मंगलवार, 26 अगस्त 2025

काटते कुत्तों से कराहते लोग: सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला और NCR की सच्चाई!

आवारा कुत्ता (STRAY DOG)

प्रस्तावना 

भारत आवारा कुत्तों की एक गंभीर समस्या से जूझ रहा है | आज देश भर में सड़कों और गलियों में आम आदमी को चोर उच्चक्कों और बदमासो से इतना डर नहीं है जितना डर आवारा कुत्तों के हमलों का है | आये दिन अखबारों और न्यूज़ चैनलों में खबरे आती है -बच्चो पर आवारा कुत्तों का हमला, कुत्तों ने सुबह की सैर करते बुजुर्ग को नौचा, कुत्तो के काटने से अस्पताल में भर्ती, अस्पातल में रैबीज के टीके की किल्लत |

आवारा कुत्तों के हमलों का भारत पर दबाब

सरकारी आकड़ों के अनुसार भारत में डॉग बाईट (कुत्ता काटने) की घटनाएं साल दर साल बड रही हैं | वर्ष 2022  में  डॉग बाईट की 21,89,909  घटनाएं हुई | वर्ष 2023 में ये घटनाएं बढ़कर 30,52,521 हो गई  तथा वर्ष 2024 में इन घटनाओं में अप्रत्याशित बृद्धि हुई और 37,15,713  घटनाओं तक पहुच गई | सिर्फ जनवरी 2025 के आकड़े  4,29,664 घटनाओं तक पहुंच गए | ये आकड़े सरकारी है यद्यपि वास्तविकता में ये आकड़े और भी अधिक हो सकते हैं | यानी हर साल लाखों लोग आवारा कुत्तों के काटने से पीड़ित हो रहे है और खौफजदा हैं |

सुप्रीम कोर्ट का हालिया फैसलाआम आदमी को इंसाफ की उम्मीद ?

आवारा कुत्तो के हमलों को लेकर लम्बे समय से देश के विभिन्न हाई कोर्ट्स और सुप्रीम कोर्ट में कानूनी लड़ाई चल रही है | न्याय भूमि बनाम गवर्नमेंट ऑफ़ एन सी टी ऑफ़ दिल्ली एंड अदर्स के मामले में दिल्ली हाई कोर्ट ने स्थापित किया कि, "दिव्यांगजनों को आवारा पशुओं के हमले के खतरे के बिना चलने का मौलिक अधिकार है।" भारत में दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकारों को सुनिश्चित करने वाला एक कानून बना, जिसे दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016 के रूप मे जाना जाता है | 

माननीय सुप्रीम कोर्ट ने टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी एक खबरसिटी हाउंडेड बाय स्ट्रेज, किड्स पे प्राइसके आधार पर मामले का स्वतः संज्ञान लिया था इस खबर में रैबीज से छह साल की बच्ची की मौत के बारे में बताया गया था|

कोर्ट ने 11 अगस्त 2025 को आदेश दिया कि किसी भी परिस्थिति में सड़कों से पकडे गए आवारा कुत्तों को उनके स्थानांतरण के बाद फिर से सड़कों पर नहीं छोड़ा जाना चाहिए। इस संबंध में, संबंधित अधिकारियों द्वारा नियमित रूप से उचित रिकॉर्ड रखा जाना चाहिए।आवारा कुत्तों को पशु जन्म नियंत्रण नियम, 2023 के अनुसार पकड़ा जाएगा, उनकी नसबंदी की जाएगी और उनका टीकाकरण किया जाएगा | जैसा कि ऊपर उल्लेख किया गया है,उन्हें वापस नहीं छोड़ा जाएगा। कुत्ता आश्रयों/पाउंडों में आवारा कुत्तों की नसबंदी और उनका टीकाकरण करने के लिए और हिरासत में लिए जाने वाले आवारा कुत्तों की देखभाल के लिए पर्याप्त कर्मचारी होने चाहिए।

दिल्ली सरकार की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने बताया कि साल 2024 में भारत में 37 लाख से ज्यादा कुत्ता काटने के मामले दर्ज हुए। उन्होंने दलील दी कि सिर्फ नसबंदी से हमलों को रोका नहीं जा सकता और बच्चों, बुजुर्गों और कमजोर वर्गों की सुरक्षा के लिए तुरंत कदम उठाना जरूरी है।

सभी पक्षों को सुनने के बाद जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस संदीप मेहता और जस्टिस एन.वी. अंजरिया की तीन जजों की पीठ ने 22 अगस्त 2025 को संशोधित दिशानिर्देश जारी किए, जो इस प्रकार हैं:

