मंगलवार, 9 सितंबर 2025

सच का पता DNA से! विज्ञान बना मानवाधिकारों का प्रहरी

DNA Genetic
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प्रस्तावना

भारत में जब बलात्कार, कौटुम्बिक व्यभिचार, दत्तक ग्रहण, पारिवारिक विवाद, मानव तस्करी, मानव अंग तस्करी, गुमशुदा बच्चों या आपदा पीड़ितों की पहचान, जैसे संवेदनशील मानवाधिकार मुद्दे समाज में उठते है | 

और ये मुद्दे जब अदालत तक पहुँचते हैंतब कई बार सच्चाई का खुलासा करने के लिए कोई प्रत्यक्षदर्शी साक्षी न्यायालय के समक्ष उपलब्ध नहीं होता है | तथा इन मुद्दों के सम्बन्ध में कोई दस्तावेजी साक्ष्य भी न्यायालय के समक्ष नहीं होते हैं |ऐसी स्तिथि में सच्चाई जानने का एकमात्र रास्ता होता है न्यायालय द्वारा दिए जाने वाले DNA जांच के लिए आदेश |

आजकल यह पूर्ण रूप से स्थापित हो गया है कि डीएनए तकनीक एक मानवाधिकार उपकरण बन चुकी हैजो निर्दोष को बाइज्जत दोषमुक्त घोषित कराती है तथा दोषियों को सजा दिलाती है

यह वैज्ञानिक तकनीकी गुमशुदा बच्चों को उनके परिवारों से मिलवाती हैआपदा में मारे गए लोगों की पहचान करती है | यह सटीक पितृत्व तथा मातृत्व भी तय करती है।

DNA  क्या है ?

DNA अर्थात डीऑक्सीराइबोन्यूक्लिक एसिड कोशिका (CELL) में  पाया जाता है | यह निर्देशों का एक समूह है। ये निर्देश जीव की वृद्धि और विकास के लिए उत्तरदाई होते हैं | हर व्यक्ति का DNA अद्वितीय होता है | 

विभिन्न DNA में भिन्नता का उपयोग व्यक्तियों की पहचान करने में किया जाता है | आज DNA तकनीक किसी भी व्यक्ति की पहचान सटीकता से स्थापित करने के लिए पूर्ण रूप से विश्वसनीय मानी जाती है | न्यायालयों ने भी इस बात पर अपनी मुहर लगा दी है | 


पारिवारिक विवाद, विवाहेतर संबंध, दत्तक ग्रहण या कौटुम्बिक व्यभिचार (Insest) में DNA का महत्त्व 

DNA विश्लेषण
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माननीय सुप्रीम कोर्ट के महत्वपूर्ण निर्णय  Banarsi Dass v. Teeku Dutta, (2005) 4 SCC 449 में न्यायालय ने स्थापित किया है कि, "DNA परीक्षण को नियमित रूप से निर्देशित नहीं किया जाना चाहिए और केवल योग्य मामलों में ही ऐसा निर्देश दिया जा सकता है |"

"कोई भी व्यक्ति यदि खुद को पिता मानने से इनकार करता है, तो अदालत डीएनए परीक्षण की अनुमति दे सकती है, यदि इससे न्याय में सहायता मिले।इस प्रकरण में पिता ने बच्चे की पैतृकता पर संदेह जताया था और डीएनए परीक्षण की माँग की। इस प्रकरण में विचारण न्यायालय ने डीएनए परीक्षण की अनुमति दे दी थी

जब ​​मामला माननीय सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा, तो सुप्रीम कोर्ट के कुछ फैसलों, खासकर गौतम कुंडू के फैसले पर ध्यान दिया गया और यह माना गया कि "एक वास्तविक DNA परीक्षण का परिणाम भी साक्ष्य अधिनियम की धारा 112 की निर्णायकता से बचने के लिए पर्याप्त नहीं हो सकता है|" 

इस पारिवारिक विवाद को यदि मानव अधिकार दृष्टिकोण से देखा जाए तो यह यह मामला "बच्चे की पहचान जानने के अधिकार" से जुड़ा है। ये महत्वपूर्ण मानव अधिकार है |लेकिन मौलिक विधि से बाध्य है | 

विवाहेत्तर संबंधों पर पति -पत्नी में झगड़े का काल्पनिक चित्र
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माननीय सुप्रीम कोर्ट ने विधिक दृष्टांत  Dipanwita Roy v. Ronobroto Roy, (2015) 1 SCC 365 में DNA परीक्षण सम्बन्धी महत्वपूर्ण मुद्दे को उठाया गया | इस मुद्दे में पत्नी ने पति पर विवाहेत्तर संबंध का आरोप लगाया  था और DNAपरीक्षण की माँग की थी। 

माननीय सुप्रीम कोर्ट ने इस प्रकरण में निर्णय देते हुए स्थापित किया कि "यदि किसी की प्रतिष्ठा दांव पर हो, तो डीएनए टेस्ट की अनुमति दी जा सकती है।

इस निर्णय को मानवाधिकार परिप्रेक्ष्य में देखा जाए तो यह नारी गरिमा और सच्चाई के खुलासे के बीच एक संतुलन स्थापित करता है |

कौटुम्बिक व्यभिचार के मामलों में कोई प्रत्यदर्शी साक्षी न होने के कारण अभियुक्त को सजा दिलाने में DNA परीक्षण की अत्यधिक महत्वपूर्ण भूमिका रहती है | कौटुम्बिक व्यभिचार(Incest) से तात्पर्य होता है करीबी खून के रिश्तों के बीच यौन सम्बन्धो का स्थापित होना है | यह एक जघन्य और अनैतिक अपराध की श्रेणी में आता है | 

बेटी के साथ कौटुम्बिक व्यभिचार और ह्त्या के एक मामले में  उत्तर प्रदेश के आगरा में विशेष पॉक्सो अदालत के न्यायाधीश ने अभियुक्त /पिता को आजीवन कारावास की सजा सुनाई है |   

निजता के अधिकार के विरुद्ध DNA की बाध्यता का निषेध

DNA जांच बनाम निजता का अधिकार
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"बिना किसी ठोस आधार के किसी को ज़बरदस्ती डीएनए टेस्ट के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता।" यह स्थापित किया गया है माननीय सुप्रीम कोर्ट की विधि व्यवस्था Goutam Kundu v. State of West Bengal, (1993) 3 SCC 418 में

इस विधि व्यवस्था में मुद्दा उठा कि क्या अदालत किसी पति को जबरन डीएनए टेस्ट के लिए बाध्य कर सकती है?  मानवाधिकार के द्रष्टिकोंड से यह फैसला निजता के अधिकार (Right to Privacy) और स्वतंत्रता (Liberty) की रक्षा करता है।

किसी भी व्यक्ति के लिए निजता का अधिकार और व्यक्तिगत स्वतंत्रता महत्वपूर्ण मानव अधिकारों की श्रेणी में आते हैं |

निजता का अधिकार बनाम सामाजिक न्याय

सामाजिक न्याय
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माननीय सुप्रीम कोर्ट की विधि व्यवस्था Sharda v. Dharmpal, (2003) 4 SCC 493 में महत्वपूर्ण मुद्दा उठाया गया कि क्या कोई कोर्ट मेडिकल जांच का आदेश कर सकती है ? जिसमे DNA जांच भी शामिल है

इस सम्बन्ध में कोर्ट ने स्थापित किया कि, "कि किसी व्यक्ति को डीएनए परीक्षण कराने का निर्देश देने में जीवन या निजता के अधिकार का कोई उल्लंघन नहीं हुआ है।

यदि इस निर्णय को मानवाधिकार सन्दर्भ में देखा जाए तो यह निजता के अधिकार और सामाजिक न्याय के संतुलन को दर्शाता है | सामाजिक न्याय का क्षेत्र अत्यधिक विस्तृत है | मानव अधिकार और सामाजिक न्याय एक दूसरे के पूरक हैं |

