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भूमिका
“परिवार” – सामान्य रूप में एक ऐसा शब्द है, जो संवेदनाओं से भरा हुया है तथा परिवार का सदस्य होने के नाते हर सदस्य को प्यार, अपनापन और सुरक्षा का एहसास कराता है।
लेकिन क्या हर इंसान इतना खुसनसीब है कि उसे यह अधिकार मिल पाए ? क्या नैतिक और कानूनी तौर पर हर इंसान को बिना किसी विभेद के अपनी इच्छा से विवाह करने तथा परिवार बनाने की आज़ादी है? दुर्भाग्यवश, भारत में LGBTQ+ समुदाय के सदस्य आज भी इन मूलभूत मानव अधिकारों को पाने के लिए संघर्ष करने के लिए विवश हैं | वे आज भी विवाह के मूलभूत महत्वपूर्ण अधिकार से वंचित है।इस संबन्ध मे उन्हे न्यायालय से भी कोइ उपचार नही मिला है |
दीपिका सिंह बनाम केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (2022 आईएनएससी 834) में, यह माना गया कि पारिवारिक संबंध घरेलू, अविवाहित भागीदारी या विचित्र संबंधों का रूप ले सकते हैं और जो परिवार पारंपरिक परिवारों से अलग हैं, उन्हें नुकसानदेह स्थिति में नहीं रखा जा सकता। कहना न होगा "परिवार" शब्द को विस्तृत अर्थ में समझा जाना चाहिए।
इस लेख के माध्यम से आज हम बात करेंगे एक ऐसे मुद्दे की, जो केवल नैतिकता, कानून या संविधान से जुड़ा नहीं है, बल्कि प्यार ,संवेदनाओं और समानता के मूलभूत मूल्यों से भी गहराई से जुड़ा हुआ है – LGBTQ+ समुदाय का विवाह करने तथा परिवार बनाने का मानव अधिकार।
LGBTQ+ समुदाय का संघर्ष: पहचान से अधिकार तक
LGBTQ+ समुदाय – यानी लेस्बियन, गे, बाइसेक्शुअल, ट्रांसजेंडर और क्वीयर व्यक्तियों का समूह सम्पूर्ण विश्व में ही नहीं बल्कि भारत में भी पिछले कई दशकों से अपनी अलग पहचान और अधिकारों के लिए संघर्ष करता आया है। इनकी अलग पहचान के मुद्दे का भी एक इतिहास रहा है |
भारत में ट्रांसजेंडर्स के अधिकारों को संरक्षित करने के लिए क़ानून बना कर उनकी अलग पहचान को भी सम्मान दिया गया तथा अन्य अधिकारों को भी तवज्जो दी गई | ये कानून है - ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019| इसका उद्देश्य ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के मान्वाधिकारो की रक्षा करना है लेकिन यहकानून भी उनके विवाह पर शान्त है|
LGBTQ+ समुदाय के पक्ष में 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने नवतेज सिंह जौहर बनाम भारत संघ के ऐतिहासिक फैसले द्वारा आई पी सी की धारा 377 को रद्द कर समलैंगिक संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया। यह एक बड़ी जीत थी – लेकिन यह सिर्फ एक क़ानूनी कदम था |
क्योकि आज भी भारत में जब एक समलैंगिक जोड़ा विवाह की बात करता है या परिवार बनाने की बात करता है या एक अन्य व्यक्ति के साथ जीवन बिताने की बात करता है, या बच्चा गोद लेने की बात करता है, तो उन्हें कानूनी और नैतिक दोनों ही स्तर पर समाज में भेदभाव का सामना करना पड़ता है। समाज और सिस्टम आज भी इस समुदाय के विवाह और परिवार बनाने के अधिकार के विरोध में खड़ा हुया है |
प्रश्न उठता है कि क्या दो परुष अपना विवाह नहीं कर सकते और क्या एक महिला दूसरी महिला से मिलकर विवाह नहीं कर सकती हैं तथा वे माता -पिता नहीं बन सकतीं ? क्या इस समुदाय के दो व्यक्ति, जो एक-दूसरे से आपस में गहरा प्रेम करते हैं, एक बच्चे को उतना ही स्नेह और सुरक्षा नहीं दे सकते जितना एक विषमलैंगिक जोड़ा देता है ?