1.आवारा कुत्तों को पकड़ कर नगर निगम और प्राधिकरण द्वारा नसबंदी और टीकाकरण किया जाय।

2.रेबीज से संक्रमित या आक्रामक कुत्तों को छोड़ कर अन्य सभी आवारा कुत्तों को नसबंदी और टीकाकरण के बाद वापस उनके इलाकों में छोड़ा जाए|

3.हर वार्ड में फीडिंग जोन बनाए जाएं, और सड़कों पर खाना खिलाना प्रतिबंधित होगा।

4.कोर्ट के आदेश के पालन में बाधा डालने वाले व्यक्ति या संगठन पर कार्रवाई होगी।

5.जो नागरिक आवारा कुत्तों को गोद लेने के इच्छुक हैं वे नागरिक नगर निगम से संपर्क कर विधिवत प्रक्रिया के तहत कुत्ते को गोद ले सकते हैं, लेकिन उन्हें सुनिश्चित करना होगा कि वह कुत्ता दोबारा सड़क पर न आए।

6.कोर्ट के आदेश में यह मामला अब सिर्फ दिल्ली एनसीआर का नहीं रहा बल्कि इसका विस्तार सम्पूर्ण भारत के लिए कर दिया गया है | अब सभी राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों को ABC नियम, 2023  का पालन करना होगा | 

कोर्ट के इस फैसले ने एनिमल लवर्स को निश्चित रूप से खुश होने का अवसर दिया है, लेकिन काटते कुत्तों से कराहते लोगों को शायद वह राहत नहीं मिली है जिसकी उन्हें उम्मीद थी | ज़मीनी स्तर पर कुत्तों के हमले से आमजन को राहत कैसे मिलेगी यह तो आने वाला समय ही बताएगा |

आम आदमी की हालत

बच्चे खेल के मैदान में जाने से डरते हैं। माता-पिता बच्चों को अकेले स्कूल भेजने से कतराते हैं। बुज़ुर्ग सुबह-सुबह वॉक पर निकलने से डरते हैं। दिहाड़ी मज़दूर और ग़रीब तबका सबसे ज्यादा पीड़ित है, क्योंकि उनके पास कुत्तों के हमलों से बचने के लिए आवागमन के लिए चार पहिया वाहन नहीं हैं, महंगे रेबीज इंजेक्शन या सुरक्षित गेट बन्द कॉलोनी का विकल्प ही नहीं है। सवाल यह हैजब इंसान ही सुरक्षित नहीं रहेगा तोमानव अधिकारकिस काम के?

दैनिक भास्कर में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार एक कुत्ते ने मात्र घंटे में करीब 25 मासूम बच्चों पर हमले किये | भारत के अन्य शहरों से भी खबरे है जिनमे मासूम बच्चों को कुत्तों के झुण्ड ने बुरी तरह से नौचा और बाद में उनकी मृत्यु हो गई |  सोशल मीडिया पर तैरते इन घटनाओं के वीडियो अत्यधिक ह्रदय बिदारक है| जिन्हे एक सामान्य आदमी देख भी नहीं सकता है |

यद्यिप सरकार के आकड़े के अनुसार कुत्ते के काटने से होने वाली रैबीज की बीमारी से मौतों का आकड़ा एक सैकड़ा से भी नीचे है लेकिन काटने के मामले लाखों में होने से इनके इलाज से गरीब आम आदमी की कमर टूट रही है| जबकि अधिकाँश गरीब इसके इलाज के लिए सरकारी अस्पताल पर ही निर्भर रहते है | जहाँ कभी उन्हें विभिन्न वजहों से एंटी रैबीज टीके नसीब नहीं हो पाते और उन्हें अनावश्य्क और अकाल मृत्यु को गले लगाना पड़ता है |

मासूम की तड़प -तड़प कर मृत्यु

आगरा में एक बच्ची को कुत्ते ने काट लिया | उसका पिता उसे सरकारी स्वास्थ्य केंद्र पर ले गया| जब उसने स्वास्थ्य कर्मियों को बच्ची को टीका लगवाने के लिए कहा तो उन्होंने बच्ची का आधार कार्ड मांगा जो उस समय पर उसके पास नहीं था | दुबारा उसके कभी एंटी रेबीज का टीका नहीं लग पाया | आखिरकार  कुछ समय बाद उस मासूम बच्ची की तड़प -तड़प कर मृत्यु हो गई | उत्तर प्रदेश के माननीय मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा अधिकारियों से घटना की विस्तृत जांच रिपोर्ट मांगी |यह मामला है वर्ष 2019 का तथा इस सम्बन्ध में 28 अगस्त के  "द टाइम्स ऑफ़ इंडिया" के दिल्ली/आगरा अंक में खबर छपी |