बाल तस्करी, गुमशुदा बच्चों और आपदाओं में पीड़ितों की पहचान

ट्रैन से तस्करी किये जा रहे बच्चों को रेस्क्यू उनका DNA करा कर पहचाना

बाल तस्करी, गुमसुदगी और आपदाओं में मृतकों की पहचान में भी DNA परीक्षण का उपयोग महत्वपूर्ण साबित हुया है

अनेक बार तस्करी के दौरान बचाये गए बच्चों या गुमसुदगी के कई वर्ष बाद बरामद बच्चों के माँ बाप के सम्बन्ध में पुख्ता जानकारी नहीं होती है | ऐसी स्तिथि में  DNA परीक्षण द्वारा ही उन बच्चों को उनके माता -पिता से मिलाना संभव हो पाता है| अभी हालिया घटना 2025 की ,जिसमे प्रयागराज से सीमांचल एक्सप्रेस से 18 बच्चों को तस्करी से बचाया गया।  

इस प्रकरण को यदि मानव अधिकार के रूप में देखा जाए तो बच्चों को पारिवारिक जीवन पाने के अधिकार की पूर्ती होती है

इस अधिकार की पुष्टि किशोर न्याय (बालकों की देखरेख और संरक्षण) अधिनियम, 2015  से भी होती है और यह अधिकार सिर्फ गुमसुदा और परित्यक्त बच्चों को मिला हुया है बल्कि विधि का उल्लंघन करने वाले अभिकथित बालकों को भी मिला हुया है | बालक अधिकार के रूप में यह एक महत्वपूर्ण  मानव अधिकार है |

कुछ दशक पहले आपदाओं में मृतकों की पहचान एक गंभीर समस्या थी |  12 जून 2025 को अहमदाबाद से लंदन जा रहा एयर इंडिया का एक विमान सरदार वल्लभभाई पटेल अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से उड़ने के बाद दुर्घटनाग्रस्त हो गया था | 

Source: Social Media

इस दुर्घटना में 241 यात्रियों की मृत्यु हो गई थी तथा एक यात्री ब्रिटिश नागरिक विश्वास कुमार रमेश (40)  चमत्कारिक रूप से बच गया था | 

इस दुर्घटना में यात्रियों के शव इस कदर जल गए थे कि उनकी पहचान किसी भी सूरत में संभव नहीं थी | लेकिन DNA परीक्षण से उन सभी की पहचान संभव हो सकी | जिससे मृतकों के वास्तविक तथा विधिक उत्तराधिकारियों को न्याय के रूप में मुआवजा मिल सका |  

                                                                मानवाधिकार दृष्टिकोण: क्यों है यह तकनीक जरूरी?

आपराधिक तथा नागरिक न्याय व्यवस्था में अनेक ऐसे क्षेत्र हैं जहाँ DNA के भूमिका अत्यधिक महत्वपूर्ण है | यह न्याय के सन्दर्भ में निर्दोषों को दोषी ठहराए जाने से बचाने में मदद करती है | 

यह पुनर्वास के क्षेत्र बहुत मददगार तकनीकी है | यह तकनीकी पिछड़े बच्चों को उनके परिवारों से मिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है | 

यह तकनीकी व्यक्ति की सही पहचान सुनिश्चित कर उसके अस्तित्व के अधिकार को स्थापित करती है | नारायण दत्त तिवारी बनाम रोहित शेखर, (2012) 12 एससीसी 554 में  माननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा स्थापित किया गया कि पितृत्व स्थापित कराने का अधिकार निजता के अधिकार पर भारी है | 

रोहित शेखर जिसने अपने पिता के साथ DNA के आधार पर सुप्रीम कोर्ट तक केस लड़ा |6 वर्ष की कानूनी लड़ाई के बाद नारायण दत्त तिवारी से पाया था बेटे होने का हक |

श्रोत :दैनिक जागरण आगरा ,25  अगस्त 2025

DNA से जुडी एक और मार्मिक कहानी पाठकों के लिए प्रस्तुत है | २८ नवम्बर की शर्द रात में फरुखाबाद की एक किन्नर अंजलि अपने समूह के साथ नेग माँग कर लौट रही थी | तभी सड़क किनारे झाड़ियों में एक मासूम की रोने की आवाज आई |

उसने झांक कर देखा तो एक नवजात बच्चा मिला | जिसे लेकर अंजलि अपने गुरु के पास पहुंची | गुरु ने कहा हमलोगों में बच्चों को पालने का रिवाज नहीं है | 

अंजलि ने उस नवजात बच्ची को उत्तर प्रदेश राज्य के आगरा जिले में रहने वाली एक महिला को दे दिया | महिला के पहले से ही चार बच्चे थे | लेकिन परिवार की सहमति मिलने के बाद उसने उसे पाला तथा अच्छे स्कूल में पढ़ाया | 

बच्ची की उम्र करीब 8 वर्ष की होने पर किन्नर अंजलि का प्यार एक बार फिर जाग गया और वह उसे  कुछ समय के लिए अपने यहाँ ले गयी | बाद में उसने उसे वापस करने से इंकार कर दिया | बच्ची की पालनहार माँ ने बच्ची को वापस पाने के लिए पुलिस में शिकायत की | 

परिणाम स्वरुप मामला बाल कल्याण समिति आगरा के समक्ष पहुंचा | वहां से बच्ची को बालगृह भेज दिया गया | बच्ची को वापस पाने के लिए उसकी माँ यशोदा (बदला हुया नाम ) की मदद के लिए  आगरा निवासी नरेश पारस नामक सोशल वर्कर सामने आये | 

इसके बाद प्रकरण इलाहाबाद उच्च न्यायालय पहुंच गया | इसी बीच एक दम्पति ने बच्ची उनकी होने का दावा किया | न्यायालय ने उन्हें एक पक्ष बनाया और उनका DNA परीक्षण कराने के आदेश दिए | 

न्यायालय में DNA परीक्षण रिपोर्ट प्रस्तुत होने के बाद पता चला कि बच्ची पर अपना दावा करने वाले दम्पति का DNA बच्ची के DNA से मैच ही नहीं कर रहा है | 

न्यायालय ने दम्पति का दावा खारिज कर बच्ची को पालनहार माता के पक्ष में मुक्त करने का आदेश दिया | उक्त कहानी से स्पष्ट है कि DNA  परीक्षण के कारण ही बच्ची गलत हातों में जाने से बच गई |सम्पूर्ण कहानी के लिए देखें नरेश पारस का ब्लॉग  THE JOURNEY OF NARESH PARAS  

भारत में DNA  का कानूनी ढाँचा 

भारत में DNA परीक्षण के लिए भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 112 के अधीन रहते हुए जांच के आदेश दिए जा सकते है | लेकिन इसके सन्दर्भ में प्राथमिक आवश्यकताओं को पूर्ण करना आवश्यक है अन्यथा की स्तिथि में DNA की निर्णायक भूमिका भी व्यर्थ है |  

विशेष मामलो में CrPC (Section 53 & 164A) के तहत डीएनए सैंपल की अनुमति दी जा सकती है |नए कानूनो में धाराएं बदल गई हैं | 

भारत में DNA तकनीकी के लिए नियामक ढांचा उपलब्ध कराने के लिए लोकसभा में DNA  तकनीकी (उपयोग और अनुप्रयोग ) नियामक विधेयक, 2019 पेश किया जा चुका है | जिसे बाद में वापस ले लिया गया | 

DNA की कानूनी स्वीकार्यता और सटीकता

भारत के न्यायालयों में डीएनए परीक्षण परिणामो को उच्च विश्वसनीयता प्राप्त है, बशर्ते कि परीक्षण सरकार द्वारा सत्यापित प्रयोगशालाओं में हुआ हो | 

DNA सेम्पल को जांच के लिए भेजे जाने के बाद परीक्षण परिणामो की रिपोर्ट तक अर्थात चैन ऑफ़ कस्टडी में कोई खामी न हो  इसके अलावा DNA नमूने की जांच के लिए न्यायालय की अनुमति ली गई हो |  

भारत के सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट्स ने कई मामलो में DNA परीक्षण रिपोर्ट को निर्णायक साक्ष्य के रूप में मान्यता दी है- विशेष रूप से पारिवारिक और नागरिक अधिकारों से जुड़े मामलों में |   

आगे की राह: क्या ज़रूरत है?

