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बुधवार, 15 अक्टूबर 2025

भारत में महिला भ्रूण हत्या पर जस्टिस नागरत्ना की चिंता: एक मानवाधिकार विश्लेषण

भारत में महिला भ्रूण हत्या केवल एक कानूनी अपराध नहीं, बल्कि मानवाधिकारों का गहरा उल्लंघन है।

प्रस्तावना 

"लड़की का जन्म ही पहला अवरोध है; हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वह सिर्फ जीवित न रहे, बल्कि फल-फूल सके।”                                                                                                   — न्यायमूर्ति  बी.वी. नागरत्ना 

भारत में महिला भ्रूण ह्त्या (Female Foeticide) कोई नई सामाजिक बुराई नहीं है, बल्कि समाज में यह सदियों से चली आ रही हैं और यह महिलाओं के मानव अधिकारों का घोर उल्लंघन भी करती है |

महिला भ्रूण ह्त्या के कारण महिलाओं की संख्या में कमी के चलते महिला-पुरुष आकड़े का संतुलन बिगड़ता है जिससे सामाजिक असंतुलन की स्थति बन सकती है | यह महिलाओं की सुरक्षा और उनके सम्मान के लिए भी ख़तरा पैदा करता है | 

दिल्ली में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान इस विषय पर सर्वोच्च न्यायालय की न्यायाधीश न्यायमूर्ति बी.वी.नागरत्ना ने गहरी चिंता जाहिर की है |

इस लेख में भारत में महिला भ्रूण ह्त्या की स्थति, मानवाधिकार पहलुओं, कानूनी खामियों और संभावित सुधार सुझावों तथा इस सम्बन्ध में नागरत्ना जी के दृष्टिकोण का विश्लेषण करेंगे | 

न्यायमूर्ति नागरत्ना की चिंता और चेतावनी

जस्टिस  की चिंता इस बात की ओर स्पष्ट संकेत करती है कि भारत में महिला भ्रूण हत्या केवल एक कानूनी अपराध नहीं, बल्कि मानवाधिकारों का गहरा उल्लंघन है।यह कहना सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस नागरत्ना जी का |

जस्टिस नागरत्ना ने कई राज्यों में घटते लिंग अनुपात और संभवतः बढ़ती महिला भ्रूण हत्या की घटनाओं पर चिंता जताई है|

उनका मानना है कि महिला भ्रूण ह्त्या केवल एक सामाजिक समस्या नहीं है, बल्कि यह एक मानव अधिकार उल्लंघन और लैंगिक असमानता का भी मुद्दा है | 

उनके अनुसार हर बच्ची को जन्म लेने का समान अधिकार है | 

इस अधिकार से किसी भी बच्ची को वंचित करना न सिर्फ भारतीय कानूनों, नीतियों और संवैधानिक मूल्यों के खिलाफ है, बल्कि अंतर्राष्ट्रीय मानव अधिकार सन्धियों के भी विरुद्ध है |   

अभी हाल ही में दिल्ली में "बालिकाओं की सुरक्षा: भारत में उनके लिए एक सुरक्षित और अधिक सक्षम वातावरण की ओर" विषय पर एक कार्यक्रम का आयोजन हुआ | 

कार्यक्रम के उद्घाटन सत्र में, सर्वोच्च न्यायालय की न्यायाधीश और किशोर न्याय समिति की अध्यक्ष, न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना ने आह्वान किया कि भारत में प्रत्येक बालिका "न केवल जीवित रहे, बल्कि सक्रिय रूप से फलती-फूलती रहे।" 

उन्होंने यह भी कहा कि एक लड़की तभी पूर्ण नागरिक बन सकती है जब लड़की को उसके जीवन की शुरुआत से ही सभी संसाधन उसे लड़कों की तरह आसानी से उपलब्ध हों | इसे सुनिश्चित करने के लिए नए सिरे से राष्ट्रीय प्रतिबद्धता को अपनाना होगा | 

उन्होंने  सभी से, जिसमे न्यायपालिका, सरकार और समाज शामिल है, इस बुराई के खात्मे के लिए साझा प्रयास करने कीअपील की है | 

उनका विचार है कि कठोर क़ानून पर्याप्त नहीं जब तक कि समाज में जागरूकता और महिलाओं के प्रति आदर और सम्मान का भाव पैदा न किया जाए |  

महिला भ्रूण ह्त्या : मानव अधिकार दृष्टिकोण 

1. जीवन का अधिकार (Right to Life)

भारत में महिला भ्रूण हत्या केवल एक कानूनी अपराध नहीं, बल्कि मानवाधिकारों का गहरा उल्लंघन है।यह कहना सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस नागरत्ना जी का | महिला भ्रूण ह्त्या से बचाव जीवन के अधिकार का अभिन्न अंग है |
Image by Biella Biella from Pixabay

सॅयुक्त राष्ट्र संघ  द्वारा जारी मानव अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा(UDHR ), 1948 के अनुच्छेद 3 में कहा गया है  कि प्रत्येक व्यक्ति  को प्राण, स्वंत्रता, और दैहिक सुरक्षा का अधिकार है | 

इसका अर्थ है कि जीवन के अधिकार को महत्वपूर्ण मानव अधिकार माना गया है | महिला भ्रूण ह्त्या से सीधे इस मानव अधिकार का उलंघन होता है | 

क्यों कि यह भ्रूण ह्त्या की बुराई लड़कियों के जन्म से पहले ही उनसे जीवन के महत्वपूर्ण अधिकार को छीन लेता है | 

2. लैंगिक समानता का अधिकार (Right to Gender Equality)

दंपत्ति की सहमति से अवैध रूप से अल्ट्रासॉउन्ड की रिपोर्ट के आधार पर  महिला भ्रूण हत्याएं जारी हैं |
Image by Azmi Talib from Pixabay

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 ,15 , और 21 के तहत हर व्यक्ति  को समानता का अधिकार प्राप्त है | महिला भ्रूण ह्त्या लैंगिक असमानता को बढ़ावा देने वाला अमानवीय अभ्यास है | 

यह संविधान और भारतीय अन्य कानूनों की मूल भावना के खिलाफ है | यह एक गंभीर अपराध भी है |यह स्पष्ट रूप से लिंग आधारित भेदभाव को जन्म देता है 

भारत में अभी तक अनगिनत बच्चियाँ कन्या भ्रूण ह्त्या की भेंट चढ़ चुकी हैं | 

भारत में पुख्ता कानूनी प्रावधानों और नीतियों के होने के बाबजूद  कन्या भ्रूण ह्त्या का यह अमानवीय कृत्य गुप्-चुप तरीके से अनवरत जारी है |  

3. गोपनीयता और स्वास्थ्य का अधिकार 

AI, चिकित्सकीय डेटा, अल्ट्रा साउंड केंद्र आदि में डेटा सुरक्षा के पुख्ता प्रावधान न होने की स्थति में महिला की गोपनीयता का उलंघन महिलाओं के मानव अधिकार को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित कर सकता है |
Source:Pixabay

गैर कानूनी तौर पर अल्ट्रा साउंड के माध्यम से दम्पति को जैसे ही पता चलता है कि गर्भ में पल रहा भ्रूण एक बालिका है तो कुछ दम्पति गर्भपात कराने का निर्णय ले लेते हैं | 

पूर्व गर्भ जांच और गर्भपात सम्बन्धी सूचनाएं अत्यधिक संवेदनशील होती हैं | आज का दौर आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस का दौर है | 

ऐसे में AI, चिकित्सकीय डेटा, अल्ट्रा साउंड केंद्र आदि में डेटा सुरक्षा के पुख्ता प्रावधान न होने की स्थति में महिला की गोपनीयता का उलंघन महिलाओं के मानव अधिकार को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित कर सकता है |  