आवारा कुत्तों के हमले में बदनसीब बाप ने अपनी मासूम बच्ची को खो दिया| उसकी मदद के लिए सरकार आई कुत्तों के लिए आँसू बहाने वाले एनिमल लवर्स और गैर सरकारी संगठन | मासूम बच्ची को बचपन में ही खोने की अथाह पीड़ा उसका परिवार ही समझ सकता है अन्य कोई नहीं

बच्ची के पिता ने आगरा के मानव अधिकार न्यायालय में मुआवजे के लिए एक याचिका डाली थी | वह याचिका भी मूल क्षेत्राधिकार के अभाव में खारिज हो गई

उसे किसी प्रकार का न्याय मिला क्या ? शायद नहीं ? उसकी गरीबी के चलते वह अपना केस उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय तक ले जाने में असमर्थ रहा | गरीबी हमेशा मानव अधिकारों का अतिक्रमण करती है |

डॉग लवर्स बनाम पीड़ित लोग

इस पूरे मुद्दे पर समाज स्पष्ट रूप से दो हिस्सों में बंट गया है,एक तरफ एनिमल लवर्स की दलीलें है और दूसी और आवारा कुत्तों के हमलों से पीड़ित लोग, भयभीत या कराहते लोगों की दलीलें | डॉग लवर्स कहते हैं – “कुत्तों को उनके मूल निवास स्थान से हटाना अमानवीय है। उन्हें भी जीने का अधिकार हासिल हैं।”  पीड़ित कहते हैं – “इंसान की जान सबसे ऊपर है।"  

आराम करते आवारा कुत्ते  (STRAY DOGS)

इस बात को टी एम इरशद बनाम केरला राज्य, 2024 में केरला उच्च न्यायालय ने भी स्थापित किया है कि, "आवारा कुत्ते हमारे समाज में एक ख़तरा पैदा कर रहे हैं। स्कूली बच्चे अकेले स्कूल जाने से डरते हैं क्योंकि उन्हें डर है कि कहीं आवारा कुत्ते उन पर हमला न कर दें। कई नागरिकों की सुबह की सैर पर जाना आदत बन गई है। आवारा कुत्तों के हमले की आशंका के कारण आजकल कुछ इलाकों में सुबह की सैर भी संभव नहीं है। अगर आवारा कुत्तों के खिलाफ कोई कार्रवाई की जाती है, तो कुत्ते प्रेमी उनके लिए लड़ेंगे। लेकिन हमारा मानना ​​है कि इंसानों को आवारा कुत्तों से ज़्यादा तरजीह दी जानी चाहिए। बेशक, इंसानों द्वारा आवारा कुत्तों पर बर्बर हमले की भी अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।"

हाँ,आम आदमी और गरीब की एक चिंता जरूर है कि अगर कुत्तों से हमारी जान जाएगी या उनके काटने से शारीरिक ,मानसिक और आर्थिक पीड़ा होगी, तो हमारे अधिकारों का क्या होगा?”

समाधान

भारत मे आवारा कुत्तो के हमलो की गम्भीर समस्या का समाधान निम्नवत संभव है |

1.तेज़ नसबंदी अभियान – वर्ल्ड आर्गेनाइजेशन ऑन एनिमल हेल्थ के अनुसरण में सरकार द्वारा आवारा कुत्तों के 70 %  का तेजी के साथ टीकाकरण और नसबंदी का लक्ष्य ईमानदारी से प्राप्त किया जाना चाहिए | 

2.डॉग शेल्टर होम्स का निर्मानहर शहर में व्यवस्थित तौर पर डॉग शेल्टर्स /सेंटर बनाए जाएं।

3.रैबीज़ वैक्सीन की मुफ़्त् व्यवस्थाखासकर गरीब तबके के लिए वेक्सीन की व्यवस्था निशुल्क करने का प्रावधान हो |  

4.जवाबदेही तय होनगर निगम और प्रशासन पर कुत्तों की नसबंदी और उनके वेक्सीनेशन के सम्बन्ध में उत्तरदायित्व सुनिश्चित किया जाए | लापरवाही की स्तिथि में जुर्माना लगाया जाना चाहिए |

