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शुक्रवार, 5 सितंबर 2025

नीदरलैंड: दुनिया का पहला देश बिना आवारा कुत्तों के | भारत क्या सीख सकता है?

परिचय – क्यों ज़रूरी है आवारा कुत्तों पर नियंत्रण?


भारतीय आवारा कुत्ते
विश्व भर में अनेक देश आज भी आवारा कुत्तों की समस्या से जूझ रहे हैं | जिनमे भारत भी एक देश है | भारत में आवारा कुत्तों की संख्या करीब 6 करोड़ से अधिक है | विगत कुछ वर्षों में आवारा कुत्तों की जनसंख्या में बृद्धि के साथ -साथ उनके हमलों की घटनाओं में भी अत्यधिक बृद्धि दर्ज की गई है |

भारतीय संसद में पेश की गई एक रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2024 में आवारा कुत्तों के काटने की 37 लाख से अधिक घटनाएं दर्ज की गई | इसके अलावा अनेक घटनाएं ऐसी है जो रिपोर्ट ही नहीं होती है यदि उनको भी मिला लिया जाए तो यह आँकड़ा और ऊपर पहुंच जाता है | 

ऐसी गंभीर स्थति में कुछ पीड़ित स्वयं न्यायालय पहुंचे तथा कुछ मामलों में जनहित याचिकाएं डाली गई लेकिन अभी हाल ही में दिल्ली में घटित घटना के बाद भारत की सर्वोच्च अदालत सुप्रीम कोर्ट ने स्वप्रेरणा से संज्ञान लिया और उसे जनहित याचिका के रूप में स्वीकार किया | 

इस घटना में दिल्ली में एक 6 वर्षीय बालिका को कुत्ते ने काट लिया था और उसकी रेबीज होने से मृत्यु हो गई थी| इस घटना को टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,अंग्रेजी दैनिक ने रिपोर्ट किया था | इसी रिपोर्ट के आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने संज्ञान लिया था | 

यही नहीं विगत वर्षों में ऐसी अनेक घटनाओं की खबरे अखबारों और मीडिया के माध्यम से आम आदमी और सरकार के सामने आई है | इसी लिए आवारा कुत्तों पर नियंत्रण की मांग लगातार उठती रही है |
  
भारत की राजधानी दिल्ली में आवारा कुत्तों से निजात दिलाने के लिए आंदोलन करने वाले व्यक्ति  के रूप में मुख्य चेहरा भारतीय जनता पार्टी के जाने माने नेता विजय गोयल का रहा है |विजय गोयल द्वारा सरकार से पशु जन्म नियंत्रण (एबीसी) नियम, 2023 में संशोधन की भी मांग की गई है |  

भारत के सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बाद आवारा कुत्तों के संकट को समाप्त करने के लिए भारत सरकार ने  कई कदम उठाये हैं | जिनमे से एक रेबीज फ्री सिटी के लक्ष्य को रखा जाना भी है | 

नीदरलैंड का सफर – आवारा कुत्तों से मुक्त होने तक

नीदरलैंड की नीतियाँ जिन्होंने देश को आवारा कुत्तों से मुक्त बनाया
आवारा कुत्तों से मुक्त होने का नीदरलैंड का सफर बड़ा दिलचस्प और कानूनी कठोरता और लचीलेपन से सराबोर रहा है | बहुत कम देश हैं जिन्होंने आवारा कुत्तों की समस्या से निजात पाई है | उनमे से एक है नीदरलैंड |

यह दुनिया का ऐसा देश है, जिसने अपने अथक प्रयासों से देश को स्ट्रीट डॉग फ्री कंट्री/आवारा कुत्तों से मुक्त देश बना लिया है| यह कोई छोटी उपलब्धी नहीं है | नीदरलैंड में पशु संरक्षण एक चुनावी मुद्दा भी रहता आया है | 

आप सोचेंगे कि नीदरलैंड ने ये कमाल कैसे किया ? तो सबसे पहले दिमाग में विचार आएगा कि क्या उन्होंने सभी कुत्तों को मरवा दिया या फिर विचार आएगा कि वास्तव में कोई मानवीय और कानूनी रास्ता अपनाया है ? आइये जानते है इस रहस्य्मयी हकीकत को विस्तार से |

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि – कुत्तों की संख्या क्यों बढ़ी?


ऐतिहासिक रूप में 19 वीं  सदी में आवारा कुत्तों की समस्या बहुत गंभीर थी | लोग कुत्ते पालने के शौकीन थे | लोग गरीबी के चलते अक्सर कुत्तों की देखभाल न करपाने की स्तिथि में उन्हें आवारा छोड़ देते थे | 

धीरे -धीरे यह स्तिथि आम आदमी के स्वास्थय और सुरक्षा के लिए संकट बन कर उभरी | ऐसी स्तिथि में संकट का समाधान आवश्यक था | जिस पर नीदरलैंड सरकार ने अनवरत काम किया है | 

सरकार की रणनीति और लक्ष्य


2006 में, नीदरलैंड की राष्ट्रीय संसद में एक पशु अधिकारों की वकालत करने वाली एक पार्टी चुनी गई। यह करने वाला नीदरलैंड दुनिया का पहला देश बना | 
जिसकी 'पार्टी फॉर द एनिमल्स' ने डच संसद के निचले सदन (लोअर हाउस) में प्रवेश कर यह सुनिश्चित किया कि पशु कल्याण को भी राजनीतिक एजेंडे में शामिल किया जाए।

आवारा कुत्तों के संकट के समाधान के लिए नीदरलैंड की सरकार ने एक विशेष रणनीति तथा लक्ष्य को दृष्टिगत यह तय किया कि संकट का समाधान सिर्फ आवारा कुत्तों को “मार देना” नहीं है, बल्कि स्थायी और मानवीय समाधान की तलाश करनी होगी। 
 
वहाँ की सरकार द्वारा इसी रणनीति के साथ कानून निर्मित किये गए और साथ -साथ आमजन को भी जागरूक करने की रणनीति बनायी गई | सरकार द्वारा पूर्ण राजनैतिक इच्छा शक्ति के साथ इन रणनीतिओं और लक्ष्य पर काम किया और सफलता पाई | 

