"लड़की का जन्म ही पहला अवरोध है; हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वह सिर्फ जीवित न रहे, बल्कि फल-फूल सके।” — न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना
भारत में महिला भ्रूण ह्त्या (Female Foeticide) कोई नई सामाजिक बुराई नहीं है, बल्कि समाज में यह सदियों से चली आ रही हैं और यह महिलाओं के मानव अधिकारों का घोर उल्लंघन भी करती है |
महिला भ्रूण ह्त्या के कारण महिलाओं की संख्या में कमी के चलते महिला-पुरुष आकड़े का संतुलन बिगड़ता है जिससे सामाजिक असंतुलन की स्थति बन सकती है | यह महिलाओं की सुरक्षा और उनके सम्मान के लिए भी ख़तरा पैदा करता है |
दिल्ली में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान इस विषय पर सर्वोच्च न्यायालय की न्यायाधीश न्यायमूर्ति बी.वी.नागरत्ना ने गहरी चिंता जाहिर की है |
इस लेख में भारत में महिला भ्रूण ह्त्या की स्थति, मानवाधिकार पहलुओं, कानूनी खामियों और संभावित सुधार सुझावों तथा इस सम्बन्ध में नागरत्ना जी के दृष्टिकोण का विश्लेषण करेंगे |
न्यायमूर्ति नागरत्ना की चिंता और चेतावनी
जस्टिस नागरत्ना ने कई राज्यों में घटते लिंग अनुपात और संभवतः बढ़ती महिला भ्रूण हत्या की घटनाओं पर चिंता जताई है|
उनका मानना है कि महिला भ्रूण ह्त्या केवल एक सामाजिक समस्या नहीं है, बल्कि यह एक मानव अधिकार उल्लंघन और लैंगिक असमानता का भी मुद्दा है |
उनके अनुसार हर बच्ची को जन्म लेने का समान अधिकार है |
इस अधिकार से किसी भी बच्ची को वंचित करना न सिर्फ भारतीय कानूनों, नीतियों और संवैधानिक मूल्यों के खिलाफ है, बल्कि अंतर्राष्ट्रीय मानव अधिकार सन्धियों के भी विरुद्ध है |
अभी हाल ही में दिल्ली में "बालिकाओं की सुरक्षा: भारत में उनके लिए एक सुरक्षित और अधिक सक्षम वातावरण की ओर" विषय पर एक कार्यक्रम का आयोजन हुआ |
कार्यक्रम के उद्घाटन सत्र में, सर्वोच्च न्यायालय की न्यायाधीश और किशोर न्याय समिति की अध्यक्ष, न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना ने आह्वान किया कि भारत में प्रत्येक बालिका "न केवल जीवित रहे, बल्कि सक्रिय रूप से फलती-फूलती रहे।"
उन्होंने यह भी कहा कि एक लड़की तभी पूर्ण नागरिक बन सकती है जब लड़की को उसके जीवन की शुरुआत से ही सभी संसाधन उसे लड़कों की तरह आसानी से उपलब्ध हों | इसे सुनिश्चित करने के लिए नए सिरे से राष्ट्रीय प्रतिबद्धता को अपनाना होगा |
उन्होंने सभी से, जिसमे न्यायपालिका, सरकार और समाज शामिल है, इस बुराई के खात्मे के लिए साझा प्रयास करने कीअपील की है |
उनका विचार है कि कठोर क़ानून पर्याप्त नहीं जब तक कि समाज में जागरूकता और महिलाओं के प्रति आदर और सम्मान का भाव पैदा न किया जाए |
महिला भ्रूण ह्त्या : मानव अधिकार दृष्टिकोण
1. जीवन का अधिकार (Right to Life)
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Image by Biella Biella from Pixabay |
सॅयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा जारी मानव अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा(UDHR ), 1948 के अनुच्छेद 3 में कहा गया है कि प्रत्येक व्यक्ति को प्राण, स्वंत्रता, और दैहिक सुरक्षा का अधिकार है |
इसका अर्थ है कि जीवन के अधिकार को महत्वपूर्ण मानव अधिकार माना गया है | महिला भ्रूण ह्त्या से सीधे इस मानव अधिकार का उलंघन होता है |
क्यों कि यह भ्रूण ह्त्या की बुराई लड़कियों के जन्म से पहले ही उनसे जीवन के महत्वपूर्ण अधिकार को छीन लेता है |
