विश्वभर में व्यक्तियों और समूहों के मानव अधिकारों का संवर्धन एवम संरक्षण हेतु संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा एक ऐतिहासिक दस्तावेज तैयार कराया, जिसे मानव अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा के नाम से जाना जाता है तथा इसे १० दिसम्बर १९४८ को स्वीकृत और अंगीकृत किया गया | यह दस्तावेज उन मौलिक अधिकारों और स्वतंत्रताओं का समावेश करता है जो सभी व्यक्तियों और समूहों को बिना किसी जाती,मूलवंस , लिंग ,धर्म या किसी संस्कृति या अन्य किसी स्तिथि के प्राप्त होते हैं |
यह मानव अधिकार दस्तावेज घोषणा करता है कि सभी मनुष्य स्वतंत्र पैदा हुए हैं और गरिमा और अधिकारों में सामान हैं | ये विश्वभर में मानव अधिकारों के संवर्धन और संरक्षण के मूलभूत सिद्धांतों के रूप में उपयोग किये जाते है | उक्त सिद्धांत सभी के लिए न्याय,न्यायसंगत और समावेशी समाज की आधारशिला रखते है | यह सभी देशों और उनके यहां विधि के साशन के लिए आवश्यक हैं कि वे अपने -अपने यहाँ मानव अधिकारों का संवर्धन और संरक्षण को सुनिश्चित करें |जिसके लिए उनके द्वारा मानव अधिकार सिद्धांतों का सम्मान आवश्यक है |
भारत में विधिक सहायता और निःशुल्क विधिक सहायता के प्रावधानों का किया जाना तथा उनका समुचित क्रियान्वयन अंतर्राष्ट्रीय मानव अधिकारों के सम्मान की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम हैं |
विधिक सहायताऔर निःशुल्क विधिक सहायता से तात्पर्य ऐसी सहयता से है जिसकी आवश्यकता वाद दाखिल करने वाले या अभियुक्त को न्यायलय के समक्ष अपना पक्ष रकने के लिए पड़ती है लेकिन आर्थिक तंगी के चलते या किसी अन्य कारण से अपना पक्ष न्यायलय के समक्ष रखने में असमर्थ होता है, ऐसी स्तिथि में सरकार द्वारा उसे विधि अनुसार विधिक सहायता या निःशुल्क विधिक सहायता उपलब्ध कराये जाने का प्रावधान है| गरीबी या अन्य किसी निर्योग्यता के कारण व्यक्ति की न्याय तक पहुंच न हो सके तो विधि के समक्ष समता और विधि का सामान संरक्षण का कोई महत्त्व नहीं है जो कि विधि के साशन के लिए आवश्यक है |
लश्कर -ए -तैयबा के १० पाकिस्तानी आतंकियों ने जिसमे अजमल आमिर कसाब भी था, समुंद्र के मार्ग से भारत में प्रवेश कर २६ नवंबर २००८ को मुंबई में कई जगह आतंकी हमलों को अंजाम दिया था | इन हमलों में कई विदेसी नागरिकों सहित १५० से अधिक लोगों की जान गयी थी | कसाब को मुंबई की अदालत ने दोषी करार देते हुए फाँसी की सजा सुनाई |
यह मुकद्दमा सुप्रीम कोर्ट भी पहुंचा वहां भी सजा को बरक़रार रखा गया | भारतीय न्याय व्यवस्था में विधिक सहयता के प्रावधान के तहत उसे आतंकवादी होने के बाबजूद विधिक सहायता उपलब्ध कराई गयी | आतंकी कसाब को ट्रायल कोर्ट में उसका केस लड़ने के लिए एक स्वतंत्र वकील उपलब्ध कराया गया था | निष्पक्ष सुनवाई के लिए यह व्यवस्था की गयी थी |
सामान्य अर्थों में मानव अधिकार वे मूलभूत अधिकार है जो व्यक्तियों को स्वतः उनके मानव मात्र होने के नाते उन्हें प्राप्त होते हैं | सयुक्त राष्ट्र चार्टर के अनुसार सयुक्त राष्ट्र के लोग यह विस्वास करते है कि कुछ ऐसे मानव अधिकार हैं जो कभी छीने नहीं जा सकते हैं |
