हें अपने मानव अधिकारों से वंचित होना पड़ता है | जबकि बालकों के  लिए विशेष रूप से  बने किशोर न्याय (बालको की देखरेख और संरक्षक)अधिनियम ,२०१५ में बालकों के मानव अधिकारों के संवर्धन एवम संरक्षण के लिए कई विधिक सिद्धांतों की व्यवस्था की गयी है | लेकिन उन सिद्धांतों का किशोर न्याय बोर्ड ,बाल कल्याण समिति तथा अन्य अभिकरणों द्वारा समुचित रूप से अनुपालन  और अनुसरण नहीं हो रहा है | जिसके कारण आये दिन विधि का उलंघन करने वाले बालकों के मानव अधिकारों का उल्लंघन आम बात हो गयी है | समाज और आपराधिक न्याय व्यवस्था के विभिन्न अंगों द्वारा उक्त सिद्धांतों का व्यवहार  में अनुसरण करके विधि का उलंघन करने वाले बालकों के जाने-अनजाने में होने वाले मानव अधिकार उल्लंघन को आसानी से रोका जा सकता है |

मुख्य शब्दमानव अधिकार , किशोर , विधि का उल्लंघन करने वाले बालक, भारतीय संविधान , निजता का अधिकार ,पोक्सो एक्ट २०१२ ,जे जे एक्ट २०१५ |  

आज के समाज में ,बालकों के मानव अधिकारों का उलंघन एक ज्वलंत  सामाजिक और मानवाधिकार  मुद्दा है | जिस पर हमें संजीदगी और गंभीरता से ध्यान देने की आवश्यकता है | किशोरों द्वारा किये गए अपराधों के सम्बन्ध में किशोरों के साथ प्रौढ़ अपराधियों  के जैसा व्यवहार अंतराष्ट्रीय कानूनों द्वारा प्रतिषिद्ध किया गया  है इस सन्दर्भ में भारत में पहला क़ानून १९८६ में आया, जिसे वर्ष २००० में संशोधित किया गया तथा उसके बाद किशोरों के बृहद हित को ध्यान रखते हुए एक बार फिर वर्ष २०१५ में वर्ष २००० वाले क़ानून को समाप्त कर नए क़ानून को लाया गया जो कि किशोर न्याय (बालको की देखरेख और संरक्षक)अधिनियम ,२०१५ कहलाया | इस अधिनियम के माध्यम से, बालकों के संरक्षण और मानव अधिकारों की रक्षा में समाज से लेकर आपराधिक न्याय वयवस्था तक  सभी स्तरों पर सहयोग की आवश्य्कता है |

उक्त अधिनियम का उद्देश्य है कि अधिनियम के अधीन भारतीय संविधान के अनुछेद १५ के खंड (), अनुच्छेद ३९ के खंड ( ) और खंड ( ),अनुच्छेद ४५ और अनुच्छेद ४७ के उपबंधों के अधीन यह सुनिश्चित करने के लिए कि बालकों की सभी आवश्यकताओं को पूरा किया जाए और उनके मूलभूत मानव अधिकारों की  पूर्णतया संरक्षण किया जाए |,शक्तियां प्रदान की गई है, और कर्तव्य अधिरोपित किये हैं |

यह अधिनियम  स्पष्ट करता है कि तत्समय किसी अन्य विधि में अन्तर्विष्ट  किसी बात के होते हुए हुए भी ,इस अधिनियम के उपबंध के तहत देख रेख और संरक्षण की आवश्यकता वाले बालकों से सम्बन्धित सभी मामलों तथा विधि का उलंघन करने वाले बालकों से सम्बंधित सभी मामलों पर लागू होंगे जिसके अंतर्गत

(1) विधि का उलंघन करने बालकों की गिरफ्तारी,निरोध,अभियोजन शास्ति और,पुनर्वास और समाज में पुनः मिलाना |

() देखरेख और संरक्षण की आवश्यकता वाले बालकों के पुनर्वास ,दत्तक ग्रहण ,समाज में पुनः मिलाने और वापसी की प्रक्रियाएं और विनिश्चिय अथवा आदेश भी शामिल हैं |

