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Source:Netflix's Promotional Photo
प्रस्तावना
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कल्पना कीजिये ---एक 13 वर्षीय किशोर, अपने स्कूल की एक सहपाठी छात्रा की ह्त्या के आरोप में फँस जाता है |
उसका न कोई आपराधिक इतिहास है, न वह हिंसा से प्रेरित है और न वह आपराधिक मंसा रखता है |
फिर अचानक यह जघन्य अपराध की कहानी घटित क्यों होती है ? इसके पीछे है उसका हर दिन फ़ोन की स्क्रीन पर स्क्रॉल करना, Manosphere जैसी परम्परागत सोच से प्रभावित होना |
जिसे आज के सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर और हवा देकर आग में घी डालने का काम कर रहे हैं |
सयुंक्त राष्ट्र महिला वेबसाइट के अनुसार ऑनलाइन स्त्री-द्वेष स्कूलों, कार्यस्थलों और अंतरंग संबंधों में भी अपनी जगह बना रहा है।
विश्व भर में 5.5 अरब से ज़्यादा लोग ऑनलाइन हैं – और 5.2 अरब से ज़्यादा लोग सोशल मीडिया पर भी हैं –
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Image by Oleksandr Pidvalnyi from Pixabay |
डिजिटल स्पेस आम आदमी के लिए सीखने और डिजिटल संपर्क का केंद्र बिंदु बन गया है।
एक ओर इंटरनेट के फायदे हैं, वहीं दूसरी ओर इसका उपयोग पारस्परिक नफ़रत, गाली-गलौज और स्त्री-द्वेष फैलाने के लिए भी किया जा रहा है।
हर दिन ऑनलाइन मान्यता की तलाश में खुद को स्थापित करने की कोशिश करना है |
Netflix की Adolescence सीरीज़ ने सिर्फ इतना दिखाया है कि कैसे सोशल मीडिया के algorithms प्रक्रिया से निर्मित होते peer-pressure और toxic masculinity ने किशोरों को वास्तव में कुछ ऐसा बना दिया है जिस पर समाज का ध्यान नहीं है तथा समाज ने आंख बंद कर रखी हैं |
यह कहानी सिर्फ ब्रिटेन की कहानी नहीं है—ये दुनियाभर के किसी भी घर की कहानी हो सकती है। यदि हम समय रहते न जागे तो ये सोशल मीडिया और उससे उपजे दबाव मानव अधिकारों को और गहरा घाव पहुंचा सकते हैं।
मैनोस्फीयर (Manosphere) क्या है ?
"मैनोस्फीयर" (Manosphere) उन ऑनलाइन समुदायों के लिए एक व्यापक शब्द है, जो नारीवाद और लैंगिक समानता के विरोधी हैं तथा विषाक्त मर्दानगी (toxic masculinity) के विचार को प्रोत्साहित करते हैं | "मैनोस्फीयर" डिजिटल दुनिया में तेजी से अपनी जगह बना रहा है |
न सिर्फ विकसित देशों में बल्कि भारत में भी मैनोस्फीयर अपना कुनबा तेजी से फैला रहे हैं | भारत में लगातार पुरुष आयोग की माँग करने वाले पुरुषों का समूह इसका एक अच्छा उदाहरण हो सकता है | यह समूह मानता है कि कानूनों के तहत महिलाओं द्वारा उनका बेइंतहा शोषण किया जा रहा है |
एंड्रयू टेट जैसे अनेकों 'मैनोस्फीयर' इन्फ्लुएंसर' हैं, जो दुनिया भर में युवा पुरुषों के लिए चरम पुरुषत्व के प्रेरणा श्रोत माने जाते हैं |
महिलाओं के प्रति ऑनलाइन बढ़ते लैंगिक भेदभाव के सम्बन्ध में सयुंक्त राष्ट्र महिला ने चिंता जाहिर की है कि "मैनोस्फीयर" इन्फ्लुएंसर्स समुदाय का ऑनलाइन बढ़ता नेटवर्क लैंगिक समानता के लिए एक गंभीर खतरा बनकर उभर रहा है|
एक खबर के अनुसार वर्ष 2022 में 'मैनोस्फीयर' इन्फ्लुएंसर' के रूप में सबसे ज़्यादा गूगल पर खोजे जाने वाले सार्वजनिक व्यक्ति ,एंड्रयू टेट बने |
ऐसा माना जाता है कि Andrew Tate, The Real World / therealworld.net से कम‑से‑कम ब्रांडिंग, प्रचार, और सार्वजनिक चेहरे के तौर पर जुड़े हुए हैं |
उन पर स्त्री -विरोधी विचारों को बढ़ावा देने तथा युवाओं को कट्टरपंथी अवं पुरुष वर्चस्व के समर्थन करने के गंभीर आरोप हैं | उन्हें "विषाक्त मर्दानगी का राजा" के रूप में भी जाना जाता है |
विषाक्त मर्दानगी (Toxic Masculinity) क्या है?