सयुंक्त राष्ट्र के अनुसार मानवाधिकार सभी मनुष्यों में निहित अधिकार हैं, चाहे उनकी जाति, लिंग, राष्ट्रीयता, जातीयता, भाषा, धर्म या कोई अन्य स्थिति कुछ भी हो। मानवाधिकारों में जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार, गुलामी और यातना से मुक्ति, राय और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, काम और शिक्षा का अधिकार और बहुत कुछ शामिल हैं। बिना किसी भेदभाव के हर कोई इन अधिकारों का हकदार है।
मानव अधिकारों की सावभौमिक घोषणा ,१९४८ में मानव अधिकारों की एक विस्तृत शृंखला का व्यक्ति के सन्दर्भ में विशेष उल्लेख मिलता है लेकिन विशेष समूहों के सन्दर्भ में नहीं | समय की मांग के अनुरूप विविध समूहों के अधिकारों को भी सयुक्त राष्ट्र ने अपने एजेंडा में शामिल करते हुए महिलाओं,बच्चों,विकलांग व्यक्तियों, अल्पसंख्यकों, विभिन्न यौनिकता वाले व्यक्तियों और अन्य कमजोर समूहों के लिए विशिष्ट मानकों को शामिल कर धीरे -धीरे मानव अधिकार कानूनों का विस्तार किया है | कई समाजों में लम्बे समय से विभिन्न रूपों में भेदभाव झेलना आम बात थी लेकिन अब उनके पास ऐसे अधिकार है जो उन्हें भेदभाव से बचाने में समर्थ हैं |
विधिक सहायता पाने में आर्थिक अक्षमता या किसी अन्य निर्योग्यता के चलते न्याय तक पहुंच को सुगम बनाने में संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा विस्तारित मानव अधिकार अत्यधिक उपयोगी साबित हो रहे हैं |
मानव अधिकारों की सावभौमिक घोषणा ,१९४८ में विधिक सहायता की उपलब्धता से सुसंगत मानव अधिकारों का विवरण दिया गया है जो निम्न प्रकार है;
१.घोषणा के अनुछेद ७ के अनुसार क़ानून की निगाह में सभी सामान हैं और सभी बिना भेदभाव के कानूनी सुरक्षा के अधिकारी है यदि इस घोषणा का अतिक्रमण करके कोई भी भेदभाव किया जाए,उस प्रकार के भेदभाव को किसी प्रकार से उकसाया जाए,तो उसके विरुद्ध सामान संरक्षण का अधिकार सभी को प्राप्त है|
२.घोषणा के अनुछेद ८ में स्थापित किया गया है कि सभी को संविधान या क़ानून द्वारा प्राप्त बुनियादी अधिकारों का अतिक्रमण करने वाले कार्यों के विरुद्ध समुचित राष्ट्रीय अदालतों की कारगर सहायता पाने का हक है |
३.इसी घोषणा का अनुछेद १० स्पष्ट करता है कि सभी को पूर्णतः और सामान रूप से हक़ है कि उनके अधिकारों और कर्तव्यों के निश्चय करने के मामले में और उनपर आरोपित फौजदारी में किसी मामले में उनकी सुनवाई न्यायोचित और सार्वजानिक रूप से निरपेक्ष एवम निष्पक्ष अदालत द्वारा की जाएगी |
४.घोषणा के अनुछेद २८ में सर्वाधिक महत्वपूर्ण मानव अधिकार को समाहित करते हुए इंगित किया है कि प्रत्येक व्यक्ति को ऐसी सामाजिक और अंतराष्ट्रीय व्यवस्था प्राप्ति का अधिकार है जसमे इस घोषणा में उल्लिखित अधिकारों और स्वतंत्रताओं को पूर्णतः प्राप्त किया जा सकता सके |
संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा वर्ष २०१३ में आपराधिक न्यायिक प्रणालियों में कानूनी सहायता तक पहुंच पर सयुक्त राष्ट्र सिद्धांत और दिशानिर्देश जारी किये जिनका उपयोग सदस्य देश अपने यहाँ मार्गदर्शक के रूप में कर सकते हैं | जिन्हे राष्ट्रीय क़ानून के अनुसार लागू किया जाना चाहिए |
स्वत्रंत्रा प्राप्ति के बाद भारत विश्व में सबसे बड़े लोक तंत्र के रूप में स्थापित हुआ तथा देश में साशन व्यवस्था का सञ्चालन करने के लिए लिखित संविधान स्वीकृत एवम अंगीकृत किया गया | स्वंत्रता प्राप्ति के समय भारतीय समाज में सामाजिक,आर्थिक और राजनैतिक विषमता के जड़ें बहुत गहरी थी | जिन्हे पाटने के लिए संविधान में मूल अधिकारों और राज्य के नीति निर्देशक तत्वों की व्यवस्था की गयी | जिससे स्पष्ट है की भारतीय संविधान के तहत कल्याणकारी राज्य की अवरधारणा को मान्यता प्रदान की गयी,जो कि समाज में व्याप्त विविध प्रकार की विषमताओं को समाप्त करने पर बल देता है | परिणाम स्वरुप संविधान में कमजोर और शोषित वर्गों के कल्याण के लिए प्रावधान किये गए |
वर्तमान में भी अखबारों और न्यूज़ चैनल के माध्यम से समाज में कमजोर और शोषित वर्गों के विरुद्ध हिंसा,शोषण और अतियाचार की घटनाएं पढ़ने और देखने को मिलती हैं अर्थात आज भी समाज में अनेक लोग ऐसे हैं जो हिंसा,अत्याचार और शोषण की स्तिथि में अपनी ओर से वाद दायर करने या फौजदारी वाद में अपना बचाव करने में असमर्थ होते हैं जिससे न्याय तक उनकी पहुंच न होने से उन्हें न्याय से वंचित रहने को विवश होना पड़ता है |
उक्त स्तिथि में उनके मानव अधिकारों के संवर्धन और संरक्षण के किये सामाजिक,आर्थिक और प्रशासनिक सहयोग की आवश्यकता होती है | इस आवश्यकता की पूर्ती हेतु अंतराष्ट्रीय मानव अधिकार सिद्धांतों के तहत भारत में निर्मित और स्वीकृत विधि में प्रावधान किये गए है जिनका उपयोग करके सामाजिक और आर्थिक रूप से कमजोर और असहाय वर्ग सरकार की ओर से विधिक सहायता प्राप्त कर सकते हैं | कुछ स्तिथियों में यह विधिक सहायता निःशुल्क भी उपलब्ध होती है |
सामान्य अर्थ में विधिक सहायता का उद्देश्य न्याय तक सभी लोगों की पहुंच और जागरूकता से है | अन्य शब्दों में कहे तो विधिक सहायता का उद्देश्य ऐसी सामाजिक व्यवस्था की स्थापना से है जिसमे प्रत्येक व्यक्ति के मानव अधिकारों का संवर्धन और संरक्षण हो सके और अन्याय ,हिंसा और शोषण से मुक्ति हो सके | विधिक सहायता राज्य द्वारा यह सुनिश्चित करने के लिए प्रदान की जाती है कि कोई व्यक्ति किसी अक्षमता जैसे गरीबी ,अशिक्षा आदि के कारण न्याय से वंचित न रहे | इसके कारण गरीब ,कमजोर वर्ग की न्याय तक पहुंच आसान हो जाती है | विधिक सहायता कार्यक्रमों के माध्यम से गरीब,वंचित और शोषित वर्ग आसानी से अपने अधिकारों और कर्तव्यों को के बारे में जान पाते हैं और उनको प्राप्त करने के लिए प्रयास करते हैं अर्थात विधिक सहायता का उद्देश्य समानता पर आधारित न्यायपूर्ण और न्यायसंगत समाज की रचना करना है जिसमे अन्याय से कम से कम लोग प्रभावित हों |
भारतीय संविधान के मूल अधिकारों और नीति निर्देशक तत्वों में क्रमशः अनुछेद १४ ,अनुछेद २२(१) और अनुछेद ३९क में क्रमशः विधि के समक्ष समता, अपनी रूचि के विधि व्यवसायी से परामर्श करने और प्रतिरक्षा कराने का अधिकार तथा समान न्याय और निःशुल्क कानूनी सहायता के प्रावधान दिए गए हैं |
