बुधवार, 25 सितंबर 2024

फॉरेंसिक साइंस और मानव अधिकार के बीच अन्तर्सम्बन्ध -Interlinkage between Forensic Science & Human Rights(In Hindi)

Forensic Science and Human Rights

फॉरेंसिक साइंस और मानव अधिकार के बीच रिस्ते 

फॉरेंसिक साइंस और मानव अधिकार के बीच अन्तर्सम्बन्ध एक महत्वपूर्ण और जटिल विषय है | फॉरेंसिक साइंस का मुख्य उद्देश्य गंभीर अपराधों की जांच कर उसकी तह तक पहुंचना है तथा आपराधिक न्याय प्रणाली के समक्ष उच्च कोटि के साक्ष्य उपलब्ध कराकर सत्य की स्थापना में न्यायालय की सहायता करना है |
दूसरी ओर मानव अधिकार वे अधिकार है जो मनुष्य होने के नाते हर व्यक्ति को उसके जन्म से प्राप्त है | इन अधिकारों में गरिमा,समानता,स्वतंत्रता, जीवन, सुरक्षा और सक्षम न्यायालय से न्याय की मांग करने का अधिकार    हर व्यक्ति के चहुमुखी विकास के लिए आवश्यक है | ये सभी मनुष्यों को बिना किसी मूल,वंश ,घर्म,जाति,नस्ल,रंग,भाषा,क्षेत्र, लिंग,आदि के भेदभाव के प्राप्त होते हैं। यही नहीं गरिमा का अधिकार व्यक्ति की मृत्यु या ह्त्या के उपरांत उनके शवों को भी  प्राप्त होता  है |
किसी भी देश में मानव अधिकारों का संरक्षण एक सुदृढ़ लोकतंत्र के लिए अति आवश्यक है | अक्सर फॉरेंसिक साइंस का उपयोग मानव अधिकारों के उल्लंघन की घटनाओं से सम्बंधित जटिल तथ्यों को उजागर करने के लिए  किया जाता है | जब नियम विरुद्ध किसी व्यक्ति को किसी झूठे अपराध में फंसाया जाता है और उसे यातनाये दी जाती है या हिरासत में ही उसकी ह्त्या कर दी जाती है | ऐसी स्थति में अपराधियों के विरुद्ध कोई भी व्यक्ति गवाही देने वाला सामने नहीं आता है  जिसके कारण सरकार पोषित या संरक्षण पाए व्यक्तियों के विरुद्ध कोई कानूनी कार्यवाही पहले तो प्रारम्भ नहीं होती है और यदि प्रारम्भ हो भी जाए तो साक्ष्य के अभाव में न्यायलय से दोषमुक्त हो जाते है | ऐसी स्थति में पीड़ितों के लिए फॉरेंसिक साइंस ही न्याय और मानव अधिकार संरक्षण के द्वार खोलती है |
विश्व के अलग-अलग देशों में नरसंहार की कई घटनाएं इतनी भीभत्स और भयानक हुयी है कि उन घटनाओं का कोई चश्मदीद जीवित नहीं बचा, जो घटना के सम्बन्ध में परिथितिजन्य विवरण उपलब्ध करा सके | जो  जीवित बचे वे आताताईयों के भयवस अपना मुँह खोलने के लिए तैयार नहीं  थे | 
जो जीवित बचे उनके द्वारा दिए गए घटना सम्बन्धी विवरण की सत्यता की पुष्टि के बिना घटना की सच्चाई को उजागर करना अपने आप में अत्यधिक दुरूह कार्य था| इस जटिल कार्य को आसान बनाया फॉरेंसिक साइंस के विशेषज्ञों द्वारा फॉरेंसिक साइंस का उपयोग करके | 
आज फॉरेंसिक साइंस में बहुत उन्नति हो चुकी है| यही कारण है कि फॉरेंसिक साइंस के उपयोग से विश्व के कई देशों में मानवाधिकार उलंघन की भीभत्स आपराधिक घटनाओं का खुलासा संभव हो सका है | 
विश्वभर में फॉरेंसिक साइंस का मानव अधिकार उल्लंघन के वैज्ञानिक दस्तावेजीकरण के सशक्त माध्यम के रूप में उपयोग होता रहा है | कई देशों के फॉरेंसिक साइंस के वैज्ञानिकों ने मानवता के विरुद्ध अपराध के रूप में नरसंहार की घटनाओं से सम्बंधित विशेष तथ्यों को उजागर करने का काम किया है| यही नहीं आज यह विज्ञान प्रयोगशालाओं से बाहर निकलकर दूर दराज स्थित आपराधिक घटना स्थलों तक पहुंच रहा है। वर्तमान में इसके अनेक उदाहरण उपलब्ध है |  जिनमे से कुछ यहाँ प्रस्तुत किये जा रहे हैं | 
उदाहरण स्वरुप, वर्ष १९९५ में स्रेवेनिका के बोसनियन गांव में सर्वों द्वारा मारे गए बोसनियन लोगों के शवों को बरामद किया गया | उनका सावधानी पूर्वक उत्खनन और विश्लेषण के परिणाम स्वरुप सामने आये वैज्ञानिक सबूतों को साक्षियों के ब्यानो के साथ मिलाया गया |  इस घटना में  ८००० लोगों की सामूहिक हत्या हुई थी |  
