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गुरुवार, 10 अप्रैल 2025
कैंसर और मानव अधिकार: प्रत्येक मरीज का हक—न्याय और समान अवसर
बुधवार, 6 नवंबर 2024
डिजिटल अरेस्ट मानव अधिकारों पर हमला सम्पूर्ण जानकारी
परिचय
डिजिटल अरेस्ट क्या है ?
डिजिटल अरेस्ट के मामलों में फंसाने के तरीके क्या हैं ?
डिजिटल अरेस्ट की कुछ हालिया घटनाएँ
डिजिटल अरेस्ट के प्रति संवेदनशील व्यक्ति और समुदाय
डिजिटल अरेस्ट से मानव अधिकारों का उल्लंघन
डिजिटल साक्ष्य की अदालत तक पहुंचने की प्रक्रिया
डिजिटल साक्ष्य की अदालत में स्वीकार्यता
भारत में डिजिटल अरेस्ट की कानूनी वैधता
डिजिटल अरेस्ट की घटनाओं को रोकने के लिए सरकार के प्रयास
डिजिटल अरेस्ट से बचाव के कुछ सरल उपाय
निष्कर्ष
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
रविवार, 27 अक्टूबर 2024
स्वच्छता अभियान में मैनुअल स्कवेंजर्स की अनदेखी : एक मानवाधिकार संकट
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चित्र श्रोत : ए आई निर्मित |
परिचय
हाथ से मैला ढ़ोने की प्रथा या मैनुअल स्केवेंजिंग, ऐसी व्यवस्था है जो भारत में मैनुअल स्कवेंजर्स तथा उनके परिवारों के मानव अधिकारों का सदियों से उलंघन करती आ रही है | इस व्यवस्था की जकड में मुख्यतः समाज के सबसे निचले पायदान पर स्थित दलित समुदाय या अनुसूचित जाति के लोग आते हैं, जिन्हें पीढ़ी दर पीढ़ी सदियों से छूआ- छूत और सामाजिक बहिष्कार जैसी सामाजिक बुराई का दंश झेलना पड़ा है |
भारत में यह प्रथा न केवल भारतीय समाज में व्याप्त सामाजिक असमानता को दर्शाती है, बल्कि यह जातिगत भेदभाव और मानवीय गरिमा के रूप में मानव अधिकारों के उल्लंघन का भी प्रतीक है | यद्यपि समाज के आधुनिकीकरण के चलते जाति- व्यवस्था प्रत्यछ रूप में दम तोड़ने के कगार पर है | लेकिन तमाम विधिक एवम नीतिगत प्रयासों के बाबजूद मैनुअल स्केवेंजिंग की प्रथा का जारी रहना हम सभी के लिए एक मानवाधिकार चुनौती है |
इस लेख के द्वारा लेखक का प्रयास अपने सुधीय पाठकों को भारत में प्रचलित मैनुअल स्कवेंजिंग की अमानवीय व्यवस्था के विभिन्न पहलुओं के बारे में जागरूक करना तथा उसकी समाप्ति के लिए सुझाव प्रस्तुत करना है |
मैनुअल स्केवेंजिंग की परिभाषा तथा अन्य पहचान
हाथ से मैला उठाने वाले कर्मियों के नियोजन का प्रतिषेद और उनका पुनर्वास अधिनियम ,२०१३ की धरा २(छ) में दी गई परिभाषा के अनुसार, "मैन्युअल स्कवेंजर्स या हाथ से मैला उठाने वाले कर्मी "से ऐसा कोई व्यक्ति अभिप्रेत है, जो किसी अस्वच्छ शौचालय से या किसी खुली नाली या ऐसे गड्डे में से, जिसमे अस्वच्छ शौचालयों से या किसी खुली नाली या ऐसे गड्ढ़े में से या किसी रेल पथ से या ऐसे अन्य स्थानों या परिसरों से पूर्णतया विघटित होने से पूर्व मानव मल को डाला जाता है, हाथ से सफाई करने, उसको ले जाने, उसके निपटान में व अन्यथा किसी अन्य रीति से उठाने के लिए किसी व्यक्ति या स्थानीय प्राधिकारी या अभिकरण या ठेकेदार द्वारा लगाया जाता है या नियोजित किया जाता है |
हाथ से मैला ढोने वालों को अलग-अलग पहचान से जाना जाता है, भारत के अलग-अलग राज्यों में हाथ से मैला ढोने वालों के लिए अलग-अलग कोई नामकरण नहीं किया गया है। मैला ढोने वाली जातियाँ जो अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग नामों से जानी जाती थीं जैसे भंगी, बाल्मीकि, चूबरा, मेहतर, मजहबी, लालबेगी, हलालखोर, थोटी, चाचाती, राकी, रेली आदि।
भारत में मैनुअल स्कवेंजर्स की मृत्यु का परिदृश्य
25 फरबरी 2021 को एक अंग्रेजी दैनिक अखबार फर्स्टपोस्ट में अनन्या श्रीवास्तव द्वारा लिखित एक लेख में बताया गया कि आधिकारिक सूत्रों के अनुसार 1993 से मार्च 2019 तक के बीच कुल 774 मैन्युअल स्कवेंजर्स की मौतें सीवर की सफाई करने के दौरान हुईं | जबकि एक गैर सरकारी संगठन सफाई कर्मचारी आंदोलन (एस क ए) का अनुमान है कि सीवर की सफाई के दौरान जहरीली गैसों के संपर्क में आने के कारण हर साल करीब 2,000 मैन्युअल स्कवेंजर्स की मृत्यु हो जाती है | इसमें सेप्टिक टेंकों में होने वाली मौतों को भी शामिल करें तो यह आंकड़ा और भी अधिक हो जाता है|