इस अधिनियम में  बाल अपचारी, जिसे विधि का उल्लंघन करने वाला बालक के रूप में परिभाषित किया गया है ,को उनके मानव अधिकारों की सुरक्षा और संरक्षण के लिए कई मानक प्रावधान किये गए हैं | अधिनियम के अनुसार बालकों को दंड के प्रावधान  प्रौढ़ अपराधियों के मुकाबले अत्यधिक लचीले बनाये गए हैं | बालकों के अधिकार भी मानव अधिकार की श्रेणी में आते है | बाल अधिकारों पर कन्वेंशन १९८९ मानता  है कि किशोरों के भी मानव अधिकार हैं , और  १८ वर्ष से छोटी उम्र के व्यक्तियों को यह  सुनिश्चित करने के लिए विशेष  सुरक्षा की आवश्यकता है कि उनका पूर्ण विकास ,उनके अस्तित्व और उनके सर्वोत्तम हितों का सम्मान किया जाए |

मानव अधिकारों की सावभौमिक घोषणा १९४८ में बिना किसी विभेद के सभी को मानव होने के नाते मानव अधिकार प्राप्त हैं | लेकिन उक्त घोषणा पत्र में किशोरों के विशेष सन्दर्भ में कोई प्रावधान उपलब्ध नहीं था | लेकिन समय के साथ साथ विधि का उलंघन करने वाले बालकों  और पीड़ित किशोरों  के मानव अधिकारों के संवर्धन अवं संरक्षण के लिए विशेष कानूनों की आवश्यकता महसूस की गयी जिसकी भरपाई के लिए  बच्चों के अधिकार पर कन्वेंशन १९९२ को स्वीकृत और अंगीकृत किया गयाभारत सरकार ने सयुक्त राष्ट्र की साधारण  सभा द्वारा अंगीकृत बालकों के अधिकारों से सम्बंधित अभिसमय को,जिसमे ऐसे मानक विहित किये गए हैं  जिसका बालक के सर्वोत्तम हित को सुनिश्चित करने के लिए  सभी राज्य पक्षकारों द्वारा पालन किया जाना है ,का दिनांक ११ दिसम्बर २०९२ को अंगीकरण किया गया |

यह लेख उन असहाय विधि का उलंघन करने वाले बालकों के मानव अधिकारों की अवधारणा को समझने और उनके सुरक्षित भविष्य के लिए  सामजिक, विधिक और  मानव अधिकार सन्दर्भ में जागरूकता फैलाने का एक प्रयास है |

मानव अधिकार सामान्य तौर पर वे अधिकार है जो हर व्यक्ति को उसके मनुष्य होने नाते स्वतः प्राप्त होते है | ये अविभाज्य ,अन्तर्सम्बन्धित और अन्तर्निर्भर होते है | साधारण तौर पर मानव अधिकारों को आर्थिक,सामजिक,सांस्कृतिक,नागरिक और राजनैतिक मानव अधिकारों की श्रेणी में रखा गया हैइसके अतिरिक्त व्यक्तिगत और सामूहिक मानव अधिकार की श्रेणी में विभक्त किया गया है | बालकों के मानव अधिकार सामूहिक मानव अधिकारों की श्रेणी में आते हैं | सयुंक्त राष्ट्र  की परिभाषा के अनुसार मानव अधिकार जाति ,लिंग ,राष्ट्रीयता ,भाषा ,धर्म या किसी अन्य आधार पर भेदभाव किये बिना सभी को प्राप्त हैं |

मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम,१९९३ की धरा के  अनुसार "मानव अधिकार " का तात्पर्य  संविधान के अंतर्गत गारंटीकृत  अथवा अंतर्राष्ट्रिय प्रसंविदाओं में सम्मिलित  तथा भारत के न्यायालयों द्वारा प्रवर्तनीय जीवन,स्वंत्रता,समानता तथा व्यक्ति की गरिमा से सम्बंधित अधिकार है |

विधि का उल्लंघन करने वाले बालकों द्वारा किये गए अपराधों को तीन श्रेणियों में बांटा गया है :