उसी प्रकार वर्ष १९९० में ग्वाटेमाला कमीशन फॉर हिस्टोरिकल क्लेरिफिकेशन ने अनेकों सामूहिक कब्रों की खुदाई के आदेश दिए | अनेकों वर्ष बीतने के बावजूद पीड़ित और स्थानीय लोग जोर से यह नहीं कह सकते थे कि उनके पास ही उनके परिजनों या रिश्तेदारों के शवों को दफनाया गया था | उक्त सामूहिक कब्रों को तहसनहस  और हेरफेर करने के प्रयास किये गए | परन्तु सामूहिक कब्रों के उत्खनन के उपरान्त निकले परिणामों ने स्पष्ट साक्ष्य उपलब्ध कराये कि ग्वाटेमाला आर्मी ने वर्ष १९८० में अत्याचार किये थे | 
73 वर्षीय ओकलाहोमा निवासी क्लाइड स्नो दुनिया के जाने-माने फोरेंसिक मानवविज्ञानी माने जाते है | वे  आपदाओं, दुर्घटनाओं और हिंसक अपराधों में मारे गए लोगों का वैज्ञानिक विधि से परीक्षण कर घटना के पीछे छिपे रहस्यों को उजागर करते है | वर्ष १९७९ में अमेरिकन एयर लाइन्स की १९१ दुर्घटनाग्रस्त हुई जिसमे २७३ लोग मारे गए | क्लाइड स्नो ने जांच करने के लिए एक टीम बनाई जिसमे चिकित्स्कीय जांचकर्ता ,दन्त चिकित्सक तथा एक्स -रे तकनीसियन शामिल थे | दुर्घटनाग्रस्त लोगों के अवशेषों की जांच  पूरी करने के परिणामस्वरूप  २७३ लोगों में से २४४ लोगों की पहचान कर ली गयी थी सिर्फ २९ लोग ही अज्ञात बचे थे | 
यह फॉरेंसिक साइंस ही है जिसकी बदौलत मानवता के विरुद्ध गंभीरऔर भीभत्स अपराधों का खुलासा संभव हो सका है  |  
सयुंक्त राष्ट्र  संघ की सुरक्षा परिषद् ने सशस्त्र संघर्ष के दौरान लापता हुए लोगों पर ११ जून २०१९ को पहली बार प्रस्ताव पारित किया जिसमे इस बात पर चिंता जाहिर की गयी गयी कि लापता होने वाले लोगों की संख्या में कमी आने के कोई संकेत नहीं मिल रहे हैं | 
परिषद् ने सर्व सम्मिति से संकल्प २४७४ (२०१९ ) को अपनाते हुए कहा कि संघर्ष के दोनों पक्षों को वह सभी उचित उपाय करने चाहिए जिनसे लापता लोगों की अनवरत खोज चलती रहे तथा उनके अवशेषों  की वापसी सुनिश्चित हो| दोनों पक्ष बिना किसी दुराग्रह के लापता लोगों का हिसाब दें और लापता लोगों की शीघ्र ,गहन और प्रभावी जांच सुनिश्चित हो | 
सुरक्षा परिषद् के प्रस्ताव में कहा गया कि  हम महान वैज्ञानिक और तकनीकी प्रगति से परिचित है जिससे अन्य बातों के साथ -साथ लापता लोगों की खोज और पहचान की प्रभावी विधियों में उल्लेख्नीय बृद्धि हुई है जिसमे फॉरेंसिक साइंस ,डीएनए  विश्लेषण ,उपग्रह मानचित्र और इमेजनरी ,तथा जमीन भेदने वाला रडार शामिल है | 
सुरक्षा परिषद् के उक्त प्रस्ताव में शास्त्र संघर्ष से जुड़े पक्षों से सशस्त्र संगर्ष के बाद मृतकों की तलाश करने ,उन्हें बरामद करने,उनकी पहचान करने ,दफ़न स्थलों का मानचित्र बनाने ,मृतकों के शवों का सम्मान करने करने और उचित रूप में रख रखाव का आग्रह किया गया है |  
सुरक्षा परिषद् के उक्त प्रस्ताव के अवलोकन से स्पष्ट हो जाता है कि प्रस्ताव में शवों और उसके परिजनों या रिश्तेदारों के मानव अधिकारों के प्रति संघर्ष के दोनों पक्षों को सम्मान दिए जाने का आग्रह किया है साथ ही लापता, लोगों की खोज में वैज्ञानिक विधियों के रूप में फॉरेंसिक साइंस ,डीएनए  विश्लेषण ,उपग्रह मानचित्र और इमेजनरी तथा जमीन भेदने वाला रडार के उपयोग की वकालत की है |
फॉरेंसिक साइंस की बदौलत अपराधी को सजा दिलाकर पीड़ित के मानव अधिकारों को संरक्षित किया जाता है उसी तरह अभियुक्त के निर्दोष साबित होने पर अभियुक्त की स्वतंत्रता और न्याय प्राप्ति के अधिकार का संरक्षण होता है | 
अनेक मामलों में जानबूज कर की गयी आगजनी और हत्याओं को दुर्घटना का रूप दे दिया जाता है लेकिन फॉरेंसिक साइंस के उपयोग से की जाने वाली जांच पड़ताल से दूद का दूध और पानी का पानी हो जाता है | आगजनी या ह्त्या करने वालों का पता चल जाता है तथा पीड़ितों को फॉरेंसिक साइंस की बदौलत छतिपूर्ति संभव हो पाती है | 