सीवेज कर्मचारी यूनियन (रजि.) नगर निगम चंडीगढ़ अवं अन्य बनाम यूनियन ऑफ़ इंडिया और अन्य, सी. डब्ल्यू पी न.2008/1983 में अधिकांश याचिकाकर्ताओं का आरोप था कि अधिकाँश सीवेज कर्मचारियों की मृत्यु उनकी सेवा काल के पूर्ण होने से पहले ही हो जाती है | क्यों कि उनके जीवन के दौरान होने वाली कई स्वास्थ्य समस्यों ने उनके औसत जीवन काल को घटा कर केवल 45 वर्ष कर दिया है |
6 नवंबर 2023 को रहेजा नवोदय सोसायटी,जो कि हरियाणा के गुरुग्राम के सेक्टर - 92 में स्थित है, में सेप्टिक टैंक की सफाई के लिए उतारे गए दो मैनुअल स्कवेंजर्स 45 वर्षीय राज कुमार और 36 वर्षीय परजीत की जहरीली गैस के कारण दम घुटने से मृत्यु हो गई | इनको 30 फुट गहरे सेप्टिक टैंक में बिना सुरक्षा उपकरणों के उसकी सफाई के लिए विवश किया गया |
8 जून 2024 को भारत में मथुरा जिले के बृंदावन में एक खाद्य निर्माता कंपनी के निजी सेप्टिक टेंक में घुसने के दौरान 3 मैनुअल स्कवेंजर्स की अकाल मृत्यु हो गई | उनकी मृत्यु सेप्टिक टेंक में बिजली की एक मोटर को बिना सुरक्षा उपकरण के साथ मरमत करते हुए हो गई | जिसके लिए एक निजी ठेकेदार जिम्मेदार था |
कर्नाटका के मद्दूर टाउन नगर निगम में सफाई कर्मचारी के रूप में काम करने वाले ३७ वर्षीय मैनुअल स्कैवेंजर नारायण ने अधिकारिओं के उत्पीड़न के चलते आत्महत्या कर ली ,क्योंकि वे नारायण पर मैनुअल स्केवेंजिंग के लिए दवाब डालते थे |
मैनुअल स्कवेंजर्स और स्वछता अभियान का दायरा
स्वछता अभियान परिवार,समाज और देश में रहने वाले शतप्रतिशत लोगों के कल्याण का विषय है | इस अभियान के सुचारू सञ्चालन के लिए अतीत में सैकड़ों लोगों को प्रत्यछ या अप्रत्यछ रूप से अपनी जान की बलि देने के लिए विवश होना पड़ा |
आजकल स्वछता अभियान सिर्फ गलियों और सड़कों की सफाई तक सीमित नहीं रहा है | इसके दायरे में शहरों में अपशिष्ट निस्तारण हेतु सीवर और सेप्टिक टेंक की व्यवस्था भी आती है |
आज भी समाज में सबसे नीचे के पायदान पर माने जाने वाले दलित समाज से ही अधिकांश लोगों को शीवर लाईनों में रुकावट आने की स्तिथि में उन्हें खोलने के लिए दूषित और मलयुक्त अवशिस्ट में घुसने के लिए विवश किया जाता है, और यह सबकुछ कराया जाता है बिना किसी प्रकार के आधुनिक सुरक्षा उपकरणों के उपलब्ध कराये | मैनुअल स्कवेंजर्स को यह कार्य अपनी और परिवार की रोजी रोटी की खातिर करना पड़ता है |
जिस मल को, पाखाने में करने के बाद हम सभी उसकी तरफ झाँकना तक नहीं पसंद करते हैं, वह अन्य अपशिष्ट के साथ सीवर लाइनों या खुले नालों में पहुँचता है | सीवर लाइनों और नालों के बंद होने की सूरत में मैनुअल स्कवेंजर्स को इन्हें खोलने के लिए इनमे घुसने के लिए विवश किया जाता है |
सीवर लाइन में उपस्थित मल सहित अन्य जहरीले अपशिष्ट मैनुअल स्कवेंजर्स के नाक और मुँह में घुसने का प्रयास करते है, जिन्हें मैनुअल स्कवेंजर्स द्वारा अपनी साँस पर नियंत्रण करके किसी प्रकार से रोका जाता है |
लेकिन तमाम अभागे मैनुअल स्कवेंजर्स सीवर लाइन खोलने के दौरान अपनी जान बचाने के लिए सांस रोकने की अद्धभुत प्रक्रिया पर अधिक देर तक नियंत्रण नहीं रख पाते हैं और साक्षात मृत्यु के आगोश में चले जाते हैं | जबकि वैज्ञानिक और तकनीकी के इस वर्तमान दौर में उपलब्ध तकनीकी का उपयोग करके सभी की अनावश्यक और अकाल मृत्यु को रोका जा सकता है | जिसके लिए आवश्यकता है तो सिर्फ सामाजिक और राजनैतिक इच्छा शक्ति की |
यद्यपि केंद्र सरकार ने वर्ष 2022 में सीवर लाइन्स और सेप्टिक टैंक की सफाई का कार्य मशीनो से कराने की योजना बनाई | जिसका नाम NAMASTE यानी National Action for Mechanized Sanitation Ecosystem रखा गया |
केंद्रीय वित्त एवं कारपोरेट कार्य मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण ने 01 फरवरी, 2023 को केंद्रीय बजट 2023-24 पेश किया जिसमे बताया गया कि सेप्टिक टैंकों और नालों से मानव द्वारा गाद (सिल्ट) निकालने और सफाई के काम को पूर्ण रूप से मशीन युक्त करने के लिए शहरों को तैयार किया जाएगा |
उक्त प्रयासों के बाद भी मैनुअल स्कवेंजर्स की सीवर और सेप्टिक टैंक की सफाई के दौरान मौतें रुकने का नाम ही नहीं ले रही हैं | यह स्थति स्पष्ट रूप से स्वछता अभियान में मैनुअल स्कवेंजर्स की अनदेखी की ओर इशारा करती है|
भारतीय स्वछता मिशन कैसे बना विश्व का सबसे बड़ा अभियान ?