एक अच्छे समाज में सामाजिक न्याय और मानव अधिकार स्थापित करने के लिए DNA परीक्षण की सुविधा को आम आदमी तक पहुँचाना होगा | 

इस क्षेत्र में कुशल मानव संसाधन बढ़ाना होगा | DNA परीक्षण से सम्बंधित पाठ्यक्रमों में विस्तार करना होगा | डीएनए परीक्षण रिपोर्ट न्यायालयों में तयशुदा समय से पहुचे इसकी पुख्ता व्यवस्था करनी होगी | 

DNA से सम्बंधित नीति मानवाधिकार-केंद्रित होनी चाहिए तथा यह बच्चों, महिलाओं, ट्रांसजेंडर और अनुसूचित जाति और जनजाति समुदायों के के प्रति संवेदनशील हो | डेटा सुरक्षा पर स्पष्ट कानून लाया जाए जिसमें DNA सम्बंधित डेटा भी शामिल हो | 

अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुसरण में भारतीय प्रयोगशालाओं की स्थापना की जानी चाहिए तथा DNA परीक्षण के सम्बन्ध में उच्च स्तरीय मानकों की स्थापना के लिए स्वतंत्र DNA निगरानी संस्थान की आवश्यकता है | जिसे नागरिक समाज, वैज्ञानिकों और विधि विशेषज्ञों की भागीदारी से बनाया जाना चाहिए | 

निष्कर्ष:

किसी भी विवादित मुद्दे पर न्याय करने के लिए न्यायालय को पुख्ता साक्ष्यों की आवश्यकता होती है | अनेक मुद्दे ऐसे होते हैं जहाँ कोई भी प्रत्यक्षदर्शी साक्षी नहीं होता है | ऐसी परिस्थतियो में DNA परीक्षण अत्यधिक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है | 

आज के समय में DNA परीक्षण न सिर्फ न्याय बल्कि मानव अधिकारों का भी संवर्धन कर रहे हैं | आज DNA तकनीकी ना सिर्फ न्याय और अन्याय की पहचान कर रही है बल्कि हकूक की भी पहचान कर रही है | DNA तकनीकी के कारण न्यायिक प्रक्रिया में लगने वाला लंबा और उबाऊ समय भी अत्यधिक कम हुया है|न्याय के लिए यह एक विश्वसनीय औजार है |  

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ ):

प्रश्न : DNA तकनीक मानवाधिकारों की रक्षा में कैसे सहायक है?

उत्तर : DNA विश्लेषण के माध्यम से जेनोसाइड, सुनामी, प्राकृतिक आपदाओं में मारे गई लोगों की पहचान ,लापता व्यक्तियों की पहचान की जा सकती है। गलत तरीके से दोषी ठहराए गए लोगों को न्याय दिलाया जा सकता है | यह परिवारों को मिलाने में सहायक है | अधिकारों की स्थापना में सहायक है |  

प्रश्न :  क्या DNA परीक्षण मानवाधिकार उल्लंघन के मामलों में सबूत बन सकता है?

उत्तर : हाँ, DNA परीक्षण न्यायालय में वैज्ञानिक रूप से सटीक और भरोसेमंद सबूत माना जाता है|  यह बलात्कार, हत्या, मानव तस्करी जैसे गंभीर मामलों में सत्य को उजागर करने में कारगर है।

प्रश्न : क्या DNA तकनीक से लापता लोगों को खोजा जा सकता है?

उत्तर : जी हाँ, DNA तकनीक के उपयोग से लापता लोगों को खोजा जा सकता है |  

प्रश्न : क्या DNA टेस्ट निजता का उल्लंघन करता है?

उत्तर : DNA परीक्षण एक संवेदनशील प्रक्रिया है। इसके लिए व्यक्ति की सहमति आवश्यक होती है। इसमें  निजता के उल्लंघन की स्तिथियों को ध्यांन में रखा जाता है |  

प्रश्न : क्या DNA तकनीक से बलात्कार पीड़ितों को न्याय मिल सकता है

उत्तर : बिलकुल,बलात्कार के मामलों में DNA सबूत अपराधी की पहचान करने में निर्णायक भूमिका निभाते हैं।न्याय दिलाने में असर कारक भूमिका निभाते हैं | 

प्रश्न :  क्या यह तकनीक भारत में उपलब्ध है?

उत्तर : हाँ, भारत में कई सरकारी और निजी प्रयोगशालाओं में आधुनिक DNA परीक्षण सुविधाएं उपलब्ध हैं। 







 


शुक्रवार, 5 सितंबर 2025

नीदरलैंड: दुनिया का पहला देश बिना आवारा कुत्तों के | भारत क्या सीख सकता है?

परिचय – क्यों ज़रूरी है आवारा कुत्तों पर नियंत्रण?


भारतीय आवारा कुत्ते
विश्व भर में अनेक देश आज भी आवारा कुत्तों की समस्या से जूझ रहे हैं | जिनमे भारत भी एक देश है | भारत में आवारा कुत्तों की संख्या करीब 6 करोड़ से अधिक है | विगत कुछ वर्षों में आवारा कुत्तों की जनसंख्या में बृद्धि के साथ -साथ उनके हमलों की घटनाओं में भी अत्यधिक बृद्धि दर्ज की गई है |

भारतीय संसद में पेश की गई एक रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2024 में आवारा कुत्तों के काटने की 37 लाख से अधिक घटनाएं दर्ज की गई | इसके अलावा अनेक घटनाएं ऐसी है जो रिपोर्ट ही नहीं होती है यदि उनको भी मिला लिया जाए तो यह आँकड़ा और ऊपर पहुंच जाता है | 

ऐसी गंभीर स्थति में कुछ पीड़ित स्वयं न्यायालय पहुंचे तथा कुछ मामलों में जनहित याचिकाएं डाली गई लेकिन अभी हाल ही में दिल्ली में घटित घटना के बाद भारत की सर्वोच्च अदालत सुप्रीम कोर्ट ने स्वप्रेरणा से संज्ञान लिया और उसे जनहित याचिका के रूप में स्वीकार किया | 

इस घटना में दिल्ली में एक 6 वर्षीय बालिका को कुत्ते ने काट लिया था और उसकी रेबीज होने से मृत्यु हो गई थी| इस घटना को टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,अंग्रेजी दैनिक ने रिपोर्ट किया था | इसी रिपोर्ट के आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने संज्ञान लिया था | 

यही नहीं विगत वर्षों में ऐसी अनेक घटनाओं की खबरे अखबारों और मीडिया के माध्यम से आम आदमी और सरकार के सामने आई है | इसी लिए आवारा कुत्तों पर नियंत्रण की मांग लगातार उठती रही है |
  
भारत की राजधानी दिल्ली में आवारा कुत्तों से निजात दिलाने के लिए आंदोलन करने वाले व्यक्ति  के रूप में मुख्य चेहरा भारतीय जनता पार्टी के जाने माने नेता विजय गोयल का रहा है |विजय गोयल द्वारा सरकार से पशु जन्म नियंत्रण (एबीसी) नियम, 2023 में संशोधन की भी मांग की गई है |  

भारत के सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बाद आवारा कुत्तों के संकट को समाप्त करने के लिए भारत सरकार ने  कई कदम उठाये हैं | जिनमे से एक रेबीज फ्री सिटी के लक्ष्य को रखा जाना भी है | 

नीदरलैंड का सफर – आवारा कुत्तों से मुक्त होने तक

नीदरलैंड की नीतियाँ जिन्होंने देश को आवारा कुत्तों से मुक्त बनाया
आवारा कुत्तों से मुक्त होने का नीदरलैंड का सफर बड़ा दिलचस्प और कानूनी कठोरता और लचीलेपन से सराबोर रहा है | बहुत कम देश हैं जिन्होंने आवारा कुत्तों की समस्या से निजात पाई है | उनमे से एक है नीदरलैंड |

यह दुनिया का ऐसा देश है, जिसने अपने अथक प्रयासों से देश को स्ट्रीट डॉग फ्री कंट्री/आवारा कुत्तों से मुक्त देश बना लिया है| यह कोई छोटी उपलब्धी नहीं है | नीदरलैंड में पशु संरक्षण एक चुनावी मुद्दा भी रहता आया है | 

आप सोचेंगे कि नीदरलैंड ने ये कमाल कैसे किया ? तो सबसे पहले दिमाग में विचार आएगा कि क्या उन्होंने सभी कुत्तों को मरवा दिया या फिर विचार आएगा कि वास्तव में कोई मानवीय और कानूनी रास्ता अपनाया है ? आइये जानते है इस रहस्य्मयी हकीकत को विस्तार से |

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि – कुत्तों की संख्या क्यों बढ़ी?