शवों /मृतकों का सम्मान और उचित व्यवहार का मानव अधिकार  

विश्वभर में अनेक उदाहरण उपलब्ध हैं जिनमे कब्रों में दफ़न लोगों को उत्खनन द्वारा निकाला गया और उनकी फॉरेंसिक साइंस के तहत जांच की गयी और उसके बाद उन शवों की पहचान होने पर वे उनके परिजनों और रिश्तेदारों को सौंपे गए जिससे वे अपनी रीती रिवाज के साथ उनका अंतिम संस्कार कर सके | मृत्यु या ह्त्या के बाद भी उनके शवों को सम्मान दिया जाना पीड़ितों के परिवारीजनों और रिश्तेदारों को दर्द भरा सकून देता है जिससे उन्हें भी गरिमा के अधिकार का अहसास होता है |
सर्वोच्च न्यालय की विधि व्यवस्था आश्रय अधिकार अभियान  बनाम यूनियन ऑफ़ इंडिया, ए आई आर २००२ एस सी ५५४  में सड़क पर मरने वाले आश्रयहीन व्यक्तियों के अदावाकृत  शवों को उनके धर्म के अनुसार रीति रिवाज  से अंतिम संस्कार के अधिकार को स्थापित किया गया है | 
फॉरेंसिक साइंस और मानव अधिकारों के बीच अंतर्रसम्बन्धों के बारे में जानकर आप आश्चर्यचकित होंगे कि स्पेन में हिंसा के इतिहास को चुनौती देने के लिए एक बहुत व्यापक फॉरेंसिक साइंस -आधारित मानवाधिकार आंदोलन खड़ा हो गया | इस आंदोलन के उद्देश्यों में परिवार के मारे गए या लापता परिजनों को खोजने,उन्हें वापस लाने और उनको पुनः दफनाने में सहायता करना और राज्य के अत्याचारों और नरसंहार के समय घटित घटनायों को वैज्ञानिक तथ्यों से पुष्ट करना शामिल था | 
सही मायने में यह एक अधिकार आधारित वैज्ञानिक आंदोलन था जो कि अतीत की हिंसक और भीभत्स कहानियों को उजागर करने पर आधारित था | इस आंदोलन में मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के लिए अवशेषों को प्राप्त करना और विज्ञान के सुस्थापित सिद्धांतों का उपयोग सुनिश्चित कर उनकी पहचान कराना था | यह अत्यधिक दुरूह कार्य था | शव परीक्षण भी फॉरेंसिक साइंस का एक विषय है | 
इस आंदोलन की खास  बात यह थी कि इस आंदोलन में फॉरेंसिक साइंस अर्थात विज्ञान को परिवारों के मानव अधिकारों की प्राप्ति का एक सशक्त माध्यम बनाया गया | जिसकी की बदौलत अर्जेंटीना में डीएनए परीक्षण से कम से कम 130 लापता बच्चों की पहचान संभव हो सकी
जिन परिवारों से उनके परिजन लापता होते हैं उनके पता न लगने तक परिवारीजन हमेशा शोक में डूबे रहते हैं  और उनके मिलने का इंतज़ार ख़त्म नहीं होता है | इस दौरान परिवारीजन अपने प्रियजनों का अपनी आस्था और परम्पराओं के अनुसार अंतिम संस्कार के अधिकार से वंचित रहते हैं और उनके इस इन्तजार को अनेकों मामलों में समाप्त किया है फॉरेंसिक साइंस के उपयोग ने | 
भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने विधि व्यवस्था पंडित परमानंद कतरा बनाम भारत संघ ,१९९५ (३)एस सी सी २४८ में स्थापित किया है कि,"भारत के संविधान के अनुछेद २१ के तहत सम्मान और उचित व्यवहार का अधिकार न सिर्फ जीवित व्यक्ति को है बल्कि उसकी मृत्यु के बाद उसके मृत शरीर को भी उपलब्ध है |"
इलाहाबाद उच्च न्यायालय की विधि व्यवस्था रामजी सिंह मुजीब भाई बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य ,(२००९)५ एआईआईऐलजे ३७६  में  माना गया कि भारत के संविधान के अनुछेद २१ में "व्यक्ति" शब्द में एक मृत व्यक्ति भी समाहित है और सम्मान के साथ जीवन के अधिकार का विस्तार इस प्रकार किया जाना चाहिए कि उसमे उसके मृत शरीर को भी उसकी परंपरा,संस्कृति और धर्म के अनुसार सम्मान दिया जाए, जिसका वह हकदार होता है तथा समाज को मृतक के प्रति किसी प्रकार का अपमान करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है | 
भारत के राष्ट्रीय विधायन और विधि व्यवस्थायों  में ही नहीं बल्कि अंतराष्ट्रीय स्तर पर भी संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग ,संकल्प २००५ /२६ ,१९ अप्रैल २००५ , में मानव अधिकार और फॉरेंसिक विज्ञानं पर एक प्रस्ताव में, संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग ने "मानव अवशेषों के सम्मानजनक तरीके से निपटाने के महत्व, जिसमे उनका उचित प्रबन्धन और निपटारा शामिल है, तथा साथ ही परिवारों की आवश्यकताओं के प्रति सम्मान" को रेखांकित किया गया है |  
उपरोक्त से स्पष्ट है कि न सिर्फ जीवित व्यक्ति को गरिमा का अधिकार प्राप्त है बल्कि मृत शरीर को भी जीवित व्यक्ति के सामान गरिमा का अधिकार प्राप्त है |    