यह प्रबल राजनैतिक इच्छा शक्ति ही थी जिसके चलते विशेष रूप से "खुले में शौच मुक्त भारत " का लक्ष्य प्राप्त करने के मकसत से प्रथम बार प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी ने २ अक्टूबर २०१४ को एक व्यापक आंदोलन के रूप में स्वच्छ भारत मिशन का नई दिल्ली, राजपथ पर उद्घाटन किया तथा लक्ष्य प्राप्त करने की समय सीमा महात्मा गांधी की 150 वी जयन्ती 2 अक्टूबर 2019 रखी गयी |
प्रधानमंत्री ने अपने सम्बोधन में कहा कि, "एक स्वच्छ भारत के द्वारा ही देश 2019 में महात्मा गांधी की 150 वीं जयंती पर अपनी सर्वोत्तम श्रंद्धांजलि दे सकता है |"
उक्त के बाद से ही स्वच्छ भारत मिशन(SBM) का चिन्ह(LOGO),अर्थात महात्मा गाँधी का गोल चस्मा, देखते ही देखते भारत के हर शहर, गांव, सरकारी दफ्तरों, पेट्रोल पम्पों, बड़े -बड़े मॉल और छोटी से छोटी दुकान तक पहुंच गया तथा इस मिशन को प्रधान मंत्री की सर्वोपरि व्यतिगत प्राथमिकता वाले प्रोजेक्ट के रूप में मान्यता मिल गई |
प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के भाषण और अखबारों से पता लगा कि उन्होंने वादा किया कि हर घर के लिए एक शैचालय बनवाया जाएगा | क्यों कि 2011 की जनगणना के अनुसार 12.3 करोड़ घरों में पेशाबघर या शौचालयों की कमी सामने आयी |
2 अक्टूबर 2014 को प्रारम्भ किया गया स्वच्छ भारत मिशन पूर्व में सरकारों द्वारा चलाये गए निर्मल भारत अभियान, एवम पूर्ण स्वछता अभियान और केन्द्रीय ग्रामीण स्वछता अभियान का एक क्रान्तिकारी समरूप था | लेकिन अंतर स्पष्ट था कि नए कार्यक्रम का विस्तार पूर्व के कार्यक्रमों के मुकाबले अत्यधिक व्यापक था |
इस असंभव से लगने वाले लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए प्रधान मंत्री ने 130 करोड़ लोगों का आह्वान किया कि वे स्वछता अभियान चलाये | जिसमे दूसरों को बुलाये या दूसरों द्वारा चलाये जा रहे स्वछता अभियान में हिस्सा लें | स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) धीरे-धीरे विश्व का सबसे बड़ा स्वछता अभियान और आंदोलन बन गया |परिणामस्वरूप 2 अक्टूबर 2019 तक भारत के सभी जिलों ने स्वयं को "खुले में शौचमुक्ति" घोषित कर प्रधान मंत्री द्वारा घोषित लक्ष्य को समय से प्राप्त कर लिया | सर्व समाज के हितार्थ किसी व्यापक लक्ष्य को समय से प्राप्ति के लिए विश्व में प्रबल राजनैतिक इच्छा शक्ति का यह एक अद्भुत उदाहरण है |
आवास एवम शहरी कार्य मंत्रालय के अनुसार 4372 शहरों /कस्बों को ओडीएफ (खुले में शौच मुक्त ) घोषित किया गया है तथा 3,326 से अधिक शहरों में 67,407 शौचालय गूगल मानचित्र पर "एसबीएम शौचालय " के नाम से नजर आते है तथा उन्हें आवश्यकता पड़ने पर मोबाइल से ट्रैक किया जा सकता है | | स्वछता आंदोलन के दौरान स्वछता ऐप एक अत्यधिक महत्वपूर्ण डिजिटिल उपकरण के रूप में जनता के बीच लोकप्रिया हुआ | स्वछता ऐप के करीब 2.08 करोड़ उपयोगकर्ता बने |
सितम्बर 2024 तक ,स्वच्छ भारत मिशन (शहरी ) 3 के तहत पहल में 63 लाख से अधिक घरेलू शौचालयों और 6 लाख से अधिक सार्वजनिक शौचालयों का निर्माण हुया है |
इसकी सफलता के लिए प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत के सभी लोगों से इस अभियान में जुड़ने की अपील की थी| यही नहीं इस कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए प्रद्यानमंत्री ने जानी -मानी हस्तियों योगऋषि रामदेव ,शशि थरूर, अनिल अम्बानी, सलमान खान, कमल हासन, प्रियंका चोपड़ा आदि को बुलाकर उनका आह्वान किया कि वे सफाई अभियान की तस्वीरें समाज के साथ साझा करें | इसके अलावा आमजन से भी माई क्लीन इंडिया हैसटैग पर स्वछता अभियान से जुड़े कार्यक्रम की तस्वीरें साझा करने की अपील भी की |