नीदरलैंड के प्रभावी कानून और नीतियाँ


देश भर में आवारा कुत्तों की समस्या से मुक्ति पाने के लिए नीदरलैंड सरकार द्वारा कानून बनाये गए तथा उनका सख्ती से पालन किया गया | 

इन कानूनों में एक कानून पशु कल्याण कानून था | इस क़ानून के तहत पालतू जानवर को आवारा छोड़ना कानूनन गंभीर अपराध था | इसके साथ ही पशुओं के साथ क्रूरता करने वालों के लिए कठोर सजा तथा जुर्माने का भी प्रावधान किया गया | 

नीदरलैंड ने आवारा  कुत्तों की जनसँख्या नियंत्रण नीति के तहत CNVR नामक कार्यक्रम चलाया | इस कायक्रम के चार चरण थे | 

पहला चरण आवारा जानवरों को पकड़ना | दूसरा चरण उसकी नसबंदी(स्टरलाइजेसशन)  करना | तीसरा चरण टीकाकरण था तथा चौथा चरण उन्हें नसबंदी और टीकाकरण के बाद छोड़ देना था | 

इस कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य आवारा कुत्तों की जनसँख्या को नियंत्रित करना तथा नए बच्चों की सड़कों पर पैदावार को रोकना | इसके अलावा सभी पालतू कुत्तों का आवश्यक पंजीकरण और टीकाकरण अनिवार्य किया गया  था | 

डॉग टैक्स (Dog Tax) और उसका असर


नीदरलैंड सरकार द्वारा ब्रीडिंग डॉग्स पालने पर ज्यादा टेक्स लगाया गया | जिसके परिणामस्वरूप लोग ब्रीडिंग डॉग्स के पालने में कम रूचि दिखाने लगे | 

धीरे-धीरे जनसामान्य का रुझान स्थानीय नस्ल के आवारा कुत्तों को पालने की तरफ होने लगा | इसके अतिरिक्त लोग अत्यधिक टेक्स के कारण डॉग्स शेल्टर होम्स से कुत्तों को अडॉप्ट करने लगे |

अनिवार्य स्टरलाइजेशन और वैक्सीनेशन


नीदरलैंड सरकार द्वारा अपने कानूनी और नीतिगत प्रावधानों में आवारा कुत्तों की आज्ञापक स्टरलाइज़ेशन (नसबन्दी) और वेक्सीनेशन (टीकाकरण ) का प्रावधान किया गया | जिसे विश्व भर में कुत्तों की जनसंख्या नियंत्रण का सर्वाधिक प्रभावी तरीका माना गया है |

विश्व स्वास्थ्य संघटन के अनुसार भी कुत्तों की जनसंख्या नियंत्रण के लिए करीब 70 प्रतिशत कुत्तों का स्टरलाइज़ेशन (नसबन्दी) जरूरी है | इस प्रकार यदि देखा जाए तो नीदरलैंड सरकार ने कुत्तों की प्रभावी जनसंख्या नियंत्रण के लिए विश्व स्वास्थय संगठन से भी उच्च स्तर के मानक को अपने यहाँ लागू किया | 
 

ब्रीडिंग और सेल पर कड़ा नियंत्रण


नीदरलैंड सरकार द्वारा डॉग ब्रीडर्स के यहाँ से कुत्तों की खरीदारी को हतोत्साहित किया गया तथा आवारा कुत्तों को गोद लेने की व्यवस्था के प्रोत्साहन पर अधिक जोर दिया गया | इसके अतिरिक्त डॉग्स शेल्टर्स होम्स से आवारा कुत्तों को गोद लेने वालों को कानूनी सुरक्षा के अलावा अन्य सुविधाएं देने का भी प्रावधान किया गया था |

एनिमल वेलफेयर लॉ (Animal Welfare Law)


नीदरलैंड  में पशु स्वास्थय और कल्याण अधिनियम ,1992 को पशु अधिनियम 2011 द्वारा बदल दिया गया | नीदरलैंड में पशुओं के साथ क्रूरता एक दंडनीय अपराध है। 

'क्रूरता' का अर्थ है जानवरों के साथ मारपीट करना या उनकी देखभाल में लापरवाही बरतना, जैसे कि उनकी ज़रूरतों की अनदेखी करना या उन्हें समय पर खाना न देना आदि। 

पशुओं के साथ होने वाली क्रूरता की शिकायत नीदरलैंड्स खाद्य और उपभोक्ता उत्पाद सुरक्षा प्राधिकरण (NVWA) या पुलिस को की जा सकती है | ये संस्थाएं पशुओं के साथ होने वाले अपराधों की जांच और आवश्यक कार्रवाई करने  के लिए उत्तरदायित्व निभाती हैं |

शिक्षा ,जागरूकता और जिम्मेदार पशु मालिक


नीदरलैंड में पशु अधिकारों के बारे में राष्ट्रीय अभियान के तहत समाज और स्कूल -कॉलेजों में जागरूकता कार्यक्रम चलाये गए | कुत्ता प्रेमियों को एक जिम्मेदार पशु स्वामी बनने के लिए उत्साहित किया गया | 

जिम्मेदार पशु स्वामी का तात्पर्य है कि वह अपने कुत्ते का सभी तरह से ध्यान रखे ,समय से उनका टीकाकरण कराये तथा उन्हें किसी भी सूरत में सड़कों पर आवारा न छोड़े | 

नीदरलैंड का सफल मॉडल


इन सभी कानूनी प्रावधानों के कठोर अनुपालन तथा सामाजिक सहयोग से नीदरलेंड की सड़के आवारा कुत्तों से मुक्त हो गई है |नीदरलैंड दुनिया के अग्रणी ऐसे देशों में गिना जाता है जहाँ आवारा कुत्तों की संख्या नगण्य के बराबर हो गई है | 

नीदरलैंड अपने यहां की सड़कों को आवारा कुत्तों से मुक्त कराने में सफल रहा है और वह ऐसा करने वाला विश्व का अग्रणी देश बन गया है | ऐसी स्थति में आवारा कुत्तों से सड़कों को मुक्त कराने वाले मॉडल को सफल मॉडल कहने और स्वीकार करने में किसी को कोई जुरेज नहीं होना चाहिए |  
 

भारत क्या सीख सकता है नीदरलैंड से?