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Image by Engin Akyurt from Pixabay |
इन मान्यताओं के चलते लड़कों पर अपनी-अपनी भावनाएं तथा संवेदनाएँ व्यक्त न करने का जबरदस्त दबाब रहता है |
विषाक्त मर्दानगी (Toxic Masculinity) का मानव अधिकारों पर प्रभाव
विषाक्त मर्दानगी ऐसे कारको को जन्म देती है जो मानवीयता और मानव अधिकारों के लिए ख़तरा बन जाती है |
Adolescence जैसा ड्रामा इन वास्तविकताओं को उजागर करता है कि कैसे मात्र 13 -साल का नाबालिग लड़का बाहरी दुनिया की अपेक्षाओं और खुद की दम्भ भरी पहचान तथा भावनात्मक संघर्ष के बीच पिसता दिखाई देता है |
इस संघर्ष में वह न सिर्फ खुद के मानव अधिकारों को खो रहा है, बल्कि विश्वसनीय सहपाठी की ह्त्या जैसे जघन्य अपराध को करके पीड़िता और उसके परिवारीजनों के मानव अधिकारों का भी उलंघन करता है |
विषाक्त मर्दानगी और LGBTQ + समुदाय के मानव अधिकार
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Image by rihaij from Pixabay |
लेकिन समाज में तेजी से पनपती विषाक्त मर्दानगी की समस्या के कारण LGBTQ+ समुदाय के लोगों को उनकी अलग लैंगिक पहचान के कारण भेद भाव का शिकार होना पड़ता है |
विषाक्त मर्दानगी की सोच उन्हें समाज के सामने अपनी पहचान, अस्तित्व और स्वयं को खुलकर व्यक्त करने से रोकती है |
जो कि उनकी आत्म-स्वीकृति और सम्मान को बाधित कर उनके गरिमा, समानता और स्वतंत्रता के मानवाधिकारों के उलंघन को बढ़ावा देती है |
सोशल मीडिया से बढ़ता जनरेशन गैप : माँ-बाप और किशोरों की अलग दुनिया
आप रात को बिना नींद सोए कितनी देर स्क्रॉल करते हो? क्या व्हाट्स ऍप, फेसबुक, इंस्टाग्राम, यूट्यूब पर ‘manosphere’ के वीडियो आपकी दिल की धड़कने नहीं बढ़ाते है ? क्या ये आपके आत्म-सम्मान को नहीं डगमगाते हैं ?
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Image by StartupStockPhotos from Pixabay |
क्या इनके कारण आप अपने बच्चों से एक ही घर में रहते हुए दूर नहीं रहते हैं ? क्या आपकी तरह आपके बच्चे manosphere से प्रभावित नहीं होते हैं ?
क्या हर समय हमारे हाथों में सोशल मीडिया का लिंक हमारे परिवारों को बुरी तरह प्रभावित नहीं कर रहा है ? वह भी विशेष रूप से नाबालिग बच्चों को ?