यही नहीं सरकार ने आधुनिक प्रौद्योगिकी के माध्यम से स्वछता सम्बन्धी प्रयासों के बारे में आम जान तक जानकारी पहुंचाने के लिए एक डिजिटल मंच उपलब्ध कराया, जिसका उद्देश्य भारतीय लोगों द्वारा अपने दैनिक कार्यों में से कुछ समय निकालकर स्वछता सम्बन्धी आंदोलन में अपनी भागीदारी को सुनिश्चित करना रहा है | यह मंच किसी भी व्यक्ति, निजी संस्थान या सरकारी संस्थान के लिए उपलब्ध रहा है जहाँ उन्हें उसके द्वारा किये गए स्वछता सम्बन्धी कार्यों को उजागर कर अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचाने की सहूलियत रही है | इसी लिए इस कार्यक्रम की सफलता का श्रेय राजनैतिक नेतृत्व और जनभागीदारी को दिया गया |
इसके बाद फरबरी 2020 में शौच मुक्त स्थति को बनाए रखने के लिए स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण ) चरण- II को अनुमोदित किया गया |
स्वच्छ भारत अभियान सिर्फ खुले में शौच को समाप्त करने का अभियान नहीं है बल्कि इसमें शौचालयों का निर्माण, ठोस और तरल कचरे का उचित प्रबंधन, गलियों से लेकर सड़कों की सफाई, स्वछता के प्रति जागरूकता के साथ -साथ लोगों की स्वास्थ्य सम्बन्धी आदतों को बदलना, खुले पाखानों को फ्लश वाले पाखानों में बदलना के अलावा इसमें हाथ से मैला ढोने की प्रथा (Practice of Manual Scavenging) का निषेध भी आता है |
लेकिन इस दौरान हाथ से मैला ढोने की प्रथा के अनवरत जारी रहने के चलते इस अमानवीय और कलंकित करने वाली व्यवस्था में मैला ढोने वालों और उनके परिवार वालों के दर्द को सुनने और समझने के प्रति राजनैतिक इच्छा शक्ति का अत्यधिक अभाव दृष्टिगोचर हुआ है |
ऐसा नहीं है कि इस पेशे की रोकथाम के लिए कोई क़ानून उपलब्ध नहीं है बल्कि असल समस्या कानूनों के वास्तविक क्रियान्वयन की रही है | एक अन्य समस्या समय के साथ साथ हाथ से मैला ढोने की प्रकृति में निरंतर हो रहे बदलावों की भी है |
इसमें कोई संदेह नहीं कि भारतीय राजनीतिक नेतृत्व, खेल तथा फिल्म जगत से जुड़ीं तथा अन्य जानी- मानी हस्तियों के अलावा सरकारी और गैर -सरकारी क्षेत्र के साथ-साथ आमजन के सहयोग ने भारत में स्वछता आंदोलन को विश्व का सर्वाधिक व्यापक और सफल आंदोलन बना दिया |
परिणाम स्वरूप इस का आंदोलन न सिर्फ शहरों पर सकारात्मक असर पड़ा बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों पर भी व्यापक असर हुआ जिसके कारण भारत के सभी जिलों को खुले में शौच से मुक्त घोषित किया जाना संभव हो सका |
भारतीय परिवेश में खुले में शौच एक गंभीर समस्या थी जो भारतीयों को कई तरह से प्रभावित कर रही थी | इस समस्या का सबसे बुरा और व्यापक असर न सिर्फ इसके कारण विदेशों में निर्मित होती भारत और भारतीयों की नकारात्मक छवि के रूप में सामने आ रहा था बल्कि प्रति वर्ष कई हजार बच्चों की अकाल मौतों के रूम में भी सामने आ रहा था |
नेचर नामक एक प्रतिष्ठित जर्नल में प्रकाशित एक अध्य्यन में सामने आया कि सरकार के "स्वच्छ भारत मिशन" के तहत शौचालयों का निर्माण सालाना लगभग 60 हजार से 70 हजार शिशुओं की मृत्यु रोकने का एक कारक बना | जिसे सरकार और आमजन के गंभीर और सकारात्मक प्रयासों से रोकने में अपार सफलता प्राप्त हुई है |
मैनुअल स्कवेंजर्स का बदला हुया स्वरुप
स्वच्छ भारत मिशन 2.0 के उद्देश्यों को पूरा करने के लिए दो महत्वपूर्ण घटकों पर बल दिया जा रहा है | पहला घटक 1.0 में हासिल किये लक्ष्यों को बनाये रखना है तथा दूसरा कचरा मुक्त शहरों को सुनिश्चित करना है | स्वच्छ भारत मिशन 2.0 के लक्ष्यों में कचरे का प्रभावी और टिकाऊ प्रबंधन, घर -घर जाकर कूड़े का संग्रह करने के लिए सही और आधुनिक प्रौद्योगिकी का उपयोग करना है |
अस्पृश्यता के खिलाफ पीपुल्स अलायंस द्वारा अपनाई गई नागपुर घोषणा में अन्य बातों के साथ-साथ 'मैनुअल स्केवेंजर्स' शब्द की परिभाषा को विस्तारित करने की मांग की गई थी। मैनुअल स्केवेंजर्स की उपरोक्त परिभाषा में सेप्टिक टैंक और गटर की सफाई शामिल नहीं थी लेकिन बाद में इन्हें शामिल कर लिया गया है।