फोरेंसिक साइंस  का तात्पर्य एवम क्षेत्र 

फोरेंसिक साइंस की आधुनिक और उत्कृष्ट परिभाषा के अनुसार कानूनी उद्देश्यों को पूरा करने के लिए उपयोग में लाए जाने वाला कोई भी विज्ञान फोरेंसिक विज्ञान है। फॉरेंसिक साइंस या न्यायालयीय विज्ञान मुख्य रूप से किसी आपराधिक घटना या अपराध की जांच तथा उसका विश्लेषण करने के लिए वैज्ञानिक सिद्धांतों औरअत्याधुनिक प्रौद्योगिकी के उपयोग से संबंधित है। फॉरेंसिक वैज्ञानिक अपराध स्थल से एकत्र किए गए सबूतों/सुरागों को अदालत में प्रस्तुत करने के वास्ते ग्राहीय साक्ष्य के तौर पर इन्हें परिवर्तित करने का प्रयास करता है।
अर्थात यह विज्ञान आपराधिक घटनाओं की जांच में वैज्ञानिक  विधियों का उपयोग करता है | जिससे आपराधिक घटना से सम्बंधित तथ्यों की पुष्टि सटीकता के साथ हो सके | एक फॉरेंसिक साइंटिस्ट किसी प्रकरण से सम्बंधित जटिल तथ्यों की उपस्थिति के बाबजूद एक निश्चित सटीकता के साथ उसके समक्ष आने वाले  प्रश्नो का उत्तर दे सकता हैं | यह विज्ञान आपराधिक न्याय व्यवस्था में समाज और मानवता के विरुद्ध होने वाले जघन्य अपराधों में अत्यधिक सटीक और ग्राहीय  साक्ष्य उपलब्ध करती है | इस विज्ञान का मूलमंत्र है सत्य की खोज करना | 
समाज में अनेक आपराधिक घटनाएं ऐसी होती है जो किसी की उपस्थिति में नहीं होते हैं अर्थात जिसके कोई प्रत्यक्ष सबूत नहीं होते है | ऐसी स्तिथि में अपराधी को पहचान कर घटना से सटीकता से जोड़ना तथा अपराधी को सजा दिलवाना सम्पूर्ण आपराधिक न्याय व्यवस्था के लिए कोई आसान कार्य नहीं होता है | बस यही वह स्थति होती है जहाँ आपराधिक न्याय व्यवस्था का ध्यान फॉरेंसिक साइंस की ओर जाता है |
फॉरेंसिक विज्ञान के तहत घटना स्थल पर मौजूद सुबूतों ,जैसे कि मृतक का शव,खून के धब्बे,वीर्य,नाखून,बाल,अन्य वस्तुएं,अँगुलियों के निशान,हतियार तथा शरीर पर लगे गोलियों के निशान तथा उन पर लगा गन पाउडर आदि,  के अतिरिक्त अन्य शारीरिक, रासायनिक और जैविक तथ्यों का संकलन किया जाता है और आवश्यकता अनुसार प्रयोगशाला में उन नमूनों का उपयोग किया जाता है | जिसके परिणाम स्वरुप विश्लेषण के आधार पर सटीक जानकारी, तथ्यों औरअपराधियों की पहचान की जाती है | 
न्याय और मानव अधिकार संरक्षण के लिए किसी आपराधिक घटना या दुर्घटना के तथ्यों के सम्बन्ध में सटीकता, पारदर्शिता और निष्पक्षतापूर्ण जानकारी का होना आवश्यक है और यह जानकारी एकत्रित होती है फोरेंसिक साइंस में उपलब्ध उन्नत तकनीकी और वैज्ञानिक तरीकों के उपयोग से |
इस विज्ञान का मुख्य उद्देश्य न केवल दोषियों को सजा दिलाना है बल्कि बल्कि निर्दोष व्यक्तियों को उनके विरुद्ध हो रहे अन्याय से बचाना भी है | न्यायालय में इन साक्ष्यों के स्वीकार किये जाने योग्य होने पर अपराध के दोषी को सजा मुकर्रर होती है या निर्दोष होने की स्तिथि में बाइज्जत मुक्त कर दिया जाता है | 
साक्ष्य विहीन मुकद्द्मों में न्यायालय का निर्णय मुख्य्तया फॉरेंसिक साइंस द्वारा इकट्ठे किये गए सबूत के सम्बन्ध में निकाले गए निष्कर्षों पर ही निर्भर करता है | इस विज्ञान द्वारा न्यायालय को किसी अपराध के सम्बन्ध में सटीक जानकारी मिलती है जो आपराधिक न्याय व्यवस्था को अधिक प्रभावी और पारदर्शी बनाती है खासकर जब न्यायालय के समक्ष अँधा मामला होता है| अर्थात मामले में निर्णय लेने के लिए किसी प्रकार के साक्ष्य उपलब्ध नहीं होते है लेकिन सबूत के रूप में वैज्ञानिक साक्ष्य उपलब्ध होने की सम्भावनाये होती हैं |इससे वर्तमान न्याय प्रणाली में फॉरेंसिक साइंस की भूमिका का अंदाजा बखूबी लगाया जा सकता है | 
फोरेंसिक साइंस का विस्तार आज बहुत व्यापक तथा एक बहु-विषयक क्षेत्र के रूप में हो चुका है। वर्तमान और भविष्य की चुनौतियों के चलते आये दिन इस क्षेत्र में व्यापक विस्तार हो रहा है | फोरेंसिक विज्ञान में फिंगरप्रिंट से लेकर फोरेंसिक मनोविज्ञान, फोरेंसिक नृविज्ञान, फोरेंसिक ओडोन्टोलॉजी, फोरेंसिक पैथोलॉजी, फोरेंसिक जीवविज्ञान और सीरोलॉजी,फोरेंसिक रसायन विज्ञान, फोरेंसिक भौतिकी, फोरेंसिक कीट विज्ञान, विष विज्ञान, डीएनए विश्लेषण, डीएनए फिंगरप्रिंटिंग, डिजिटल फोरेंसिक, फोरेंसिक इंजीनियरिंग, फोरेंसिक बैलिस्टिक, फोरेंसिक अकाउंटिंग, प्रश्नगत दस्तावेज, फोरेंसिक पोडियाट्री, फोरेंसिक भाषाविज्ञान और वन्यजीव फोरेंसिक तक कई तरह के विषय शामिल हैं जो उसके बहु-विषयक होने की स्पष्ट गवाही देते हैं | 

