संविधान किसी भी देश के नागरिकों के मानव अधिकारों के संवर्धन एवम संरक्षण और उनका उलंघन रोकने के लिए महत्वपूर्ण दस्तावेज होता है तथा जो समाज के सभी वर्गों के अधिकारों और कर्तव्यों को परिभाषित करता है | भारतीय संविधान में विशेषकर बच्चों के अधिकारों को विशेष महत्त्व दिया है | जिसके आधार पर उनकी मासूमियत और भविष्य की रक्षा होती है | मानवाधिकार और संवैधानिक प्रावधान दोनों बालकों को सुरक्षित,शसक्त और विकासोन्मुख वातावरण प्रदान करते हैं |
बच्चे देश का मुस्तकबिल होते हैं तथा देश के विकास और सम्बृद्धि के आधार होते हैं | भारत में एक लिखित संविधान है जो नागरिकों को,जिसमे अपनी मासूमियत के लिए पहचाने जाने वाले बच्चे भी शामिल हैं, के संवैधानिक और विधिक अधिकारों की गारंटी प्रदान करता है | इसी लिए भारतीय संविधान बाल अधिकारों का प्रणेता हैं | बच्चों के अधिकार को मूल अधिकार और राज्य के नीति निर्देशक तत्वों के रूप में संविधान में समाहित किया गया हैं | बच्चे मानवता की दिव्यतम निधि हैं, जो देश के विकास की बुनियाद और गारंटी दोनों है |
संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा स्वीकृत और अंगीकृत अंतराष्ट्रीय मानवाधिकार विधि के अनुसार बालक का तात्पर्य उस हर व्यक्ति से है जिसकी उम्र १८ वर्ष से कम है | बच्चों के अधिकारों से सम्बंधित अभिसमय ,१९८९ के अनुच्छेद १ के अनुसार अभिसमय के प्रयोजन के लिए बालक का अर्थ अठारह साल से कम उम्र का प्रत्येक मनुष्य है,बशर्ते कि बच्चे को लागू क़ानून के अनुसार वह उससे कम उम्र में ही वयस्क न माना जाने लगे |
अलग अलग संवैधानिक और विधिक प्रावधानों के अनुसार बालक को निम्न प्रकार परिभाषित किया गया है :
भारतीय संविधान के अनुछेद ४५ के अनुसार १४ वर्ष से काम आयु के व्यक्ति को बालक बताया गया है |
किशोर न्याय (बालकों की देखरेख और संरक्षण)अधिनियम,२०१५ में बालक से तात्पर्य है कि बालक वह व्यक्ति है जिसने १८ वर्ष की उम्र पूरी नहीं की है |
भारत के संविधान में बच्चों के कल्याण के लिए नीति निर्देशक तत्वों और अधिकार के लिए मूल अधिकारों में संवैधानिक प्रावधान किये गए है, जो निम्नवत हैं ;
राज्य,भारत के राज्यक्षेत्र में किसी व्यक्ति को विधि के समक्ष समता से या विधियों के सामान संरक्षण से वंचित नहीं करेगा|
किसी व्यक्ति को उसके प्राण और दैहिक स्वंत्रता से विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार ही बंचित किया जाएगा अन्यथा नहीं |
भारत में महिलाओं,अनुसूचित जाति /अनुसूचित जनजाति ,दिव्यांगजन तथा विभिन्न यौनिकता वाले व्यक्ति आदि की तरह बच्चों को विशेष समूह के रूप में महत्त्व दिया गया है |
इसी लिए संविधान में बच्चों के लिए विशेष प्रावधान किये गए हैं | लेकिन अंतराष्ट्रीय स्तर पर बच्चों के अधिकारों को लेकर सयुंक्त राष्ट्र बालकों के अधिकार पर सम्मलेन को स्वीकृत और अंगीकृत किया गया | उक्त सम्मलेन के आधार पर भारत ने अपने यहाँ बालकों की श्रेणी में उन व्यक्तियो को रखा जिन्होंने १८ वर्ष की आयु पूरी न की हो | इसके लिए अपने यहाँ के क़ानून में भी बदलाव किया गया |
जिन बच्चों की देख भाल और संरक्षण की आवश्यकता है वे १८ वर्ष की उम्र पूरी न होने तक राज्य का संरक्षण प्राप्त करने के हकदार होंगे | उक्त बालकों ने बेशक विवाह कर लिया हो तथा उनके बच्चे भी हों लेकिन वे बालकों के रूप में ही वर्गीकृत होंगे तथा विभिन्न विधियों के अधीन प्राप्त संरक्षण और सुविधाओं के लिए हकदार होंगे |
भारतीय संविधान में बालकों के अधिकारों को विशेष समूह के रूप में समावेशित कर लिया गया था | लेकिन करीब-करीब उसी दौर में सयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा द्वारा मानव अधिकारों से सम्बंधित एक अंतराष्ट्रीय दस्तावेज को स्वीकृत और अंगीकृत करने की घोषणा की जो कि मानव अधिकारों की सारभौमिक घोषणा ,१९४८ के नाम से जाना जाता है |
उक्त घोषणा में कई मानव अधिकारों को समावेशित किया गया था लेकिन विशेष समूहों के मानव अधिकारों के रूप में अंतराष्ट्रीय स्तर पर कोई प्रावधान नहीं किया गया था | समय के गुजरने के साथ -साथ वैश्विक स्तर पर बालकों के अधिकारों पर अंतराष्ट्रीय क़ानून की मांग तेज होती गयी | अनेक नागरिक समाजों और मानव अधिकार और सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा स्थानीय,राष्ट्रीय और अंतराष्ट्रीय स्तर पर बच्चों के अधिकारों के संवर्धन और संरक्षण के लिए मांग उठाई गई, परिणाम स्वरुप बच्चों के अधिकारों को लेकर अंतराष्ट्रीय स्तर पर क़ानून स्वीकृत और अंगीकृत किया गया |