उक्त अधिनियम के लागू होने के बाद हाथ से मैला ढोने के कार्य में किसी व्यक्ति के नियोजन को गैरकानूनी बना दिया गया तथा किसी को मजबूरन इस कार्य में लगाना भी अपराध घोषित कर दिया गया है | भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने भी सभी राज्यों को निर्देशित किया कि वे अपने-अपने यहाँ मैनुअल स्कवेंजर्स की समस्या को समाप्त करें और इस कार्य में लगे व्यक्तियो का पुनर्वास करे |
वर्तमान में स्वच्छ भारत मिशन 2.0 के लक्ष्यों में कचरे का सही प्रबंधन करने के लिए घर -घर जाकर कूड़े का संग्रह करने के लिए सही प्रौद्योगिकी के उपयोग करने का आह्वान किया गया है | लेकिन इस प्रक्रिया में जो चार पहिया वाहन घर -घर से कूड़ा इखट्टा करने के लिए बनवाये गए हैं वे मेनुअल स्केवेंजर्स के स्वास्थ्य और उनकी गरिमा के अनुसार किसी भी रूप में उचित नहीं है |
गाड़ी के पीछे के जिस हिस्से में घर-घर से जो कूड़ा इखट्टा किया जाता है, उसी हिस्से में कूड़े के ऊपर बैठकर महिला या पुरुष को उसे कूड़ा गाडी में भरना पड़ता है | घर -घर से कूड़ा इखट्टा करने का यह तरीका किसी भी रूप में हाथ से मैला ढोने की अपमानजनक और अवांछनीय प्रथा से कमतर नहीं है|
उक्त से स्पष्ट है कि इस प्रक्रिया में ठेके पर लगे तमाम श्रमिक "हाथ से मैला उठाने वाले कर्मियों के नियोजन का प्रतिषेद और उनका पुनर्वास अधिनियम, २०१३" में दी गयी "हाथ से मैला उठाने वाले कर्मी/मैनुअल स्कवेंजर्स " की परिभाषा में नहीं आते हैं | इस प्रकार मानव अधिकार सन्दर्भ में देखा जाय तो स्वच्छ भारत मिशन के तहत ठेके पर कार्यरत अनेको अनेक श्रमिक, उन्हें मानव होने के नाते मिले मानव अधिकारों से वंचित होने को विवश हैं |
दर असल यह भी मैन्युअल स्केवेंजिंग का बदला हुआ नया रूप है | जिसका संज्ञान अभी तक न किसी राज्य सरकार और न ही केंद्र सरकार द्वारा लिया गया है | यही नहीं मैनुअल स्कवेंजर्स के लिए कार्य करने वाले किसी गैर सरकारी संघटन ने भी अभी तक इसका संज्ञान नहीं लिया है | उम्मीद है कि इस लेख के माध्यम से कानून विदों और नीति निर्धारकों का ध्यान इस ओर आकर्षित होगा |
मैनुअल स्कवेंजर्स के उन्मूलन के लिए संवैधानिक और कानूनी ढाँचा
भारत में मैनुअल स्कवेंजर्स की सुरक्षा के लिए संवैधानिक तथा कानूनी ढांचा उपलब्ध है | इसके अतिरिक्त हाथ से मैला उठाने वाले कर्मियों के नियोजन का प्रतिषेद और उनका पुनर्वास अधिनियम, 2013 को हाथ से मैला ढोने की प्रथा पर प्रभावी ढंग से रोक लगाने और सभी अस्वच्छ शौचालयों को ध्वस्त करने और उनके परिवार के सदस्यों सहित पहचाने गए मैनुअल स्केवेंजर्स के पुनर्वास से निपटने के लिए एक नए कानून के रूप में लागू किया गया था।
वर्ष 2013 से पूर्व भी मैनुअल स्कैवेंजरों का नियोजन और शुष्क शौचालयों का निर्माण (निषेध) अधिनियम, 1993 लाया गया था जो मैनुअल स्कैवेंजर के नियोजन और शुष्क शौचालयों के निर्माण पर रोक लगाता था । राष्ट्रपति ने 24 जनवरी 1997 को इसकी अधिसूचना पर हस्ताक्षर किए |संवैधानिक अधिकार के अलावा अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार घोषणाओं और अनुबंधों के तहत विभिन्न मानवाधिकार प्रावधान भी उपलब्ध हैं।
नागरिक समाज द्वारा द्वारा मैनुअल स्कवेंजर्स के अधिकारों की वकालत
सार्वजनिक जीवन जीने वाले महात्मा गांधी ने मैला ढोने की अपमानजनक और अवांछनीय प्रथा से मैला ढोने वालों की मुक्ति की वकालत की | पहली बार 1901 में कलकत्ता में राष्ट्रीय कांग्रेस सम्मेलन के दौरान, महात्मा गांधी ने इस मुद्दे को गंभीरता से उठाया |
सुलभ इंटरनेशनल सोशल सर्विस ऑर्गनाइजेशन ने मैन्युअल स्कवेंजर्स की मुक्ति के लिए भारत में बहुत ही उम्दा कार्य किया है | यह 1970 में डॉ. बिंदेश्वर पाठक द्वारा स्थापित एक गैर-लाभकारी स्वैच्छिक सामाजिक संगठन है, जो सफाईकर्मियों की मुक्ति के लिए समर्पित है। सुलभ छुआछूत और सामाजिक भेदभाव को दूर करने के लिए काम कर रहा है |