न्यायालय में फॉरेंसिक साक्ष्य का महत्त्व 

फॉरेंसिक साइंस के उपयोग से संकलित सबूतों के सम्बन्ध में यह आवश्यक नहीं कि न्यायालय हर मामले में उन्हें साक्ष्य के रूप में स्वीकार कर ले | यह न्यायालय के विवेक पर निर्भर होता है कि फॉरेंसिक साइंस के द्वारा किसी घटना के सम्बन्ध में जांच के नतीजों को स्वीकार करे या ना करे | 
यदि फॉरेंसिक साइंस के नतीजों को किसी न्यायालय द्वारा स्वीकार कर लिया जाता है तो वह न्यायालय के समक्ष उपस्थित प्रकरण में साक्ष्य का रूप धारण कर लेता है तथा वह न्यायालय द्वारा दिए जाने वाले निर्णय का आधार बनता है | 
यद्यपि १ जुलाई २०२४ से पहले फॉरेंसिक साइंस के तहत संग्रह किये गए सबूत भारतीय साक्ष्य अधिनियम,१८७२ की धरा ४५ के अधीन विशेषज्ञ की राय के तहत आते थे परन्तु उक्त अधिनियम के समाप्त किये जाने के बाद लाये गए नए भारतीय साक्ष्य अधिनियम,२०२३ की धरा ३९ में भी विशेषज्ञ की राय को सम्मिलित किया गया है | 
फॉरेंसिक साइंस के सबूत स्वतः ही साक्ष्य का रूप धारण नहीं करते हैं बल्कि उन सबूतों के सम्बन्ध में उस फॉरेंसिक साइंस विशेषज्ञ की जिसने सबूतों का संकलन या उनकी प्राप्ति के के बाद वैज्ञानिक विश्लेषण किया है उसकी मुख्य-परीक्षा और प्रति-परीक्षा के बाद ही वे सबूत साक्ष्य में बदलते है अन्यथा की स्थति में उस फॉरेंसिक साइंस के सबूत का भी कोई महत्त्व नहीं होता है |
ऐसी अपराधिक घटनाओं, जिनके सम्बन्ध में चच्छुदर्शी साक्ष्य उपलब्ध नहीं होते है, वहां अपराधियों को सजा दिलाने या निर्दोषों को दोषमुक्त करने के लिए परिस्थितिजन्य साक्ष्य के अलावा एक मात्र विकल्प के रूप में फॉरेंसिक साइंस का महत्त्व अत्यधिक बढ़ जाता है | क्यों कि कानूनी प्रक्रिया में भौतिक साक्ष्य अत्यधिक महत्व के होते हैं  साक्षी की तुलना में भौतिक साक्ष्य में हेरफेर करना मुश्किल होता है तथा ये साक्ष्य अत्यधिक भरोसेमंद, प्रमाणिक तथा वैज्ञानिक समुदाय द्वारा स्वीकृति प्राप्त होते है |
न्याय और मानव अधिकार संरक्षण के लिए किसी आपराधिक घटना या दुर्घटना के तथ्यों के सम्बन्ध में सटीकता, पारदर्शिता और निष्पक्षतापूर्ण जानकारी का होना आवश्यक है और यह जानकारी एकत्रित होती है फोरेंसिक साइंस में उपलब्ध उन्नत तकनीकी और वैज्ञानिक तरीकों के उपयोग से, जो किसी भी न्यायालय में किसी प्रकरण में निर्णय और आदेश देने के लिए आवश्यक है |  