ऐतिहासिक रूप में 19 वीं  सदी में आवारा कुत्तों की समस्या बहुत गंभीर थी | लोग कुत्ते पालने के शौकीन थे | लोग गरीबी के चलते अक्सर कुत्तों की देखभाल न करपाने की स्तिथि में उन्हें आवारा छोड़ देते थे | 

धीरे -धीरे यह स्तिथि आम आदमी के स्वास्थय और सुरक्षा के लिए संकट बन कर उभरी | ऐसी स्तिथि में संकट का समाधान आवश्यक था | जिस पर नीदरलैंड सरकार ने अनवरत काम किया है | 

सरकार की रणनीति और लक्ष्य


2006 में, नीदरलैंड की राष्ट्रीय संसद में एक पशु अधिकारों की वकालत करने वाली एक पार्टी चुनी गई। यह करने वाला नीदरलैंड दुनिया का पहला देश बना | 
जिसकी 'पार्टी फॉर द एनिमल्स' ने डच संसद के निचले सदन (लोअर हाउस) में प्रवेश कर यह सुनिश्चित किया कि पशु कल्याण को भी राजनीतिक एजेंडे में शामिल किया जाए।

आवारा कुत्तों के संकट के समाधान के लिए नीदरलैंड की सरकार ने एक विशेष रणनीति तथा लक्ष्य को दृष्टिगत यह तय किया कि संकट का समाधान सिर्फ आवारा कुत्तों को “मार देना” नहीं है, बल्कि स्थायी और मानवीय समाधान की तलाश करनी होगी। 
 
वहाँ की सरकार द्वारा इसी रणनीति के साथ कानून निर्मित किये गए और साथ -साथ आमजन को भी जागरूक करने की रणनीति बनायी गई | सरकार द्वारा पूर्ण राजनैतिक इच्छा शक्ति के साथ इन रणनीतिओं और लक्ष्य पर काम किया और सफलता पाई | 

नीदरलैंड के प्रभावी कानून और नीतियाँ


देश भर में आवारा कुत्तों की समस्या से मुक्ति पाने के लिए नीदरलैंड सरकार द्वारा कानून बनाये गए तथा उनका सख्ती से पालन किया गया | 

इन कानूनों में एक कानून पशु कल्याण कानून था | इस क़ानून के तहत पालतू जानवर को आवारा छोड़ना कानूनन गंभीर अपराध था | इसके साथ ही पशुओं के साथ क्रूरता करने वालों के लिए कठोर सजा तथा जुर्माने का भी प्रावधान किया गया | 

नीदरलैंड ने आवारा  कुत्तों की जनसँख्या नियंत्रण नीति के तहत CNVR नामक कार्यक्रम चलाया | इस कायक्रम के चार चरण थे | 

पहला चरण आवारा जानवरों को पकड़ना | दूसरा चरण उसकी नसबंदी(स्टरलाइजेसशन)  करना | तीसरा चरण टीकाकरण था तथा चौथा चरण उन्हें नसबंदी और टीकाकरण के बाद छोड़ देना था | 

इस कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य आवारा कुत्तों की जनसँख्या को नियंत्रित करना तथा नए बच्चों की सड़कों पर पैदावार को रोकना | इसके अलावा सभी पालतू कुत्तों का आवश्यक पंजीकरण और टीकाकरण अनिवार्य किया गया  था | 

डॉग टैक्स (Dog Tax) और उसका असर


नीदरलैंड सरकार द्वारा ब्रीडिंग डॉग्स पालने पर ज्यादा टेक्स लगाया गया | जिसके परिणामस्वरूप लोग ब्रीडिंग डॉग्स के पालने में कम रूचि दिखाने लगे | 

धीरे-धीरे जनसामान्य का रुझान स्थानीय नस्ल के आवारा कुत्तों को पालने की तरफ होने लगा | इसके अतिरिक्त लोग अत्यधिक टेक्स के कारण डॉग्स शेल्टर होम्स से कुत्तों को अडॉप्ट करने लगे |

अनिवार्य स्टरलाइजेशन और वैक्सीनेशन


नीदरलैंड सरकार द्वारा अपने कानूनी और नीतिगत प्रावधानों में आवारा कुत्तों की आज्ञापक स्टरलाइज़ेशन (नसबन्दी) और वेक्सीनेशन (टीकाकरण ) का प्रावधान किया गया | जिसे विश्व भर में कुत्तों की जनसंख्या नियंत्रण का सर्वाधिक प्रभावी तरीका माना गया है |

विश्व स्वास्थ्य संघटन के अनुसार भी कुत्तों की जनसंख्या नियंत्रण के लिए करीब 70 प्रतिशत कुत्तों का स्टरलाइज़ेशन (नसबन्दी) जरूरी है | इस प्रकार यदि देखा जाए तो नीदरलैंड सरकार ने कुत्तों की प्रभावी जनसंख्या नियंत्रण के लिए विश्व स्वास्थय संगठन से भी उच्च स्तर के मानक को अपने यहाँ लागू किया | 
 

ब्रीडिंग और सेल पर कड़ा नियंत्रण


नीदरलैंड सरकार द्वारा डॉग ब्रीडर्स के यहाँ से कुत्तों की खरीदारी को हतोत्साहित किया गया तथा आवारा कुत्तों को गोद लेने की व्यवस्था के प्रोत्साहन पर अधिक जोर दिया गया | इसके अतिरिक्त डॉग्स शेल्टर्स होम्स से आवारा कुत्तों को गोद लेने वालों को कानूनी सुरक्षा के अलावा अन्य सुविधाएं देने का भी प्रावधान किया गया था |

एनिमल वेलफेयर लॉ (Animal Welfare Law)


नीदरलैंड  में पशु स्वास्थय और कल्याण अधिनियम ,1992 को पशु अधिनियम 2011 द्वारा बदल दिया गया | नीदरलैंड में पशुओं के साथ क्रूरता एक दंडनीय अपराध है। 

'क्रूरता' का अर्थ है जानवरों के साथ मारपीट करना या उनकी देखभाल में लापरवाही बरतना, जैसे कि उनकी ज़रूरतों की अनदेखी करना या उन्हें समय पर खाना न देना आदि। 

पशुओं के साथ होने वाली क्रूरता की शिकायत नीदरलैंड्स खाद्य और उपभोक्ता उत्पाद सुरक्षा प्राधिकरण (NVWA) या पुलिस को की जा सकती है | ये संस्थाएं पशुओं के साथ होने वाले अपराधों की जांच और आवश्यक कार्रवाई करने  के लिए उत्तरदायित्व निभाती हैं |

शिक्षा ,जागरूकता और जिम्मेदार पशु मालिक


नीदरलैंड में पशु अधिकारों के बारे में राष्ट्रीय अभियान के तहत समाज और स्कूल -कॉलेजों में जागरूकता कार्यक्रम चलाये गए | कुत्ता प्रेमियों को एक जिम्मेदार पशु स्वामी बनने के लिए उत्साहित किया गया | 