वेजबाड़ा विल्सन सफाई कर्मचारी आंदोलन नामक एक गैर सरकारी संगठन के समन्वयक हैं | उन्होंने सीवर और सेप्टिक टेंक में सफाई के दौरान मैनुअल स्कवेंजर्स की हो रहीं लगातार और अनावश्यक मौतों के विरोध में एक राष्ट्रव्यापी "#StopKillingUs" अभियान चलाया |
वेजबाड़ा विल्सन ने "#StopKillingUs" अभियान का उद्देश्य बताते हुए स्पष्ट किया कि मैनुअल स्कवेंजर्स द्वारा सीवर और सेप्टिक टैंक की सफाई के दौरान होने वाली मौतों को समाप्त करने के साथ साथ अस्पृश्यता और जाति आधारित हिंसा की अमानवीय और क्रूर प्रथा को समाप्त करना है | इस दौरान उन्होंने प्रधानमंत्री से इन दुखद मौतों को रोकने के लिए पुख्ता कार्यवाही की मांग भी की थी |
एक गैर सरकारी संगठन राष्ट्रीय गरिमा अभियान ने पूरे भारत के ११ राज्यों में सीवर और सेप्टिक टैंकों में होने वाली मौतों तथा उससे सम्बंधित सामाजिक तथ्यों का आकड़ा एकत्रित करने के लिए एक अध्ययन किया जिसमे पाया गया कि सिर्फ ३५ प्रतिशत मामलों में प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज की गयी थी | जबकि नगर पालिका या ठेकेदारों द्वारा सीवर और सेप्टिक टैंकों की सफाई के लिए ज्यादातर बाल्मीकि जाती के लोगों को काम पर रखा गया था |
मैनुअल स्कवेंजर्स पर राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग का रूख
हरियाणा राज्य के सोनीपत जिले के गाँव बाजिदपुर सबोली के रहने वाले दो भाई जो कि मैन्युअल स्केवेंजिंग का कार्य करते थे | एक प्राइवेट पैकेज फैक्ट्री के सेप्टिक टेंक में सफाई के दौरान 12 जून 2014 को उनकी अकाल मृत्यु हो गई | इस घटना का भारत के राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग द्वारा संज्ञान लिया गया |
यही नहीं आयोग ने मैनुअल स्कवेंजर्स की सीवर या सेप्टिक टेंक में सफाई के दौरान हुयी मृत्यु के अन्य कई मामलों में स्व प्रेरणा से अखबारों में छपी खबर के आधार पर संज्ञान लिया है | कमीशन ने अपने स्तर पर भी इस अमानवीय प्रथा के उन्मूलन हेतु प्रयास किये हैं |
मैनुअल स्कवेंजर्स पर भारतीय न्यायालयों का रूख
2014 में, भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने सफाई कर्मचारी आंदोलन और अन्य बनाम भारत संघ और अन्य के मामले में फैसला सुनाया कि हाथ से मैला ढोना अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार प्रतिबद्धताओं का उल्लंघन है। माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि संविधान के प्रावधानों के अलावा, विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन और करार भी उपलब्ध हैं|
उक्त घोषणाओं और करारों का भारत भी एक पक्षकार है| जो हाथ से मैला ढोने की अमानवीय प्रथा को समाप्त करने के सुसंगत हैं और इनमे सुमार हैं मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा (UDHR), नस्लीय भेदभाव उन्मूलन पर समझौता (ICERD) और महिलाओं के खिलाफ सभी प्रकार के भेदभाव के उन्मूलन के लिए समझौता(CEDAW)|यू. डी. एच. आर., सी. ई. आर. डी. और सी. ई. डी. ए. डब्ल्यू. के मैला ढोने की अमानवीय प्रथा को समाप्त करने के सम्बन्ध में कुछ प्रासंगिक प्रावधान निम्न प्रकार हैंः
मानव अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा ,१९४८ के अनुच्छेद १ के अनुसार सभी मनुष्य स्वतंत्र पैदा हुए हैं और सभी लोग सम्मान और अधिकार सामान रूप से पाने के अधिकारी हैं | उन्हें एक दूसरे के प्रति भाईचारे की भावना से कार्य करना चाहिए |
इसी प्रकार घोषणा का अनुच्छेद २ (१) कहता है कि प्रत्येक व्यक्ति बिना किसी प्रकार के भेदभाव के,जैसे जाति, रंग, नस्ल, लिंग, भाषा, धर्म, राजनीति या अन्य राय, राष्ट्रीय या सामाजिक मूल, सम्पति, जन्म या अन्य स्थति के आधार पर,इस घोषणा में वर्णित अधिकार और स्वतंत्रता प्राप्त करने का अधिकारी है |
