शनिवार, 5 अक्टूबर 2024

मानव अधिकारों की नए भारत के निर्माण में भूमिका :मुद्दे ,चुनौतियाँ और समाधान

Contribution of Human Rights in Building a Naya Bharat
प्रस्तावना 

नए भारत की संकल्पना को सिद्धि में बदलने के लिए मानव अधिकारों की भूमिका अत्यधिक महत्वपूर्ण है | वर्तमान में मानव अधिकार किसी भी देश की प्रगति और विकास के लिए आवश्यक हैं | जिन देशों में मानव अधिकार का स्तर अच्छा है उनमे निवास करने वाले वियक्तियों का जीवन स्तर भी उच्च स्तरीय है | 

मानव अधिकारों की अवधारणा 

मानव अधिकारों की अवधारणा उतनी ही पुरानी है जितनी कि मानव सभ्यता का विकास | मानव अधिकारों की अवधारणा की ऐतिहासिक जड़ें प्राकृतिक अधिकारों में दृटिगोचर होती हैं. | इस प्रकार मानव अधिकार वे अधिकार है जो किसी वियक्ति को उसके मानव होने के नाते स्वतः ही  प्राप्त होते हैं |मानव अधिकार वियक्ति को चहुमुखी विकास का अवसर उपलब्ध कराते है |  मानव अधिकार सार्वभौमिक ,अविभाज्य और एक दूसरे पर निर्भर होते है | सरल भाषा में मानव अधिकार वे हैं जो वियक्ति को मानवीय रूप और गरिमा प्रदान करते हैं | किसी एक मानव अधिकार का उल्लघन वियक्ति और समूह के दूसरे अन्य मानव अधिकारों का प्रत्यछ और अप्रत्यछ रूप से प्रभावित कर सकता है | उसी प्रकार किसी एक अधिकार के संवर्धन और संरक्षण से अन्य अधिकारों का स्वतः ही संवर्धन और संरक्षण संभव है |उदाहरण के रूप में वियक्ति को शिक्षा का लाभ मिलने पर अन्य अधिकारों का स्वतः  ही संवर्धन और संरक्षण हो जाता है  अर्थात मानव अधिकार एक दूसरे पर अंतर्निर्भर हैं | 

मानव अधिकार की भारतीय परिभाषा 

भारत में मानव अधिकारों के संरक्षण एवं संवर्धन के लिए बने  मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम ,१९९३ की धरा -२(द ) के अनुसार , " मानव अधिकारों से प्राण ,स्वतंत्रता ,समानता और वियक्ति की गरिमा से सम्बंधित ऐसे अधिकार अभिप्रेत हैं जो संविधान द्वारा प्रत्याभूत किये गए हैं या अंतर्राष्ट्रीय प्रसंविदाओं में शामिल हैं और भारत के न्यायालयों द्वारा प्रवर्तनीय हैं |" 

मानव अधिकारों की प्रकृति 

१७१ देशो और सैकड़ो गैर सरकारी संस्थाओं के सम्मलेन के बाद जारी की गयी विएना घोषणा में स्पष्ट शब्दों में कहा गया कि , "सभी मानव अधिकार सार्वजनीन ,अविभाज्य, अंतर्सम्बन्ध और अंतर्निर्भर हैं | " साथ ही स्पष्ट शब्दों में यह भी कहा गया है कि नागरिक ,राजनैतिक,सामाजिक और सांस्कृतिक  सभी प्रकार के व्यक्तिगत  अधिकारों तथा राज्यों और राज्यों के समूहों  के अंतर्गत सामूहिक अधिकारों का एक मात्र जामिन लोकतंत्र है | विश्व भर में मानव अधिकारों के विकास और क्रियान्वयन  के साथ ही भातीय प्रजातंत्र ने २१ वी सदी में प्रवेश किया है | भारत में भारतीयों के जीवन में आये तमाम सकारात्मक बदलावों को दृष्टिगोचर कर यह स्पष्ट रूप से कहा जा सकता है कि  वर्तमान में मानवाधिकारों  के बिना नए भारत की परिकल्पना और वास्तविकता में उसका रूपांतरण बेमानी होगा | 