जिम्मेदार पशु स्वामी का तात्पर्य है कि वह अपने कुत्ते का सभी तरह से ध्यान रखे ,समय से उनका टीकाकरण कराये तथा उन्हें किसी भी सूरत में सड़कों पर आवारा न छोड़े | 

नीदरलैंड का सफल मॉडल


इन सभी कानूनी प्रावधानों के कठोर अनुपालन तथा सामाजिक सहयोग से नीदरलेंड की सड़के आवारा कुत्तों से मुक्त हो गई है |नीदरलैंड दुनिया के अग्रणी ऐसे देशों में गिना जाता है जहाँ आवारा कुत्तों की संख्या नगण्य के बराबर हो गई है | 

नीदरलैंड अपने यहां की सड़कों को आवारा कुत्तों से मुक्त कराने में सफल रहा है और वह ऐसा करने वाला विश्व का अग्रणी देश बन गया है | ऐसी स्थति में आवारा कुत्तों से सड़कों को मुक्त कराने वाले मॉडल को सफल मॉडल कहने और स्वीकार करने में किसी को कोई जुरेज नहीं होना चाहिए |  
 

भारत क्या सीख सकता है नीदरलैंड से?


भारत को नीदरलैंड से कोई विशेष चीज सीखने की अवश्यकता नहीं है, अलावा इसके कि भारत में आवारा कुत्तों की समस्या से छुटकारा पाने के लिए उपलब्ध कानूनों और नीतियों में मामूली सुधार किया जाए | 

भारत के मुकाबले नीदरलैंड में क़ानून और नीतियों का अनुपालन कठोरता और प्रबल राजनैतिक इच्छा शक्ति के साथ किया गया है | बस  एकमात्र यही सीख  भारत ले सकता है और किसी सीख की आवश्यकता नहीं है | 

कानूनी सुधार की ज़रूरत


भारत में आवारा कुत्तों को सड़कों से हटाने की जिम्मेदारी के लिए स्थानीय कानूनों में पहले से ही प्रावधान किये गए हैं | इसके अतिरिक्त पशु क्रूरता निवारण अधिनियम ,1960 पहले से ही उपलब्ध है | यह क़ानून पशुओं के प्रति क्रूरता को प्रतिषेधित करता है | 

इस अधिनियम के तहत बने पशु जन्म नियंत्रण (एबीसी) नियम 2023, जो आवारा कुत्तों की आबादी को नियंत्रित करने, मानव और कुत्तों के बीच संघर्ष को कम करने के लिए बनाए गए हैं | 

इन नियमों के तहत आवारा कुत्तों को पकड़ा जाता है, उनका टीकाकरण और नसबंदी की जाती है, और फिर उन्हें वापस  उनके ही इलाके में छोड़ दिया जाता है| इन 2023 के नियमो ने  2001 के नियमों की जगह ले ली हैं | 

यदि आवारा कुत्तों के संकट के सन्दर्भ में भारत के क़ानून और नीतियों की तुलना करें तो कुछ विशेष अंतर नहीं दिखाई देता है | 

लेकिन यह जरूर मानना पडेगा कि नीदरलैंड के क़ानून में उलंघन की स्थति में जुर्माना और सजा का प्रावधान कुछ कठोर अवश्य रहा है | इसके अतिरिक्त सबसे बड़ा अंतर क़ानून और नीतियों के निर्वहन का रहा है | 

निष्कर्ष – इंसान और  आवारा कुत्ते दोनों के लिए सुरक्षित भविष्य

नीदरलैंड के मॉडल से स्पष्ट है कि अगर कानून, सरकार और जनता मिलकर काम करें, तो किसी भी देश से आवारा कुत्तों का संकट खत्म  किया जा सकता है। 

यदि भारत इस मॉडल का आवश्यकता अनुसार आंशिक रूप से अनुसरण करे तो यह देश के लिए यह एक प्रेरणा श्रोत हो सकता है तथा जिसके द्वारा इंसान और आवारा कुत्ते दोनों की सुरक्षा और सह-अस्तित्व को सुनिश्चित किया जा सकता है।

अगर भारत ने भी इस मॉडल के अनुसरण में सख्त कानून, जागरूकता और जिम्मेदार पालतू पशु स्वामित्व को  अपनाया तथा अनुपालन किया, तो आने वाले वर्षों में हम भी घोषित कर पाएंगे – “आवारा कुत्तों से मुक्त भारत।”

FAQ (अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न )


प्रश्न : क्या नीदरलैंड में सच में कोई भी आवारा कुत्ता नहीं है?

उत्तर : हाँ, नीदरलैंड पहला ऐसा देश बन गया है जहाँ अब एक भी आवारा कुत्ता सड़कों पर नहीं है। यह सब सरकार की मजबूत नीतियों, पशु अधिकार कानूनों और जागरूक समाज की वजह से संभव हो पाया है।

प्रश्न : नीदरलैंड ने आवारा कुत्तों की समस्या को कैसे हल किया?

उत्तर : नीदरलैंड ने कुत्तों का अनिवार्य पंजीकरण, नसबंदी अभियान, जान चेतना अभियान ,भारी दंड वाले पशु सुरक्षा कानून, और कुत्तों को गोद लेने को बढ़ावा देकर यह लक्ष्य प्राप्त किया।

प्रश्न : क्या भारत भी नीदरलैंड की तरह आवारा कुत्तों से मुक्त देश बन सकता है?

उत्तर : हाँ, यदि भारत सरकार उपलब्ध कानूनों में आवश्य्क संसोधन करे, उन्हें मजबूत बनाए, नसबंदी प्रोग्राम्स को अत्यधिक प्रभावी रूप से लागू करे और लोगों के बीच जनचेतना अभिया चलाये जिससे लोग जागरूक हों तो भारत भी आवारा कुत्तों से मुक्त देश बन सकता है।

प्रश्न : नीदरलैंड में कुत्तों के लिए क्या-क्या कानून हैं?

उत्तर : नीदरलैंड में सभी पालतू कुत्तों का रजिस्ट्रेशन ज़रूरी है, जानवरों के प्रति क्रूरता पर सख्त सज़ा है, और गोद लेने की प्रक्रिया को आसान और प्रोत्साहित किया गया है।

प्रश्न : क्या नीदरलैंड ने आवारा कुत्तों को मार दिया?

उत्तर : नहीं, नीदरलैंड ने  Dog Kill-Free Policy अपनाई| सभी कुत्तों को शेल्टर्स में ले जाकर उनकी देखभाल की गई और उन्हें गोद दिलवाया गया।

प्रश्न : भारत में इतने सारे स्ट्रीट डॉग्स क्यों हैं ?

उत्तर :भारत में स्ट्रीट डॉग्स के संकट से निपटने के लिए प्रभावी कानूनी प्रावधान और नीतिया पहले से ही उपलब्ध हैं, लेकिन उनके प्रभावी अनुपालन में  लापरवाही भारत में विश्व के सर्वाधिक स्ट्रीट डॉग्स के लिए जिम्मेदार है |  



रविवार, 31 अगस्त 2025

राज्यों की नई नीतियाँ – डॉग लवर्स की जीत या आम इंसान की?