5.सख्त कानूनइंसान की जान को खतरे में डालने वाले मामलों में सख्त दंड का प्रावधान किया जाए | कुत्ते के काटने से घायल या मृत्यु की स्तिथि में तत्काल आर्थिक मुआवजे का प्रावधान किया जाए |

निष्कर्ष

भारत में यह बहस सिर्फ कुत्तों के अधिकार बनाम इंसानों के अधिकार की नहीं है।असल सवाल यह है किक्या हम अपनी सड़कों और गलियों को बच्चों ,बुजुर्गों और आमजन के लिए सुरक्षित बना पाएंगे या नहीं? डॉग लवर्स की भावनाएं अपनी जगह सही हो सकती हैं, लेकिन इंसान का जीवन सबसे पहले आता है ,जिसका समर्थन माननीय केरला हाई कोर्ट ने भी अपने एक निर्णय में किया है | सुप्रीम कोर्ट ने दिशा तो दिखा दी हैलेकिन असली इंसाफ तभी मिलेगा जब कानून, सरकार और समाज मिलकर एक ठोस कदम उठाकर समस्या का सम्पूर्ण समाधान करने में सफल होंगे | क्योंकि सवाल अब भी वही है – “काटते कुत्तों से कराहते लोग आखिर कहाँ और कब पाएंगे इंसाफ?”

FAQ (अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न ):-

प्रश्न :भारत में Stray Dogs इतने क्यों हैं?

उत्तर : भारत में Stray Dogs की संख्या ज़्यादा है क्योंकि नसबंदी (spaying/neutering) कम होती है, कूड़े-कचरे और समाज से उन्हें आसानी से खाना मिल जाता है।

प्रश्न : क्या Stray Dogs इंसानों के लिए खतरनाक हैं?

उत्तर : हाँ। भारत में हर वर्ष करीब 47 लाख लोग Dog Bites का शिकार होते हैं और इनमें से सैकड़ों मौतें Rabies Infection से होती हैं।

प्रश्न : क्या Stray Dogs को मारना कानूनन सही है?

उत्तर : नहीं। भारत में Prevention of Cruelty to Animals Act, 1960 और ABC Rules, 2023 के अनुसार Stray Dogs को मारना गैर-कानूनी है।

प्रश्न : अगर Stray Dog काट ले तो क्या करें?

उत्तर : काटने के घाव को तुरंत साबुन और पानी से धोएं, तत्काल डॉक्टर से संपर्क कर  Anti-Rabies Vaccine (ARV) और Tetanus Injection लगवाएं | 

प्रश्न : क्या Stray Dogs को खाना खिलाना गैर-कानूनी है?

उत्तर : नहीं। Supreme Court और High Court के फैसलों के अनुसार Stray Dogs को खाना खिलाना अपराध नहीं है। लेकिन नगर निगम या स्थानीय प्रशाशन द्वारा निर्धारित फीडिंग ज़ोन्स पर ही खाना खिलाने की अनुमति है |  

प्रश्न : Stray Dogs की नसबंदी और Vaccination की जिम्मेदारी किसकी है?

उत्तर : नगर निगम (Municipal Corporations) की कानूनी जिम्मेदारी है | यह जिम्मेदारी उन्हें  ABC (Animal Birth Control) Program,2023  के अनुसरण में निर्वहन करनी होती है | 

प्रश्न : Rabies से सबसे ज़्यादा खतरा किससे है?

उत्तर :विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार भारत में हर साल लगभग 20,000 मौतें Rabies से होती हैं और इनमें से 95% केस Dog Bites से जुड़े होते हैं।

प्रश्न: Stray Dogs इंसानों पर हमला क्यों करते हैं?

उत्तर : ज़्यादातर कुत्ते भूख, डर या अपने बच्चों की रक्षा करने के कारण इंसानों पर हमला करते हैं।

प्रश्न :सुप्रीम कोर्ट का Stray Dogs पर हालिया फैसला क्या कहता है?

उत्तर : सुप्रीम कोर्ट ने लोगों की सुरक्षा और कुत्तों के अधिकार दोनों  में संतुलन करने का प्रयास किया  | नगर निगम को नसबंदी और टीकाकरण तेज़ करने का आदेश दिया गया।नसबंदी और टीकाकरण के बाद आवारा कुत्तों को उसी स्थान पर छोड़ने के आदेश किये है जहाँ से उन्हें पकड़ा था | 

प्रश्न : Stray Dogs की समस्या हो तो क्या करें?