यह सामाजिक, मनोवैज्ञानिक और विधिक रूप से अत्यधिक जटिल विषय है लेकिन समाधान तो समय की आवश्यकता है | किसी भी व्यक्ति को प्रद्दत उसके मानव अधिकारों से विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के बिना वंचित नहीं किया जा सकता है | सभी व्यक्तियों को, चाहे उनकी यौन अभिविन्यास और लिंग पहचान कुछ भी हो, मानवाधिकारों के सार्वभौमिक आनंद का अधिकार है
परिवार बनाने का अधिकार: केवल विषमलैंगिकों का विशेषाधिकार?
भारत का संविधान सभी नागरिकों को समानता, स्वतंत्रता और गरिमा के साथ जीने का अधिकार देता है। इसके साथ साथ अन्तराष्ट्रिय मानव अधिकारों के तहत भी दो प्रोढ़ लोगो को उनकी इच्छा के अनुसार विवाह तथा परिवार बनाने का अधिकार मिला हुया है लेकिन जब LGBTQ+ व्यक्तियों की बात आती है, तो विवाह और 'परिवार' जैसी संस्थाएं केवल विषमलिंगी संबंधों (पुरुष और महिला के रिश्ते) तक ही सीमित रह जाती हैं। यह गंभीर बिडम्बना का विषय है |
क़ानूनी सवाल उठते हैं:
क्या LGBTQ+ जोड़ों को विवाह का अधिकार होना चाहिए?
क्या उन्हें परिवार बनाने का अधिकार होना चाहिए ?
क्या वे संतान गोद ले सकते हैं ?
क्या उन्हें परिवार का दर्जा मिल सकता है?
सही मायने में इन सवालों का उत्तर स्पष्ट है – हाँ, क्योंकि यह अधिकार "इंसान" होने के नाते मिलना चाहिए, न कि केवल किसी विशेष लैंगिक या यौन पहचान के आधार पर।यौन पहचान के आधार पर आज भी गंभीर भेदभाव का अस्तित्व मानव अधिकारों का गंभीर उलंघन है |
केंद्र सरकार और सर्वोच्च न्यायालय की भूमिका
2023 में सर्वोच्च न्यायालय की विधि व्यवस्था सुप्रियो @ सुप्रिया चक्रवर्ती बनाम भारत संघ (2023 INSC 920) में माननीय न्यायालय ने भले ही समलैंगिक जोड़ों के बीच विवाह को वैध नहीं बनाया हो, लेकिन यह स्पष्ट किया कि वे बहुत अच्छी तरह से एक परिवार बना सकते हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने से इनकार कर दिया, यह कहते हुए कि यह संसद का विषय है। हालांकि कोर्ट ने यह भी कहा कि LGBTQ+ व्यक्तियों को एक साथ रहने और जीवनसाथी चुनने का अधिकार है, और उन्हें भेदभाव से बचाया जाना चाहिए।
मद्रास उच्च न्यायालय की पीठ ने दिनांक: 22.05.2025 को एम.ए. बनाम पुलिस अधीक्षक, वेल्लोर एवम अन्य में महत्वपूर्ण निर्णय सुनाया | जिसमे LGBTQ+ समुदाय को परिवार बनाने का अधिकार दिया गया है जो कि बहुत ही प्रगतिशील नर्णय है |
माननीय न्यायमूर्ति जी.आर.स्वामीनाथन और माननीय न्यायमूर्ति वी.लक्ष्मीनारायणन की पीठ ने ये फैसला सुनाया |
इस मामले के किरदार समलैंगिक सम्बन्ध रखने वाली दो लड़कियां है |इस मामले में याचिकाकर्ता लड़की से समलैंगिक सम्बन्ध रखने वाली लड़की को उसकी परिवार ने उसकी इच्छा के विरुद्ध अवैध हिरासत में रखा हुया था|
यह बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत दायर की गई थी जिसमे याचिकाकर्ता द्वारा पिता की अवैध हिरासत से उसकी 25 वर्षीय बेटी को स्वतंत्र करने की मांग की गई थी | क्यों कि उसका कहना था कि बंदी के पिता ने उसे उसकी इच्छा के विरुद्ध उसे हिरासत में रखा हुया था |