महिलाओं की इच्छा के बिना उनका गर्भ समापन भी उनके स्वास्थ्य के मानवअधिकार का उल्लंघन है  

महिला भ्रूण ह्त्या रोकने में बाधाएं 

1. कानूनी सख्ती और सही क्रियान्वयन का अभाव 

PCPNDT अधिनियम को सख्ती से लागू करने के साथ साथ उसके क्रियान्वयन पर ईमानदारी से पहल करनी पड़ेगी | इस अधिनियम में लिंग निर्धारण परीक्षण और भ्रूण ह्त्या को रोकने के प्रावधान हैं | 

परन्तु इसकी निगरानी और कार्यवाही की प्रक्रिया ढीली रहती है | इस एक्ट से सम्बंधित आपराधिक मामलो में कार्यवाही अत्यधिक सुस्त रफ़्तार से होती है | 

2. साक्ष्य और जांच की कठिनाइयाँ 

भ्रूण की जांच और महिला भ्रूण हत्याएं अत्यधिक गोपनीय तरीके से की जाती हैं | ऐसी स्थति में अपराधियों को सजा दिलाये जाने के लिए साक्ष्यों को जुटाना अत्यधिक दुरूह कार्य होता है | 

सही और सटीक साक्ष्य में ग्राह्य साक्ष्य न प्राप्त होने पर अक्सर अपराधी साक्ष्यों के अभाव में छूट जाते हैं | जिससे उनके हौसले और बढ़ जाते हैं |  

3. सामाजिक मान्यताएँ और दबाब 

एक भारतीय गाँव में इखट्ठा हुई महिलायें
Image by Christian Trachsel from Pixabay
भारतीय समाज में बेटा पैदा करने की चाहत अत्यधिक प्रबल है | बेटे की चाहत में बेटियों की गर्भ में ही बलि देने में दम्पत्ति किसी भी तरह का संकोच नहीं करते हैं | 

लेकिन यह स्थति सम्पूर्ण भारत में नहीं है | लेकिन कुछ राज्यों के आकड़े इस घिनौनी और अमानवीय बुराई की सचाई की तरफ स्पष्ट रूप से संकेत करते हैं | 

जस्टिस नागरत्ना ने इन्ही आकड़ों के हवाले से भारत में महिला भ्रूण ह्त्या पर चिंता जाहिर की है | सामाजिक असंतुलन की दृष्टि से जस्टिस रत्नम्मा की महिला भ्रूण ह्त्या पर चिंता जायज है |

महिला भ्रूण हत्याओं के सम्बन्ध में भारत में सामाजिक मान्यताओं का प्रभाव समाज पर अत्यधिक गहरा प्रभाव रखता है | इसके अतिरिक्त लड़का पैदा करने का सामाजिक दबाब भी दम्पत्तियों पर हावी रहता है |  

4.विभागीय तालमेल का अभाव 

महिला भ्रूण ह्त्या के लिए कार्य करने वाली संस्थानों में ताल-मेल का अभाव एक गंभीर चुनौती
Image by LEANDRO AGUILAR from Pixabay
महिला भ्रूण ह्त्या की रोकथाम के लिए कार्य करने वाली संस्थाओं में ताल मेल का अभाव देखा गया है | इस अभाव के चलते सही जांच, सही तरह के साक्ष्य  संकलन, सही तरह से मुकदद्मों की पैरवी न होने से अपराधी दोषमुक्त हो जाते हैं तथा अपराधियों के हौसले बुलंद रहते हैं | 

न्यायालय में उचित साक्ष्य के अभाव में अक्सर अपराधी दोष मुक्त हो जाते हैं | महिला भ्रूण ह्त्या की रोकथाम के लिए यह एक गंभीर चिन्ता का विषय है | 

समस्या की रोकथाम के लिए कुछ सुझाव  

1.नियमित निगरानी और समीक्षा

हर अल्ट्रासॉउन्ड और MTP केंद्र की नियमित निगरानी और मूल्यांकन  की आवश्यकता
Image by Sasin Tipchai from Pixabay

हर अल्ट्रासॉउन्ड और MTP केंद्र की नियमित निगरानी और मूल्यांकन होना चाहिए| जिसके लिए एक स्वतंत्र संस्था का निर्माण किया जा सकता है| 

सभी अल्ट्रा साउंड मशीन को एक केंद्रीयकृत डिजिटल सिस्टम से जोड़ा जाना चाहिए| जिससे तत्काल केंद्रीयकृत केंद्र पर डाटा पहुंच सके और उसे स्टोर करके उस केस को मॉनिटर किया जाना चाहिए | 

लेकिन डाटा प्रोटेक्शन अधिकारों का ख्याल रखा जाना चाहिए किसी भी सूरत मी गोपनीयता के अधिकार का उल्लंघन नहीं होना चाहिए |  

2.कठोर दंड और समुचित क्रियान्वयन 

भारत में कानून के तहत गर्भावस्था में बच्चे का लिंग निर्धारण करना गैर कानूनी कृत्य तथा अपराध घोषित किया गया है |
Image by Nicola Giordano from Pixabay

भारत में कानून के तहत गर्भावस्था में बच्चे का लिंग निर्धारण करना गैर कानूनी कृत्य तथा अपराध घोषित किया गया है | 

लिंग निर्धारण निषेध का उलंघन करने वालों तथा महिला भ्रूण ह्त्या का अपराध करने वालो के विरुद्ध फ़ास्ट ट्रेक ट्रायल करके कठोर दंड सुनिश्चित कराने के लिए न्यायालयों में बेहतर पैरवी की व्यवस्था की जानी चाहिए | 


3. सामाजिक जागरूकता अवं शिक्षा 

महिला भ्रूण ह्त्या की रोकथाम और उसके समाज पर पड़ने वाले कुप्रभाव के बारे में सामाजिक जागरूकता शिक्षा की बहुत आवश्यकता है |

महिला भ्रूण ह्त्या की रोकथाम और उसके समाज पर पड़ने वाले कुप्रभाव के बारे में सामाजिक जागरूकता शिक्षा की बहुत आवश्यकता है | 

यही नहीं महिला भ्रूण ह्त्या के कानूनी पहलू जिसमे अपराध की सजा के बारे में भी आम जनमानस में जनचेतना की आवश्यकता है | इसके लिए सरकार को गैर सरकारी संगठनों को आर्थिक सहायता उपलब्ध करानी चाहिए | 

4.महिला अधिकारों की वकालत 

महिला अधिकारों की वकालत पर चर्चा करती महिलायें
Image by Jamie Hines from Pixabay

महिला अधिकारों की वकालत के रूप में महिला भ्रूण ह्त्या की रोक -थाम के विषय को शामिल किया जाना चाहिए | भारत में अनेक गैर सरकारी संघटन महिला अधिकारों की बकालत में लगे हुए हैं | 

इनमे ऐसे बहुत कम NGO हैं जो महिला भ्रूण ह्त्या की रोकथाम को अपने महिला अधिकारों की वकालत के अभिन्न अंग के रूप में अपनाते हों | 

अतः जरूरत इस बात की है कि अधिक से अधिक गैर सरकारी संगठन महिला भ्रूण ह्त्या की रोक -थाम के विषय को अपने महिला अधिकारों की वकालत के अजेंडे में शामिल करें | 

5.मानवाधिकार केंद्रित दृष्टिकोण 

महिला भ्रूण ह्त्या की रोक -थाम सम्बंधित नीतियों को मानव अधिकार केंद्रित सिद्धांतों के अनुसरण में तैयार करना चाहिए | 