उत्तर : स्थानीय नगर निगम को शिकायत करें| Stray Dogs को मारना गैर-कानूनी है।

  

शनिवार, 23 अगस्त 2025

आवारा कुत्तों की घर वापसी – डॉग लवर्स की बड़ी जीत!

 

आवारा कुत्ते

प्रस्तावना

भारत में ही नहीं बल्कि विश्व भर के अनेक देशों में आवारा कुत्तों के हमलों का मुद्दा लम्बे समय से विवाद का केंद्र रहा है | भारत की सड़कों पर आवारा कुत्तों की बढ़ती संख्या,उनके ताबड़-तोड़ हमले और भय से आम लोग परेशान और त्रस्त रहे है | राज्यों के अलग अलग स्थानीय नगर निगम और ग्राम पंचायत कानूनों में प्रावधान है कि सड़कों को आवारा जानवरों से मुक्त कराना स्थानीय निकायों की जिम्मेदारी है | इस जिम्मेदारी का कोई निर्वहन उचित रूप से कही भी दृष्टिगोचर नहीं होता है | अभी हाल ही में  कुत्तों के काटने से दिल्ली में हुई 6 वर्षीय बच्ची की मृत्यु का समाचार टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,अंगरेजी दैनिक में  छापा | जिसका माननीय सुप्रीम कोर्ट ने स्वतः संज्ञान लिया | जिसके बाद दिल्ली सरकार को सड़क से आवारा कुत्तों को हटाकर शेल्टर होम्स में भेजनी का आदेश दिया गया | 

इस आदेश के आते ही डॉग लवर्स और जानवरों के लिए काम कर रहे गैरसरकारी संगठनों ने इसका पुरजोर विरोध किया | मेनका गाँधी ,राहुल गाँधी,भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश काटजू साहब तथा अनेक  बड़े- बड़े  फिल्म स्टार एनिमल लवर्स के समर्थन में खड़े दिखाई दिए | एनीमल लवर्स ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को अमानवीय बताया तथा याय भी दलील दी कि जानवरों के भी अधिकार होते हैं | 

आख़िरकार हाल ही में  दिनांक 22 /08 /2025 को सुप्रीम कोर्ट का संशोधित फैसला सामने आया | देश की सर्वोच्च अदालत ने अपने फैसले में बदलाव करते हुए आवारा कुत्तों की नसबंदी करने के बाद उन्हें उन्हीं इलाकों में छोड़े जाने के आदेश दिया है, जहाँ से उन्हें पकड़ा गया था।

अदालत और प्रशासन का फैसला

सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट ने कई सुनवाइयों में कहा कि कुत्तों को उनके मूल निवास स्थान से बेदखल नहीं किया जा सकता है | इस सम्बन्ध में मौलिक विधि पशु जन्म नियंत्रण (कुत्ते) नियम, 2001 के तहत प्रावधान किये गए है, जिसके तहत भी भारत में किसी भी व्यक्ति, रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशन या एस्टेट प्रबंधन के द्वारा आवारा कुत्तों की उनके मूल निवास से बेदखली या स्थानांतरण गैरकानूनी है।उन्हें किसी भी स्तिथि में हटाया नहीं जा सकता है | 

हालिया फैसले में माननीय न्यायालय ने  दिल्ली सरकार को आदेशित किया है कि आवारा कुत्तों की नसबंदी और टीकाकरण (Vaccination) के बाद उन्हें उनके मूल स्थान पर ही छोड़ा जाए | यह फैसला डॉग लवर्स की बड़ी जीत है | 

डॉग लवर्स की जीत क्यों?

डॉग लवर्स का सबसे बड़ा तर्क यही था कि आवारा कुत्ते भी समाज का अभिन्न अंग हैं।प्राकृतिक संतुलन आवश्यक है | आवारा कुत्तों को उनके मूल निवास स्थान से उठा ले जाना और शेल्टर् होम्स में रखना उनके अधिकार का उलंघन है क्यों कि जानवरो के भी अधिकार होते हैं | यह कार्य अमानवीय भी है | 