फोरेंसिक साइंस का भारतीय परिदृश्य 

वर्तमान समय में न्याय प्रणाली में आये दिन अनेक आमूलचूक परिवर्तन हो रहे हैं | जिसके कारण भारत में अपराधों की जांच प्रक्रिया के दौरान साक्ष्य संकलन में फॉरेंसिक साइंस की भूमिका अत्यधिक महत्वपूर्ण हो गयी है | फॉरेंसिक साइंस को हिंदी भाषा में न्यायिक या न्यायालयिक विज्ञान भी कहा जाता है | यह विज्ञानं किसी आपराधिक घटना की तह तक जाने का अवसर प्रदान करती है | 
भारतीय न्याय व्यवस्था में फोरेंसिक विज्ञान का उपयोग भारतीय साक्ष्य अधिनियम,1872  के लागू होने के साथ ही  शुरू हो गया था। इस अधिनियम ने भारतीय न्यायालयों में वैज्ञानिक साक्ष्य की ग्राहीयता को मान्यता प्रदान की। आपराधिक जांचपड़ताल में वैज्ञानिक तरीकों के उपयोग के बढ़ने के साथ ही भारत में फोरेंसिक प्रयोगशालाओं की संख्या में इजाफा हुया है लेकिन न्यायालयों में लंबित मुकदद्मों की तुलना में अभी भी फोरेंसिक प्रयोगशालाओं और  फॉरेंसिक विज्ञान में में कुशल मानव संसाधन की अत्यधिक कमी है | 
इस बात की तस्दीक होती है फॉरेंसिक साइंस पर नयी दिल्ली में आयोजित एक वेबिनार से | अगस्त, २०२० में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग,इंडिया द्वारा भारत में फॉरेंसिक साइंस  की स्थापना और सम्बंधित मुद्दों पर आयोजित वेबिनार की समाप्ति इस निष्कर्ष के साथ हुई कि भारत में फॉरेंसिक लैब्स और उनके सञ्चालन के लिए पर्याप्त संख्या में मानव संसाधन की कमी है | 
केंद्रीय गृह मंत्री श्री अमित शाह ने, वर्ष २०२३ में गुजरात के गाँधीनगर में राष्ट्रीय फॉरेंसिक विज्ञानं विश्वविद्यालय (NFSU) के ५ वे अंतर्राष्ट्रीय अपराध विज्ञान सम्मलेन को सम्बोधित करते हुए कहा कि प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में ऐसी व्यवस्था की गयी है कि ५ वर्षों के बाद देश को हर वर्ष ९ हजार से अधिक वैज्ञानिक अधिकारी और फॉरेंसिक विज्ञान विशेषज्ञ मिलेंगे |  
लेखक उक्त वेबिनार में आये सुझावों में से एक महत्वपूर्ण सुझाव को पाठकों के साथ साझा कर रहा है और यह सुझाव था एकीकृत बीएससी (फॉरेंसिक) एलएलबी में एक अलग पाठ्यक्रम के रूप में फॉरेंसिक क़ानून की पढ़ाई शरू करना | इस सुझाव पर अमल करते हुए उत्तर प्रदेश स्टेट इंस्टिट्यूट ऑफ़ फॉरेंसिक साइंस (UPSIFS) के संस्थापक निदेशक डॉ जी के गोस्वामी, (IPS) ने इंस्टिट्यूट में एकीकृत बीएससी (फॉरेंसिक) एलएलबी (ऑनर्स) का पाठ्यक्रम भारत में संभवतः सर्वप्रथम प्रारम्भ कराकर न्याय और मानव अधिकार संरक्षरण की दिशा में मानव अधिकार आयोग की अनुसंसा का अनुसरण किया है |
फॉरेंसिक विज्ञान में डीएनए फिंगरप्रिंट के महत्त्व को समझते हुए एनडीए सरकार द्वारा डीएनए प्रौद्योगिकी (उपयोग और अनुप्रयोग)विनियम विधेयक,२०१९ को लाया गया लेकिन बाद में इसे वापस ले लिया गया है |  
कानून के क्षेत्र में आपराधिक न्याय प्रणाली की वर्तमानआवश्यकताओं को देकते हुए भारत में मुख्य रूप से भारतीय दंड संहिता, १८६० ,दंड प्रक्रिया संहिता ,१९७३ ,और भारतीय साक्ष्य अधिनियम ,१८७२ को समाप्त कर दिया है | इनके स्थान पर नए सिरे से क्रमशः तीन नए कानूनों भारतीय न्याय संहिता,२०२३,भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता ,२०२३ तथा भारतीय साक्ष्य अधिनियम,२०२३ को भारतीय संसद द्वारा पास करा कर १ जुलाई, २०२४ से लागू कर दिया गया है | 
कहना न होगा कि आपराधिक न्याय व्यवस्था की वर्तमान आवश्यकताओं को ध्यान में रकते हुए उसको अधिक गतिशील ,सुदृढ़ और पारदर्शी बनाने के लिए भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता,२०२३ में आमूलचूक परिवर्तन किया गया है |इस परिवर्तन के तहत अधिनियम की धारा १७६(३) के तहत एक नया प्रावधान लाया गया है|  यह प्रावधान स्पष्ट करता है कि,
            "किसी ऐसे अपराध के जो सात वर्ष या अधिक के लिए दंडनीय बनाया गया है ,के होने से सम्बंधित पुलिस थाने का भारसाधक अधिकारी को कोई सूचना प्राप्त होती है तो अपराध में कारणों का पता लगाने के लिए न्याय सम्बन्धी दल को न्याय सम्बन्धी साक्ष्य संग्रह करने के लिए अपराध स्थल पर भेज सकेगा और कार्यवाही की वीडियो भी किसी इलेक्ट्रॉनिक साधन से बनाएगा जिसमे मोबाइल फोन भी शामिल है | " 
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता,२०२३ के उक्त प्रावधान के अवलोकन से प्रतीत होता है  कि सरकार द्वारा न्याय प्रक्रिया में तेजी लाने के लिए उपचार के रूप में फॉरेंसिक विज्ञान पर बहुत बल दिया जा रहा  है | 
यद्धपि वर्तमान में फॉरेंसिक विज्ञान प्रयोगशालाओं में पहले से ही अनेक मामले जांच की राह टोह रहे हैं | इन प्रयोगशालाओं में जांच के लिए भेजे गए नमूनों की समय से जांच न होने तथा उसके न्यायालय के समक्ष उपलब्ध न होने के कारण अनेक आपराधिक मुकदद्मे के निस्तारण में अत्यधिक विलम्ब होता है | जिसके कारण न्यायालयों पर भी अत्यधिक बोझ बढ़ता है | 