निष्कर्ष : 

महिला भ्रूण ह्त्या  के सम्बन्ध में न्यायमूर्ति  बी. वी. नागरत्ना की चिंता स्पष्ट संकेत करती है कि यह समस्या सिर्फ एक कानूनी मसला नहीं है, बल्कि महिला मानव अधिकारों का गहरा संकट है | 

जो भारत के लिए एक चिंता का सबब है | न्यायमूर्ति. नागरत्ना की चिंता हमें संकेत देती है कि इस बुराई  को समाप्त करने के लिए न्यायपालिका, सरकार और समाज को मिलकर प्रयास करने होंगे|

इस समस्या का अंत करने के लिए सिर्फ कानूनों के कठोर अनुपालन की ही नहीं, बल्कि सामाजिक चेतना  के साथ -साथ महिलाओं को समान अधिकार, सम्मान और अवसर देने की भी है | अन्यथा, महिला भ्रूण हत्या की जड़ें समाप्त नहीं होंगी।  

अगर हम महिला भ्रूण ह्त्या की समस्या का समाधान करने में सफल होते हैं तो यह न केवल भारत के सामाजिक ताने- बाने को मजबूत करेगा, बल्कि महिला मानवाधिकारों के संवर्धन और संरक्षण के साथ -साथ लैंगिक समानता को भी बढ़ावा देगा |


सोमवार, 15 सितंबर 2025

आयुष्मान भारत :स्वास्थ्य के मानवाधिकार को साकार करने की दिशा में एक कदम

आयुष्मान योजना बेहतरीन स्वास्थय योजना

भूमिका 

पूर्व प्रधानमंत्री डॉ0 मनमोहन सिंह ने अच्छे स्वास्थ्य को देश के प्रत्येक नागरिक का अक्षुण्य मानव अधिकार बताया था | स्वास्थ्य के मानव अधिकार को अंतराष्ट्रीय मानव अधिकार लिखितों में महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है | 

जिसके अनुसार प्रत्येक व्यक्ति को स्वास्थ्य का अधिकार प्राप्त है | जिसके सम्बन्ध में यह सदस्य देशों पर निर्भर करता है कि अपनी आर्थिक सीमाओं में रहते हुए अपने नागरिकों को स्वास्थ्य का अधिकार विधिक रूप में प्रदान करें | 

आयुष्मान भारत पहल, जिसे प्रधान मंत्री जन-आरोग्य योजना के नाम से भी जाना जाता है, को मात्र एक सरकारी स्वास्थ्य योजना के रूप में नहीं समझा जा सकता है, बल्कि यह योजना दुनिया की सबसे बड़ी स्वास्थ्य बीमा योजना है | 
यह योजना स्वास्थ्य को मानव अधिकार के रूप में सुनिश्चित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।भारत सरकार ने इस योजना का उद्द्घाटन वर्ष २०१८ में किया था |
 
स्वास्थ्य देखभाल/सेवाओं तक सबकी पहुंच तथा डिजिटल समाधान विषय पर नीति आयोग, राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग(एनएचआरसी),नई दिल्ली के सौजन्य से 6 सितम्बर 2024 को आयोजित एक राष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस में एनएचआरसी के जनरल सेक्रेटरी श्री भारत लाल ने अपने सम्बोधन में कहा कि स्वास्थ्य के क्षेत्र में सभी हितधारकों को एक मंच पर आने की आवश्यकता है, जिससे कि सभी के लिए स्वास्थ्य सेवा एक हकीकत बन सके | उन्होंने यह भी कहा कि स्वास्थ्य सेवा एक बुनियादी मानव अधिकार है |  

आयुष्मान भारत योजना

विश्वभर में आम आदमी के जीवन उच्चस्तरीय बनाने के लिए सयुक्त राष्ट्र महासभा ने सतत विकाश लक्ष्यों को वर्ष 2015 में तय किया था | इन लक्ष्यों को समय बद्ध तरीके से पूरा करने के लिए वर्ष 2030 निर्धारित किया गया | 

भारत भी सयुंक्त राष्ट्र संघ का सदस्य होने के नाते उक्त लक्ष्यों को समय से पूरा करने के लिए प्रतिबद्ध है | इसलिए भारत द्वारा अपनी प्रतिबद्धता के चलते वर्ष 2017 में राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति की सन्तुति की गयी जिसके तहत सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज का लक्ष्य रखा गया | 

विशेष रूप से आयुष्मान भारत देखभाल के दो घटक हैं | प्रथम घटक के रूप में स्वास्थ्य एवं कल्याण केंद्र हैं तथा दूसरे घटक के रूप में प्रधान मंत्री जन-आरोग्य योजना को स्थान दिया गया है | 

तत्कालीन सरकार द्वारा फरवरी 2018 में तकरीबन 1 ,50 ,000 प्राथमिक स्वास्थ्य  केंद्रों और उपकेंद्रों को स्वास्थ्य और कल्याण केंद्र के रूप में बदलने की घोषणा की गयी |  

जिसका उद्देश्य स्वास्थ्य सेवाओं की व्यापकता को विस्तार देना था जिससे स्वास्थ्य सेवाओं तक आम-जन की आसान पहुंच हो सके तथा स्वास्थ्य सेवाएं घर -घर तक पहुंच सके | 

इसके अलावा उक्त योजना का लोगों की बीमारियों के इलाज के साथ -साथ उन्हें स्वास्थ्य बनाये रखने अर्थात उन्हें  बीमार न होने देने पर अधिक जोर देना रहा है | इसी लिए शायद स्वास्थ्य एवं कल्याण केंद्र में कल्याण शब्द जोड़ा गया | 

स्वास्थ्य योजना के दूसरे घटक प्रधानमंत्री जन-आरोग्य योजना का शुभारम्भ 23 दिसंबर 2018  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा किया गया था | इस योजना के तहत प्रतिवर्ष प्रति परिवार 5 लाख रूपये तक का बीमा  कवर प्रदान किया जाता है | इस योजना का सम्पूर्ण खर्च सरकार द्वारा उठाया जाता है |
 
इस योजना के तहत अस्पताल में मरीज के भर्ती होने के तीन दिन पहले से 15 दिन बाद तक खर्चे बहन किये जाते हैं | इस योजना का लाभ लाभार्थी भारत में सूचीबद्ध किसी भी अस्पताल में ले सकता है | यह सम्पूर्ण चिकित्सा स्वास्थ्य सेवा व्यवस्था नकदी रहित उपचार के तहत है |

आयुष्मान भारत योजना का उद्देश्य

राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन का उद्देश्य एक समान, सस्ती, सुलभ और गुणवत्तापूर्ण स्वास्थय देखभाल सेवाओं को आमजन तक बिना किसी विभेद के पहुँचाना है | 

स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं की सार्वभौमिक पहुंच की उपलब्धता का सिद्धांत सभी लोगों तक स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच के लिए मानव अधिकार सिद्धांतों के तहत जबाबदेही और उत्तरदायित्व तय करता है | 

उसी प्रकार आयुष्मान भारत योजना का उद्देश्य स्वास्थ्य के अधिकार से वंचित गरीब लोगों की स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच को आसान  बनाना है | 

इसके अलावा शासन की नीतियों में स्वास्थ्य सम्बन्धी मानव अधिकार सरोकार और संवेदनाओं को संकल्प से सिद्धि तक पहुँचाना तथा समाज के समावेशी विकास को बल देना है | 

आयुषमान कार्ड  बनवाने की पात्रता क्या है ?