प्रथम  श्रेणी में "छोटे अपराधजिसके लिए भारतीय दंड सहिता  या तत्समय  प्रबृत अन्य विधि के अधीन अधिकतम दंड  मॉस के कारावास का है |

द्वितीय श्रेणी में "घोर अपराधजिसके लिए भारतीय दंड सहिता  या तत्समय  प्रबृत  अन्य विधि के अधीन -

()तीन वर्ष से अधिक और वर्ष से अनधिक की अवधि के न्यूनतम कारावास का उपबंध है |

() वर्ष से अधिक के अधिकतम कारावास का उपबंध है किन्तु कोई न्यूनतम कारावास या वर्ष से कम के न्यूनतम कारावास का उपबंध नहीं है |

तृतीय श्रेणी में "जघन्य अपराध" रखे गएँ हैं |जिसके लिए भारतीय दंड सहिता  या तत्समय प्रबृत  अन्य विधि के अधीन न्यूनतम कारावास वर्ष या उससे अधिक के कारावास का है |

 किशोर न्याय (बालकों की देखरेख और संरक्षण)अधिनियम, २०१५ में विधि का उलंघन करने वाले बालकों के मानव अधिकारों को प्रत्यछ रूप में उद्द्घृत नहीं किया गया है लेकिन उसके कई प्रावधान अप्रत्यछ रूप में  विधि का उलंघन करने वाले बालकों के मानव अधिकारों की ओर स्पष्ट संकेत करते हैं तथा उनके मानव अधिकारों का संवर्धन एवम संरक्षण को  बढ़ावा देते हैं |

बालकों के ये मानव अधिकार किशोर न्याय (बालकों की देखरेख और संरक्षण)अधिनियम, २०१५ के प्रसाशन में अनुसरित किये जाने वाले साधारण सिद्धांतों के रूप में इंगित किये गए हैं | ये मूलभूत सिद्धांत केंद्रीय सरकारों ,बोर्ड ,समिति या अन्य अभिकरण द्वारा अधिनियम के उपबंधों को क्रियान्वयन करते समय मार्गदर्शन के रूप में कार्य करते है | ये मूलभूत सिद्धांत ही दरअसल विधि का उलंघन करने वाले बालकों के मानव अधिकार है | ये बालक के मानव अधिकारों का संवर्धन और संरक्षण करते हैंये मूलभूत सिद्धांत निम्न प्रकार हैं :

निर्दोषिता की उपधारणा का अधिकार- किसी विधि का उलंघन करने वाले बालक के १८ वर्ष की आयु पूर्ण करने तक यह उपधारणा की जाएगी कि वह किसी असद्भावना पूर्वक या आपराधिक आशय का दोषी नहीं है |

गरिमा और योग्यता का अधिकार- सरकार ,किशोर न्याय बोर्डबाल कल्याण समिति या अन्य अभिकरण के द्वारा सभी बालकों के साथ गरिमा और अधिकारों के साथ वर्ताब किया जाना चाहिए

विधिक कार्यवाही में भाग लेने का अधिकार- प्रत्येक विधि का उलंघन करने वाले बालक को सुने जाने का और उसके हितों को प्रभावित करने वाली सभी कार्यवाहियों में भाग लेने का अधिकार प्राप्त है |

बालक के सर्वोत्तम  हित का सिद्धांत- बालक के सम्बन्ध में सभी विनिश्चय /आदेश मुख्यतया इस आधार पर किये जाएंगे कि वे बालक के सर्वोत्तम हित में हों | बालक के इस मानव अधिकार का का दारोमदार बालकों के सम्बन्ध में क़ानून का क्रियान्वयन करने वाली संस्थाओं पर है जिसमे सरकार,किशोर न्याय बोर्ड, बाल कल्याण समिति  तथा अन्य अभिकरण आते हैं |

सुरक्षा का सिद्धांत-विधि का उलंघन करने वाले बालक की सुरक्षा के हित में सभी उपाय किये जाने चाहिए| जो बालक को  उपहानी ,दुर्व्यवहार या बुरे  बर्ताव से बचाते हों |