फॉरेंसिक साइंस पर न्यायिक दृष्टिकोण 

भारत में सर्वोच्च न्यायालय और विभिन्न राज्यों के उच्च न्यायालयों ने फॉरेंसिक साइंस के अलग -अलग विषयों पर न्यायिक दृष्टिकोण के रूप में अनेक विधि व्यवस्थाएँ दी है | जिनमे से कुछ महत्वपूर्ण विधि व्यवस्थायों का इस लेख में वर्णन किया जा रहा है | 
सर्वोच्च न्यालय की विधि व्यवस्था उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य बनाम सुनील और अन्य ,एआईआर २०१७ एस सी २१५० में स्थापित किया गया है कि किसी भी व्यक्ति को साक्ष्य के समर्थन के लिए फुटप्रिंट देने के लिए आदेशित किया जा सकता है किन्तु ये भारतीय संविधान के अनुछेद २०(३) के अधीन संरक्षण की गारंटी का उलंघन नहीं माना जाएगा |  
सर्वोच्च न्यायालय के केस लॉ एच पी एडमिनिस्ट्रेशन बनाम ओम प्रकाश, एआईआर १९७२ एस सी ९७५ में माननीय न्यायालय द्वारा स्थापित किया गया है कि "फिंगरप्रिंट विज्ञान एकदम सही विज्ञान है |"  
सर्वोच्च न्यालय  द्वारा दिए गए एक निर्णय जसपाल सिंह बनाम राज्य ,एआईआर १९७९  एस सी १७०८  में माननीय न्यायालय द्वारा स्थापित किया गया है कि "फिंगरप्रिंग पहचान का विज्ञान किसी गलती एवम संदेह को नहीं स्वीकार करता है |" 
विधि व्यवस्था रामा सुब्रमण्यम बनाम केरला राज्य ,एआईआर २००६ एससी ६३९ में मृतक के बैडरूम में रखी अलमारी पर अभियुक्त की उँगलियों के चिन्ह पाए गए तथा उसके बाल मृतका की साड़ी और कच्छी पर पाए गए | इस प्रकरण में न्यायालय ने अभियुक्त को ह्त्या का दोषी पाया | 
सर्वोच्च न्यालय द्वारा निर्मित विधि फूल कुमार बनाम दिल्ली एडमिनिस्ट्रेशन, (१९७५ )१ एससीसी ७९७ में एक डकैती के दौरान छुए गए कैशबुक के कुंडे पर अभियक्त के अंगूठे के निशान पाए गए जिन्हे विशेषज्ञ की सहायता से न्यायालय में सिद्ध किया गया | इस प्रकरण में सर्वोच्च न्यायालय द्वाराअभियुक्त की सजा को बरकरार रखा गया | इस विधि व्यवस्था से फॉरेंसिक साइंस के सम्बन्ध में अवर न्यायालय से लेकर सर्वोच्च न्यायालय तक का न्यायिक दृष्टिकोण स्पष्ट होता है | 
आसाम राज्य बनाम यू एन रालखोवा ,१९७५ सी आर एल जे ३५४ के प्रकरण में अभियुक्त द्वारा अपनी पत्नी और तीन पुत्रियों की ह्त्या कर दी थी और उनके शवों को १० फरवरी १९७० रात्रि में जला दिया गया | अगले दिन पुलिस द्वारा उनके शवों को कब्जे में ले लिया गया | अभुक्त के विरुद्ध ह्त्या करने का आरोप लगा | अवशेषों के कंकाल का परीक्षण किया गया | जिमे उनकी खोपड़ी और फोटो का मिलान किया गया | जिसमे पाया गया कि ४ कंकाल उसकी पत्नी और पुत्रियों के थे| उक्त आधार पर अभियुक्त को दोषसिद्ध किया गया | 
मुकेश एवम अन्य बनाम स्टेट एनसीटी ऑफ़ दिल्ली अवं अन्य ,ए आई आर २०१७ एस सी २१६१ , जिसे निर्भया केस के नाम से भी जाना जाता है | भारत की राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में बलात्कार की घटना घटित हुई | पीड़िता के शरीर पर आए दाँतों से काटने के निशानों ने अपराधी को पहचानने के लिए महत्वपूर्ण सुराग दिए | इन सुरागों के तहत पीड़िता को दाँतों से आई चोटों के फोटो लिए गए साथ ही पांच अभियुक्तों के दाँतों के पैटर्न लिए गए |
उक्त दोनों के मिलान के विश्लेषण से आये परिणामो से स्पष्ट हुया कि पांच अभियुक्तों में से पीड़िता को दाँत से काटकर चोट पहुंचाने वाला अभियुक्त राम सिंह था | इस प्रकरण में भारतीय साक्ष्य अधिनियम ,१९७२ की धरा ४५ के अधीन विशेषज्ञ की राय माननीय न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत की गयी थी | 
विश्वभर में फॉरेंसिक साइंस के सिद्धांतों के उपयोग से संकलित किये गए सबूतों के आधार पर न्यायालयों द्वारा अनगिनत आपराधिक प्रकरणों में निर्णय दिए गए हैं | जनके आधार पर न सिर्फ पीड़ितों को न्याय और उनके मानव अधिकारों का संरक्षण हुया है बल्कि अनेक  अभियुक्तों को झूठे प्रकरणों में दोषमुक्त घोषित किये जाने से उनको न्याय और उनके मानव अधिकारों का संरक्षण संभव हो सका है |  