नियमानुसार वे लोग आयुष्मान कार्ड बनवाने के लिए पात्र हैं जो असंगठित क्षेत्र में कार्य करते हैं तथा ईएसआईसी या पीएफ का लाभ नहीं लेते हैं या फिर गरीबी रेखा या उससे नीचे जीवन यापन कर रहे हैं | 

70 वर्ष और उससे अधिक आयु के सभी वरिष्ठ नागरिक बिना किसी आय की सीमा के आयुष्मान कार्ड बनाने की पात्रता रखते हैं | 

आयुष्मान कार्ड कैसे बनता है ?  

आयुष्मान भारत प्रधानमन्त्री जन आरोग्य योजना के तहत पात्रता की शर्तों को पूर्ण करने वाला लाभार्थी पूरे वर्ष कभी भी अपना आयुष्मान कार्ड बनवा सकता है | 

यह कार्य लाभार्थी स्वयं आयुष्मान ऍप का उपयोग करते हुए कर सकता है या वह जनसेवा केंद्र  या सीएससी या सूचीबद्ध अस्पताल में जाकर बनवा सकता है |

डिजिटल तकनीकी से योजना तक आसान पहुंच 

हर आमजन के जीवन की गुणवत्ता में सुधार और उन्हें गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य देखभाल सेवाएं प्रदान करने में आधुनिक प्रौद्योगिकी की क्षमताओं का उपयोग किया जाना समय की मांग है | वर्तमान सरकार स्वास्थ्य सेवाओं के डिजिटलीकरण पर विशेष बल दे रही है | 

आयुष्मान भारत योजना को समाज के सबसे निचले पायदान तक पहुंचाने के लिए डिजिटल तकनीकी का बेहतर उपयोग किया जा रहा है | डिजिटल तकनीकी के कारण आम आदमी की स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच आसान हुयी है तथा इसका दायरा भी अत्यधिक व्यापक हुया है | 

आधार कार्ड के आधार पर आयुष्मान भारत योजना के लिए पात्रता की जांच की जाती है तथा साथ-साथऑनलाइन ही आयुष्मान भारत सेवा प्रदाता अस्पताल सम्बंधित सूची भी उपलब्ध हो जाती है | 

योजना डिजिटल तकनीकी पर आधारित होने के कारण सुयोग्य लाभार्थियों को योजना का लाभ बिना किसी परेशानी और देरी के प्राप्त हो जाता है | 

डिजिटल तकनीकी के उपयोग से आम आदमी की आयुष्मान भारत योजना तक पहुंच बहुत ही आसान हुयी है | जिससे स्वास्थ्य के मानव अधिकार का लाभ जन -जन तक पहुंच रहा है | 

एक कॉन्फ्रेंस में राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्राधिकरण के सीईओ श्री बसंत गर्ग ने कहा कि आयुष्मान भारत-प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना के अंतर्गत डिजिटल तकनीक के उपयोग से 55 करोड़ लोगों तक पहुंचने में  मदद मिली | 

आयुष्मान भारत पहल का विस्तार 

आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना को विस्तार देते हुए केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 11 सितम्बर ,2024  को 70 वर्ष और उससे अधिक आयु के सभी वरिष्ठ नागरिकों के लिए स्वास्थ्य बीमा कवरेज का प्रावधान कर दिया | 

जिसके तहत किसी भी वरिष्ठ नागरिक की आय नहीं देखी जाएगी | इस विस्तारित निःशुल्क स्वास्थ्य बीमा कवरेज से करीब 4.5  करोड़ परिवारों को लाभ मिलने की उम्मीद है  तथा इसमें लगभग  6 करोड़ वरिष्ठ नागरिक समाहित होंगे | 

70 वर्ष और उससे अधिक आयु के सभी वरिष्ठ नागरिकों के लिए एक नए और विशिष्ट कार्ड देने का प्रावधान किया गया है | 

आयुष्मान भारत प्रधानमन्त्री जन आरोग्य योजना में पहले से ही कवर किये जा रहे वरिष्ठ नागरिकों को  ५ लाख रूपये तक  का अतिरिक्त टॉप -अप कवर मिलेगा तथा इस टॉप-अप कवर में 70  वर्ष से काम आयु के अन्य परिवारीजनों को शामिल नहीं किया जाएगा | 

लाभार्थी सम्पूर्ण भारत में कही भी इस योजना का लाभ ले सकता है अर्थात लाभार्थी को अपने उपचार के लिए किसी भी अस्पताल में नकद धन ले कर नहीं जाना है बल्कि इसमें लाभार्थी नकदी रहित उपचार के लिये भारत के किसी भी भाग में सूचीबद्ध सार्वजानिक या निजी या सार्वजनिक और निजी भागीदारी से संचालित अस्पाताल में जा सकता है | 
आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री  जन-आरोग्य योजना के तहत राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्राधिकरण के अनुसार 31 दिसंबर, 2024 तक 36 ,35 ,23 ,369  आयुष्मान कार्ड बनाये जा चुके हैं | 

आयुष्मान भारत के तहत प्रदान की जाने वाली सेवाओं को प्रदान करने के लिए सरकारी और निजी क्षेत्र के अस्पातालों की एक विस्तृत श्रंखला को जोड़ा गया है | 

इस योजना के तहत आयुष्मान कार्ड धारकों को स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करने के लिए सरकार द्वारा 17,102  सार्वजनिक अस्पतालों और 13,875  निजी अस्पतालों अर्थात कुल मिलाकर 30,977 अस्पतालों को ससक्त तथा सूचीबद्ध किया गया है | जिनके द्वारा जन-जन तक भरोसेमंद और उच्च स्तरीय स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान की जाती है | 

पीएम -जय योजना के तहत  लाभ पाने के लिए तकरीबन 12 करोड़ से अधिक गरीब और कमजोर परिवार पात्रता रखते है | जिसमे करीब 55 करोड़ लाभार्थी लाभ पाने के लिए पात्र है | 

स्वास्थ्य का मानव अधिकार 

आजकल विश्व स्तर पर जो देश अपने नागरिकों के मानव अधिकारों का जितना अधिक सम्मान करता है उसका विकास के सम्बन्ध में वैश्विक मानव अधिकार पैमाना उतना ही ऊँचा होता है अर्थात देश के विकास को उस देश में मानव अधिकारों के सम्मान,संरक्षण, और पूर्ती  के रूप में आँका जाता है | 

किसी भी शासन व्यवस्था के लिए स्वास्थ्य के मानव अधिकार को आत्मसात करना और उसे सैद्धांतिक परिपेक्ष्य से बाहर निकाल कर वास्तविक धरातल पर क्रियान्वयन करना, नागरिकों के मानव अधिकार का वास्तविक सम्मान होता है |

सर्वप्रथम मानव अधिकारों पर विश्वभर में स्वीकार्य अंतराष्ट्रीय दस्तावेज मानव अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा, 1948 में  २ दर्जन से अधिक मानव अधिकारों का जिक्र किया गया है | इन अधिकारों में स्वास्थ्य के मानव अधिकार को भी अन्य मानव अधिकारों के समान महत्व दिया गया है |
 
उक्त घोषणा के अनुछेद 25 में स्पष्ट रूप में इंगित किया गया है कि , " प्रतियेक व्यक्ति  को एक ऐसे जीवन स्तर का अधिकार है जो स्वयं उसके और उसके परिवार के स्वास्थ्य और कल्याण के लिए उपयुक्त हो ,जिसमे भोजन,वस्त्र, आवास  और चिकित्सा सम्बन्धी देखरेख की उचित सुविधा तथा आवश्यक सामाजिक सेवाओं की व्यवस्था का ,और बेरोजगारी, बीमारी, शारीरिक अक्षमता, वैधव्य, बुढ़ापा या उसके बस से बाहर की अन्य ऐसी परिस्थितियों में, जिसमे  वह अपनी जीविका अर्जित करने में असफल हो जाय, सामाजिक सुरक्षा की व्यवस्था का समावेश है | "