गैर कलंकीय शब्दार्थों का सिद्धांत- विधि का उलंघन करने वाले किसी बालक के सम्बन्ध में किये गए आदेश या विनिश्चय में प्रतिकूल या अभियोगात्मक शब्दों का उपयोग नहीं किया जाना चाहिए |  

अधिकारों का अधित्यजन किये जाने का सिद्धांत- विधि के अनुसार विधि का उलंघन करने वाले बालक के किसी अधिकार का किसी भी प्रकार से अधित्यजन (त्याग) अनुज्ञेय या विधिमान्य नहीं है | चाहे उस अधिकार को त्यागने की इच्छा उस बालक द्वारा या बालक की और से कार्य करने वाले व्यक्ति  या किसी बोर्ड या समित द्वारा  क्यों की गयी हो | किसी मूल अधिकार का प्रयोग किया जाना अधित्यजन की कोटि में नहीं आता है |

समानता और विभेद किये जाने का सिद्धांत- विधि का उलंघन करने वाले किसी बालक के विरुद्ध किसी भी आधार पर ,जिसमे लिंग ,जाति ,नस्ल ,जन्म स्थान ,निसक्तता भी आती है ,किसी प्रकार का भेदभाव नहीं किया जाएगा  और पहुंच ,अवसर  और बर्ताव में समानता हर बालक को दी जानी चाहिए |

एकान्तता और गोपनीयता के अधिकार का सिद्धांत- विधि का उलंघन करने वाले प्रत्येक बालक को सभी साधनो द्वारा और सम्पूर्ण न्यायिक प्रक्रिया और व्यवस्था में अपनी एकान्तता और गोपनीयता का संरक्षण करने का अधिकार प्राप्त है |

अंतिम उपाय के रूप में बालकों को संरक्षण गृह में रखने का सिद्धांत-विधि का उलंघन करने वाले किसी बालक को उसकी युक्तियुक्त जांच के बाद ही अंतिम अवलम्बन के उपाय के रूप में संथागत देखरेख में रखा जाना चाहिए |

नए सिरे से शुरूआत करने का सिद्धांत- किशोर न्याय पद्धति के अधीन किसी बालक के अपराध से सम्बंधित पिछले सभी अभिलेखों को विशेष परिस्थितियों के सिवाय समाप्त कर दिया जाना चाहिए अन्यथा की स्थिती में नहीं |

बालक और प्रौढ़ अभियुक्त की कार्यवाही का एक साथ होने का सिद्धांत- किशोर न्याय (बालको की देखरेख और संरक्षक)अधिनियम ,२०१५ की धारा २३() के अनुसार दंड प्रक्रिया सहिंता ,१९७३ की धरा २२३ में या तत्समय प्रबृत किसी अन्य विधि में किसी बात के होते हुए भी विधि का उलंघन करने वाले  किसी  बालक के साथ किसी ऐसे व्याक्ति  की जो बालक नहीं है, सयुंक्त कार्यवाही नहीं की जा सकती है

विधि का उलंघन करने वाले बालकों के विरुद्ध पारित किया जा सकने वाला आदेश- किशोर न्याय (बालको की देखरेख और संरक्षक)अधिनियम ,२०१५ की धारा २१ के तहत विधि का उलंघन करने वाले  किसी बालक को इस अधिनियम  के  उपबंधों अधीन या भातीय दंड संहिता १८६० या तत्समय प्रबृत किसी अन्य विधि के उपबंधों के अधीन ऐसे किसी अपराध के लिए छोड़े  जाने की संभावना के बिना मृत्यु या आजीवन कारावास का दंडादेश नहीं दिया जाएगा |

किसी अपराध के निष्कर्षों के आधार पर निर्हर्ताओ से मुक्ति का अधिकार- किशोर न्याय (बालको की देखरेख और संरक्षक)अधिनियम ,२०१५ की धारा २४() के अनुसार तत्समय प्रबृत किसी अन्य विधि में किसी अन्य बात के होते हुए भी ,कोई बालक ,जिसने कोई अपराध किया है तथा जिसके बारे में इस अधिनियम के अधीन कार्यवाही  की जा चुकी है | किसी ऐसी निर्हता (अयोग्यता )से ,यदि कोई हो ,ग्रस्त नहीं माना जाएगा ,जो ऐसी विधि के अधीन किसी अपराध की दोषसिद्धि से जुडी हो ;