भारतीय संविधान के नीति निर्देशक तत्वों में अनुछेद ३९क, समान न्याय और निःशुल्क कानूनी सहायता के प्रावधानों से सम्बंधित है | यह कहता है कि "राज्य यह सुनिश्चित करेगा कि विधिक तंत्र इस प्रकार काम करे कि सामान अवसर के आधार पर न्याय सुलभ हो,और वह विशिष्ट्तया,यह सुनिश्चित करने के लिए कि आर्थिक या किसी अन्य निर्योग्यता के कारण कोई नागरिक न्याय प्राप्त करने के अवसर से वंचित न रह जाए,उपयुक्त विधान या स्कीम द्वारा या किसी अन्य रीति से निःशुल्क विधिक सहायता की वियास्था करेगा |" अर्थात सभी के लिए समान न्याय अवं निःशुल्क कानूनी सहायता की व्यवस्था राज्य सरकार करेगी।
चूकि नीति निर्देशक तत्व सरकार के लिए सुशासन और कल्याणकारी नीतियों के निर्माण में मूलभूत सिद्धांतों को आत्मसात करने हेतु दिशा निर्देशक के रूप में कार्य करते है | इस लिए एक प्रकार से ये प्रावधान सरकार पर एक प्रतिबद्धता अधिरोपित करते है | सामान अवसर के आधार पर यह सुनिश्चित होता है कि आर्थिक या अन्य अक्षमताओं के आधार पर कोई भी नागरिक न्याय पाने के अवसरों से वंचित न हों |
भारतीय संविधान का अनुछेद १४ प्रावधान करता है कि "भारत राज्य क्षेत्र में किसी वियक्ति की विधि के समक्ष समता से अथवा विधियों के समान संरक्षण से राज्य द्वारा वंचित नहीं किया जाएगा | "इस अनुछेद की शब्दावली भारत के सभी नागरिकों और व्यक्तियों को सामान अधिकार और अवसर प्रदान करती है तथा उनका हर प्रकार के विभेद से संरक्षण करती है |
अनुछेद २१ के अनुसार " किसी व्यक्ति को उसके प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता से विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार ही वंचित किया जाएगा अन्यथा नहीं |" उच्चतम न्यायालय द्वारा अनुछेद २१ की व्यापक सन्दर्भों में व्याख्या की है | जिसके कुछ उदाहरण निम्न प्रकार हैं |
उच्चतम न्यायालय की विधि व्यवस्था ऍम ऍम हासकाट बनाम महाराष्ट्र राज्य ,ए आई आर ,१९७८ अस सी १५४८ में अनुछेद २१ की विस्तृत व्याख्या करते हुए स्थापित किया है कि दोषी ठहराए गए व्यक्ति को उच्च न्यायालय में अपील दाखिल करने का मूल अधिकार है तथा उसे " निःशुल्क कानूनी सहायता " पाने का भी अधिकार है
उच्चतम न्यायालय की विधि व्यवस्था हुस्न आरा खातून बनाम बिहार राज्य ए आई आर १९७९ अस सी १३६० में स्थापित किया है कि "शीघ्रतर परीक्षण और निःशुल्क विधिक सहायता" के अधिकार अनुछेद २१ द्वारा प्रद्दत्त दैहिक स्वतंत्रता के मूल अधिकार का एक आवश्यक तत्व है |
विधि वियास्था सुखदास बनाम संघ राज्य क्षेत्र अरुणाचल प्रदेश ,(१९८६)२ अस सी सी ४०१ में माननीय न्यायालय ने यह स्थापित किया कि " निःशुल्क कानूनी सहायता " प्रदान करने में बिफलता ,जबतक कि अभियुक्त ने इंकार न कर दिया हो ,परीक्षण को अवैध बना देती है | अभियुक्त को इसके लिए अर्जी देने की जरूरत नहीं होती है | " निःशुल्क कानूनी सहायता " अभियुक्त का एक मूल अधिकार है और अनुछेद २१ के अधीन युक्तियुक्त ,ऋजु और उचित प्रक्रिया का एक तत्व है | राज्य का यह कर्त्तव्य है कि उसे बताये कि उसे " निःशुल्क कानूनी सहायता " का अधिकार प्राप्त है | |