इस घोषणा में दिए गए मानव अधिकार सयुंक्त राष्ट्र संघ के सदस्य देशों के लिए उनके यहाँ प्रसाशन में उपयोग किये जाने वाले सिद्धांतों के रूप में मान्य थे | 

किसी भी सदस्य देश पर उक्त मानव अधिकार बाध्यकारी प्रभाव नहीं रखते थे इस लिए उनका अपने यहाँ की नीतियों में समावेश उनकी इच्छा पर निर्भर था कि वह उनका अनुपालन करे या ना करे | 

इसलिए मानव अधिकारों को सदस्य देशों में गारंटी प्रदान करने के उद्देश्य से सयुंक्त राष्ट्र संघ द्वारा प्रसंविदाओं को अंगीकृत किया गया | 

आर्थिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक अधिकारों से सम्बंधित अंतराष्ट्रीय प्रसंविधा को सयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा ने अंगीकृत कर उसे 1976 से प्रभावी किया गया | भारत भी इस प्रसंविदा का सदस्य देश है | 

इस प्रसंविदा के अनुछेद 12 में स्वास्थ्य के अधिकार को रखा गया | इसके अनुछेद 12 (1) में इंगित किया गया है कि,  " इस प्रसंविदा के पक्षकार राज्य स्वीकार करते हैं कि प्रत्येक  व्यक्ति  को शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के उच्चतम प्राप्त स्तर को उपयोग करने का अधिकार है |"  

उक्त के अतिरिक्त अनुछेद 12 (2 )(घ ) में कहा गया है कि इस प्रसंविदा के पक्षकार राज्य  स्वास्थ्य के अधिकार को पूर्ण रूप से चरिथार्त करने के लिए जो उपाय करेंगे उनमे बीमारी होने पर सभी के लिए चिकित्सा सम्बन्धी सेवा और शुश्रुषा सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक उपायों का समावेश होगा | 

अर्थात सरल शब्दों में कहा जाय तो उपरोक्त अंतराष्ट्रीय मानव अधिकार विधि में स्वास्थ्य के मानव अधिकार सम्बन्धी प्रावधान से स्पष्ट है कि उक्त प्रसंविदा के  पक्षकार राज्य किसी भी प्रकार की महामारी या बीमारियां होने की स्तिथि में  बिना किसी भेद भाव के सभी के लिए  चिकित्सा सम्बन्धी सेवा और शुश्रुषा सुनिश्चित करने के लिए हर संभव आवश्यक उपाय करेंगे जिससे सभी नागरिक स्वास्थ्य के अधिकार के सैद्धांतिक  रूप का व्यवहारिक रूप में आभास कर सकें |  

इस प्रसंविदा की उद्देशिका में स्पष्ट रूप में कहा गया है कि सयुंक्त राष्ट्र अधिकार पत्र के अधीन राज्यों पर मानवाधिकार तथा स्वतंत्रताओं के प्रति सार्वभौमिक सम्मान तथा उसके पालन को बढ़ावा देने का दायित्व है | 

निष्कर्ष

प्रधान मंत्री जन आरोग्य योजना से करोड़ों नागरिक, जो आर्थिक या अन्य समस्यायों के चलते अपना या किसी परिवारीजन का इलाज कराने में असमर्थ थे, चिकित्सकीय स्वास्थ्य सेवाओं का लाभ ले चुके हैं | 

स्वास्थ्य के मानव अधिकार की गारंटी के रूप में यह योजना विश्व की सबसे व्यापक योजना साबित हुई है | आयुष्मान भारत पहल ने स्वास्थ्य के मानव अधिकार को सिद्धांत और संकल्प से सिद्धि में बदलने का कार्य किया है| 
यह योजना गरीब और कमजोर वर्गों के स्वास्थ्य के अधिकार का संवर्धन और संरक्षण करती है क्यों कि यह सस्ती, निशुल्क और आसानी से सुलभ होने के कारण समाज में समानता के सिद्धांत को बढ़ावा देती है | 

यदि इस योजना का क्रियान्वयन सही और ईमानदार पहल के साथ किया जाय तो समग्र स्वास्थ्य की अवधारणा के लक्ष्य को आसानी से पूर्ण किया जा सकता है |   

नोट : अगर आप इस विषय पर अधिक जानकारी चाहते हैं, तो नीचे टिप्पणी सहित ईमेल दर्ज करें| 


      

शनिवार, 23 अगस्त 2025

आवारा कुत्तों की घर वापसी – डॉग लवर्स की बड़ी जीत!

 

आवारा कुत्ते

प्रस्तावना

भारत में ही नहीं बल्कि विश्व भर के अनेक देशों में आवारा कुत्तों के हमलों का मुद्दा लम्बे समय से विवाद का केंद्र रहा है | भारत की सड़कों पर आवारा कुत्तों की बढ़ती संख्या,उनके ताबड़-तोड़ हमले और भय से आम लोग परेशान और त्रस्त रहे है | राज्यों के अलग अलग स्थानीय नगर निगम और ग्राम पंचायत कानूनों में प्रावधान है कि सड़कों को आवारा जानवरों से मुक्त कराना स्थानीय निकायों की जिम्मेदारी है | इस जिम्मेदारी का कोई निर्वहन उचित रूप से कही भी दृष्टिगोचर नहीं होता है | अभी हाल ही में  कुत्तों के काटने से दिल्ली में हुई 6 वर्षीय बच्ची की मृत्यु का समाचार टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,अंगरेजी दैनिक में  छापा | जिसका माननीय सुप्रीम कोर्ट ने स्वतः संज्ञान लिया | जिसके बाद दिल्ली सरकार को सड़क से आवारा कुत्तों को हटाकर शेल्टर होम्स में भेजनी का आदेश दिया गया | 

इस आदेश के आते ही डॉग लवर्स और जानवरों के लिए काम कर रहे गैरसरकारी संगठनों ने इसका पुरजोर विरोध किया | मेनका गाँधी ,राहुल गाँधी,भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश काटजू साहब तथा अनेक  बड़े- बड़े  फिल्म स्टार एनिमल लवर्स के समर्थन में खड़े दिखाई दिए | एनीमल लवर्स ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को अमानवीय बताया तथा याय भी दलील दी कि जानवरों के भी अधिकार होते हैं | 

आख़िरकार हाल ही में  दिनांक 22 /08 /2025 को सुप्रीम कोर्ट का संशोधित फैसला सामने आया | देश की सर्वोच्च अदालत ने अपने फैसले में बदलाव करते हुए आवारा कुत्तों की नसबंदी करने के बाद उन्हें उन्हीं इलाकों में छोड़े जाने के आदेश दिया है, जहाँ से उन्हें पकड़ा गया था।

अदालत और प्रशासन का फैसला

सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट ने कई सुनवाइयों में कहा कि कुत्तों को उनके मूल निवास स्थान से बेदखल नहीं किया जा सकता है | इस सम्बन्ध में मौलिक विधि पशु जन्म नियंत्रण (कुत्ते) नियम, 2001 के तहत प्रावधान किये गए है, जिसके तहत भी भारत में किसी भी व्यक्ति, रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशन या एस्टेट प्रबंधन के द्वारा आवारा कुत्तों की उनके मूल निवास से बेदखली या स्थानांतरण गैरकानूनी है।उन्हें किसी भी स्तिथि में हटाया नहीं जा सकता है | 

हालिया फैसले में माननीय न्यायालय ने  दिल्ली सरकार को आदेशित किया है कि आवारा कुत्तों की नसबंदी और टीकाकरण (Vaccination) के बाद उन्हें उनके मूल स्थान पर ही छोड़ा जाए | यह फैसला डॉग लवर्स की बड़ी जीत है | 

डॉग लवर्स की जीत क्यों?