निष्कर्ष 

फॉरेंसिक साइंस और मानव अधिकार एक-दूसरे के पूरक हैं। फॉरेंसिक साइंस और मानव अधिकारों का मेल एकीकृत और समग्र आपराधिक न्याय प्रणाली के लिए आवश्यक है | फॉरेंसिक साइंस  का सही और सटीक तरीके से उपयोग किया जाए तो यह विधा परिस्थिति अनुसार अपराध के पीड़ितों और अभियुक्तों दोनों को न्याय दिलने और मानव अधिकारों की रक्षा में सहायता करती है। जब आपराधिक न्याय व्यवस्था फॉरेंसिक साइंस के सिद्धांतों का पालन करते हुए संकलित किये गए सही सबूतों के आधार पर निर्णय लेती है, तो यह न्याय और मानव अधिकारों की सुरक्षा में अत्यधिक सहायक होती है।
फॉरेंसिक साइंस और मानव अधिकारों के एकीकृत आंदोलनों और मिशनों ने  विश्व के अनेक देशों में फॉरेंसिक साइंस के सिद्धांतों का उपयोग करके मानव अधिकार उलंघन से पीड़ित असंख्य  लोगों  के आँसू  पौछे है तथा उन्हें न्याय और उनके मानव अधिकारों का संरक्षण  कराया है  
फॉरेंसिक विज्ञान के माध्यम से संकलित सबूतों का साक्ष्य के रूप में सही समय तथा सही उपयोग करके न्यायालय की प्रक्रिया में तेजी लाकर समय से मुकदद्मों का निपटारा किया जा सकता है | जिससे न्याय जल्दी सुलभ हो सकता है  | क्योंकि न्याय में देरी न्याय से इंकार के सामान होता है | 
फॉरेंसिक साइंस का बिना किसी दुराग्रह के सही और निष्पक्ष उपयोग मानव अधिकारों की रक्षा में महत्वपूर्ण योगदान होता हैं। इसलिए, एक स्वस्थ्य और मजबूत लोकतंत्र बनाये रखने के लिए आपराधिक न्याय व्यवस्था में मानव अधिकार पहुंच के सिद्धांत के तहत फॉरेंसिक साइंस का उपयोग करते समय मानव अधिकारों का सम्मान,संरक्षण और पूर्ति किया जाना आवश्यक और प्रथम शर्त है | 
विशेष रूप से भारतीय सन्दर्भ में उम्मीद की जानी चाहिए कि भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता,२०२३ की धारा १७६(३) के तहत फॉरेंसिक साइंस के लिए पर्याप्त मूलभूत ढांचा, जिसमे उसके उपयोग हेतु कुशल मानव संसाधन का निर्माण और पूर्ति शामिल है, की जल्द से जल्द पुख्ता व्यवस्था को कागजो से उतार कर अभ्यासिक रूप प्रदान किया जाएगा |  








 
 



3 टिप्‍पणियां:

  1. This is a very fantastic explanation of the relationship between forensic science and human rights.

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  2. फॉरेंसिक साइंस और मानवाधिकार की बहुत ही स्पष्ट और गहन जानकारी का उल्लेख किया गया है। विस्तृत और उपयोगी जानकारी है।

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  3. प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत शुक्रिया

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