बस इन्हीं सामाजिक, भावनात्मक, कानूनी और मानवाधिकार पहलुओं की गहराई और पूरी जिम्मेदारी से पड़ताल की गई है, ऐमी अवार्ड विजेता Adolescence ड्रामा सीरीज के माध्य्म से |
इसमें की गई पड़ताल सिर्फ एक ड्रामा नहीं है बल्कि दुनिया भर में किशोरों की जिंदगी में होने वाली वास्तविक घटनाएं हैं |
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Image by Mircea Iancu from Pixabay |
सोशल मीडिया ने विशेष रूप से किशोरों में लाइक, कमेंट और सब्सक्राइब या फॉलो की भूख पैदा कर दी है, जिसके कारण माता- पिता के साथ एक ही घर में रह रहा किशोर अधिक से अधिक समय सोशल मीडिया पर देने को मजबूर है |
ऐसी स्तिथि में उसकी एक अलग भाषा विकसित हो गई है | माँ-बाप सोशल मीडिया पर इमोजी को सुख-दुःख व्यक्त करने का एक जरिया मानते हैं, वहीं दूसरी ओर आज के किशोर उन इमोजी का उपयोग साइबर बुलिंग के रूप में कर रहे है |
कहना न होगा दोनों में जनरेशन गैप बहुत बढ़ गया है | एक ही घर में दोनों रह रहे हैं, एक ही तरह के सोशल मीडिया टूल उनके हाथों में है, लेकिंग दुनिया दोनों की अलग -अलग हो गई है |
सोशल मीडिया ने बच्चों और माता-पिता के बीच एक बड़ी दरार पैदा कर दी है | जिसे पाटने के लिए अत्यधिक बलिदान की आवश्यकता होगी | देखना ये है क्या हम तैयार हैं ?
Adolescence ने दी चेतावनी: जब नाटक बना हर घर की सच्चाई
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Image by Julien Tromeur from Pixabay |
Adolescence ड्रामा सीरीज ने दुनिया को समय रहते चेतावनी दे दी है | इस चेतावनी से पूरी दुनिया में माँ -बाप के बीच चिंता की लकीरें साफ तौर पर देखीं जा सकतीं हैं |
स्पष्ट है कि एमी पुरस्कार विजेता Adolescence ड्रामा सीरीज ने पूरी दुनिया में हलचल मचा रखी है | यह एक थ्रिलर नाटक का मामला नहीं है |
बल्कि यह किशोर मानसिक स्वास्थय, साइबरबुलिंग और किशोरों में घर करती विषाक्त मर्दानगी की गहरी पड़ताल का गंभीर मुद्दा है |
इसका बेहतरीन उदाहरण ब्रिटिश प्रधानमंत्री स्टार्मर का बच्चों के साथ Adolescence ड्रामा देखकर विषय की गंभीरता के सम्बन्ध में सार्वजनिक तौर पर चिंता व्यक्त करना है |
Adolescence ड्रामा: ब्रिटेन, नीदरलैंड और फ्रांस के स्कूलों में नई पहल
ब्रिटेन के पीएम रीयर स्ट्रारमर ने अपने छोटे बच्चों के साथ सीरीज को देखा तथा सीरीज को मुश्किल और आवश्यक बताया | प्रधानमंत्री ने सीरीज को सभी स्कूलों में बच्चों को दिखाए जाने की घोषणा की |
ब्रिटेन और नीदरलैंड जैसे देशों के बाद फ्रांसीसी शिक्षा मंत्रालय ने भी Adolescence नेटफ्लिक्स सीरीज को स्कूली पाठ्यक्रमों में शामिल किये जाने की अनुमति दे दी है |
अंतर्राष्ट्रीय समाचार पत्रों और मीडिया ने इसकी गहन समीक्षा की है | जिसके परिणाम स्वरुप दुनिया भर में सामाजिक, कानूनी तथा मानवाधिकार सन्दर्भ में बहस तेज हो गई है|
मानसिक स्वास्थ्य सभी लोगों का बुनियादी मानव अधिकार
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Image by Mo Farrelly from Pixabay |