डॉग लवर्स का सबसे बड़ा तर्क यही था कि आवारा कुत्ते भी समाज का अभिन्न अंग हैं।प्राकृतिक संतुलन आवश्यक है | आवारा कुत्तों को उनके मूल निवास स्थान से उठा ले जाना और शेल्टर् होम्स में रखना उनके अधिकार का उलंघन है क्यों कि जानवरो के भी अधिकार होते हैं | यह कार्य अमानवीय भी है | 

किसी व्यक्ति द्वारा दिया गया खाना खाता हुया आवारा कुत्ता

आवारा कुत्तों की घर वापसी के फैसले ने यह साबित कर दिया कि अदालत भी जानवरों के अधिकारों  को उतना ही महत्व देती है जितना इंसानों के अधिकारों को। माननीय सुप्रीम कोर्ट का यह ऐतिहासिक फैसला उन सभी गैरसरकारी संगठनों और पशु अधिकार कार्यकर्ताओं के लिए बड़ी तथा अविस्मरणीय जीत है, जिन्होंने  हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के तत्काल बाद रात्रि को ही दिल्ली में स्थित इंडिया गेट पर फैसले के विरोध जोरदार विरोध प्रदर्शन किया और सभी एनिमल लवर्स को एक जुट होने का आह्यवान किया था | यह जीत एनिमल लवर्स को मात्र 11 दिन में मिल गई |  

आम जनता की चिंता

हालांकि यह फैसला डॉग लवर्स के लिए जीत है, लेकिन आम जनता  के लिए अभी भी विचारणीय मुद्दा है तथा राहत की बात यह है कि सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि उग्र कुत्तों और बीमारी से ग्रस्त आवारा कुत्तों को नहीं छोड़ा जाएगा | आम जनता अर्थात कुत्तों के हमलो से पीड़ित लोगों के लिए सिर्फ यही राहत की बात है | देखना यह है कि बच्चों और बुज़ुर्गों पर आवारा कुत्तों के हमलों में सुप्रीम कोर्ट के आदेश से क्या कमी आती है यह तो भविष्य ही बताएगा | 

आमजन का मानना है कि अगर कुत्तों की घर वापसी हो रही है तो सरकार को ईमानदारी और सख़्ती से नसबंदी और वैक्सीनेशन लागू करना होगा, ताकि आमजन को कुछ राहत मिल सके |  

आगे का रास्ता – संतुलन की ज़रूरत

यह फैसला साफ़ करता है कि सिर्फ़ कुत्तों को उनकी मूल निवास से हटाना या उनका मारा जाना समस्या का कोई मानवीय हल नहीं है| विश्व स्वास्थय संघटन के पैमाने के अनुसार नसबंदी (Sterilization) से उनकी संख्या नियंत्रित की जा सकती है, लेकिन यह कार्य ईमानदारी और प्रबल राजनैतिक इच्छा सक्ति के तहत होना चाहिए | इसके साथ ही आवारा कुत्तों के वैक्सीनेशन (Vaccination) से रेबीज़ जैसी बीमारियों से बचाव होगा।जो अनावश्यक और अकाल मृत्यु को रोकने के लिए महत्वपूर्ण कदम है | कुत्तों के लिए फीडिंग जोन बनाये जाने से भी आमजन और आवारा कुत्तों के बीच टकराव  कम होने की अच्छी सम्भावनाये है | साथ ही सभी को आवारा कुत्तों के साथ सहअस्तित्व की बेहतर संभावनाओं को तलाशने के लिए कार्य करने की आवश्यकता है | 

निष्कर्ष

आवारा कुत्तों की घर वापसी सिर्फ़ एक न्यालयिक निर्णय नहीं, बल्कि यह मानवाधिकारों और पशु-अधिकारों के बीच संतुलन का प्रतीक है।

जहाँ डॉग लवर्स इसे अपनी बड़ी जीत मान रहे हैं, वहीं आम नागरिक उम्मीद लगाए बैठे हैं कि अब सरकार और नगर निगम उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करने में कोई हीला हवाली नहीं करेंगे।

गुरुवार, 9 मई 2024

मोदी युग में मानव अधिकार: बदलते भारत की नई सोच

Sustainable Development Goals

प्रस्तावना 

आज भारतीय विकास का अधिकांश एजेंडा सतत विकास के लक्ष्यों में दृष्टिगोचर  होता है  -नरेंद्र मोदी भारत के प्रधान मंत्री द्वारा वर्ष 2016 में सयुक्त राष्ट्र सतत विकास  समिति के समक्ष सम्बोधन  

भारत के प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी जी द्वारा नए भारत की परिकल्पना को मूर्त रूप देने के लिए दृढ़ निश्चय के साथ विगत 10 वर्षों से अनवरत प्रयास  किये जा रहे |

नरेंद्र मोदी के अनुसार नए भारत की परिकल्पना में न सिर्फ विकास बल्कि सतत विकास केंद्र बिंदु है |

अंतर्राष्ट्रीय मानव अधिकारों की श्रंखला पर दृष्टि डाले तो स्पष्ट होता है की सतत विकास की अवधारणा मानवाधिकार सिद्धांतों का अभिन्न अंग है | 

प्राचीन सभ्यता से लेकर बर्तमान तक मानव समाज अपने विकास को लेकर सदैव  चिंतित और चौकन्ना रहा है | मानव समाज कल्याण की प्राचीन काल से प्रारम्भ हुयी विकास यात्रा बिना किसी रुकावट और अंत के आज भी अनवरत जारी है | 

लेकिन विकार की अंधाधुंध  होड़ और मानव की लालची प्रबृति ने प्राकृतिक संसाधनों का दोहन इतना बढ़ा दिया कि उसका प्रत्यछ और अप्रत्यछ प्रभाव न सिर्फ मानवीय जीवन पर बल्कि पशु, पक्षी और पौधों पर भी स्पष्ट रूप से दृश्टिगोचर होने लगा | 

उक्त के कारण विश्वभर में व्यक्तियों को यह सोचने पर मजबूर होना पड़ा कि मानव की इस लालची प्रबृति के कारण  वर्तमान और भविष्य की पीड़ी पर क्या परिणाम पडेगा ? क्या वर्तमान पीढी को इसके गंभीर परिणाम विभिन्न रूपों में भुगतने पड़ रहे है और क्या भविष्य की पीढी को भी इससे अधिक गंभीर परिणाम भुगतने को मजबूर होना पडेगा अर्थात  विकास की अवधारणा अब कही पीछे छूट गयी है | 

क्या विकास का अधिकार बना मानव अधिकार? 

अब सम्पूर्ण विश्व में सतत विकास की अवधारणा, जो कि  विकास का ही नया अवतार है, को अधिक महत्त्व दिया जा रहा है |

वर्त्तमान में भारत के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती नयी पीढ़ी के भविष्य के लिए सतत विकास की अवधारणा को आत्मसात कर उसके क्रियान्वयन पर अधिक बल देना है| 

जिसके लिए नवोन्वेषी सोच और शोध दोनो की आवश्यकता है | वर्तमान में विकास के अधिकार को भी एक मानव अधिकार के रूप में संयुक्त राष्ट्र (UN) महासभा ने स्वीकृत  और अंगीकृत कर लिया है | 

मानव अधिकार क्या हैं ?