इसके बाद पुलिस द्वारा न्यायालय के समक्ष बंदी और उसकी माँ को पेश किया गया | न्यायालय ने उन दोनों से विस्तृत बातचीत की। बंदी की माँ न्यायालय में ही रो पड़ी तथा उसने अनुरोध किया कि उसे अपनी बेटी को वापस घर ले जाने की अनुमति दी जाए।
उसके अनुसार, रिट याचिकाकर्ता ने उसकी बेटी को गुमराह किया है। उसने यह भी आरोप लगाया कि उसकी बेटी नशे की आदी है और उसने उसकी इस हालत के लिए याचिकाकर्ता को पूरी तरह से दोषी ठहराया। माँ ने कहा कि उसकी बेटी को काउंसलिंग और पुनर्वास की आवश्यकता है|
पीठ ने अपने निर्णय में स्पष्ट किया कि बंदी से बातचीत करने से पहले, उनके द्वारा माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा देवू जी नायर बनाम केरल राज्य (2024 लाइवलॉ (एससी) 249 में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिकाओं या पुलिस सुरक्षा के लिए याचिकाओं से निपटने में अदालतों के लिए जारी दिशा-निर्देशों का ध्यान रखा गया है |
माननीय न्यायालय द्वारा उपरोक्त सिद्धांतों को ध्यान में रखते हुए बंदी से बातचीत की। न्यायालय ने कहा की हमारा एकमात्र प्रयास उसकी वास्तविक इच्छाओं और उसके द्वारा चुने गए विकल्प का पता लगाना था। बंदी की आयु लगभग 25 वर्ष है इसलिए वह बालिग़ है तथा वह शिक्षित है। वह बिल्कुल सामान्य दिखने वाली युवती लग रही थी। उस पर किसी भी तरह की लत का आरोप लगाना अनुचित होगा।
न्यायालय द्वारा पूछे गए एक विशिष्ट प्रश्न पर, बंदी ने उत्तर दिया कि वह समलैंगिक है और रिट याचिकाकर्ता के साथ संबंध में है। उसने कहा कि वह अपनी समलैंगिक सहपाठी के साथ जाना चाहती है। उसने इस बात की पुष्टि की कि उसे उसके पैतृक परिवार द्वारा उसकी इच्छा के विरुद्ध हिरासत में रखा गया है।
न्यायालय को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि हिरासत में लिए गए या लापता व्यक्ति की स्वतंत्र इच्छा का पता लगाने में कानून का पालन किया जाए| यदि हिरासत में लिया गया या लापता व्यक्ति कथित बंदी या पैतृक परिवार के पास वापस न जाने की इच्छा व्यक्त करता है, तो उस व्यक्ति को बिना किसी और देरी के तुरंत रिहा किया जाना चाहिए|
न्यायालय ने कहा कि चूँकि हमने खुद को संतुष्ट कर लिया है कि बंदी याचिकाकर्ता के साथ रहना चाहती है और उसे उसकी इच्छा के विरुद्ध हिरासत में रखा गया है, इसलिए हम इस बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका को अनुमति देते हैं और उसे स्वतंत्र करते हैं। हम बंदी के पैतृक परिवार के सदस्यों को उसकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता में हस्तक्षेप करने से भी रोकते हैं। न्यायालय ने यह निर्णय योग्यकर्ता सिद्धांत, 2006 को दृष्टिगत रख ते हुए सुनाया |
इस निर्णय ने समुदाय में निराशा का भाव ज़रूर पैदा किया, लेकिन इसने बातचीत के नए रास्ते भी खोले है।