2. लैंगिक समानता का अधिकार (Right to Gender Equality)
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Image by Azmi Talib from Pixabay |
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 ,15 , और 21 के तहत हर व्यक्ति को समानता का अधिकार प्राप्त है | महिला भ्रूण ह्त्या लैंगिक असमानता को बढ़ावा देने वाला अमानवीय अभ्यास है |
यह संविधान और भारतीय अन्य कानूनों की मूल भावना के खिलाफ है | यह एक गंभीर अपराध भी है |यह स्पष्ट रूप से लिंग आधारित भेदभाव को जन्म देता है
भारत में अभी तक अनगिनत बच्चियाँ कन्या भ्रूण ह्त्या की भेंट चढ़ चुकी हैं |
भारत में पुख्ता कानूनी प्रावधानों और नीतियों के होने के बाबजूद कन्या भ्रूण ह्त्या का यह अमानवीय कृत्य गुप्-चुप तरीके से अनवरत जारी है |
3. गोपनीयता और स्वास्थ्य का अधिकार
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Source:Pixabay |
गैर कानूनी तौर पर अल्ट्रा साउंड के माध्यम से दम्पति को जैसे ही पता चलता है कि गर्भ में पल रहा भ्रूण एक बालिका है तो कुछ दम्पति गर्भपात कराने का निर्णय ले लेते हैं |
पूर्व गर्भ जांच और गर्भपात सम्बन्धी सूचनाएं अत्यधिक संवेदनशील होती हैं | आज का दौर आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस का दौर है |
ऐसे में AI, चिकित्सकीय डेटा, अल्ट्रा साउंड केंद्र आदि में डेटा सुरक्षा के पुख्ता प्रावधान न होने की स्थति में महिला की गोपनीयता का उलंघन महिलाओं के मानव अधिकार को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित कर सकता है |
महिलाओं की इच्छा के बिना उनका गर्भ समापन भी उनके स्वास्थ्य के मानवअधिकार का उल्लंघन है
महिला भ्रूण ह्त्या रोकने में बाधाएं
1. कानूनी सख्ती और सही क्रियान्वयन का अभाव
PCPNDT अधिनियम को सख्ती से लागू करने के साथ साथ उसके क्रियान्वयन पर ईमानदारी से पहल करनी पड़ेगी | इस अधिनियम में लिंग निर्धारण परीक्षण और भ्रूण ह्त्या को रोकने के प्रावधान हैं |
परन्तु इसकी निगरानी और कार्यवाही की प्रक्रिया ढीली रहती है | इस एक्ट से सम्बंधित आपराधिक मामलो में कार्यवाही अत्यधिक सुस्त रफ़्तार से होती है |
2. साक्ष्य और जांच की कठिनाइयाँ
भ्रूण की जांच और महिला भ्रूण हत्याएं अत्यधिक गोपनीय तरीके से की जाती हैं | ऐसी स्थति में अपराधियों को सजा दिलाये जाने के लिए साक्ष्यों को जुटाना अत्यधिक दुरूह कार्य होता है |
सही और सटीक साक्ष्य में ग्राह्य साक्ष्य न प्राप्त होने पर अक्सर अपराधी साक्ष्यों के अभाव में छूट जाते हैं | जिससे उनके हौसले और बढ़ जाते हैं |
3. सामाजिक मान्यताएँ और दबाब
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Image by Christian Trachsel from Pixabay |
लेकिन यह स्थति सम्पूर्ण भारत में नहीं है | लेकिन कुछ राज्यों के आकड़े इस घिनौनी और अमानवीय बुराई की सचाई की तरफ स्पष्ट रूप से संकेत करते हैं |
जस्टिस नागरत्ना ने इन्ही आकड़ों के हवाले से भारत में महिला भ्रूण ह्त्या पर चिंता जाहिर की है | सामाजिक असंतुलन की दृष्टि से जस्टिस रत्नम्मा की महिला भ्रूण ह्त्या पर चिंता जायज है |
महिला भ्रूण हत्याओं के सम्बन्ध में भारत में सामाजिक मान्यताओं का प्रभाव समाज पर अत्यधिक गहरा प्रभाव रखता है | इसके अतिरिक्त लड़का पैदा करने का सामाजिक दबाब भी दम्पत्तियों पर हावी रहता है |
4.विभागीय तालमेल का अभाव
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Image by LEANDRO AGUILAR from Pixabay |