भारत में मानवाधिकारों का उपयोग तथा क्रियान्वन 

नए भारत एवम समग्र विकास की भारतीय अवधारणाओं को मूर्त रूप में बदलने के लिए सयुक्त राष्ट्र सदस्य  के रूप में भारत के पास मानव अधिकार सिद्धांतों के रूप में सशक्त औजार लम्बे समय से उपलब्ध रहा है | सयुंक्त राष्ट्र अधिकार पत्र की स्वीकृति के बाद से अब तक करीब ७० वर्ष  गुजरने के बाबजूद भारत में मानव अधिकारों पर अमल का इतिहास निराशाजनक रहा है | मानव अधिकारों के पूर्ण कार्यान्वयन के लिए उनका ज्ञान और सरोकार पैदा करने की जितनी आवस्यकता आज है उतनी कभी नहीं थी | इसका अर्थ यह नहीं लगाया जाना चाहिए कि भारत में मानव अधिकारों के संवर्धन की दिशा में कोई कदम ही नहीं उठाये गए है | 
विश्वभर में मानवाधिकारों के संरक्षण अवं संवर्धन के क्षेत्र में प्राप्त प्रमुख उपलब्धि सयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा स्वीकृत की गयी मानव अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा है जिसे १० दिसम्बर ,१९४८ को स्वीकृत व् अंगीकृत किया गया था | इस घोषणा पत्र  द्वारा स्पष्ट किया गया है कि , "सभी वियक्ति जन्म से स्वतन्त्र  हैं और अपनी गरिमा और अधिकारों के मामले में बराबर है |" इसमें किसी भी आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जाएगा | विश्वभर में इस घोषणा के महत्त्व को इस आधार पर समझा जा सकता है कि अब तक इस दस्तावेज का ५०० से अधिक भाषाओं में अनुवाद हो चुका है | भारत भी उक्त घोषणा पत्र का सदस्य देश है | 
नए भारत के निर्माण से जुड़े अनेक मुद्दे और और चिंताए विद्द्मान रहे है | बाबजूद इसके करीब ७० वर्षों तक भारतीय संसद द्वारा अपने नागरिकों के हितों में अंतराष्ट्रीय मानव अधिकार सिद्धांतों का उतना उपयोग नहीं किया गया है जितना किया जाना चाहिए था | 

नए भारत की संकल्पना 

चौहदवीं लोकसभा चुनाव में जीत के बाद भारत के प्रधान मंत्री बने नरेंद्र मोदी के नए भारत के निर्माण की संकल्पना दरअसल कुछ और नहीं बल्कि भारतीय जनता पार्टी के मूल संगठन जनसंघ के नेता और उसकी विचार धारा को दार्शनिक आधार देने वाले पंडित दीनदयाल उपाध्याय के सपनो को आगे बढ़ाने की यात्रा है | प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा वर्ष २०१५ में सयुंक्त राष्ट्र संघ सतत विकास समिति के समक्ष सतत विकास विषय पर सम्बोधन किया | हम सबका साझा संकल्प है कि विश्व शांति पूर्ण हो ,व्यवस्था न्याय पूर्ण हो, विकास सस्टेनेबल हो , तो गरीबी के रहते यह कभी भी संभव नहीं होगा | इस लिए गरीबी को मिटाना हम सभी का पवित्र दायित्व है |  