विश्व भर में प्रत्येक व्यक्ति को, बिना किसी भेदभाव के, मानसिक स्वास्थ्य के उच्चतम मानक को प्राप्त करने का बुनियादी मानव अधिकार प्राप्त है, यह मानना है विश्व स्वास्थ्य संगठन का |
इस अधिकार में उपलब्ध, सुलभ, स्वीकार्य और अच्छी गुणवत्ता वाली देखभाल का अधिकार के अतिरिक्त स्वतंत्रता, स्वाधीनता और समुदाय में समावेश का अधिकार भी शामिल है |
यह सामान रूप से किशोरों पर भी लागू होता है |मानव अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा, 1948 में स्वास्थ्य के अधिकार को महत्व पूर्ण स्थान दिया गया है |
समस्याओं से समाधान तक: स्वास्थ्य मर्दानगी के मॉडल
स्वस्थ मर्दानगी का मॉडल पितृसत्तात्मक या विषाक्त मर्दानगी के मॉडल से जुडी पारंपरिक सोच को ध्वस्त करते हुए भावनात्मक स्वीकृति, वास्तविक आत्म-देखभाल, और सकारात्मक आचरण पर ज़ोर देता है | यह मॉडल लैंगिक भेदभाव सहित हर तरह के भेदभाव का निषेध करता है |
यहाँ यह समझने का प्रयास किया जाता है कि स्वस्थ्य मर्दानगी का अर्थ केवल शारीरिक बल या कठोरता नहीं है, बल्कि इसके दायरे में सौम्यता, शालीनता, मानसिक स्वास्थ्य देख्भाल और अपनी कमियों और कमज़ोरियों को स्वीकारना आदि भी आता है |
इस मॉडल से न केवल व्यक्ति मजबूत होता है बल्कि उसकी समाज में स्वीकार्यता और सम्मान बढ़ता है | इस कारण स्वयं को भी आत्म -सम्मान तथा मानसिक संतोष मिलता है|
जिससे वह न सिर्फ अनेक तरह के मानवाधिकार उलन्घनो से बचता है, बल्कि खुली सोच के साथ जीते हुए तनाव और अवसाद जैसी गंभीर समस्याओं से बच जाता है |
स्वस्थ मर्दानगी मॉडल के तहत जब पुरुष शारीरिक, मानसिक, और भावनात्मक रूप से स्वस्थ और संतुलित होता है, तो उसकी परिवार, कार्यस्थल और समुदायों में स्वस्थ्य संवाद, समझ और सहयोग बढ़ता है।
विषाक्त मर्दानगी के पारंपरिक ढाँचे को चुनौती देकर और नए, लचीले और स्वीकृति-आधारित स्वस्थ्य मर्दानगी मॉडल को स्वीकार कर बेहतर और मजबूत समाज बना सकते हैं |
Adolescence ड्रामा, सोशल मीडिया और विषाक्त मर्दानगी का भारतीय परिदृश्य
Adolescence ड्रामा सीरीज की कहानी न सिर्फ ब्रिटेन, अमेरिका ,नीदरलैंड और फ्रांस की कहानी है, बल्कि यह कहानी भारत से भी मेल खाती है |
यह कहना पूरी तरह गलत होगा कि सोशल मीडिया से सिर्फ ब्रिटेन,अमेरिका आदि के बच्चे प्रभावित हो रहे हैं, बल्कि सत्य यह है कि भारत के युवा भी सोशल मीडिया के माध्य्म से मैनोस्फीयर और विषाक्त मर्दानगी जैसी विचारों की और आकर्षित हो रहे हैं |
लक्ष्मी प्रिया द्वारा न्यूज़लॉन्ड्री पर फ़रबरी, 2025 में प्रकाशित एक लेख में बताया है कि, "भारत में भी, मैनोस्फेयर की भाषा धीरे-धीरे लेकिन निश्चित रूप से स्कूली बच्चों की रोज़मर्रा की बातचीत में घुसने लगी है, जिनमें से कुछ तो आठ या नौ साल के भी हैं।"
अखबारों और मीडिया के माध्यम से इस तरह के प्रकरण भारत में भी आवाम के सामने आ रहे थे, लेकिन Adolescence ड्रामा सीरीज के आने तक उन्हें उस रूप में नहीं देखा जा रहा था जिस रूप में मुद्दे को ड्रामा सीरीज में उठाया गया है |