भारत को नीदरलैंड से कोई विशेष चीज सीखने की अवश्यकता नहीं है, अलावा इसके कि भारत में आवारा कुत्तों की समस्या से छुटकारा पाने के लिए उपलब्ध कानूनों और नीतियों में मामूली सुधार किया जाए | 

भारत के मुकाबले नीदरलैंड में क़ानून और नीतियों का अनुपालन कठोरता और प्रबल राजनैतिक इच्छा शक्ति के साथ किया गया है | बस  एकमात्र यही सीख  भारत ले सकता है और किसी सीख की आवश्यकता नहीं है | 

कानूनी सुधार की ज़रूरत


भारत में आवारा कुत्तों को सड़कों से हटाने की जिम्मेदारी के लिए स्थानीय कानूनों में पहले से ही प्रावधान किये गए हैं | इसके अतिरिक्त पशु क्रूरता निवारण अधिनियम ,1960 पहले से ही उपलब्ध है | यह क़ानून पशुओं के प्रति क्रूरता को प्रतिषेधित करता है | 

इस अधिनियम के तहत बने पशु जन्म नियंत्रण (एबीसी) नियम 2023, जो आवारा कुत्तों की आबादी को नियंत्रित करने, मानव और कुत्तों के बीच संघर्ष को कम करने के लिए बनाए गए हैं | 

इन नियमों के तहत आवारा कुत्तों को पकड़ा जाता है, उनका टीकाकरण और नसबंदी की जाती है, और फिर उन्हें वापस  उनके ही इलाके में छोड़ दिया जाता है| इन 2023 के नियमो ने  2001 के नियमों की जगह ले ली हैं | 

यदि आवारा कुत्तों के संकट के सन्दर्भ में भारत के क़ानून और नीतियों की तुलना करें तो कुछ विशेष अंतर नहीं दिखाई देता है | 

लेकिन यह जरूर मानना पडेगा कि नीदरलैंड के क़ानून में उलंघन की स्थति में जुर्माना और सजा का प्रावधान कुछ कठोर अवश्य रहा है | इसके अतिरिक्त सबसे बड़ा अंतर क़ानून और नीतियों के निर्वहन का रहा है | 

निष्कर्ष – इंसान और  आवारा कुत्ते दोनों के लिए सुरक्षित भविष्य

नीदरलैंड के मॉडल से स्पष्ट है कि अगर कानून, सरकार और जनता मिलकर काम करें, तो किसी भी देश से आवारा कुत्तों का संकट खत्म  किया जा सकता है। 

यदि भारत इस मॉडल का आवश्यकता अनुसार आंशिक रूप से अनुसरण करे तो यह देश के लिए यह एक प्रेरणा श्रोत हो सकता है तथा जिसके द्वारा इंसान और आवारा कुत्ते दोनों की सुरक्षा और सह-अस्तित्व को सुनिश्चित किया जा सकता है।

अगर भारत ने भी इस मॉडल के अनुसरण में सख्त कानून, जागरूकता और जिम्मेदार पालतू पशु स्वामित्व को  अपनाया तथा अनुपालन किया, तो आने वाले वर्षों में हम भी घोषित कर पाएंगे – “आवारा कुत्तों से मुक्त भारत।”

FAQ (अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न )


प्रश्न : क्या नीदरलैंड में सच में कोई भी आवारा कुत्ता नहीं है?

उत्तर : हाँ, नीदरलैंड पहला ऐसा देश बन गया है जहाँ अब एक भी आवारा कुत्ता सड़कों पर नहीं है। यह सब सरकार की मजबूत नीतियों, पशु अधिकार कानूनों और जागरूक समाज की वजह से संभव हो पाया है।

प्रश्न : नीदरलैंड ने आवारा कुत्तों की समस्या को कैसे हल किया?

उत्तर : नीदरलैंड ने कुत्तों का अनिवार्य पंजीकरण, नसबंदी अभियान, जान चेतना अभियान ,भारी दंड वाले पशु सुरक्षा कानून, और कुत्तों को गोद लेने को बढ़ावा देकर यह लक्ष्य प्राप्त किया।

प्रश्न : क्या भारत भी नीदरलैंड की तरह आवारा कुत्तों से मुक्त देश बन सकता है?

उत्तर : हाँ, यदि भारत सरकार उपलब्ध कानूनों में आवश्य्क संसोधन करे, उन्हें मजबूत बनाए, नसबंदी प्रोग्राम्स को अत्यधिक प्रभावी रूप से लागू करे और लोगों के बीच जनचेतना अभिया चलाये जिससे लोग जागरूक हों तो भारत भी आवारा कुत्तों से मुक्त देश बन सकता है।

प्रश्न : नीदरलैंड में कुत्तों के लिए क्या-क्या कानून हैं?

उत्तर : नीदरलैंड में सभी पालतू कुत्तों का रजिस्ट्रेशन ज़रूरी है, जानवरों के प्रति क्रूरता पर सख्त सज़ा है, और गोद लेने की प्रक्रिया को आसान और प्रोत्साहित किया गया है।

प्रश्न : क्या नीदरलैंड ने आवारा कुत्तों को मार दिया?

उत्तर : नहीं, नीदरलैंड ने  Dog Kill-Free Policy अपनाई| सभी कुत्तों को शेल्टर्स में ले जाकर उनकी देखभाल की गई और उन्हें गोद दिलवाया गया।

प्रश्न : भारत में इतने सारे स्ट्रीट डॉग्स क्यों हैं ?

उत्तर :भारत में स्ट्रीट डॉग्स के संकट से निपटने के लिए प्रभावी कानूनी प्रावधान और नीतिया पहले से ही उपलब्ध हैं, लेकिन उनके प्रभावी अनुपालन में  लापरवाही भारत में विश्व के सर्वाधिक स्ट्रीट डॉग्स के लिए जिम्मेदार है |  



शुक्रवार, 29 अगस्त 2025

भारत मे आवारा कुत्तों का संकट 2025 : कानून , सुरक्षा और समाधान

दिल्ली -NCR  के पार्कों, सड़कों और रिहायशी कॉलोनियों में आवारा कुत्तों का आतंक  इतना होता जा रहा है कि बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक कोई भी सुरक्षित नहीं है। रोजाना कुत्तों के काटने की घटनाएं  सामने आ रही हैं ,अब सिर्फ एक स्थानीय समस्या नहीं रह गई हैं — सुप्रीम कोर्ट तक ने इस पर बड़ा फैसला सुनाया है। जिसे सम्पूर्ण भारत पर  लागू करने के लिए कहा है | लेकिन सवाल यह है कि क्या अदालत का यह कदम ज़मीनी स्तर पर कुछ बदलेगा? इस लेख में हम जानेंगे हकीकत, कोर्ट का फैसला, और वह मध्यमवर्गीय मार्ग जो लोगों को राहत दिला सकता है।