विधि व्यवस्था शक्ति वाहिनी बनाम भारत संघ, (2018) 7 एससीसी 192 में माननीय सर्वोच्च न्यायालय की तीन न्यायाधीशों की पीठ ने माना कि पसंद का दावा स्वतंत्रता और गरिमा का एक अविभाज्य पहलू है। एक अन्य महत्वपूर्ण विधि व्यवस्था शफीन जहान बनाम अशोकन केएम (2018) 16 एससीसी 368 में यह स्थापित किया गया कि जीवनसाथी का चुनाव, चाहे विवाह के भीतर हो या बाहर, प्रत्येक व्यक्ति के विशेष अधिकार क्षेत्र में होता है।
सरकार,न्यायालय और समाज सभी को यह समझने की ज़रूरत है कि परिवार केवल सामाजिक संस्थान या खून के रिश्ते पर आधारित नहीं है – बल्कि प्यार, आपसी विश्वास और देखभाल पर आधारित है।
परिवार का असली मतलब: प्यार और देखभाल
भारत में आज भी “परिवार” शब्द का अर्थ पति पत्नी, बच्चे और वुजूर्ग माता-पिता के रूप में देखा जाता है। लेकिन आज समय तेजी से बदल रहा है।
कई देशों में आज LGBTQ+ लोग भी बच्चों का पालना पोषण बड़ी गंभीरता और सिद्दत से कर रहे हैं | भारत में भी अनेक समलैंगिक जोड़े एक सुरक्षित और स्थिर घरेलू जीवन जीना चाहते हैं और बच्चों को गोद लेकर उनका अन्य लोगों की तरह पालन पोषण करना चाहते हैं । ये सभी सामान्य मानवीय इच्छाएं हैं – जो किसी भी इंसान को हो सकती हैं। एक समलैंगिक दंपति जब किसी बच्चे को गोद लेता है, तो वह बच्चा भी उतनी ही खुशियाँ और परवरिश पाता है जितना किसी अन्य परिवार में। अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया जैसे कई देशों में समलैंगिक विवाह और परिवार बनाने के अधिकार को विधिक मान्यता प्राप्त है और वहां LGBTQ+ परिवार विवाह कर या परिवार बनाकर पूरी गरिमा से जीवन जी रहे हैं।
भारत में समाज की मानसिकता: बदलाव की ज़रूरत
भारत में LGBTQ+ समुदाय आज भी तिरस्कार, उपहास और हिंसा का सामना करने को विवश है। अगर कोई लड़का लड़के से प्रेम करता है, या कोई लड़की लड़की से, तो समाज में उसे “अप्राकृतिक कृत्य", “मानसिक बीमारी” या “पश्चिमी सोच” का नतीजा बताया जाता है |
क्या यह सोच ग़लत है ?
बिलकुल यह सोच पूरी तरह से गलत है क्यों कि प्रेम, सम्मान और परिवार की भावना किसी जाती, धर्म,पंथ या लैंगिक पहचान की मोहताज नहीं होती है |
हमारे समाज में एक तरफ वसुदैव कुटुंबकम के अत्यधिक पुराने और विशुद्ध भारतीय सिद्धांत की दुहाई दी जाती है और दूसरी तरफ LGBTQ+ समुदाय को उनके अधिकारों से वंचित करने में भी कोई गुरेज नहीं कर रहे हैं | यह स्तिथि गंभीर रूप से विचारणीय है |
समाज में बदलाव की भावना तभी विकसित होगी जब हम सभी मिलकर आने वाली पीढ़ी को सिखाएँगे कि LGBTQ+ भी उतने ही सामान्य हैं, जितने कि हम। जब हम स्कूलों, फिल्मों, सीरियल्स और न्यूज़ आदि हर जगह पर उन्हें सही प्रतिनिधित्व देंगे तो उनकी साथ लैंगिक पहचान के कारण होने वाले अपराध बोध को आवश्यक रूप से समाप्त किया जा सकेगा | अब जरूरत है “परिवार” शब्द को लैंगिक सीमाओं से मुक्त करने की |
मीडिया, फिल्म और साहित्य की भूमिका
पिछले एक दशक में सिनेमा और वेब सीरीज़ जैसे “मेड इन हैवेन,” “सुभ मंगल ज्यादा सावधान,” “अलीगढ़,” और “रॉकेटमन” ने LGBTQ+ समुदाय के मुद्दों को खुलकर दिखाया है।समाज में यह एक सकारात्मक बदलाव का संकेत है।