 इसी अधिनियम की धरा २४() के अनुसार किशोर न्याय बोर्ड ,पुलिस को या बालक न्यायालय या अपनी स्वयं की रजिस्ट्री को यह निदेश देते हुए आदेश देगा कि ऐसी दोषसिद्धि के सुसंगत अभिलेख ,यथास्तिथि ,अपील की अवधि या ऐसी युक्तियुक्त अवधि,जो विहित की जाए ,समाप्त होने के पश्चात नष्ट कर दिए जायेगे | परुन्त जघन्य अपराध की दिशा में यह स्तिथि लागू नहीं होगी |

निजता का अधिकार- किशोर न्याय (बालको की देखरेख और संरक्षक)अधिनियम ,२०१५ की धारा ७४() के  अंतर्गत बालक की  पहचान के प्रकटन का प्रतिषेद किया गया है जिसके अनुसार किसी जांच या अन्वेषण या  न्यायिक प्रक्रिया के बारे में किसी समाचार पत्र ,पत्रिका या समाचार पृष्ठ या दृश्य -श्रव्य माध्यम या संचार के किसी अन्य रूप में किसी रिपोर्ट में ऐसे नाम ,पते या विद्यालय या किसी अन्य विशिष्ट को प्रकट नहीं किया जाएगा , जिससे विधि का उलंघन करने वाला बालक या देखरेख और संरक्षण की आवश्यकता वाले बालक या किसी पीड़ित बालक या किसी अपराध के साक्षी की ,जो तत्समय प्रबृत किसी विधि के अधीन ऐसे मामले में अंतर्वलित है ,पहचान हो सकती है और ही ऐसे किसी बालक का चित्र प्रकाशित किया जा सकता है |

परन्तु , यथास्तिथि ,जांच करने वाला किशोर न्याय बोर्ड ,ऐसा प्रकटन ,लेखबद्ध किये जाने वाले ऐसे कारणों से तब अनुज्ञात कर सकेगा,जब उसकी राय में ऐसा प्रकटन बालक के सर्वोत्तम  हित में हो

अपनी पसंद के अधिवक्ता की सेवायें लेने का अधिकार- दंड प्रक्रिया सहिता, १९७३ की धारा ३०१ के परन्तुक के अधीन रहते हुए बालक का कुटुंब या संरक्षक इस अधिनियम के अधीन किसी अपराध के लिए अपनी पसंद के अधिवक्ता की सेवाएं लेने के लिए हक़दार हैं

परन्तु,यदि बालक का कुटुंब या संरक्षक अधिवक्ता का खर्च वहन करने में असमर्थ है तो विधिक सेवा प्राधिकरण उसको अधिवक्ता उपलब्ध कराएगा |

 बालक  को आयु निर्धारण का अधिकार- अधिकाँश आपराधिक घटनाओं में दृष्टिगोचर होता है कि पुलिस चालानी में पुलिस द्वारा अपने अनुमान के अनुसार विधि का उलंघन करने वाले बालक की उम्र लिख देती है | जिसके कारण गिरफ्तारी के बाद किशोर को प्रौढ़ व्यक्तियों के लिए बनी कारागार में भेज दिया जाता है | विधि का उलंघन करने वाले बालक को यह अधिकार है कि वह स्वयं को किशोर न्याय बोर्ड के समक्ष उपस्थित हो कर या पुलिस द्वारा बोर्ड के समक्ष प्रस्तुत करने पर अपनी आयु का निर्धारण करा सकता है | बोर्ड को बालक की सही आयु के सम्बन्ध में कोई शंका है तो वह बालक की  ओर से साक्ष्य प्राप्त करके आयु निर्धारण करता है |