गली में घुमते आवारा कुत्ते

प्रस्तावना

भारत में विगत कुछ वर्षों से आवारा कुत्तों का मुद्दा तेजी से उभरा है तथा वर्तमान में सम्पूर्ण देश में बहस का केंद्र बिंदु बना हुया है।

एक तरफ़ इंसान की सुरक्षा को लेकर बेवसी और रोज़ बढ़ते आवारा कुत्तों के हमले हैं, वहीं दूसरी तरफ़ डॉग लवर्स और एनजीओ का तर्क है कि कुत्तों को भी जीने का अधिकार है तथा वे भी इसी समाज का हिस्सा हैं।

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली -एनसीआर की सड़कों से आवारा कुत्तों  को उठाकर उन्हें शेल्टर होम्स भेजने तथा उन्हें दुबारा न छोड़े जाने का आदेश दिया था | 

कोर्ट ने पूर्व में दिए गए आदेश को संशोधित किया, जिसके अनुसार शेल्टर होम में ले जाए गए आवारा कुतो को उनकी नसबंदी और टीकाकरण के बाद उसी स्थान पर छोड़ने के आदेश दिए गए, जहाँ से आवारा कुत्ते उठाये गए हैं | 

पूर्व में दिया गया आदेश दिल्ली-एनसीआर तक सीमित था जिसे बढ़ा कर सम्पूर्ण देश में विस्तारित कर दिया गया | यह फैसला सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों पर लागू होगा |

सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद कई राज्यों ने इस मुद्दे पर नई नीतियाँ बनानी शुरू कर दी हैं। अब यह सवाल उठता है कि – क्या  राज्यों के यह कदम डॉग लवर्स की जीत है या आम इंसान की ?

सुप्रीम कोर्ट की भूमिका

सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में साफ कहा है कि –सड़कों से कुत्तों को पकड़ा जाए तथा उनकी नसबंदी और वैक्सीनेशन किया जाए | उसके बाद उन्हें वही छोड़ा जाए जहाँ से उन्हें उठाया गया था | उन्हें उनके मूल निवास स्थान से हटाया नहीं जा सकता है। इस सम्बन्ध में मौलिक विधि में भी प्रावधान उपलब्ध है |  

कोर्ट ने कहा कि शेल्टर्स होम्स के निर्माण के अलावा आवारा कुत्तों की नसबंदी और टीकाकरण आवश्यक रूप से कराया जाए | इसके अलावा उनके लिए फीडिंग जोन्स की भी व्यवस्था की जाए |

संशोधित आदेश के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट ने डॉग लवर्स और आम इंसान के बीच संतुलन बनाने में मत्वपूर्ण भूमिका निभाई है | 

'नो डॉग्स ऑन स्ट्रीट्स' आंदोलन 

विजय गोयल दिल्ली में बीजेपी नेता के रूप में बड़ा नाम है | उन्होंने दिल्ली में आवारा कुत्तों के हमलों की बढ़ती घटनाओं का संज्ञान लेते हुए 'नो डॉग्स ऑन स्ट्रीट्स' नाम से आंदोलन चलाया | उन्होंने दिल्ली की सड़को से आवारा कुत्तों को उठाकर शेल्टर होम्स में रखने की मांग की |

उन्होंने कुत्ता प्रेमियों के विरोध के बाबजूद यह अभियान बड़े जोर-शोर से चालाया | उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के आदेश को कुत्ता प्रेमियों और इंसानो दोनों के हित में बताया | उनका उदेश्य दिल्ली की सड़को को कुत्ता- मुक्त तथा डॉग- बाईट मुक्त बनाना रहा है | उन्होंने जन्म नियंत्रण नियमो में भी बदलाव की मांग की है |

राज्यों की नई नीतियाँ

🟢 राजस्थान : राजस्थान देश का पहला राज्य बन गया है जिसने सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के अनुपालन में नई निति लागू कर दी है तथा नसबंदी ,टीकाकरण और आवारा कुत्तों की उनके मूल निवास स्थान पर मुक्ति का रास्ता प्रसस्त किया है | 

🟢 उत्तराखंड (देहरादून):  देहरादून में सार्वजनिक जगहों पर कुत्तों को खाना खिलाने पर ₹5000 तक का जुर्माना लगाने की नीति बना ली गई है | मकसद है कि कुत्तों की भीड़ और इंसानों के बीच टकराव को कम से कम करना। 

यह प्रावधान सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देश के अनुसरण में किया गया है, जिसके अनुसार हर जगह आवारा कुत्तों को खाना नही खिलाया जा सकता है इसके लिए फीडिंग जोन निर्धारित स्थान पर बनाये जाएँ | 

🟢 कर्नाटक :  कर्नाटक राज्य से चौंकाने वाला आँकड़ा आया है – सिर्फ़ एक साल में 3.1 लाख डॉग बाइट/कुत्तों के हमलों के केस दर्ज किये गए हैं | इस सम्बन्ध में  कर्नाटक सरकार द्वारा सख्ती से नसबंदी और वैक्सीनेशन के कार्यक्रम पर ज़ोर दिया जा रहा है।

सरकार द्वारा कुत्तों के हमले की घटनाओं के बारे में जारी आकड़ों के बाबजूद डॉग लवर्स की दलीलें है कि कुत्तों के काटने की छुटमुट घटनाएं होती हैं, कुत्ते भी इंसानों की तरह अधिकार रखते हैं। उन्हें शेल्टर होम्स में कैद करना या  उनके मूल निवास से दूर किसी नई जगह भेजना अमानवीय है।

इस बात का समर्थन वरिष्ठ भारतीय राजनीतिज्ञ मेनका गांधी, राहुल गाँधी, प्रियंका गांधी के अलावा कई जानी मानी फिल्मी हस्तियों जाह्नवी कपूर, डेविड धवन, जॉन इब्राहम, मनोज बाजपेई, रवीना टंडन आदि ने भी किया है | 

डॉग लवर्स का कहना है कि आवारा कुत्तों की नसबंदी और वैक्सीनेशन ही समस्या का मानवीय तथा स्थायी समाधान है।आवारा कुत्ते इंसानी समुदाय के अभिन्न अंग है,कोई दुश्मन नहीं | 

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद डॉग लवर्स अपने प्राइवेट डॉग शेल्टर्स में आवारा कुत्तों का स्वागत कर रहे हैं | 

आम इंसान की चिंताएँ

सरकार की रिपोर्ट से स्पष्ट है कि बच्चों और बुज़ुर्गों पर लगातार हमले हो रहे हैं और उनमे निरंतर बृद्धि दर्ज की गई है | डॉग बाइट से मौत और रेबीज़ का खतरा भी बढ़ा है | 

हाल ही में उत्तर प्रदेश निवासी तथा राज्य स्तरीय कब्बडी खिलाड़ी ब्रजेश सोलंकी की पिल्लै के काटने से हुई रेबीज की बीमारी से मृत्यु हो गई | इसके बाद दिल्ली में एक 6 वर्षीय बच्ची की कुत्ते के काटने से मृत्यु हो गई | 

इन हालिया घटनाओं ने संपूर्ण देश में आवारा कुत्तों के हमलो से निजात दिलाने के लिए बहस तेज हो गई |अखबारों और सोशल मीडिया पर कुत्तों के हमलों की खबरे सुर्खिया बटोरने लगी | 

आम आदमी कॉलोनियों और सोसाइटीज़ में कुत्तों के झुंड से डरने लगे है | बच्चों को बाहर पार्कों में खेलने से रोक रहे हैं | बुजुर्गों भी सुबह की सैर पर जाने से कतराने लगे हैं |  

दिल्ली की 6 वर्षीय बची की रेबीज से मृत्यु के बारे में टाइम्स ऑफ़ इंडिया, अंगरेजी दैनिक में छपी खबर का माननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा स्वतः संज्ञान लिया गया | उसके बाद सुनवाई हुई और सभी राज्यों को कुत्तों के हमले से मुक्त करने के लिए नीतिया बनाने के लिए दिशा निर्देश जारी किये गए |

यद्धपि क़ानून में पहले से ही पशु जन्म नियंत्रण नियम, 2021 तथा संसोधित नियम, 2023 में आवारा कुत्तों की नसबंदी और टीकाकरण का प्रावधान है लेकिन राज्य सरकारों की की ढीली कार्यवाही से समस्या दिन पर दिन गंभीर होती जा रही थी | सुप्रीम कोर्ट द्वारा संज्ञान लिए जाने के बाद स्थति में सुधार की आशा की जानी चाहिए | 

सड़क पर खाना खाते आवारा कुत्ते

निष्कर्ष के रूप में असली सवाल वहीं खड़ा है कि – जीत किसकी?