भूमिका 

भारत की सड़कें करीब 60 मिलियन आवारा कुत्तों का घर हैं |आवारा कुत्तों की लगातार नसबंदी की पुख्ता व्यवस्था न होने के कारण इनकी जनसंख्या तेजी से बढ़ रही है | सरकारी आंकड़ों के अनुसार विगत कुछ वर्षों से आवारा कुत्तों के इंसानो पर हमले की घटनाओं में भी तेजी से बृद्धि दर्ज की गई है | 

भारत में आवारा कुत्तों (Stray Dogs) के हमले जन स्वास्थ्य समस्या में तब्दील हो रहे है | कुत्ते के काटने से रेबीज के कारण हुई 6 वर्षीय बच्ची की मृत्यु पर टाइम्स ऑफ़ इंडिया में कौशिकी शाहा द्वारा लिखित एक लेख प्रकाशित हुआ| जिसका  माननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा स्वतः संज्ञान लिया गया |  

जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट के 11 अगस्त 2025 के आदेश ने आवारा कुत्तों के संकट को फिर सुर्ख़ियों में ला दिया है| जिससे स्पष्ट है कि भारत में मानवअधिकार/ सुरक्षा बनाम पशु अधिकारों पर बहस तेज हो गई है |

एक ओर पशु प्रेमी हैं तथा दूसरी ओर आवारा कुत्तों के हमलो से त्रस्त और परेशान आम जनता है | कुत्तों के हमलों से खौफजदा आमजन पर पशु प्रेमी हावी हैं | पशु प्रेमियों के तरफ से जान्हवी कपूर,वरुण धवन,जॉन अब्राहम,रवीना टंडन,वीर दास और मनोज वाजपेयी जैसे दिग्गज बॉलीवुड अभिनेताओं ने सुप्रीम कोर्ट के आवारा कुत्तों को एनिमल शेल्टर्स में भेजे जाने के आदेश के खिलाफ आवाज उठाई है तथा स्थानीय अधिकारियों की बिफलता को समस्या की जड़  बताया | 

पशु प्रेमियों का दबदबा इतना है कि माननीय सुप्रीम कोर्ट को भी अपने पूर्व में दिए गए आदेश दिनांक 11 /08 /2025 में संसोधन पर पुनर्विचार करते हुए दिनांक 22 /08 /2025  को नए दिशानिर्देशों सहित दूसरा आदेश  पारित करना पड़ा | सुप्रीम कोर्ट के पूर्व आदेश के बाद दिल्ली सहित सम्पूर्ण देश में पशु प्रेमियों ने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व आदेश के विरोध में प्रदर्शन किये | लेकिन दूसरे संशोधित आदेश के बाद वरिष्ठ राजनीतिज्ञ मेनका गांधी,राहुल गाँधी, प्रियंका गाँधी सहित फिल्मी सितारों रूपाली गांगुली और रवीना टंडन ने सुप्रीम कोर्ट के संशोधित आदेश का स्वागत किया |  

सामाजिक सुरक्षा और रेबीज संकट 

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार भारत में हर साल लगभग 20,000 लोगों की मृत्यु रेबीज की बीमारी होने से हो जाती है| इन मौतों में 90 प्रतिशत कुत्तों के काटने से जुडी हुई हैं | ख़बरों से पता चलता है कि कुत्तों के हमले बच्चों और बुजुर्गों पर ज्यादा हो रहे हैं | इस बात का समर्थन करते हुए सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा कि कुत्ते के काटने की घटनाओं से रेबीज से सबसे अधिक प्रभावित बुजुर्ग और बच्चे होते हैं। 

भारत सरकार के एक आँकड़े के अनुसार वर्ष 2024 में कुत्ते काटने की 37 लाख से अधिक घटनाएं दर्ज की गई थी | इन आकड़ों से स्पष्ट है कि आवारा कुत्तों के इंसान पर हमले सामाजिक सुरक्षा के लिए एक गंभीर खतरा बनते जा रहे है | 

अचरज भरी नजरों से घूरता आवारा कुत्ता
आवारा कुत्तों के प्रति बढ़ती घृणा

सतत विकास और सामाजिक संतुलन के लिए सामाजिक सुरक्षा पर आये खतरे को न्यूनतम किया जाना आवश्यक है अन्यथा समाज में आवारा कुत्तों के प्रति घृणा बढ़ना स्वाभाविक है | क्यों कि आवारा कुत्तों के आतंक से बच्चे मारे जा रहे है उनके परिवारीजनों की पीड़ा अथाह है | कालोनियों में लावारिश कुत्तों की भरमार से बच्चों का खेलना कूदना बंद ,साइकिल चलाना बंद हो गया है |

नवंबर 2022 में ४ छात्रों ने एक गर्भवती कुतिया को पीट- पीट मार डाला | पुलिस द्वारा पूछताछ में पता चला कि जब भी  वे क्रिकेट खेलने जाते थे तभी वह उनके ऊपर भोंकती थी | 

सुप्रीम कोर्ट के हालिया आदेश के बाद कानपुर में आवारा कुत्ते का बीबीए की छात्रा पर हमला, जिससे छात्रा गंभीर रूप से घायल हो गई | सोसाइटी वालों ने नाराज होकर कुत्तों को मरवाने का फरमान जारी कर दिया | जिसके बाद पीट पीट कर कुत्ते को मार डाला गया | यद्यपि मामले में प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज की गई है | 

यही नहीं कर्नाटक के एक एमएलसी ने खुलासा किया कि उन्होंने 2800 कुत्तों को मरवाया | खाने में जहर दिया | पेड़ के नीचे दफनाया | उन्होंने यह भी कहा कि बच्चों की सुरक्षा के लिए जेल जाने को तैयार हैं | 