किसी व्यक्ति द्वारा दिया गया खाना खाता हुया आवारा कुत्ता

आवारा कुत्तों की घर वापसी के फैसले ने यह साबित कर दिया कि अदालत भी जानवरों के अधिकारों  को उतना ही महत्व देती है जितना इंसानों के अधिकारों को। माननीय सुप्रीम कोर्ट का यह ऐतिहासिक फैसला उन सभी गैरसरकारी संगठनों और पशु अधिकार कार्यकर्ताओं के लिए बड़ी तथा अविस्मरणीय जीत है, जिन्होंने  हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के तत्काल बाद रात्रि को ही दिल्ली में स्थित इंडिया गेट पर फैसले के विरोध जोरदार विरोध प्रदर्शन किया और सभी एनिमल लवर्स को एक जुट होने का आह्यवान किया था | यह जीत एनिमल लवर्स को मात्र 11 दिन में मिल गई |  

आम जनता की चिंता

हालांकि यह फैसला डॉग लवर्स के लिए जीत है, लेकिन आम जनता  के लिए अभी भी विचारणीय मुद्दा है तथा राहत की बात यह है कि सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि उग्र कुत्तों और बीमारी से ग्रस्त आवारा कुत्तों को नहीं छोड़ा जाएगा | आम जनता अर्थात कुत्तों के हमलो से पीड़ित लोगों के लिए सिर्फ यही राहत की बात है | देखना यह है कि बच्चों और बुज़ुर्गों पर आवारा कुत्तों के हमलों में सुप्रीम कोर्ट के आदेश से क्या कमी आती है यह तो भविष्य ही बताएगा | 

आमजन का मानना है कि अगर कुत्तों की घर वापसी हो रही है तो सरकार को ईमानदारी और सख़्ती से नसबंदी और वैक्सीनेशन लागू करना होगा, ताकि आमजन को कुछ राहत मिल सके |  

आगे का रास्ता – संतुलन की ज़रूरत

यह फैसला साफ़ करता है कि सिर्फ़ कुत्तों को उनकी मूल निवास से हटाना या उनका मारा जाना समस्या का कोई मानवीय हल नहीं है| विश्व स्वास्थय संघटन के पैमाने के अनुसार नसबंदी (Sterilization) से उनकी संख्या नियंत्रित की जा सकती है, लेकिन यह कार्य ईमानदारी और प्रबल राजनैतिक इच्छा सक्ति के तहत होना चाहिए | इसके साथ ही आवारा कुत्तों के वैक्सीनेशन (Vaccination) से रेबीज़ जैसी बीमारियों से बचाव होगा।जो अनावश्यक और अकाल मृत्यु को रोकने के लिए महत्वपूर्ण कदम है | कुत्तों के लिए फीडिंग जोन बनाये जाने से भी आमजन और आवारा कुत्तों के बीच टकराव  कम होने की अच्छी सम्भावनाये है | साथ ही सभी को आवारा कुत्तों के साथ सहअस्तित्व की बेहतर संभावनाओं को तलाशने के लिए कार्य करने की आवश्यकता है | 

निष्कर्ष

आवारा कुत्तों की घर वापसी सिर्फ़ एक न्यालयिक निर्णय नहीं, बल्कि यह मानवाधिकारों और पशु-अधिकारों के बीच संतुलन का प्रतीक है।

जहाँ डॉग लवर्स इसे अपनी बड़ी जीत मान रहे हैं, वहीं आम नागरिक उम्मीद लगाए बैठे हैं कि अब सरकार और नगर निगम उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करने में कोई हीला हवाली नहीं करेंगे।

बुधवार, 13 अगस्त 2025

आवारा कुत्तों के आगे बेबस इंसान – किसका हक पहले ?

STRAY DOGS

भूमिका 

अभी हाल ही में आवारा कुत्तों से सम्बंधित एक मामले की सुनवाई के दौरान दिल्ली हाई कोर्ट ने टिपणी की कि  “कुत्ते इंसान के सबसे अच्छे दोस्त हैं उन्हें गरिमा के साथ जीने का हक है |” अर्थात जानवरों के जीवन के अधिकार को माननीय न्यायालय द्वारा स्वीकार किया गया है | लेकिन हाल ही के वर्षों में आवारा कुत्तों के बच्चों,बुजुर्गों और आमजन पर हो रहे जान लेवा और भीभत्स हमलों ने सम्पूर्ण भारत में त्राहिम - त्राहिम मचा रखी है | आमजन में अपने बच्चों और बुजुर्गों पर आवारा कुत्तों के हमलों को लेकर चिंत्ता बढ़ी है | यही नहीं लोग आवारा कुत्तों से जुड़े मामले लेकर कोर्ट्स का दरवाजा खटखटाने को मजबूर हुए है | 