पंडित दीन दयाल उपाध्याय का दर्शन 

पंडित दीन दयाल उपाध्याय का विकास के सन्दर्भ में विचार है कि विकास में सरकार द्वारा अंतिम पायदान पर स्तिथ वियक्ति का भी ध्यान रखा जाना चाहिए तथा जिससे उसकी मूलभूत आवश्यकताओं की भी पूर्ती हो सके |परिणामस्वरूप एक समरसता वाला समाज तैयार हो सके| पंडित दीन दयाल उपाध्याय के दर्शन को एकात्म मानव दर्शन कहा जाता है और इस एकात्म मानव दर्शन में समग्रता के व्यापक दर्शन होते हैं |
पंडित दीन दयाल उपाध्याय ने मानव की पहली कड़ी यानी व्यक्ति से लेकर सर्वोच्च स्तर यानी समाज तक गहरा चिंत्तन किया | पंडित दीन दयाल उपाध्याय ने समाज के किसी वंचित वर्ग की चिंताएं करने की बजाय समाज के चिंतन पर सर्वाधिक बल दिया | वे कभी यह नहीं कहते थे कि पिछड़े वर्ग का विकास किया जाय बल्कि उनका जोर रहता था कि समस्त समाज का विकास किया जाय,अर्थात समस्त समाज के विकास की चिंत्ता करते हुए संतुलित विकास का प्रबल समर्थन करते थे| 
पंडित दीन दयाल उपाध्याय की परिकल्पना थी कि पिछड़ा वर्ग समाज का ही एक अंग है | इसलिए समाज का विकास होने पर पिछड़े वर्ग का विकास स्वतः हो जाएगा | इस लिए सम्पूर्ण समाज के विकास पर बल दिया जाना चाहिए | वे मशीन आधारित विकास के विरोधी थे | वे हर व्यक्ति के हाथ में काम चाहते थे तथा वे अर्थव्यवस्था के  विकेन्द्रीयकरण के प्रबल समर्थक थे | 
नए भारत की परिकल्पना अनायास पैदा हुया विचार न होकर लम्बे समय में विकसित एक जटिल परिकल्पना है और समय के साथ -साथ इसके आयामों में भी विस्तार होता रहा है | 
इस एकात्मवाद का सैद्धांतिक आधार पंडित दीन दयाल के नए भारत की परिकल्पना को मूर्त रूप में परिवर्तित करने के लिए मूलभूत और ससक्त आधार उपलब्ध करता है | नए भारत की सैद्धांतिक  अवधारणा  का बीजारोपण  भारत के स्वतंत्रता आंदोलन के प्रारम्भ के समय से ही हो चुका था | लेकिन समय गुजरने के साथ साथ नए भारत की अवधारणा के विभिन्न आयाम देश की आवाम के सामने आते रहे हैं | अलग-अलग कालखंडों में नए भारत के निर्माण की अवधारणा में निरंतर बदलाव होता रहा है |
भारत के पांच राज्यों के विधान सभा चुनाव  परिणाम के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भाजपा के दिल्ली स्तिथि केंद्रीय कार्यालय में न्यू इंडिया पर नई बहस छेड़ कर भारतीयों को आश्चर्य में डाल  दिया | अनेक लोगों को न्यू  इंडिया का अर्थ ही समझ में नहीं आया | मोदी जी ने कहा कि, "न्यू इंडिया सरकार से नहीं बल्कि १२५ करोड़ भारतवासियों की छमताओं  और कुशलताओं  से उभरा है |"
जाती और धर्म आधारित राजनितिक समाज में विखंडन और वैमनस्य पैदा करती है और समाज में विखंडन और वैमनस्य सम्पूर्ण समाज के विकास में गंभीर बाधाएं पैदा करती हैं | जिससे समाज का समग्र विकास  कतई संभव नहीं है | पंडित दीन  दयाल  समाज को विखंडित करने वाली राजनीति के प्रबल विरोधी थे | उन्होंने महसूस किया कि हमें सभी राजनैतिक मतभेदों को दूर करके एक साथ मिलकर देश का समग्र विकास करना चाहिए |      
पंडित दीनदयाल की विशेषता रही है कि उनके द्वारा सदैव ही समग्र विकास की बात की जाती रही है न की खंडित विकास की | खंडित विकास का अर्थ अनेक सन्दर्भों में असंतुलित विकास से जोड़ा जाता है | 
हम आने वाली भविष्य  की  पीडीओं  को दुनिया में क्या सौप कर जाना चाहते  हैं ? यह वर्तमान पीड़ी पर ही निर्भर करेगा कि सिर्फ जीवन यापन करना चाहते है  या गरिमा के साथ जीवन जीना कहते है | यही भविष्य की पीडियों के बारे में सोचना पड़ेगा कि हम उन्हें  सिर्फ जीने के लिए छोड़ कर जाना चाहते है जिसमे गुलामी,संघर्ष, अत्याचार ,अमानवीय व्यवहार, भुकमरी,वर्ग संघर्ष,जातीय और धार्मिक संघर्ष का बोलवाला हो या गरिमामयी जीवन  जीने के लिए एक सुरक्षित व्  स्थायित्व  पूर्ण वातावरण देना कहते है | 
भारत अब दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था  बनने के कगार पर है बाबजूद इसके सार्वजनिक  स्वास्थय ,शिक्षा ,आवास ,भोजन और पानी जैसे मामले में देश दुनिया के अनेक  देशों से भी पीछे हैं |  इन मानकों पर तेजी से आगे बढ़ने के लिए भी सामाजिक ,शैक्षिक  और आर्थिक विकास की गति और तेज करनी होगी | जिसके लिए सतत विकास की अवधारणा को विह्वहार में लाने पर जोर देना पडेगा |   