कानून और सुप्रीम कोर्ट का आदेश 2025 

भारत में जानवरों की सुरक्षा और उनके विरुद्ध होने वाली क्रूरता को रोकने के उद्देश्य से पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960 (Prevention of Cruelty to Animals Act, 1960) उपलब्ध है। इस अधिनियम के तहत कुत्ते भी आते हैं | पशुओं के विरुद्ध क्रूरता के प्रथम बार अपराध की स्थति में 50 रूपये तक जुर्माना किया जा सकता है | यद्यपि लम्बे समय से इसमें संशोधन की मांग की जा रही है |

पशु जन्म नियंत्रण नियम ,2023  के नियम 8 के तहत प्रावधानित किया गया है कि टीकाकरण और नसबंदी का उत्तरदायित्व पालतू पशु होने के मामले में पशु स्वामी का होगा तथा सड़क पर रहने वाले या आवारा पशुओं की स्थति में स्थानीय प्राधिकरण उत्तरदाई होगा और इन नियमो के अनुसार पशु नियंत्रण कार्यक्रम चलाने के लिए बोर्ड द्वारा मान्यता प्राप्त किसी संगठन को नियुक्त कर सकता है |  

उड़ीसा हाई कोर्ट की विधि व्यवस्था बाली परिदा बनाम नीरा परिदा  में स्थापित किया गया है कि ," किसी पशु को पीटना अधिनियम की धारा 11(1) के तहत दंडनीय और अपराध नहीं बनता है, जब तक कि पिटाई इस प्रकार की न हो कि पशु को अनावश्यक दर्द या पीड़ा हो।"

कंपैशन अनलिमिटेड प्लस एक्शन बनाम भारत संघ ,(2016) 3 SCC 53 के मामले में न्यायालय ने यह भी माना कि कोई भी कार्य, जो पशुओं को अनावश्यक पीड़ा और कष्ट पहुँचाता है, अपराध है, क्योंकि ऐसा कार्य, पशु क्रूरता अधिनियम की धारा 11 और 3 के तहत पशुओं को दिए गए वैधानिक अधिकारों का उल्लंघन है।

सुप्रीम कोर्ट ने स्वतः प्रेरणा से उत्पन्न याचिका IN RE: “CITY HOUNDED BY STRAYS, KIDS PAY PRICE” में पहले अपने आदेश में दिल्ली-एनसीआर की सड़कों से आवारा कुत्तों को हटाने और उन्हें एनिमल शेल्टर्स में रखने तथा दुबारा न छोड़े जाने के आदेश दिए थे जिसे बाद में बदल दिया गया | 

नए आदेश के अनुसार केवल बीमार और आक्रामक आवारा कुत्तों को एनिमल शेल्टर्स में रखा जाएगा तथा अन्य सभी कुत्तों को टीकाकरण और नसबंदी के बाद उन्ही स्थानों पर छोड़ दिया जाएगा जहाँ से उन्हें पकड़ा गया था |सुप्रीम कोर्ट के फैसले में दर्शित आक्रामक आवारा कुत्तों की परिभाषा के प्रश्न पर भारत की प्रसिद्ध राजनेत्री एवं पशु-अधिकारवादी मेनका गांधी ने गंभीर सवाल उठाया हैं |

समस्या का मानवीय समाधान 

इसमें कोई दो राय नहीं है कि समाज में आवारा कुत्तों के हमलों की समस्या ने गंभीर रूप धारण कर लिया है | लेकिन समाज में किसी समस्या को लेकर टकराव किसी समस्या का समाधान नहीं है |

समस्या की गंभीरता को देखते हुए मानवीय और वैज्ञानिक रूप से स्वीकार्य समाधान की ओर पशु प्रेमियों और कुत्तों के हमलों से पीड़ित लोगो तथा उनका समर्थन करने वाले लोगो को अग्रसर होना पडेगा | इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट के दिशा निर्देशों का सभी को अक्षरशः पालन करना चाहिए जिससे समस्या के समाधान में तेजी आ सकेगी |

उत्तर प्रदेश के आगरा जिले में आवारा कुत्तों का टीकाकरण अभियान |

विशेष तौर पर आवारा कुत्तों की एक निश्चित समय सीमा में नसबंदी और टीकाकरण कराया जाना, जिससे विश्व स्वास्थ्य संगठन के पैमाने को संतुष्ट किया जा सके, जिससे प्रभावी रूप से आवारा कुत्तों की जनसंख्या बृद्धि रोकी जा सके |

इसके लिए पब्लिक- प्राइवेट पार्टनरशिप के मॉडल को अपनाया जा सकता है | इसके अतिरिक्त स्थानीय डॉग फीडर्स और रेजिडेंशियल वेलफेयर एसोसिएशन की मदद से सामुदायिक भागीदारी को बढ़ाकर समस्या के मानवीय हल को निकाला जा सकता है | 

आवश्यकता अनुसार पब्लिक प्राइवेट मॉडल पर डॉग शेल्टर होम्स की स्थापना करना तथा एडॉप्शन कार्यक्रम को बढ़ावा देना | रेबीज वेक्सीन की बिना किसी बाधा के आसान और निशुल्क उपलब्ध्ता सुनिश्चित करना | आवारा कुत्तों और इंसानो के बीच सहअस्तित्व के साथ बच्चों और परिवारों को सुरक्षित रहने की ट्रेनिंग के लिए जागरूकता पैदा करके | 

निष्कर्ष 

भारत में आवारा कुत्तों का संकट सिर्फ सामाजिक या कानूनी बहस का मुद्दा नहीं है, बल्कि यह जन सुरक्षा,स्वास्थ्य और प्रकृति के संतुलन का मुद्दा है | 

अगर माननीय सुप्रीम कोर्ट के दिशा निर्देशों के तहत सरकार ,समाज और पशु प्रेमी /पशु अधिकार संगठन काम करें,तो इंसान और आवारा कुत्तों  दोनों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सकती है  तथा इंसान और आवारा कुत्तों के बीच टकराव को मानवीय स्पर्श के साथ समाप्त किया जा सकता है |   

भारत में आवारा कुत्तों का संकट 2025 -FAQ 

प्रश्न : भारत में कितने आवारा कुत्ते हैं ?

उत्तर : भारत में लगभग 6. 2  करोड़ से अधिक आवारा कुत्ते हैं ,और उनकी जनसंख्या लगातार बढ़ रही है | 

प्रश्न : क्या भारत में आवारा कुत्तों को मारा जा सकता है ?