A dog attacking children in Bhilwara district of Rajasthan

कुत्तों के हमले एक गंभीर समस्या 

दैनिक भास्कर की एक रिपोर्ट के अनुसार 19 जुलाई 2025 को राजस्थान के भीलवाड़ा जिले में कुत्ते की काटने की एक घटना में  कुत्ते ने 2 घंटे में 45 लोगों पर हमला किया तथा उनके हाथ-पैर नोचे,  इनमे 25 बच्चे भी शामिल थे | 

सम्पूर्ण देश में हो रहीं इस तरह की घटनाओं ने इंसानी जान के प्रति खतरे को गंभीर कर दिया है इस कारण लोग इसे गंभीरता से ले रहे है | आज इंसान और जानवरों के बीच एक संघर्ष की स्तिथि पैदा हो गई है | 

न्यायालयिक पहुंच 

माननीय पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय में कुत्तों के काटने की घटनाओं से सम्बंधित 193 रिट याचिकाएं हुई | जिनका निस्तारण मानीय न्यायालय ने एक साथ किया | यही नहीं देश के कई अन्य राज्यों के उच्च न्यायालयों में भी कुत्तों के काटे जाने की घटनाओं को लेकर मामले दायर किये गए हैं | 

अभी हाल ही में देश की सर्वोच्च अदालत ने दिल्ली में कुत्तों द्वारा काटे जाने से रेबीज होने के कारण एक 6 वर्षीय बची की मृत्यु को लेकर एक अंग्रेजी अखबार टाइम्स ऑफ़ इंडिया में छपी खबर का संज्ञान लेते हुए स्वप्रेरणा से एक जनहित याचिका को स्वीकार किया गया | याचिका पर प्राथमिक सुनवाई सुनवाई के बाद मानीय सर्वोच्च न्यायालय ने आदेश दिया कि 8 हफ़्तों के अंदर दिल्ली सरकार को दिल्ली एनसीआर की सड़को से सभी आवारा कुत्तो को एनिमल शेल्टर्स में शिफ्ट करे | कुत्तों के हमलों के खतरों से बचाव के सम्बन्ध में सर्वोच्च अदालत का यह एक ऐतिहासिक फैसला है | जो बच्चे कुत्तों के डर से स्कूल जाने से,पार्क में जाने से,बाजार जाने से डरते थे अब वे चैन  की सांस ले सकेंगे | ये फैसला विशेष कर बच्चों और वुजुगों के लिए जीवनदायी सिद्ध होगा |    

आमजन बनाम कुत्ता प्रेमी 

कई बार न सिर्फ आवारा बल्कि अनेक जगह पालतू कुत्तों के हमले भी जानलेवा साबित हुए हैं | ऐसी स्तिथि में इंसानी हुकूक और कुत्तों के हुकूक के बीच प्राथमिकता का एक बड़ा प्रश्न खड़ा हो जाता है | एक तरफ आमजन जो कुत्तों के हमलों से परेशान है, दुसरी तरफ कुत्ता प्रेमियों की फ़ौज जो हमेसा कुत्तों को जहाँ वह रहता है से दुसरे स्थान पर स्थानांतरित करने का विरोध करते है ,के बीच असमंजस और संघर्ष की स्थति उत्पन्न हो गई है | 

इंसान की जान से ज्यादा कुत्तों की जान को प्राथमिकता ?

क्या हम एक ऐसे दौर में जी रहे हैं जहाँ इंसान की जान से ज्यादा कुत्तों की जान को प्राथमिकता दी जा रही है ? इंसानी जीवन को खतरों से बचाना उसका हक़ नहीं है ? कुत्तों के हमलों से इंसानी जीवन को होने वाले खतरे की जिम्मेदारी कौन लेगा ? अन्ततोगत्वा ये जिम्मेदारी जागरूक समाज और राज्य को ही उठानी पड़ेगी | इंसान बनाम कुत्ते– प्राथमिकता किसे दी जानी चाहिए ? पीड़ित हमेशा इंसान के पक्ष में होगा, लेकिन जानवर प्रेमी सदैव कुत्तों के पक्ष में खड़े दिखाई देते है | कुत्तों के हमलों में मासूम और इकलौतों बच्चों की मृत्यु पर भी पशु प्रेमियों की संवेदनाये  बहुत ही कम द्रष्तिगोचर होती है | भारत में सड़क पर घूमने वाले आवारा कुत्तों की संख्या लाखों में है। ऐसा नहीं है कि  सभी कुत्ते आक्रामक  या रेबीज के बाहक है लेकिन  फिर भी समस्या गंभीर है तथा आमजन में आक्रोश है |  इनमें से अनेक कुत्ते कोई नुकसान नहीं करते। लेकिन…कई बार ये झुंड में हमला कर देते हैं | छोटे बच्चों पर, बुजुर्गों पर, अकेले जा रहे लोगों पर।