सतत विकास की अवधारणा 

सतत विकास की अवधारणा विकास का ही नया आयाम है | जो नई  पीड़ी की भलाई के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है | शाब्दिक अर्थ के रूप में देखने पर सतत विकास का अर्थ है  निरंतर और परिवर्तन | 
ब्रूटलैंड आयोग , १९८७ में इसे परिभाषित करते हुए कहा कि , " सतत विकास ऐसा विकास है जो भविष्य की पीढ़ी की समस्त आवश्यकताओं को संतुषट करने की आवश्यकता के साथ किसी भी प्रकार का समझौता किये बिना वर्तमान पीढ़ी  की आवस्यकता को पूर्ण करता है |"   
मानव अधिकारों पर पहली कॉन्फ्रेंस २२ अप्रेल से १३ मई ,१९६८ तक तेहरान में(ईरान )में आयोजित हुई | इसमें सदस्य राज्यों से गुजारिश की गई  कि वे अपने यहाँ शिक्षा व्यवस्था को इस प्रकार बढ़ावा दे कि छात्रों में मानव अधिकार के प्रति सम्मान पैदा हो सके | पंडित  दीन दयाल का भी दर्शन था कि , "महिलाओं की शिक्षा के बिना एक सुसभ्य समाज का निर्माण असंभव है | 

नए भारत के निर्माण में चुनौतियाँ 

बर्तमान में भारत के समक्ष अनेक चुनौतियाँ है | जैसे की स्वछता की समस्या ,नदियों में प्रदुषण की समस्या ,आवास की समस्या, कुशल कामगारों की समस्या, शिक्षा और स्वास्थय की समस्या, सम्पूर्ण कम्प्यूटरीकरण का अभाव ,किसानो की समस्याएं मजदूरों की समस्याएं ,गरीबी और बेरोजगारी के समस्या आदि | उक्त चुनौतियों का सामना समाज में हर व्यक्ति द्वारा समाज के प्रति अपने कर्तव्यों का पालन तथा मानव अधिकारों का सम्मान करते हुए किया जा सकता है | इसके लिए सरकार की प्रबल इच्छा शक्ति की अति आवश्यकता है | भारत में मानव अधिकारों का संरक्षण एवम संवर्धन लिए भारत के नागरिक और भारतीय संसद के पास मानव अधिकार सिद्धांतों और नियमो के रूप में औजारों की एक बृहत श्रंखला उपलब्ध है |  जिसका उचित और व्यवहारिक उपयोग कर न्यू इंडिया के परिकल्पना को मूर्त रूप दिया जा सकता है | समय आ गया है जब हमें विचार करना होगा कि हम आने वाली पीढ़ीओं को विरासत में कैसी दुनिया सौपना चाहते हैं | 