उत्तर : नहीं | पशु जन्म नियंत्रण नियम ,2023 तथा कोर्ट के निर्णय आवारा कुत्तों को मारने की अनुमति नहीं देते हैं | 

प्रश्न :सुप्रीम कोर्ट ने 2025 में क्या आदेश किया है ?

उत्तर : सुप्रीम कोर्ट ने आवारा कुत्तों को शेल्टर होम भेजने और उनका टीकाकरण और नसबंदी करने के बाद बीमार और आक्रामक कुत्तो को छोड़कर अन्य सभी कुत्तों को जहा से उठाया था उसी स्थान पर छोड़ने के आदेश दिए है | 

प्रश्न : आवारा कुत्तों की समस्या का स्थाई समाधान क्या है ?

उत्तर : सामुदायिक भागीदारी से नसबंदी ,टीकाकरण और डॉग सेंटर्स की स्थापना मानवीय और स्थाई समाधान है |   

   

मंगलवार, 26 अगस्त 2025

काटते कुत्तों से कराहते लोग: सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला और NCR की सच्चाई!

आवारा कुत्ता (STRAY DOG)

प्रस्तावना 

भारत आवारा कुत्तों की एक गंभीर समस्या से जूझ रहा है | आज देश भर में सड़कों और गलियों में आम आदमी को चोर उच्चक्कों और बदमासो से इतना डर नहीं है जितना डर आवारा कुत्तों के हमलों का है | आये दिन अखबारों और न्यूज़ चैनलों में खबरे आती है -बच्चो पर आवारा कुत्तों का हमला, कुत्तों ने सुबह की सैर करते बुजुर्ग को नौचा, कुत्तो के काटने से अस्पताल में भर्ती, अस्पातल में रैबीज के टीके की किल्लत |

आवारा कुत्तों के हमलों का भारत पर दबाब

सरकारी आकड़ों के अनुसार भारत में डॉग बाईट (कुत्ता काटने) की घटनाएं साल दर साल बड रही हैं | वर्ष 2022  में  डॉग बाईट की 21,89,909  घटनाएं हुई | वर्ष 2023 में ये घटनाएं बढ़कर 30,52,521 हो गई  तथा वर्ष 2024 में इन घटनाओं में अप्रत्याशित बृद्धि हुई और 37,15,713  घटनाओं तक पहुच गई | सिर्फ जनवरी 2025 के आकड़े  4,29,664 घटनाओं तक पहुंच गए | ये आकड़े सरकारी है यद्यपि वास्तविकता में ये आकड़े और भी अधिक हो सकते हैं | यानी हर साल लाखों लोग आवारा कुत्तों के काटने से पीड़ित हो रहे है और खौफजदा हैं |

सुप्रीम कोर्ट का हालिया फैसलाआम आदमी को इंसाफ की उम्मीद ?

आवारा कुत्तो के हमलों को लेकर लम्बे समय से देश के विभिन्न हाई कोर्ट्स और सुप्रीम कोर्ट में कानूनी लड़ाई चल रही है | न्याय भूमि बनाम गवर्नमेंट ऑफ़ एन सी टी ऑफ़ दिल्ली एंड अदर्स के मामले में दिल्ली हाई कोर्ट ने स्थापित किया कि, "दिव्यांगजनों को आवारा पशुओं के हमले के खतरे के बिना चलने का मौलिक अधिकार है।" भारत में दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकारों को सुनिश्चित करने वाला एक कानून बना, जिसे दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016 के रूप मे जाना जाता है | 

माननीय सुप्रीम कोर्ट ने टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी एक खबरसिटी हाउंडेड बाय स्ट्रेज, किड्स पे प्राइसके आधार पर मामले का स्वतः संज्ञान लिया था इस खबर में रैबीज से छह साल की बच्ची की मौत के बारे में बताया गया था|

कोर्ट ने 11 अगस्त 2025 को आदेश दिया कि किसी भी परिस्थिति में सड़कों से पकडे गए आवारा कुत्तों को उनके स्थानांतरण के बाद फिर से सड़कों पर नहीं छोड़ा जाना चाहिए। इस संबंध में, संबंधित अधिकारियों द्वारा नियमित रूप से उचित रिकॉर्ड रखा जाना चाहिए।आवारा कुत्तों को पशु जन्म नियंत्रण नियम, 2023 के अनुसार पकड़ा जाएगा, उनकी नसबंदी की जाएगी और उनका टीकाकरण किया जाएगा | जैसा कि ऊपर उल्लेख किया गया है,उन्हें वापस नहीं छोड़ा जाएगा। कुत्ता आश्रयों/पाउंडों में आवारा कुत्तों की नसबंदी और उनका टीकाकरण करने के लिए और हिरासत में लिए जाने वाले आवारा कुत्तों की देखभाल के लिए पर्याप्त कर्मचारी होने चाहिए।

दिल्ली सरकार की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने बताया कि साल 2024 में भारत में 37 लाख से ज्यादा कुत्ता काटने के मामले दर्ज हुए। उन्होंने दलील दी कि सिर्फ नसबंदी से हमलों को रोका नहीं जा सकता और बच्चों, बुजुर्गों और कमजोर वर्गों की सुरक्षा के लिए तुरंत कदम उठाना जरूरी है।

सभी पक्षों को सुनने के बाद जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस संदीप मेहता और जस्टिस एन.वी. अंजरिया की तीन जजों की पीठ ने 22 अगस्त 2025 को संशोधित दिशानिर्देश जारी किए, जो इस प्रकार हैं:

1.आवारा कुत्तों को पकड़ कर नगर निगम और प्राधिकरण द्वारा नसबंदी और टीकाकरण किया जाय।

2.रेबीज से संक्रमित या आक्रामक कुत्तों को छोड़ कर अन्य सभी आवारा कुत्तों को नसबंदी और टीकाकरण के बाद वापस उनके इलाकों में छोड़ा जाए|

3.हर वार्ड में फीडिंग जोन बनाए जाएं, और सड़कों पर खाना खिलाना प्रतिबंधित होगा।

4.कोर्ट के आदेश के पालन में बाधा डालने वाले व्यक्ति या संगठन पर कार्रवाई होगी।

5.जो नागरिक आवारा कुत्तों को गोद लेने के इच्छुक हैं वे नागरिक नगर निगम से संपर्क कर विधिवत प्रक्रिया के तहत कुत्ते को गोद ले सकते हैं, लेकिन उन्हें सुनिश्चित करना होगा कि वह कुत्ता दोबारा सड़क पर न आए।