इसी घोषणा का अनुछेद २३(३) स्पष्ट करता है कि प्रत्येक व्यक्ति उसके द्वारा किये गए काम के बदले उचित और अनुकूल मजदूरी / पारिश्रमिक पाने का अधिकारी है, जिससे वह और उसका परिवार गरिमामय जीवन यापन कर सके और यदि आवश्यक हो तो उसे सामाजिक सुरक्षा के अन्य साधनों द्वारा पूरा किया जा सके |
माननीय सर्वोच्च न्यायालय की विधि व्यवस्था डॉ. बलराम सिंह बनाम भारत संघ और अन्य में न्यायमूर्ति अस.रविंद्र भट्ट ने मैनुअल स्केवेंजिंग के सम्बन्ध में डॉ.बी.आर.अंबेडकर के कथन को सन्दर्भित किया ,जो निम्नवत है :
"हमारी लड़ाई धन या सत्ता के लिए नहीं है | यह आजादी की लड़ाई है, यह मानव व्यक्तित्व के पुनरुद्धार की लड़ाई है |"
सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिनांक 20.10.2023 को दिए गए उक्त फैसले में मैनुअल स्केवेंजिंग की प्रथा को समूल रूप से समाप्त करने के लिए दिशा निर्देश जारी किये गए तथा मैनुअल स्केवेंजिंग को पूरी तरह समाप्त करने का आदेश दिया है |
उक्त फैसले में विशिष्ट आदेश के तहत स्थानीय अधिकारियों और अन्य एजेंसियों के ऊपर कर्तव्य अधिरोपित किया गया कि उनके द्वारा सीवर आदि की सफाई के लिए आधुनिक तकनीक का उपयोग अमल में लाया जाय |
इसके अतिरिक्त सीवर या सेप्टिक टैंक में सफाई के दौरान होने वाली मृत्यु के लिए उत्तराधिकारियों के लिए दी जाने वाली मुआवजा राशि १० लाख से बढ़ा कर ३० लाख किये जाने का आदेश पारित किया है |
माननीय न्यायालयों के उक्त निर्णयों से स्पष्ट है कि उनका रूख मैनुअल स्कवेंजर्स और उनके परिवारों के मानव अधिकारों के संवर्धन एवं संरक्षण की दिशा में दृष्ट्रिगोचर होता है|
निष्कर्ष
भारतीय स्वछता मिशन के तहत स्वछता अभियान में मैनुअल स्कवेंजर्स की अनदेखी एक गंभीर मानव अधिकार संकट को जन्म देती है, जो समाज में जाति व्यवस्था के सबसे नीचे पायदान पर स्थित लोगों को सर्वाधिक प्रभावित करती है | मैनुअल स्केवेंजिंग की मजबूरी समाज के सबसे कमजोर वर्गों को न सिर्फ गरिमा से वंचित कर रही है बल्कि उनके स्वास्थ्य और जीवन की सुरक्षा के लिए भी गंभीर संकट पैदा करती है |
न्याय और समावेशी समाज के निर्माण की ओर बढ़ने के लिए मैनुअल स्केवेंजिंग की अमानवीय और क्रूर प्रथा का पूर्ण रूप से खात्मा किया जाना आवश्यक है |जिसमे स्वछता अभियान की सफलता की तरह सरकार और समाज दोनों की भागीदारी आवश्यक है | इसमें कोई संदेह नहीं किया जा सकता है कि सरकार की और से इस अमानवीय प्रथा के खात्मे के लिये प्रयास नहीं किये गए हों |
भारत में विगत ३० वर्षों से मैनुअल स्केवेंजिंग को समाप्त करने के लिए कानून अस्तित्व में होने के बाबजूद देश में मैला ढोने की प्रथा/मैनुअल स्केवेंजिंग को खत्म करने में आधिकारिक विफलता आधुनिक भारत की सबसे बड़ी शर्मिंदगी कही जा सकती है |
केंद्र और राज्य सरकारों को मैनुअल स्केवेंजिंग समस्या के निवारण के लिए मानव अधिकार केंद्रित पहुंच अपनाने की आवश्यकता है | जिसके तहत सभी तरह के सफाई कार्यों का शत प्रतिशत मशीनीकरण आवश्यक है | इस सम्बन्ध में भारत के सर्वोच्च न्यायालय और राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग, दिल्ली द्वारा सरकार को सफाई कार्यों के मशीनीकरण के क्रमशः आदेश और सुझाव दिए गए हैं |
समाज को भी इस मुद्दे पर जागरूक करने की महती आवश्यकता है, तभी हम स्वछता को स्वछता अभियान के तहत एक सामाजिक जिम्मेदारी और मानव अधिकार के रूप में स्थापित कर पाएंगे | स्वछता अभियान केवल शरीर, गलियों, सड़कों, सीवर और सेप्टिक टैंकों की सफाई तक सीमित नहीं है बल्कि यह सभी के मानव अधिकारों के सम्मान,संरक्षण और पूर्ति तक पहुंच का मामला है,जिसमे मैनुअल स्कवेंजर्स भी आते है |
श्रोत सूची:
1. पाठक बिंदेश्वर, रोड टू फ़्रीडम: भारत में स्कैविंग के उन्मूलन पर एक समाजशास्त्रीय अध्ययन, मोतीलाल बनारसीदास पब्लिशर्स प्राइवेट लिमिटेड, दिल्ली प्रथम संस्करण, 1991, पुनर्मुद्रण 1995
2.मानवाधिकारों की सार्वभौम घोषणा 1948.