मानव अधिकार  वे अधिकार है जो व्यक्तियों  को  उनके मानव होने के नाते प्राप्त होते हैं।ये किसी राज्य या राजा द्वारा प्रदान नहीं किये जाते है | 

ये अधिकार सार्वभौमिक है और ये बिना किसी राष्ट्रीयता, लिंग, राष्ट्रीय या जातीय मूल, रंग, धर्म, भाषा या किसी अन्य स्थिति का विभेद किये बिना सभी को सामान रूप से प्राप्त होते हैं | 

मानव अधिकार हर वियक्ति को बिना किसी विभेद और दुराग्रह के चहुमुखी  विकास का अवसर प्रदान करते हैं | 

मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा (UDHR),1948 क्या है ? 

वर्ष 1948 में  संयुक्त राष्ट्र (UN) महासभा ने मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा (UDHR) को  अंगीकार किया | इस घोषणा में व्यक्ति  के चहुमुखी  विकास और गरिमा के लिए आवश्यक मानव अधिकारों की एक श्रंखला प्रस्तुत की गयी है जिसमे भोजन, शिक्षा, स्वास्थ्य, काम आदि के मानव अधिकार शामिल हैं | 

उक्त मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा (UDHR) में दिए गए मानव अधिकारों का क्रियान्वयन विधिक तौर पर बाध्यकारी नहीं हैं इनका उपयोग संयक्त राष्ट्र सदस्य देश अपने यहां कल्याणकारी नैतिक सिद्धांतों के रूप में कर सकते हैं | जैसे कि भारतीय संविधान में नीतिनिर्देशक तत्व | 

संकल्प से सिद्धि: नरेंद्र मोदी का नया भारत

प्रधान मंत्री बनने के बाद से ही नरेंद्र मोदी नए भारत की संकल्पना को सिद्धि में परिवर्तित करने की कोशिश कर रहे है और यही से सही मायने में नए भारत की अवधारणा परिपक़्वता की और अग्रसर होती हुई प्रतीत होती है |

यद्यपि पूर्व प्रधान मंत्री स्वर्गीय राजीव गांधी के न्यू इंडिया की अवधारणा को भारत में कंप्युटरीकरण की बुनियाद रखने के रूप में देखा जाता | 

महात्मा गाँधी, डॉक्टर आंबेडकर, स्वामी विवेकानंद और पंडित दीनदयाल उपाध्याय आदि को पहले ही उद्घृत किया जाता रहा है  कि उक्त महापुरुष किस प्रकार के भारत की संकल्पना करते आए हैं |  

नए भारत की संकल्पना क्या है ?

नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में नए भारत की संकल्पना क्या है ? अर्थात मोदी  कैसा नया भारत चाहते है ? इसे समझने के लिए मोदी जी द्वारा विभिन्न अवसरों पर दिए गए भाषणों और सम्बोधनों का विश्लेषण करने पर नए भारत का एक सक्षिप्त ढांचा उभर कर सामने आता है जो निम्न प्रकार है :

वर्ष 2019 तक देश भर में  पूर्ण स्वछता का लक्ष, प्रमुख नदियों को प्रदुषण मुक्त करने का लक्ष्य, वर्ष 2022 तक सभी के लिए आवास की व्यवस्था का लक्ष्य,ऊर्जा के क्षेत्र में अक्षय ऊर्जा श्रोतों का उपयोग अधिक से अधिक बढ़ाना, स्वयं के उद्यम स्थापित करने के लिए अधिक से अधिक युवाओं को कार्य कुशल बनाना, विदेशों में कुशल कामगारों की आपूर्ति के लिए उन्हें अधिक से अधिक कार्य कुशल बनाना, नयी स्वाथ्य नीति के तहत सभी के लिए स्वास्थय सुविधयों की व्यवस्था, सभी के लिए शिक्षा की व्यवस्था, ग्रामीण क्षेत्रों में सर्वव्यापी डिजिटल तकनीकी की पहुंच उपलब्ध करना, सभी किसानो की सिचाई के साधनो तक पहुंच, सभी किसानो को ऑनलाइन बाज़ार की सुविधा उपलब्ध करना, विज्ञान के क्षेत्र में वैश्विक उत्कृष्टता हासिल करने का लक्ष्य, रक्षा के क्षेत्र में सम्पूर्ण आत्म निर्भरता के साथ साथ निर्यात का लक्ष्य, स्मार्ट शहरों की संकल्पना को ग्रामीण क्षेत्रों तक ले जाना | 

दिव्यांगों के मानव अधिकारों का संरक्षण और संवर्धन, समाज में मैला ढ़ोने की प्रथा का समूल नाश तथा उनके सामाजिक उत्थान के लिए सरकारी मुआवजा, तृतीय लिंग (थर्ड जेंडर )के मानव अधिकारों का संवर्धन और संरक्षण की वयवस्था आदि अन्यं | 

अर्थात नरेंद्र मोदी की नए भारत की उपरोक्त संकल्पना पर दृष्टि डाले तो स्पष्ट होता है कि मोदी दरअसल विकास के मानव अधिकार और सतत विकास की अवधारणा पर अधिक बल देना चाहते है | 

अन्य शब्दों में कहें तो मोदी के नेतृत्व में प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप में भारतीय नागरिकों के मानव अधिकारों के संरक्षण और संवर्धन पर अत्यधिक बल दिया जाना प्रतीत होता  है | 

संकल्पा से सिद्धि में नवाचार एवम प्रोधोगिकी का उपयोग

भारत के प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के आह्वान पर नए भारत की परिकल्पना को सिद्धि में बदलने के रास्ते में आने वाली  चुनौतियों के समाधान के लिए  नवाचार एवम प्रोधोगिकी का सजगता से लाभ लिए जाने पर विशेष बल दिया जा रहा है | 

इस विचार का समर्थन पंडित दीनदयाल उपाधियाय ने कई दशक पूर्व निम्न शब्दों में किया था, "पच्श्चमी विज्ञानं और पश्चिमी जीवन शैली दो अलग अलग चीजे हैं | 

चूकि पच्श्चमी  विज्ञानं सावभौमिक है और हमें आगे बढ़ने के लिए इसे अपनाना चाहिए लेकिन पच्श्चमी  जीवन शैली के सन्दर्भ में यह सच नहीं है |'' 

नरेंद्र मोदी द्वारा एक कर्यक्रम में कहा गया कि," न्यू इंडिया कोई सरकारी कार्यक्रम नहीं है यह सवा सौ करोड़ लोगों का सपना है| सभी देशवासी अगर संकल्प करें और मिलकर कदम उठाते चले तो न्यू इंडिया का सपना हमारे सामने सच हो सकता है | "

"मन की बात" में न्यू इंडिआ के सपने  का जिक्र 

30 मार्च 2017 को "मन की बात " कार्यक्रम में बोलते हुए नरेंद्र मोदी  ने कहा  कि , "भारत का हर नागरिक संकल्प करे की कि में सप्ताह में एक दिन पेट्रोल,डीजल का उपयोग नहीं करूँगा तो न्यू इंडिया का सपना पूरा होगा |"

इसके मायने यह भी हैं कि वर्तमान पीढ़ी के पास उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग में कमी करके इसे आने वाली भविष्य  की पीढ़ियों के लिए बचाया जा सके | 

इसके आलावा पेट्रोल और डीजल से होने वाले प्रदुषण के मानव जाति पर होने वाले गंभीर परिणामो से भी बचाया जा सकता है | 

युवा भारत न्यू ऐज पावर

मोदी जी के उक्त सम्बोधन का तात्पर्य  मोदी जी द्वारा सतत विकास की अवधारणा पर अधिक बल देना है | जिससे न सिर्फ वर्तमान पीढ़ी को एक अच्छा जीवन मिलेगा बल्कि भविष्य की पीढ़ियां भी स्वयं को सुरक्षित महसूस कर सकेगी | 