समान अवसर के आधार पर समाज में कमजोर वर्गों को निशुल्क विधिक सेवाएं उपलब्ध कराने हेतु भारतीय संसद द्वारा विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम ,१९८७ अधिनियमित किया गया | इस अधिनियम के तहत देशभर में विधिक सहायता कार्यक्रमों के सुचारू क्रियान्वयन की निगरानी और मूल्यांकन किया जाता है | इसके साथ साथ विधिक सेवाएं उपलब्ध कराने के लिए नीति गत सिद्धांतों को सुनिश्चित करने के लिए इसका अधिनियमन किया गया है |
विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम ,१९८७ के तहत राष्ट्रीय स्तर पर राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण ,राज्य स्तर पर राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण और जिला स्तर पर जिला विधिक सेवा प्राधिकरण की स्थापना की गयी हैं | उक्त प्राधिकरणों में असह्याय, गरीब, कमजोर वर्गों के वादकारिओं और अभियुक्तों को निःशुल्क कानूनी सेवाएं प्रदान करने के लिए अधिवक्ताओं का पैनल गठित किया जाता है| पैनल में शामिल अधिवक्ताओं के द्वारा गरीब व् अन्य व्यक्तियों को दी जाने वाली विधिक सेवाओं के एवज में फीस का भुगतान सरकार द्वारा किया जाता है | इसके अतिरिक्त इसमें लोक अदालत के माध्यम से छोटे मामलों में त्वरित न्याय दिलाने का प्रावधान किया गया है |
इस पुनीत कार्य द्वारा सरकार न सिर्फ अंतराष्ट्रीय मानव अधिकारों का सम्मान करती है बल्कि भारतीय संविधान में " निःशुल्क कानूनी सहायता " की अवधारणा को वास्तविकता में बदलती हुई दृश्टिगोचर होती है | समय- समय पर भारत के सर्वोच्च न्यायलय द्वारा दिए गए निर्णयों में " निःशुल्क कानूनी सहायता " को संविधान में प्रद्दत मूल अधिकार का एक आवश्यक तत्व के रूप में वयाख्या की गयी है,के आधार पर सरकार ने उसका भी सम्मान करते हुए इस क्षेत्र में बेहतर सेवाओं के प्रति अपनी प्रतिबध्दता कायम रखी हैं |
निःशुल्क विधिक सेवाओं में निम्नलिखित शामिल हैं :
(क) कोर्ट फीस ,प्रक्रिया फीस और किसी विधिक कार्यवाही के सम्बन्ध में देय या किये गए देय या अन्य सभी प्रकारों का भुगतान ;
(ख) विधि कार्यवाहियों में वकीलों की सेवा प्रदान करना
(ग) विधिक कार्यवाहियों में आदेश और अन्य दस्तावेजों की प्रमाणित प्रतियां प्राप्त करना और उनकी आपूर्ति करना |
(घ) मुद्रण और विधिक कार्यवाही में दस्तावेजों के अनुवाद सहित अपील और पेपरवर्क की तैयारी |
विधिक सेवा प्राधिकारण अधिनियम ,१९८७ की धरा १२ में विधिक सहायता हेतु पात्र व्यक्तियों के लिए मानदंड निर्धारित किये गए है,जिनमे से कुछ निम्न प्रकार हैं ;
"१२. प्रत्येक व्यक्ति जिसे कोई मामला दर्ज करना है या अपनी प्रतिरक्षा करनी हैं ,इस अधिनियम के तहत विधिक सेवाओं के लिए हकदार होगा यदि वह व्यक्ति
(क)अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति का सदस्य है ;
(ख)संविधान के अनुछेद २३ में निर्दिष्ट मानव तस्करी और बेगार का शिकार है;