सर्व विदित है कि मीडिया समाज का आईना होता है तथा लोकतंत्र का चौथा स्थम्ब भी समझा जाता है। जब मीडिया की कहानीयां LGBTQ+ समुदाय के लोगों की सच्चाई दिखाएगी, जब दर्शक इन पात्रों को सिर्फ “गे या “ट्रांसजेंडर” के रूप में नहीं, बल्कि मानव अधिकार और इंसान के रूप में देखेंगे – तभी सच्चे बदलाव की उम्मीद की जा सकती है |
आगे का रास्ता: बदलाव की ओर एक कदम
अब समय आ गया है कि भारत LGBTQ+ समुदाय को केवल सहानुभूति नहीं, बल्कि समान अधिकार उपलब्ध कराए।
आवश्यक कदम:
सरकार द्वारा समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता दी जाए|
LGBTQ+ जोड़ों को बच्चा गोद लेने और परिवार बनाने का अधिकार मिले।
स्कूलों और कॉलेजों में LGBTQ+ समुदाय और समाज में जागरूकता बढ़ाई जाए।
सरकारी नौकरियों में प्रतिनिधत्व दिया जाए|
समाज में संवेदनशीलता लाने के लिए मीडिया और सरकारी प्रचार अभियान चलाए जाएं।
यह एक कठिन यात्रा ज़रूर है, लेकिन असंभव नहीं। जब समाज प्रेम को सम्मान देना सीख जाएगा, तथा लैंगिक भेदभाव को तिलांजलि दे देगा , तो हर इंसान को अपना "विवाह" तथा “परिवार” बनाने की आज़ादी होगी–चाहे वह किसी भी लैंगिक पहचान से सम्बन्ध क्यों न रखता हो|
निष्कर्ष: समानता की ओर एक कदम
LGBTQ+ समुदाय को परिवार बनाने का अधिकार केवल एक क़ानूनी विषय नहीं है – यह मानवता, प्रेम और सामाजिक न्याय तथा मानव अधिकार का विषय है।
हर किसी को यह हक़ मिलना चाहिए कि वह अपने जीवनसाथी के साथ घर बसा सके, बच्चे पाल सके, और समाज में सम्मान से जी सके।
हमें यह समझना होगा कि प्रेम प्राकृतिक है तथा भेदभाव के लिए कोई स्थान नहीं।
अब समय आ गया है कि हम अपने सोच के दायरे को बड़ा करें और एक समावेशी, दयालु और मानवाधिकार केंद्रित समाज की नींव रखें।
FAQ :
प्रश्न :LGBTQ+ समुदाय के कानूनी अधिकार क्या हैं ?
उत्तर : सामान्य लोगों की तरह LGBTQ+ समुदाय को भी सभी अधिकार प्राप्त हैं कुछ विवादित विषयों को छोड़ कर |
प्रश्न :क्या अन्य लोगों की तरह LGBTQ+ समुदाय के लोगों को भी सामान मानव अधिकार प्राप्त हैं ?
उत्तर :हाँ , कुछ विवादित विषयों को छोड़ कर |
प्रश्न :मैं अपनी या परिवार के अधिकारों के बारे में जानकारी कहा से लू ?
उत्तर : LGBTQ+ समुदाय के लिए कार्यरत गैर सरकारी संघठनो(NGO ) से संपर्क साध कर |
प्रश्न :मैं अपने लिए एक अच्छा वकील कैसे ढूँढू ?
उत्तर : LGBTQ+ समुदाय के लिए काम करने वाले वकील से संपर्क साधें |
प्रश्न :भारत में समलैंगिक जोड़ों का विवाह करना कानूनी है?
उत्तर :नहीं |
प्रश्न : क्या समान लिंग वाले जोड़े सामान्य कानून के तहत विवाह कर सकते हैं?
उत्तर :नहीं |
प्रश्न : क्या समलैंगिक जोड़ा लाइव इन रिलेशन में रह सकता है ?
उत्तर : रह सकता है |
प्रश्न :मैं और मेरा पार्टनर सचमुच शादी करना चाहते हैं! हम क्या कर सकते हैं?
उत्तर : लाइव इन रिलेशन में रह सकते हैं |
प्रश्न :मैं एक अच्छे समलैंगिक रिश्ते में हूँ, लेकिन मैं शादी नहीं करना चाहता। आपके पास मेरे लिए क्या है?
उत्तर : आप लाइव इन रिलेशन में रह सकते है |