भारत में कुत्ते काटने की घटनाओं का सरकारी आँकड़ा

भारतीय संसद में प्रस्तुत एक रिपोर्ट के मुताबिक़ हर साल करीब 37 लाख कुत्तों के काटने की घटनाये दर्ज हो रही हैं और कई मामलों में लोगों की जान भी जा रही है। कुत्तों के हमलों और उससे होने वाली रेबीज की बीमारी से बच्चे, बूढ़े और जवानों की अकाल और अनावश्यक मृत्यु की ख़बरें लगातार सामने आ रही हैं | लेकिन जब भी कोई आवाज़ उठाता है, जानवर प्रेमी विरोध के लिए सामने होते हैं | जानवरों के कोई हकूक नहीं है इसमे कोइ सचाई  नाही है  बल्कि  सच्चाइ यह है  कि जानवरों को कानूनी हकूक हासिल हैं | कोई उनके खिलाफ नहीं है | कोई नहीं चाहता कि कुत्ते समाज का एक अंग न हो लेकिन ये जिम्मेदारी से हो | कोई जिम्मेदारी तो ले | जिम्मेदारी के लिए कोई सामने नहीं आता | सब चाहते हैं – प्रशासन जिम्मेदारी ले। इस सम्बन्ध में स्थानीय निकाय कानूनों में आवारा जानवरों के प्रबंधन के प्रावधान किये गए है उनका अनुसरण होना चाहिए |

इंसानी जीवन को प्राथमिकता

ये झगड़ा इंसान और जानवरो के बीच का नहीं है, ये मुद्दा है सुरक्षा और संवेदनशीलता के बीच का।इंसानी सुरक्षा भी जरूरी है और जानवरों के प्रति संवेदनशीलता भी ज़रूरी हैं… लेकिन प्राथमिकता इंसानी जीवन को मिलनी ही चाहिए।यह कहना है केरल उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति पी वी कुन्हीकृष्णन का | उन्होंने यह भी कहा कि,"आवारा कुत्तों के हमले के डर से अनेक बच्चे अकेले स्कूल जाने से डरते हैं। अनेक लोग सुबह की सैर करने से डरते है |अगर आवारा कुत्तों के खिलाफ कोई कार्रवाई की जाती है, तो कुत्ते प्रेमी उसके लिए लड़ने के लिए तैयार रहेंगे |"

भारत में न्यायालय का फैसला सर्वोपरि है | हम सब  बतौर एक अच्छे नागरिक उसका पालन करने के लिए प्रतिबद्ध है | पशु प्रेमी भी अपनी जायज बात भारत के किसी भी न्यायालय में रखने के लिए स्वतंत्र है | ख़तरा मुक्त वातावरण संतुलित विकास के लिये आवश्यक है | 

FAQ :-

प्रश्न : दिल्ली में आवारा कुत्तों से कैसे छुटकारा पाएं?

उत्तर :नई दिल्ली स्थित भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने एक स्वप्रेरित जनहित याचिका में फैसला सुनाया कि आठ हफ़्तों के भीतर सभी आवारा कुत्तों को पकड़कर स्थायी रूप से आश्रय गृहों में रखा  जाए ।

प्रश्न : दिल्ली में आवारा कुत्तों के साथ क्या हो रहा है?

उत्तर: सर्वोच्च न्यायलय ने दिल्ली सरकार को आदेशित किया है कि दिल्ली एनसीआर की सड़कों से सभी आवारा कुत्तों को आश्रय गृहों में भेजा जाए | 

प्रश्न : कुत्तों पर सुप्रीम कोर्ट का क्या आदेश है?

उत्तर : कुत्तों पर सुप्रीम कोर्ट का आदेश  दिल्ली एनसीआर की सड़कों पर आवारा कुत्तों को पकड़ कर उन्हें आश्रय गृहों में स्थाई तौर पर भेजा जाए तथा इस कार्य में बाधा डालने वालों पर अदालत की अवमानना की कार्यवाही की चेतावनी भी दी है | 

  







 

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प्रस्तावना   "लड़की का जन्म ही पहला अवरोध है; हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वह सिर्फ जीवित न रहे, बल्कि फल-फूल सके।”                 ...

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