(ग)एक महिला या बच्चा है ;
(घ) मानसिक रूप से बीमार या अन्यथा विकलांग व्यक्ति है;
(ड़)अवांछित परिस्थितिओं में रहने वाला वियक्ति जैसे सामूहिक आपदा,जातीय हिंसा,जातिगत अत्याचार,बाढ़, सूखा ,भूकंप या औधोगिक आपदा का शिकार होना ;या
(च) एक औधौगिक मजदूर है ;
(छ)हिरासत में है,जिसमे अनैतिक व्यापार (निवारण) अधिनियम ,१९५६ की धरा २ के खंड (जी) के अर्थ में अंदर सुरक्षात्मक घर में हिरासत भी शामिल है,आदि |
विधिक सेवा प्राधिकरण विधिक सेवा की आवश्यकता वाले व्यक्तियों के आवेदन की प्रथम दृष्टया जांच के उपरांत पात्र पाए जाने पर उसे सरकारी खर्च पर वकील मुहैया कराते हैं,आवश्यकता के अनुसार न्यायलय शुल्क का भुगतान करते हैं और मुकदद्मे से सम्बंधित अन्य आकस्मिक खर्चे वहन करते हैं | जब व्यक्ति को विधिक सहायता प्रदान की जाती है तो उससे विधिक सहायता के एवज में कोई भी शुल्क नहीं लिया जाता है |
उपरोक्त से स्पष्ट है कि वर्तमान में निःशुल्क विधिक सहायता न्याय व्यवस्था का अभिन्न अंग बन चुकी है जो कि एक स्वतंत्र और मजबूत लोकतंत्र के लिए आवश्यक है | देशभर में आज निःशुल्क विधिक सहायता भारतीय संविधान,विशेष विधायन और भारतीय सर्वोच्च न्यायलय द्वारा पारित की गयी विधि व्यवस्थायों द्वारा पोषित और फलीभूत हो रही है | सर्वोच्च न्यायलय द्वारा निःशुल्क विधिक सहायता को एक मूल अधिकार के रूप में मान्यता प्रदान कर असंख्य गरीबों और निर्बल वर्ग के व्यक्तियो के मानव अधिकारों का संरक्षण और संवर्धन किया है | इसके अतिरिक्त अंतराष्ट्रीय मानव अधिकार घोषणओं में भी विधिक सेवाओं को पर्याप्त स्थान दिया गया है | जिन्हे सदस्य देश अपने यहाँ के कानूनों में सिद्धांतों के रूप में उपयोग कर रहे है | स्पष्ट है कि निःशुल्क विधिक सहायता और मानव अधिकारों में गहरा सम्बन्ध है | मानव अधिकार एक दूसरे पैर निर्भर होते है | एक मानव अधिकार का उलंघन होने पर अन्य मानव अधिकारों के उलंघन का खतरा बना रहता है | निःशुल्क विधिक सहायता का उद्देश्य तभी पूरा हो सकेगा जब प्रत्येक व्यक्ति की न्याय तक आसान और सुलभ पहुंच हो सकेगी जिसके लिए सभी के द्वारा मानव अधिकारों का सम्मान किया जाना आवश्यक शर्त है |
सन्दर्भ
१. मानव अधिकारों की सावभौमिक घोषणा ,१९४८
२.अनुछेद १४ ,अनुछेद २२(१) और अनुछेद ३९ (अ)भारत का संविधान ,1950,
३. ऍम ऍम हासकाट बनाम महाराष्ट्र राज्य ,ए आई आर ,१९७८ अस सी १५४८
४.हुस्न आरा खातून बनाम बिहार राज्य ए आई आर १९७९ अस सी १३६०
५. सुखदास बनाम संघ राज्य क्षेत्र अरुणाचल प्रदेश ,(१९८६)२ अस सी सी ४०१
६. विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम ,१९८७
७. महासभा संकल्प 67/187: आपराधिक न्याय प्रणालियों में कानूनी सहायता तक पहुंच पर संयुक्त राष्ट्र सिद्धांत और दिशानिर्देश (2013)
FAQs (अक्सर पूछे जाने वाले सवाल)
प्रश्न :कानूनी सहायता प्राप्त करने के लिए कहाँ संपर्क करना चाहिए ?
प्रश्न :निःशुल्क कानूनी सेवाएं कैसे मिलती हैं ?
प्रश्न :निःशुल्क कानूनी सेवाएं प्राप्त करने के लिए कौन कौन से व्यक्ति पात्रता रखते हैं ?