डॉग्स लवर्स का समझना है कि जीत उनकी है क्यों कि अब आवारा डॉग्स को टीकाकरण और नसबंदी के बाद उनके मूल स्थान पर छोड़ दिया जाएगा | 

लेकिन आम इंसान सोच रहा है कि उसकी जीत तभी होगी जब सुप्रीम कोर्ट के अनुपालन में नसबंदी और टीकाकरण पूरी शक्ति और ईमानदारी से हो | 

सच्चाई यह है कि यह लड़ाई हार जीत की है ही नहीं | असल लड़ाई  इंसानो पर कुत्तों के बढ़ते हमलों को नियंत्रित करने की है | 

सह-अस्तित्व के सिद्धांत के साथ ही इंसान और आवारा कुत्तों दोनों को सुरक्षित रखने का मध्य मार्ग सरकारों को निकालना होगा और उस पर गंभीरता से अमल करना होगा | 

संतुलन आवश्यक है लेकिन इंसान की एक जान भी बहुमूल्य है | आवारा कुत्तों की आजादी के लिए इंसानी जीवन की अनावश्यक और अकाल कुर्बानिया नहीं दी जा सकती हैं |  

निष्कर्ष

राज्यों द्वारा निर्मित और लागू नई-नीतियाँ एक सकारात्मक पहल हैं –लेकिन सफलता के लिए इन्हे प्रबल राजनीतिक इच्छा शक्ति के साथ सिर्फ कागजों तक सीमित न रख कर ज़मीन पर भी लागू किया जाना चाहिए।

यह बहस देशभर में अभी भी जारी है तथा अभी सुप्रीम कोर्ट का अंतिम फैसला आना बाकी है | क्या यह किसी एक पक्ष की जीत है ? शायद उत्तर यही होगा कि यह जीत सबकी होनी चाहिए अर्थात इंसान भी सुरक्षित हो और डॉग्स भी | 

शुक्रवार, 29 अगस्त 2025

भारत मे आवारा कुत्तों का संकट 2025 : कानून , सुरक्षा और समाधान

दिल्ली -NCR  के पार्कों, सड़कों और रिहायशी कॉलोनियों में आवारा कुत्तों का आतंक  इतना होता जा रहा है कि बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक कोई भी सुरक्षित नहीं है। रोजाना कुत्तों के काटने की घटनाएं  सामने आ रही हैं ,अब सिर्फ एक स्थानीय समस्या नहीं रह गई हैं — सुप्रीम कोर्ट तक ने इस पर बड़ा फैसला सुनाया है। जिसे सम्पूर्ण भारत पर  लागू करने के लिए कहा है | लेकिन सवाल यह है कि क्या अदालत का यह कदम ज़मीनी स्तर पर कुछ बदलेगा? इस लेख में हम जानेंगे हकीकत, कोर्ट का फैसला, और वह मध्यमवर्गीय मार्ग जो लोगों को राहत दिला सकता है।

भूमिका 

भारत की सड़कें करीब 60 मिलियन आवारा कुत्तों का घर हैं |आवारा कुत्तों की लगातार नसबंदी की पुख्ता व्यवस्था न होने के कारण इनकी जनसंख्या तेजी से बढ़ रही है | सरकारी आंकड़ों के अनुसार विगत कुछ वर्षों से आवारा कुत्तों के इंसानो पर हमले की घटनाओं में भी तेजी से बृद्धि दर्ज की गई है | 

भारत में आवारा कुत्तों (Stray Dogs) के हमले जन स्वास्थ्य समस्या में तब्दील हो रहे है | कुत्ते के काटने से रेबीज के कारण हुई 6 वर्षीय बच्ची की मृत्यु पर टाइम्स ऑफ़ इंडिया में कौशिकी शाहा द्वारा लिखित एक लेख प्रकाशित हुआ| जिसका  माननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा स्वतः संज्ञान लिया गया |  

जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट के 11 अगस्त 2025 के आदेश ने आवारा कुत्तों के संकट को फिर सुर्ख़ियों में ला दिया है| जिससे स्पष्ट है कि भारत में मानवअधिकार/ सुरक्षा बनाम पशु अधिकारों पर बहस तेज हो गई है |

एक ओर पशु प्रेमी हैं तथा दूसरी ओर आवारा कुत्तों के हमलो से त्रस्त और परेशान आम जनता है | कुत्तों के हमलों से खौफजदा आमजन पर पशु प्रेमी हावी हैं | पशु प्रेमियों के तरफ से जान्हवी कपूर,वरुण धवन,जॉन अब्राहम,रवीना टंडन,वीर दास और मनोज वाजपेयी जैसे दिग्गज बॉलीवुड अभिनेताओं ने सुप्रीम कोर्ट के आवारा कुत्तों को एनिमल शेल्टर्स में भेजे जाने के आदेश के खिलाफ आवाज उठाई है तथा स्थानीय अधिकारियों की बिफलता को समस्या की जड़  बताया | 

पशु प्रेमियों का दबदबा इतना है कि माननीय सुप्रीम कोर्ट को भी अपने पूर्व में दिए गए आदेश दिनांक 11 /08 /2025 में संसोधन पर पुनर्विचार करते हुए दिनांक 22 /08 /2025  को नए दिशानिर्देशों सहित दूसरा आदेश  पारित करना पड़ा | सुप्रीम कोर्ट के पूर्व आदेश के बाद दिल्ली सहित सम्पूर्ण देश में पशु प्रेमियों ने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व आदेश के विरोध में प्रदर्शन किये | लेकिन दूसरे संशोधित आदेश के बाद वरिष्ठ राजनीतिज्ञ मेनका गांधी,राहुल गाँधी, प्रियंका गाँधी सहित फिल्मी सितारों रूपाली गांगुली और रवीना टंडन ने सुप्रीम कोर्ट के संशोधित आदेश का स्वागत किया |  

सामाजिक सुरक्षा और रेबीज संकट 

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार भारत में हर साल लगभग 20,000 लोगों की मृत्यु रेबीज की बीमारी होने से हो जाती है| इन मौतों में 90 प्रतिशत कुत्तों के काटने से जुडी हुई हैं | ख़बरों से पता चलता है कि कुत्तों के हमले बच्चों और बुजुर्गों पर ज्यादा हो रहे हैं | इस बात का समर्थन करते हुए सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा कि कुत्ते के काटने की घटनाओं से रेबीज से सबसे अधिक प्रभावित बुजुर्ग और बच्चे होते हैं। 

भारत सरकार के एक आँकड़े के अनुसार वर्ष 2024 में कुत्ते काटने की 37 लाख से अधिक घटनाएं दर्ज की गई थी | इन आकड़ों से स्पष्ट है कि आवारा कुत्तों के इंसान पर हमले सामाजिक सुरक्षा के लिए एक गंभीर खतरा बनते जा रहे है | 

अचरज भरी नजरों से घूरता आवारा कुत्ता
आवारा कुत्तों के प्रति बढ़ती घृणा

सतत विकास और सामाजिक संतुलन के लिए सामाजिक सुरक्षा पर आये खतरे को न्यूनतम किया जाना आवश्यक है अन्यथा समाज में आवारा कुत्तों के प्रति घृणा बढ़ना स्वाभाविक है | क्यों कि आवारा कुत्तों के आतंक से बच्चे मारे जा रहे है उनके परिवारीजनों की पीड़ा अथाह है | कालोनियों में लावारिश कुत्तों की भरमार से बच्चों का खेलना कूदना बंद ,साइकिल चलाना बंद हो गया है |

नवंबर 2022 में ४ छात्रों ने एक गर्भवती कुतिया को पीट- पीट मार डाला | पुलिस द्वारा पूछताछ में पता चला कि जब भी  वे क्रिकेट खेलने जाते थे तभी वह उनके ऊपर भोंकती थी | 