न्यायालय में उचित साक्ष्य के अभाव में अक्सर अपराधी दोष मुक्त हो जाते हैं | महिला भ्रूण ह्त्या की रोकथाम के लिए यह एक गंभीर चिन्ता का विषय है |
समस्या की रोकथाम के लिए कुछ सुझाव
1.नियमित निगरानी और समीक्षा
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Image by Sasin Tipchai from Pixabay |
हर अल्ट्रासॉउन्ड और MTP केंद्र की नियमित निगरानी और मूल्यांकन होना चाहिए| जिसके लिए एक स्वतंत्र संस्था का निर्माण किया जा सकता है|
सभी अल्ट्रा साउंड मशीन को एक केंद्रीयकृत डिजिटल सिस्टम से जोड़ा जाना चाहिए| जिससे तत्काल केंद्रीयकृत केंद्र पर डाटा पहुंच सके और उसे स्टोर करके उस केस को मॉनिटर किया जाना चाहिए |
लेकिन डाटा प्रोटेक्शन अधिकारों का ख्याल रखा जाना चाहिए किसी भी सूरत मी गोपनीयता के अधिकार का उल्लंघन नहीं होना चाहिए |
2.कठोर दंड और समुचित क्रियान्वयन![]() |
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भारत में कानून के तहत गर्भावस्था में बच्चे का लिंग निर्धारण करना गैर कानूनी कृत्य तथा अपराध घोषित किया गया है |
लिंग निर्धारण निषेध का उलंघन करने वालों तथा महिला भ्रूण ह्त्या का अपराध करने वालो के विरुद्ध फ़ास्ट ट्रेक ट्रायल करके कठोर दंड सुनिश्चित कराने के लिए न्यायालयों में बेहतर पैरवी की व्यवस्था की जानी चाहिए |
3. सामाजिक जागरूकता अवं शिक्षा
महिला भ्रूण ह्त्या की रोकथाम और उसके समाज पर पड़ने वाले कुप्रभाव के बारे में सामाजिक जागरूकता शिक्षा की बहुत आवश्यकता है |
यही नहीं महिला भ्रूण ह्त्या के कानूनी पहलू जिसमे अपराध की सजा के बारे में भी आम जनमानस में जनचेतना की आवश्यकता है | इसके लिए सरकार को गैर सरकारी संगठनों को आर्थिक सहायता उपलब्ध करानी चाहिए |
4.महिला अधिकारों की वकालत![]() |
Image by Jamie Hines from Pixabay |
महिला अधिकारों की वकालत के रूप में महिला भ्रूण ह्त्या की रोक -थाम के विषय को शामिल किया जाना चाहिए | भारत में अनेक गैर सरकारी संघटन महिला अधिकारों की बकालत में लगे हुए हैं |
इनमे ऐसे बहुत कम NGO हैं जो महिला भ्रूण ह्त्या की रोकथाम को अपने महिला अधिकारों की वकालत के अभिन्न अंग के रूप में अपनाते हों |
अतः जरूरत इस बात की है कि अधिक से अधिक गैर सरकारी संगठन महिला भ्रूण ह्त्या की रोक -थाम के विषय को अपने महिला अधिकारों की वकालत के अजेंडे में शामिल करें |
5.मानवाधिकार केंद्रित दृष्टिकोण
महिला भ्रूण ह्त्या की रोक -थाम सम्बंधित नीतियों को मानव अधिकार केंद्रित सिद्धांतों के अनुसरण में तैयार करना चाहिए |
निष्कर्ष :
महिला भ्रूण ह्त्या के सम्बन्ध में न्यायमूर्ति बी. वी. नागरत्ना की चिंता स्पष्ट संकेत करती है कि यह समस्या सिर्फ एक कानूनी मसला नहीं है, बल्कि महिला मानव अधिकारों का गहरा संकट है |
जो भारत के लिए एक चिंता का सबब है | न्यायमूर्ति. नागरत्ना की चिंता हमें संकेत देती है कि इस बुराई को समाप्त करने के लिए न्यायपालिका, सरकार और समाज को मिलकर प्रयास करने होंगे|
इस समस्या का अंत करने के लिए सिर्फ कानूनों के कठोर अनुपालन की ही नहीं, बल्कि सामाजिक चेतना के साथ -साथ महिलाओं को समान अधिकार, सम्मान और अवसर देने की भी है | अन्यथा, महिला भ्रूण हत्या की जड़ें समाप्त नहीं होंगी।
अगर हम महिला भ्रूण ह्त्या की समस्या का समाधान करने में सफल होते हैं तो यह न केवल भारत के सामाजिक ताने- बाने को मजबूत करेगा, बल्कि महिला मानवाधिकारों के संवर्धन और संरक्षण के साथ -साथ लैंगिक समानता को भी बढ़ावा देगा |