6.कोर्ट के आदेश में यह मामला अब सिर्फ दिल्ली एनसीआर का नहीं रहा बल्कि इसका विस्तार सम्पूर्ण भारत के लिए कर दिया गया है | अब सभी राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों को ABC नियम, 2023  का पालन करना होगा | 

कोर्ट के इस फैसले ने एनिमल लवर्स को निश्चित रूप से खुश होने का अवसर दिया है, लेकिन काटते कुत्तों से कराहते लोगों को शायद वह राहत नहीं मिली है जिसकी उन्हें उम्मीद थी | ज़मीनी स्तर पर कुत्तों के हमले से आमजन को राहत कैसे मिलेगी यह तो आने वाला समय ही बताएगा |

आम आदमी की हालत

बच्चे खेल के मैदान में जाने से डरते हैं। माता-पिता बच्चों को अकेले स्कूल भेजने से कतराते हैं। बुज़ुर्ग सुबह-सुबह वॉक पर निकलने से डरते हैं। दिहाड़ी मज़दूर और ग़रीब तबका सबसे ज्यादा पीड़ित है, क्योंकि उनके पास कुत्तों के हमलों से बचने के लिए आवागमन के लिए चार पहिया वाहन नहीं हैं, महंगे रेबीज इंजेक्शन या सुरक्षित गेट बन्द कॉलोनी का विकल्प ही नहीं है। सवाल यह हैजब इंसान ही सुरक्षित नहीं रहेगा तोमानव अधिकारकिस काम के?

दैनिक भास्कर में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार एक कुत्ते ने मात्र घंटे में करीब 25 मासूम बच्चों पर हमले किये | भारत के अन्य शहरों से भी खबरे है जिनमे मासूम बच्चों को कुत्तों के झुण्ड ने बुरी तरह से नौचा और बाद में उनकी मृत्यु हो गई |  सोशल मीडिया पर तैरते इन घटनाओं के वीडियो अत्यधिक ह्रदय बिदारक है| जिन्हे एक सामान्य आदमी देख भी नहीं सकता है |

यद्यिप सरकार के आकड़े के अनुसार कुत्ते के काटने से होने वाली रैबीज की बीमारी से मौतों का आकड़ा एक सैकड़ा से भी नीचे है लेकिन काटने के मामले लाखों में होने से इनके इलाज से गरीब आम आदमी की कमर टूट रही है| जबकि अधिकाँश गरीब इसके इलाज के लिए सरकारी अस्पताल पर ही निर्भर रहते है | जहाँ कभी उन्हें विभिन्न वजहों से एंटी रैबीज टीके नसीब नहीं हो पाते और उन्हें अनावश्य्क और अकाल मृत्यु को गले लगाना पड़ता है |

मासूम की तड़प -तड़प कर मृत्यु

आगरा में एक बच्ची को कुत्ते ने काट लिया | उसका पिता उसे सरकारी स्वास्थ्य केंद्र पर ले गया| जब उसने स्वास्थ्य कर्मियों को बच्ची को टीका लगवाने के लिए कहा तो उन्होंने बच्ची का आधार कार्ड मांगा जो उस समय पर उसके पास नहीं था | दुबारा उसके कभी एंटी रेबीज का टीका नहीं लग पाया | आखिरकार  कुछ समय बाद उस मासूम बच्ची की तड़प -तड़प कर मृत्यु हो गई | उत्तर प्रदेश के माननीय मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा अधिकारियों से घटना की विस्तृत जांच रिपोर्ट मांगी |यह मामला है वर्ष 2019 का तथा इस सम्बन्ध में 28 अगस्त के  "द टाइम्स ऑफ़ इंडिया" के दिल्ली/आगरा अंक में खबर छपी |

आवारा कुत्तों के हमले में बदनसीब बाप ने अपनी मासूम बच्ची को खो दिया| उसकी मदद के लिए सरकार आई कुत्तों के लिए आँसू बहाने वाले एनिमल लवर्स और गैर सरकारी संगठन | मासूम बच्ची को बचपन में ही खोने की अथाह पीड़ा उसका परिवार ही समझ सकता है अन्य कोई नहीं

बच्ची के पिता ने आगरा के मानव अधिकार न्यायालय में मुआवजे के लिए एक याचिका डाली थी | वह याचिका भी मूल क्षेत्राधिकार के अभाव में खारिज हो गई

उसे किसी प्रकार का न्याय मिला क्या ? शायद नहीं ? उसकी गरीबी के चलते वह अपना केस उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय तक ले जाने में असमर्थ रहा | गरीबी हमेशा मानव अधिकारों का अतिक्रमण करती है |

डॉग लवर्स बनाम पीड़ित लोग

इस पूरे मुद्दे पर समाज स्पष्ट रूप से दो हिस्सों में बंट गया है,एक तरफ एनिमल लवर्स की दलीलें है और दूसी और आवारा कुत्तों के हमलों से पीड़ित लोग, भयभीत या कराहते लोगों की दलीलें | डॉग लवर्स कहते हैं – “कुत्तों को उनके मूल निवास स्थान से हटाना अमानवीय है। उन्हें भी जीने का अधिकार हासिल हैं।”  पीड़ित कहते हैं – “इंसान की जान सबसे ऊपर है।"  

आराम करते आवारा कुत्ते  (STRAY DOGS)

इस बात को टी एम इरशद बनाम केरला राज्य, 2024 में केरला उच्च न्यायालय ने भी स्थापित किया है कि, "आवारा कुत्ते हमारे समाज में एक ख़तरा पैदा कर रहे हैं। स्कूली बच्चे अकेले स्कूल जाने से डरते हैं क्योंकि उन्हें डर है कि कहीं आवारा कुत्ते उन पर हमला न कर दें। कई नागरिकों की सुबह की सैर पर जाना आदत बन गई है। आवारा कुत्तों के हमले की आशंका के कारण आजकल कुछ इलाकों में सुबह की सैर भी संभव नहीं है। अगर आवारा कुत्तों के खिलाफ कोई कार्रवाई की जाती है, तो कुत्ते प्रेमी उनके लिए लड़ेंगे। लेकिन हमारा मानना ​​है कि इंसानों को आवारा कुत्तों से ज़्यादा तरजीह दी जानी चाहिए। बेशक, इंसानों द्वारा आवारा कुत्तों पर बर्बर हमले की भी अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।"

हाँ,आम आदमी और गरीब की एक चिंता जरूर है कि अगर कुत्तों से हमारी जान जाएगी या उनके काटने से शारीरिक ,मानसिक और आर्थिक पीड़ा होगी, तो हमारे अधिकारों का क्या होगा?”