सुप्रीम कोर्ट के हालिया आदेश के बाद कानपुर में आवारा कुत्ते का बीबीए की छात्रा पर हमला, जिससे छात्रा गंभीर रूप से घायल हो गई | सोसाइटी वालों ने नाराज होकर कुत्तों को मरवाने का फरमान जारी कर दिया | जिसके बाद पीट पीट कर कुत्ते को मार डाला गया | यद्यपि मामले में प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज की गई है | 

यही नहीं कर्नाटक के एक एमएलसी ने खुलासा किया कि उन्होंने 2800 कुत्तों को मरवाया | खाने में जहर दिया | पेड़ के नीचे दफनाया | उन्होंने यह भी कहा कि बच्चों की सुरक्षा के लिए जेल जाने को तैयार हैं | 

कानून और सुप्रीम कोर्ट का आदेश 2025 

भारत में जानवरों की सुरक्षा और उनके विरुद्ध होने वाली क्रूरता को रोकने के उद्देश्य से पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960 (Prevention of Cruelty to Animals Act, 1960) उपलब्ध है। इस अधिनियम के तहत कुत्ते भी आते हैं | पशुओं के विरुद्ध क्रूरता के प्रथम बार अपराध की स्थति में 50 रूपये तक जुर्माना किया जा सकता है | यद्यपि लम्बे समय से इसमें संशोधन की मांग की जा रही है |

पशु जन्म नियंत्रण नियम ,2023  के नियम 8 के तहत प्रावधानित किया गया है कि टीकाकरण और नसबंदी का उत्तरदायित्व पालतू पशु होने के मामले में पशु स्वामी का होगा तथा सड़क पर रहने वाले या आवारा पशुओं की स्थति में स्थानीय प्राधिकरण उत्तरदाई होगा और इन नियमो के अनुसार पशु नियंत्रण कार्यक्रम चलाने के लिए बोर्ड द्वारा मान्यता प्राप्त किसी संगठन को नियुक्त कर सकता है |  

उड़ीसा हाई कोर्ट की विधि व्यवस्था बाली परिदा बनाम नीरा परिदा  में स्थापित किया गया है कि ," किसी पशु को पीटना अधिनियम की धारा 11(1) के तहत दंडनीय और अपराध नहीं बनता है, जब तक कि पिटाई इस प्रकार की न हो कि पशु को अनावश्यक दर्द या पीड़ा हो।"

कंपैशन अनलिमिटेड प्लस एक्शन बनाम भारत संघ ,(2016) 3 SCC 53 के मामले में न्यायालय ने यह भी माना कि कोई भी कार्य, जो पशुओं को अनावश्यक पीड़ा और कष्ट पहुँचाता है, अपराध है, क्योंकि ऐसा कार्य, पशु क्रूरता अधिनियम की धारा 11 और 3 के तहत पशुओं को दिए गए वैधानिक अधिकारों का उल्लंघन है।

सुप्रीम कोर्ट ने स्वतः प्रेरणा से उत्पन्न याचिका IN RE: “CITY HOUNDED BY STRAYS, KIDS PAY PRICE” में पहले अपने आदेश में दिल्ली-एनसीआर की सड़कों से आवारा कुत्तों को हटाने और उन्हें एनिमल शेल्टर्स में रखने तथा दुबारा न छोड़े जाने के आदेश दिए थे जिसे बाद में बदल दिया गया | 

नए आदेश के अनुसार केवल बीमार और आक्रामक आवारा कुत्तों को एनिमल शेल्टर्स में रखा जाएगा तथा अन्य सभी कुत्तों को टीकाकरण और नसबंदी के बाद उन्ही स्थानों पर छोड़ दिया जाएगा जहाँ से उन्हें पकड़ा गया था |सुप्रीम कोर्ट के फैसले में दर्शित आक्रामक आवारा कुत्तों की परिभाषा के प्रश्न पर भारत की प्रसिद्ध राजनेत्री एवं पशु-अधिकारवादी मेनका गांधी ने गंभीर सवाल उठाया हैं |

समस्या का मानवीय समाधान 

इसमें कोई दो राय नहीं है कि समाज में आवारा कुत्तों के हमलों की समस्या ने गंभीर रूप धारण कर लिया है | लेकिन समाज में किसी समस्या को लेकर टकराव किसी समस्या का समाधान नहीं है |

समस्या की गंभीरता को देखते हुए मानवीय और वैज्ञानिक रूप से स्वीकार्य समाधान की ओर पशु प्रेमियों और कुत्तों के हमलों से पीड़ित लोगो तथा उनका समर्थन करने वाले लोगो को अग्रसर होना पडेगा | इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट के दिशा निर्देशों का सभी को अक्षरशः पालन करना चाहिए जिससे समस्या के समाधान में तेजी आ सकेगी |

उत्तर प्रदेश के आगरा जिले में आवारा कुत्तों का टीकाकरण अभियान |

विशेष तौर पर आवारा कुत्तों की एक निश्चित समय सीमा में नसबंदी और टीकाकरण कराया जाना, जिससे विश्व स्वास्थ्य संगठन के पैमाने को संतुष्ट किया जा सके, जिससे प्रभावी रूप से आवारा कुत्तों की जनसंख्या बृद्धि रोकी जा सके |

इसके लिए पब्लिक- प्राइवेट पार्टनरशिप के मॉडल को अपनाया जा सकता है | इसके अतिरिक्त स्थानीय डॉग फीडर्स और रेजिडेंशियल वेलफेयर एसोसिएशन की मदद से सामुदायिक भागीदारी को बढ़ाकर समस्या के मानवीय हल को निकाला जा सकता है | 

आवश्यकता अनुसार पब्लिक प्राइवेट मॉडल पर डॉग शेल्टर होम्स की स्थापना करना तथा एडॉप्शन कार्यक्रम को बढ़ावा देना | रेबीज वेक्सीन की बिना किसी बाधा के आसान और निशुल्क उपलब्ध्ता सुनिश्चित करना | आवारा कुत्तों और इंसानो के बीच सहअस्तित्व के साथ बच्चों और परिवारों को सुरक्षित रहने की ट्रेनिंग के लिए जागरूकता पैदा करके | 

निष्कर्ष 

भारत में आवारा कुत्तों का संकट सिर्फ सामाजिक या कानूनी बहस का मुद्दा नहीं है, बल्कि यह जन सुरक्षा,स्वास्थ्य और प्रकृति के संतुलन का मुद्दा है | 

अगर माननीय सुप्रीम कोर्ट के दिशा निर्देशों के तहत सरकार ,समाज और पशु प्रेमी /पशु अधिकार संगठन काम करें,तो इंसान और आवारा कुत्तों  दोनों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सकती है  तथा इंसान और आवारा कुत्तों के बीच टकराव को मानवीय स्पर्श के साथ समाप्त किया जा सकता है |   

भारत में आवारा कुत्तों का संकट 2025 -FAQ 

प्रश्न : भारत में कितने आवारा कुत्ते हैं ?

उत्तर : भारत में लगभग 6. 2  करोड़ से अधिक आवारा कुत्ते हैं ,और उनकी जनसंख्या लगातार बढ़ रही है | 

प्रश्न : क्या भारत में आवारा कुत्तों को मारा जा सकता है ?

उत्तर : नहीं | पशु जन्म नियंत्रण नियम ,2023 तथा कोर्ट के निर्णय आवारा कुत्तों को मारने की अनुमति नहीं देते हैं | 

प्रश्न :सुप्रीम कोर्ट ने 2025 में क्या आदेश किया है ?

उत्तर : सुप्रीम कोर्ट ने आवारा कुत्तों को शेल्टर होम भेजने और उनका टीकाकरण और नसबंदी करने के बाद बीमार और आक्रामक कुत्तो को छोड़कर अन्य सभी कुत्तों को जहा से उठाया था उसी स्थान पर छोड़ने के आदेश दिए है | 

प्रश्न : आवारा कुत्तों की समस्या का स्थाई समाधान क्या है ?

उत्तर : सामुदायिक भागीदारी से नसबंदी ,टीकाकरण और डॉग सेंटर्स की स्थापना मानवीय और स्थाई समाधान है |   

   

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