किशोर न्याय (बालको की देखरेख और संरक्षक)अधिनियम ,२०१५ की धारा ९४(३)के अनुसार किशोर न्याय बोर्ड द्वारा उसके समक्ष इस प्रकार लाये गए व्यक्ति की अभिलिखित आयु ,इस अधिनियम के प्रयोजन के लिए उस व्यक्ति की सही आयु समझी जाती है |

पोक्सो अधिनियम,२०१२ के तहत विशेष न्यायलय के समक्ष बालक को आयु निर्धारण का अधिकार- लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम ,२०१२ की धरा ३४ (१)के अनुसार जहाँ अधिनियम के अधीन कोई अपराध किसी बालक द्वारा किया जाता है वहां ऐसे बालक पर किशोर न्याय (बालको की देखरेख और संरक्षक)अधिनियम ,२०१५  के उपबंधों के अधीन कार्यवाही की जाती है |

वही धरा ३४(२) स्पष्ट करती करती है कि यदि विशेष नन्यायालय के समक्ष  किसी कार्यवाही में आयु के सम्बन्ध में कोई प्रश्न उठता है कि कोई  व्याक्ति बालक है या नहीं तो ऐसे प्रश्न का अवधारण विशेष न्यायलय द्वारा ऐसे व्याक्ति की आयु के सम्बन्ध में स्वयं का समाधान करने के पश्चात किया जाता है |

अपील और पुनरीक्षण का अधिकार- विधि का उलंघन करने वाले बालक को विधि अनुसार अपील और पुनरीक्षण का अधिकार प्राप्त है | इसके अतरिक्त उसे अधिनियम के प्रसाशन में अनुसरित किये जाने वाले साधारण सिद्धांतों में से एक नैसर्गिक न्याय के सिद्धांतों के अंतर्गत पुनर्विलोकन का अधिकार भी प्राप्त है | यह बालक का अत्यधिक अहम् अधिकार है जो कि किशोर न्याय (बालको की देखरेख और संरक्षक)अधिनियम ,२०१५  के अंतर्गत विधि का उलंघन करने वाले बालक को प्रदत्त  किया गया है |

 आज के बालक नए भारत का मुस्तकबिल  बनेंगे | सयुंक्त राष्ट्र आपराधिक न्याय वयवस्था में  बालकों को प्रौढ़ अपराधियों के रूप में  देखने को प्रतिषेदित करता है | इसी लिए सयुंक्त राष्ट्र के सदस्य देशों ने बालकों के मानव अधिकारों  के संवर्धन एवम संरक्षण के लिए  अपने यहाँ  विशेष  कानूनों का निर्माण किया है और अंतराष्ट्रीय कानून के दायरे में रहते हुए उनका क्रियान्वयन कर रहे है |

नए भारत की संकल्पना को सिद्धि में बदलने के लिए , बालक, जो कि देश का मुस्तकबिल है ,को सम्पूर्ण समाज और आपराधिक न्याय वयवस्था के सभी अवयवों तक शामिल हैं, द्वारा सहेजने की आवश्यकता है | बालको की वकालत करने वाले  सभी लोग जिसमे अधिवक्ता से लेकर मनोवैज्ञानिक ,गैर सरकारी संघटन ,सामाजिक  और मानव अधिकार कार्यकर्ता तथा आपराधिक न्याय वयवस्था के सभी अवयवों  द्वारा  बालको के मानव अधिकार सम्बन्धी सिद्धांतों को व्यवहार में उतार  कर ही देश के भविष्य को एक नई  दिशा प्रदान की जा सकती है | उक्त लक्ष्य की प्राप्ति के लिए राजनीतिक इच्छा शक्ति की भी महती आवश्यकता है 

 सन्दर्भ

.मानव अधिकारों की सावभौमिक घोषणा १९४८ 

. विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम ,१९८७ 

बाल अधिकारों पर सयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन १९८९

बच्चों के अधिकार पर कन्वेंशन १९९२

.मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम ,१९९३

 ६.लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम ,२०१२

 ७.किशोर न्याय (बालको की देखरेख और संरक्षक)अधिनियम ,२०१५



 

 

 

 

 

 

 

 

                                                                                                                                  

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