समाधान

भारत मे आवारा कुत्तो के हमलो की गम्भीर समस्या का समाधान निम्नवत संभव है |

1.तेज़ नसबंदी अभियान – वर्ल्ड आर्गेनाइजेशन ऑन एनिमल हेल्थ के अनुसरण में सरकार द्वारा आवारा कुत्तों के 70 %  का तेजी के साथ टीकाकरण और नसबंदी का लक्ष्य ईमानदारी से प्राप्त किया जाना चाहिए | 

2.डॉग शेल्टर होम्स का निर्मानहर शहर में व्यवस्थित तौर पर डॉग शेल्टर्स /सेंटर बनाए जाएं।

3.रैबीज़ वैक्सीन की मुफ़्त् व्यवस्थाखासकर गरीब तबके के लिए वेक्सीन की व्यवस्था निशुल्क करने का प्रावधान हो |  

4.जवाबदेही तय होनगर निगम और प्रशासन पर कुत्तों की नसबंदी और उनके वेक्सीनेशन के सम्बन्ध में उत्तरदायित्व सुनिश्चित किया जाए | लापरवाही की स्तिथि में जुर्माना लगाया जाना चाहिए |

5.सख्त कानूनइंसान की जान को खतरे में डालने वाले मामलों में सख्त दंड का प्रावधान किया जाए | कुत्ते के काटने से घायल या मृत्यु की स्तिथि में तत्काल आर्थिक मुआवजे का प्रावधान किया जाए |

निष्कर्ष

भारत में यह बहस सिर्फ कुत्तों के अधिकार बनाम इंसानों के अधिकार की नहीं है।असल सवाल यह है किक्या हम अपनी सड़कों और गलियों को बच्चों ,बुजुर्गों और आमजन के लिए सुरक्षित बना पाएंगे या नहीं? डॉग लवर्स की भावनाएं अपनी जगह सही हो सकती हैं, लेकिन इंसान का जीवन सबसे पहले आता है ,जिसका समर्थन माननीय केरला हाई कोर्ट ने भी अपने एक निर्णय में किया है | सुप्रीम कोर्ट ने दिशा तो दिखा दी हैलेकिन असली इंसाफ तभी मिलेगा जब कानून, सरकार और समाज मिलकर एक ठोस कदम उठाकर समस्या का सम्पूर्ण समाधान करने में सफल होंगे | क्योंकि सवाल अब भी वही है – “काटते कुत्तों से कराहते लोग आखिर कहाँ और कब पाएंगे इंसाफ?”

FAQ (अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न ):-

प्रश्न :भारत में Stray Dogs इतने क्यों हैं?

उत्तर : भारत में Stray Dogs की संख्या ज़्यादा है क्योंकि नसबंदी (spaying/neutering) कम होती है, कूड़े-कचरे और समाज से उन्हें आसानी से खाना मिल जाता है।

प्रश्न : क्या Stray Dogs इंसानों के लिए खतरनाक हैं?

उत्तर : हाँ। भारत में हर वर्ष करीब 47 लाख लोग Dog Bites का शिकार होते हैं और इनमें से सैकड़ों मौतें Rabies Infection से होती हैं।

प्रश्न : क्या Stray Dogs को मारना कानूनन सही है?

उत्तर : नहीं। भारत में Prevention of Cruelty to Animals Act, 1960 और ABC Rules, 2023 के अनुसार Stray Dogs को मारना गैर-कानूनी है।

प्रश्न : अगर Stray Dog काट ले तो क्या करें?

उत्तर : काटने के घाव को तुरंत साबुन और पानी से धोएं, तत्काल डॉक्टर से संपर्क कर  Anti-Rabies Vaccine (ARV) और Tetanus Injection लगवाएं | 

प्रश्न : क्या Stray Dogs को खाना खिलाना गैर-कानूनी है?

उत्तर : नहीं। Supreme Court और High Court के फैसलों के अनुसार Stray Dogs को खाना खिलाना अपराध नहीं है। लेकिन नगर निगम या स्थानीय प्रशाशन द्वारा निर्धारित फीडिंग ज़ोन्स पर ही खाना खिलाने की अनुमति है |  

प्रश्न : Stray Dogs की नसबंदी और Vaccination की जिम्मेदारी किसकी है?

उत्तर : नगर निगम (Municipal Corporations) की कानूनी जिम्मेदारी है | यह जिम्मेदारी उन्हें  ABC (Animal Birth Control) Program,2023  के अनुसरण में निर्वहन करनी होती है | 

प्रश्न : Rabies से सबसे ज़्यादा खतरा किससे है?

उत्तर :विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार भारत में हर साल लगभग 20,000 मौतें Rabies से होती हैं और इनमें से 95% केस Dog Bites से जुड़े होते हैं।

प्रश्न: Stray Dogs इंसानों पर हमला क्यों करते हैं?

उत्तर : ज़्यादातर कुत्ते भूख, डर या अपने बच्चों की रक्षा करने के कारण इंसानों पर हमला करते हैं।

प्रश्न :सुप्रीम कोर्ट का Stray Dogs पर हालिया फैसला क्या कहता है?

उत्तर : सुप्रीम कोर्ट ने लोगों की सुरक्षा और कुत्तों के अधिकार दोनों  में संतुलन करने का प्रयास किया  | नगर निगम को नसबंदी और टीकाकरण तेज़ करने का आदेश दिया गया।नसबंदी और टीकाकरण के बाद आवारा कुत्तों को उसी स्थान पर छोड़ने के आदेश किये है जहाँ से उन्हें पकड़ा था | 

प्रश्न : Stray Dogs की समस्या हो तो क्या करें?

उत्तर : स्थानीय नगर निगम को शिकायत करें| Stray Dogs को मारना गैर-कानूनी है।

  

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