भारत में इस मुद्दे को किसी क़ानून विशेष के दायरे में नहीं रखा गया है, बल्कि किशोरों को किशोर न्याय (बालकों की दखरेख और संरक्षण)अधिनियम, 2015 ,सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम ,2000 तथा यौन अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम, 2012 आदि कानूनों के दायरे में रखते हुए कानूनी कार्यवाही की जाती है |
सर्व विदित है कि समाज में फिल्मे और नाटक समाज में घटित घटनाओं के दर्पण के रूप में जनता के सामने आते हैं | Adolescence नेटफ्लिक्स सीरीज भी इसी प्रकार समाज का दर्पण प्रदर्शित करती है |
किशोर न्याय अधिनियम के अनुसार 18 वर्ष से कम आयु के बच्चे को अभिकथित "क़ानून का उलंघन करने वाला बालक" माना जाता है | यदि इनके द्वारा कोई अपराध किया गया है और इन अपराधों में विषाक्त मर्दानगी के रूप में किये गए अपराध भी आते हैं |
आज कल की दुनिया अधिक से अधिक डिजिटल तकनीकी पर आधारित होती जा रही है | सोशल मीडिया औजार बिना किसी उम्र की बाधा के अधिकांश किशोरों की पहुंच में हैं | उनकी हर सोशल मीडिया प्रोग्राम तक बेलगाम पहुंच हो रही है |
आज कल ज्यादातर बच्चों को माता -पिता की व्यस्तता के चलते उचित समय नहीं मिल पाता है, ऐसी स्तथि में ये बच्चे सोशल मीडिया डिजिटल उपकरणों को अपना सर्वश्रेष्ट्र मित्र मानने को विवश हो जाते हैं |
बच्चे सबसे पहले इन पर सरल गेम खेलते है | उसके बाद धीरे -धीरे इन्हे हिंसक खेल पसंद आने लगते है | जहाँ ये धीरे -धीरे हिंसक खेल के हीरो को अपना आदर्श मानने लगते हैं और कभी- कभी ये उनमें इतने डूब जाते हैं कि विषाक्त मर्दानगी को अपने जीवन में उतार लेते हैं और अनजाने में ही ये अपराध कर बैठते है जिसका आभास इन्हे भी नहीं होता है |
इसलिए भारतीय क़ानून में 18 वर्ष की आयु से कम उम्र के किशोरों के लिए हत्या और बलात्कार जैसे जघन्य अपराधों के लिए अधिकतम सजा 3 वर्ष निर्धारित की गई थी | लेकिन 2012 में दिल्ली में एक सामूहिक बलात्कार और ह्त्या का प्रकरण हुया | इस प्रकरण को नर्भया केस के नाम से जाना जाता है |
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Source: Social Media |
इस मामले में कुल 6 अभियुक्त थे जिसमे से एक ने आत्महत्या कर ली थी तथा 4 अभियुक्त को फांसी की सजा सुनाई गई |
इनमे से एक अभियुक्त किशोर अर्थात 18 वर्ष से कम आयु का था | यह माना जाता है कि पीड़िता के साथ सबसे ज्यादा क्रूरता इसी नाबालिग अभियुक्त द्वारा की गई थी |
इस मामले में आम जनता ने किशोर अभियुक्त को फांसी की सजा देने और कठोर क़ानून बनाने की मांग की थी |
इस बात को मानते हुए सरकार ने आगे चल कर जुवेनाइल जस्टिस एक्ट में एक प्रावधान किया जिसके तहत 16 से लेकर 18 वर्ष तक के बच्चों को प्रिलिमिनरी असेसमेंट के तहत गुजरना पड़ता है |
इस टेस्ट में यह तय किया जाता है कि क्या क़ानून का उलंघन करने वाला बालक जघन्य अपराध की प्रकृति और परिणाम समझने में सक्षम है ?