उपसहार 

नए भारत के निर्माण में नरेंद्र मोदी संसद की उच्चत्तम क्षमताओं का सद्पयोग करना चाहते है लेकिन इसके लिए अनेक क्षेत्रों के अलावा मानव अधिकार शिक्षा के संवर्धन की दिशा में भी अनेक मुद्दे और चुनौतियाँ उपस्थित हैं जिनके निवारण के लिए  इस प्रकार के लेख की आवस्यकता को बल मिलता है | यह लेख पंडित दीन दयाल के नए भारत की परिकल्पना के भारतीय स्वरुप को मूर्तरूप प्रदान करने में मानव अधिकार सिद्धांतों का अधिकाधिक उपयोग का रास्ता प्रशस्त करने में सहायक होगा | इसके अतिरिक्त  पंडित दीन दयाल की परिकल्पना के भारतीय स्वरुप को वैश्विक आधार प्रदान करने तथा ज्ञान के यथार्थ योगदान में सहायक होगा | नए भारत की संकल्पना को सिद्धि में परिवर्तित करने के लिए भारत में मानव अधिकारों का संवर्धन अवं संरक्षण आवश्यक है | मानव अधिकारों के प्रति सम्मान की इच्छा शक्ति को बढ़ावा देकर विकसित भारत @२०४७ के लक्ष्य को प्राप्त कर आजादी के १०० वे वर्ष २०४७ तक एक विकसित भारत का सपना नए भारत के रूप  में साकार किया जा सकता है | 

सन्दर्भ श्रोत 

१. पी ऍम मोदी स्पीच एंड दी यूनाइटेड नेशंस सस्टेनेबल समिट ,सितम्बर २५ ,२०१५ | 
२. डॉ  ऍम सी  त्रिपाठी ,आणविरोन्मेंटल लॉ ,सेंट्रल लॉ पब्लिकेशन इलाहाबाद ,उत्तर प्रदेश | 
३. ह्यूमन राइट्स एजुकेशन ,असोसिएशन ऑफ़ इंडियन यूनिवर्सिटीज ,ए आई यू  हाउस ,कोटला मार्ग नई दिल्ली |
४. ब्रजेश बाबू ,ह्यूमन राइट्स एंड सस्टेनेबल डेवलपमेंट ,ग्लोबल पब्लिकेशन नई दिल्ली | 
५. यूनाइटेड नेशंस सस्टेनेबल डेवलपमेंट एजेंडा २१ ,यूनाइटेड नेशंस ऑन एनवायरनमेंट ,रिओ दे जेनेरिओ ,ब्राजील ३-१४ जून १९९२ | 
६. द  प्रोटेक्शन ऑफ़ ह्यूमन राइट्स एक्ट ,१९९३ | 
७. विएना डेक्लरेशन एंड प्रोग्रमम ऑफ़ एक्शन ,वर्ल्ड कॉन्फ्रेंस  ऑन  ह्यूमन राइट्स ,विएना ,१४-१५ जून,१९९३|  
८. मानव अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा १९४८ | 
९.डॉ कमल कौशिक ,एकात्म मानव दर्शन के प्रणेता पंडित दीन दयाल उपाधियाह,प्रकाशक पंडित दीन दयाल स्मृति महोत्सव समिति दीन दयाल धाम फराह, मथुरा | 
१०. डॉ कमल कौशिक ,भारत के महान दार्शनिक, पंडित दीन दयाल उपाधियाह,प्रकाशक पंडित दीन दयाल स्मृति महोत्सव समिति दीन दयाल धाम फराह, मथुरा | 

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