3.भारत की मैला ढोने की समस्या, हिंदू नेट डेस्क, 16 फरवरी, 2020
4.क्यूलेट फिलिप, सुजीत कूनन और लवलीन भुल्लन (एडीआर), भारत में स्वच्छता का अधिकार, क्रिटिकल पर्सपेक्टिव (ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी, प्रेस, नई दिल्ली)
5. दिल्ली जल बोर्ड बनाम सीवरेज और संबद्ध श्रमिकों और अन्य की गरिमा और अधिकारों के लिए राष्ट्रीय अभियान, (2011) 8 SCC568
6. सफाई कर्मचारी आंदोलन और अन्य बनाम भारत संघ और अन्य, (2014)11SCC 224
7. भारत सरकार, भारत का सर्वोच्च न्यायालय, सिविल मूल क्षेत्राधिकार रिट याचिका (सिविल) संख्या 583/2003 HTTP://www.indiaenvironmentportal.org in/files/scavenging/20sc/202014 पर उपलब्ध है।
FAQ:-
प्रश्न : मैनुअल स्केवेंजिंग क्या है ?
उत्तर : मैनुअल स्केवेंजिंग या हाथ से मैला ढ़ोना भारत में बुराई के रूप में एक ऐसी प्रथा है जिसमे व्यक्ति मानव मल तथा अन्य अपशिष्ट अपने हाथ से साफ़ करता है |
प्रश्न : मैनुअल स्केवेंजिंग का सामाजिक पहलू क्या है ?
उत्तर : मैनुअल स्केवेंजिंग का सामाजिक पहलू उससे गहराई से जुडी जाति व्यवस्था है | इस कार्य में अधिकांशतः जाति व्यवस्था में सबसे नीचे पायदान पर स्थित लोग लगे होते है | यह प्रथा पूर्ण रूप से जाति आधारित तथा अमानवीय है |
प्रश्न : क्या मैनुअल स्केवेंजिंग में महिलायें भी लगी हुयी हैं ?
उत्तर :हाँ ,मैनुअल स्केवेंजिंग के कार्य में पुरुषों के मुकाबले महिलाए अधिक संख्या में कार्य करने को विवश हैं |
प्रश्न : मैन्युअल स्केवेंजिंग के उन्मूलन के लिए भारत सरकार ने क्या प्रयास किये हैं ?
उत्तर : उक्त प्रथा के उन्मूलन के लिए भारत सरकार ने नीतिगत और विधिक दोनों तरह के प्रयास किये हैं | विधिगत प्रयास के तहत मैन्युअल स्केवेंजिंग के कार्य का निषेद किया गया है तथा इसे कराने को दंडात्मक बनाया गया है जबकि नीतिगत प्रावधानों के तहत मैन्युअल स्कवेंजर्स तथा उसके परिवारों के कल्याण और पुनर्वास के प्रावधान किये गए है |
शनिवार, 5 अक्टूबर 2024
मानव अधिकारों की नए भारत के निर्माण में भूमिका :मुद्दे ,चुनौतियाँ और समाधान
प्रस्तावना
मानव अधिकारों की अवधारणा
मानव अधिकार की भारतीय परिभाषा
मानव अधिकारों की प्रकृति
भारत में मानवाधिकारों का उपयोग तथा क्रियान्वन
नए भारत की संकल्पना
पंडित दीन दयाल उपाध्याय का दर्शन
सतत विकास की अवधारणा
नए भारत के निर्माण में चुनौतियाँ
उपसहार
सन्दर्भ श्रोत
भारत में महिला भ्रूण हत्या पर जस्टिस नागरत्ना की चिंता: एक मानवाधिकार विश्लेषण
प्रस्तावना "लड़की का जन्म ही पहला अवरोध है; हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वह सिर्फ जीवित न रहे, बल्कि फल-फूल सके।” ...

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