वरिष्ठ पत्रकार अवधेश  कुमार द्वारा लिखित तथा राष्ट्रीय सहारा के दिनांक 1 अप्रैल 2017 के अंक में "क्रमवार विकसित हुआ है मोदी का न्यू इंडिया का सपना" शीर्षक से प्रकाशित लेख में मोदी जी द्वारा  श्रीराम कॉलेज ऑफ़ कॉमर्स में दिए गए भाषण को उद्घृत किया है जिसके अनुसार मोदी जी ने भारत के सन्दर्भ में अपनी कल्पना का एक अंश देश के समक्ष रखा | 

उन्होंने कहा कि, "हमारी राजनैतिक बिरादरी चुनावों को केवल न्यू ऐज वोटर के रूप में देखती है  पर में इसे भिन्न रूप में देखता  हूँ  मेरे लिए युवा भारत न्यू ऐज पावर है | " 

नए भारत की संकल्पना में मोदी जी का मानवाधिकारों पर जोर

मोदी के मन में मानव अधिकारों की गहरी पैठ 

मानव अधिकारों को न जानने और समझने वाले सभी वियक्तियों को यह जानकार अचरज होगा कि नरेंद्र मोदी के न्यू इंडिया की आधारशिला भी मानव अधिकार सिद्धांतों की बुनियाद पर स्थापित है | 

नरेंद्र मोदी ने अत्यधिक सूजबूझ के साथ अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त और सार्वभौमिक रूप से स्वीकार्य मानवाधिकारों के सिद्धांतों का सम्मान करते हुए न्यू इंडिया की संकल्पना बनाने और उसको मूर्त रूप देने के लिए उनका उपयोग किया है | 

उदाहरण के तौर पर स्वछता अभियान जिसका स्पष्ट प्रभाव सम्पूर्ण भारत में दृष्टिगोचर होता है | जो सयुक्त राष्ट्र के मिलेनियम डेवलपमेंट गोल्स का हिस्सा है जिसे नरेंद्र मोदी ने एक  बड़े राष्ट्रीय आंदोलन के रूप में बदल दिया और  उसे समाज का अभिन्न अंग बना दिया | 

यद्यपि ऐसा नहीं है कि पूर्व सरकारों ने स्वछता पर ध्यान नहीं दिया  लेकिन उस दौर में स्वछता अभियान समाज का अभिन्न अंग नही बन सका तथा वह सिर्फ दीवारों पर पोस्टरों के रूप में  स्वछता सम्बन्धी नारों तक सीमित रह गया |

मोदी और स्वछता संबंधी मिलेनियम डेवलपमेंट गोल

कहना न होगा कि नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में  गहन स्वछता अभियान चलाकर भारत में  मिलेनियम डेवलपमेंट गोल को पूरा करने के लिए गंभीरता से प्रयास किये गए | 

मिलेनियम डेवलपमेंट गोल कुछ और न होकर मानव अधिकारों की एक बृहद श्रंखला है | जिन्हे  विश्वभर में सयुक्त राष्ट्र के सदस्य  देशों  द्वारा  प्राथमिकता के आधार पर उनकी  सरकारों द्वारा पूरा किया जाना अंतराष्ट्रीय समुदाय के प्रति प्रतिबद्धता को प्रदर्शित करता है | 

सतत विकास बनाम खंडित विकास

सतत विकास बनाम खंडित विकास एकदम विपरीत अवधारणाएं हैं | ब्रूटलैंड के अनुसार, "सतत विकास ऐसा विकास है जो भविष्य की पीढ़ी की समस्त आवश्यकताओं को पूरा करते हुए किसी भी प्रकार का समझौता किये बिना बर्तमान पीढ़ी की आवश्यकताओं की पूर्ति करता है |" 

खंडित विकास की परिकल्पना के मुखर विरोधी रहे पंडित दीनदयाल उपाध्याय की तरह नरेंद्र मोदी भी खंडित विकास की अवधारणा के विरोधी हैं | इसका पता इस बात से लगता है कि नरेंद्र मोदी"सबका साथ सबका विकास " नारे के समर्थक रहे हैं और अक्सर उस पर बल देते आये है |नरेंद्र मोदी के अनुसार "सबका साथ सबका विकास" यह सिर्फ नारा नहीं है | हमारी कोशिश  है इसे जीने की | 

मोदी सरकार की मानवाधिकार संवर्धक कुछ नीतियाँ 

मोदी सरकार द्वारा जनधन योजना प्रारम्भ करने के बाद से अभी तक 52.13 करोड़ लाभार्थी हो चुके हैं | 07 मई 2024 तक प्रधान मंत्री उज्ज्वला योजना के अंतर्गत जारी किये गए कुल घरेलु गैस सिलिंडर के कनेक्शन 103,251,279 हैं | केंद्र सरकार द्वारा शुरू की गई प्रधान मंत्री निःशुल्क शौचालय योजना 2024 का उद्देश्य जरूरतमंद परिवारों को मुफ्त शौचालय उपलब्ध कराना है। 

2 अक्टूबर 2014 को शरू किये गए स्वच्छ भारत मिशन ग्रामीण  का लक्ष्य 2 अक्टूबर 2019 तक सभी ग्रामीण घरों में शौचालय का निर्माण करना था ,जिसे २०२४ तक तक बढ़ाया गया है | देश भर में 10.9 करोड़ से अधिक व्यक्तिगत घरेलू  शौचालय बनाये गए है |  

यह भारत को स्वच्छ और स्वस्थ रखने का विश्व का सबसे बड़ा अभियान रहा है |उपरोक्त उदहारण प्रत्यछ रूप से मानव अधिकारों के संवर्धन और संरक्षण  से सीधा सरोकार रखते है | यह सर्व विदित है कि  मानव अधिकार अविभाज्य हैं ,एक दूसरे पर निर्भर हैं तथा वे पारस्परिक तौर पर अंतर्संबन्धित हैं | अतः नए भारत के निर्माण और मानव अधिकारों में सीधा सम्बन्ध है |   

 निष्कर्ष :

नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में संचालित नीतियों से आभास होता है कि वे पंडित दीनदयाल के समग्र विकास के सिद्धांतों की दिशा में कार्य कर रहे है और उनके सपनो को नयी दिशा प्रदान करते हुए उन्हें संकल्पना से सिद्धि में  परिवर्तित करने हेतु प्रयासरत  हैं | 

 सन्दर्भ  ग्रन्थ 

१. पी ऍम मोदी स्पीच एंड दी यूनाइटेड नेशंस सस्टेनेबल समिति ,सितम्बर 25, 2015 | 

२. डॉ ऍम सी  त्रिपाठी ,एनवायर्नमेंटल  लॉ,सेंट्रल लॉ पब्लिकेशन  अल्लाहाबाद | 

३. ब्रजेश बाबू ,ह्यूमन राइट्स एंड सस्टेनेबल डेवलपमेंट ,ग्लोबल पब्लिकेशन ,नै दिल्ली | 

४. प्रोटेक्शन ऑफ़ ह्यूमन राइट् एक्ट , 1993| 

५. मानव अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा 1948 | 

६. राष्ट्रीय सहारा ,अप्रैल 2017 | 

७. मन की बात कार्यक्रम 30 मार्च 2017 | 

८. एचटीटीपी ://पी ऍम जे डी वाई.जीओवीटी इन /अच् आई -होम  

९. प्रधान मंत्री उज्ज्वला योजना ,पेट्रोलियम अवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय ,भारत सरकार | 




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