यदि वह सक्षम पाया जाता है तो उसका ट्रायल बतौर प्रौढ़ चलता है लेकिन उसके साथ बच्चों की तरह ही व्यवहार किया जाता है | नर्भया प्रकरण में किशोर की भूमिका कही न कही अप्रत्यक्ष रूप में ही सही विषाक्त मर्दानगी का ही एक रूप थी |
निष्कर्ष :-
यदि आपको यह लेख झकझोरता है तो निम्नलिखित कार्य करें सिर्फ बाते नहीं :-
यदि आप माता -पिता हैं तो अपने बच्चों को विशवास में लेकर पूछए कि वे सोशल मीडिया पर क्या- क्या देख रहे हैं | यदि उन्हें कोई दबाब में डाल रहा है तो उनसे खुल कर बात करे और उन्हें भरोसा दिलाएं |
यदि आप शिक्षक हैं या स्कूल प्रसाशन से सम्बंधित हैं तो स्कूल में डिजिटल मीडिया साक्षरता, जिसमे उसके खतरे भी शामिल हों, के अलावा लैंगिक समानता पर खुल कर चर्चा करें तथा “मर्द बनो”, “दिखावा करो”, जैसी toxic अपेक्षाओं को हतोत्साहित करें |
यदि आप नीति निर्माता हैं तो अमेरिका तथा आस्ट्रेलिया जैसे देशों को अनुसरण करते हुए नीतियाँ निर्मित कर सकते हैं, जिसमे 16 साल से काम उम्र के बच्चों का सोशल मीडिया उपयोग निषेध करने की योजना बनाई है | यद्धपि ऑस्ट्रेलिया में भी यह क़ानून अभी लागू नहीं हुया है |
इनके अलावा नीति निर्माता सोशल मीडिया और मानसिक स्वास्थय के बीच अन्तर्सम्बन्ध पर गंभीर शोध कार्यों को बढ़ावा दें | साथ ही ऑनलाइन शोषण, साइबर बुलिंग और अल्गोरथिमक शोषण को कम करने के प्रयास करें |
यदि आप किशोर हैं तो यदि आप online परेशानी महसूस करते हैं या विषाक्त मर्दानगी की समस्या महसूस करते हैं तो तुरंत समर्थ मांगिए और ये समर्थन आप हेल्पलाइन से, कॉउंसिलर या अपने विश्वसनीय दोस्तों या रिस्तेदारों से मांग सकते हैं |
यदि आप इस लेख के पाठक हैं तो इस लेख को पढ़कर भूलिए मत- बल्कि लेख को दिल से शेयर करें, इस विषय पर चर्चा करें, जागरूकता फैलाएं, यही से वास्तविक बदलाब की शुरुआत होगी |
बच्चों के मानव अधिकार तभी सुरक्षित होंगे जब हम उनकी आवाज को गौर से सुनेगे, जो दबाई जा रही हैं तथा उनका हर स्थति में साथ देंगे | उन्हें समस्या में जाने से पहले ही रोकने के प्रयास किये जाने चाहिए | आपके एक शेयर से हो सकता कि किसी के लिए यह उम्मीद की किरण बने |
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सर ये जो आप ने हमारे बीच इतनी short शब्दों इतनी high information के लिए सर आप का दिल से आभार 🙏🏼
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत सारपूर्ण और उच्च दर्जे की इनफार्मेशन दी है आपने। बहुत बहुत आभार एवं धन्यवाद 🙏
जवाब देंहटाएंthanks.
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