समाज के सकारात्मक विकास के लिए बालक मानव अधिकारों का अत्यधिक महत्व होता है | बालक किसी भी समाज के सतत विकास और सशक्त भविष्य की बुनियाद होते हैं उनकी शिक्षा,स्वास्थय ,सुरक्षा और चहुमुखी विकास पर ध्यान देना आवश्यक है, ताकि वे एक स्वस्थ्य और सशक्त नागरिक बन सकें | बच्चों की मासूमीयतता को दृष्टिगत रखते हुए उनके अधिकारों का विशेष संरक्षण बेहद जरूरी है | जो कि न सिर्फ उनकी भलाई के लिए आवश्यक है बल्कि समाज के सतत विकास के लिए भी आवश्यक है |
मानव अधिकार बिना किसी उम्र की बाधा के सभी के लिए उपलब्ध हैं फिर भी उनकी विशेष स्थति के कारण उनको प्रौढ़ व्यक्तियो से अधिक संरक्षण और सलाह की आवश्यकता होती हैं इसी लिए उन्हें कुछ विशेष अधिकार प्राप्त होते हैं | बालकों के इन अधिकारों को एक अंतराष्ट्रीय मानव अधिकार दस्तावेज का रूप प्रदान करने के लिए बच्चों के अधिकारों पर सयुक्त राष्ट्र सम्मलेन का आयोजन किया गया | जिसके परिणाम स्वरुप विश्व भर में बच्चों के अधिकारों का संवर्धन और संरक्षण करने के लिए बच्चों के अधिकारों पर सयुंक्त राष्ट्र सम्मेलन के रूप में एक महत्वपूर्ण अंतराष्ट्रीय विधि स्वीकृत और अंगीकृत की गई |इस प्रस्ताव पर भारत ने १९९२ में हस्ताछर कर अपनी प्रतिबद्धता व्यक्त की |
बच्चो के अधिकारों पर सयुक्त राष्ट्र सम्मलेन में मुख्य रूप नागरिक,राजनैतिक, सामाजिक,आर्थिक और सांस्कृतिक अधिकारों के रूप में मुख्यतः बच्चों की उत्तरजीविता,संरक्षण,विकास और भागीदारी के मुद्दों को बच्चों के मानव अधिकार के रूप में समाहित किया गया है | उक्त सम्मलेन में बच्चों के उक्त मानव अधिकारों को विस्तार देते हुए समाहित किया गया है |
विश्व मानवाधिकार सम्मेलन १४ से २५ जून १९९३ तक आस्ट्रिया के विएना नगर में आयोजित किया गया | इस आयोजन में १७१ राज्यों तथा अनेक राष्ट्रीय एवं अन्तराष्ट्रीय संस्थाओं और गैर-सरकारी संगठनों के लगभग ७,००० प्रतिनिधियों ने भाग लिया | २५ जून १९९३ को सम्मलेन ने विएना घोषणा और कार्य योजना को अंगीकार किया,जिसे बाद में सयुक्त राष्ट्र की महासभा ने अनुमोदित किया |
इस घोषणा की महत्वपूर्ण बात है कि इसमें लोकतंत्र,विकास तथा मानवाधिकारों की पारस्परिक अंतर्निर्भरता अवं मानवाधिकारों की सार्वजनीनता, अविभाज्यता और अंतर्निर्भरता को स्वीकार किया गया तथा उसमे सदस्य राज्यों द्वारा गहरा विशवास वियक्त किया गया | इस घोषणा में बच्चों के अधिकारों को निम्न प्रकार व्यक्त किया गया;
विश्व मानवाधिकार सम्मलेन सभी राष्ट्रों से विश्व शिखर कार्य -योजना में निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए अंतराष्ट्रीय सहयोग से अपने-अपने उपलब्ध संसाधनों की हद तक अधिक से अधिक उपाय करने का अनुरोध करता है | यह सम्मलेन राज्यों से आग्रह करता है कि बच्चे के अधिकार सम्बन्धी अभिसमय को अपनी-अपनी कार्य योजनाओं में शामिल कर ले |
इन राष्ट्रीय कार्य योजनाओं और अंतर्राष्ट्रीय प्रयत्नो के जरिये शिशुओं तथा माताओं की मृत्यु -दरों को कम करने,कुपोषण और निरक्षरता की दरों को घटाने तथा शुद्ध पेय जल और बुनियादी शिक्षा की सुलभता की व्यवस्था करने के कार्यों को विशेष प्राथमिकता दी जानी चाहिए | राष्ट्रीय कार्य योजनाओं को ऐसा रूप देना चाहिए जिससे जब भी जरूरत पड़े,वे प्राकृत आपदाओं और शस्त्र संघर्षों से उत्पन्न विनाशकारी आपात स्तिथियों और बच्चों की घोर गरीबी का ,जो उतनी ही गंभीर समस्या है,निवारण कर सके |
विश्व मानवअधिकार सम्मेलन सभी राज्यों से अनुरोध करता है कि वे,अंतराष्ट्रीय सहयोग के समर्थन से,विशेष कठिन परिस्थितियों में पड़े बच्चों की गंभीर समस्यों के समाधान की और ध्यान दें |बच्चों के शोषण और उत्पीड़न के निवारण केलिए,जिसमे इनके मूलभूत कारणों का निवारण भी शामिल हैं,सक्रिय तौर पर प्रयत्त्न किया जाना चाहिए | नवजात बालिकाओं की हत्या ,हानिकर बाल-श्रम ,बच्चों और बच्चों और अंगों की बिक्री ,बाल बेश्याबृति ,बच्चों के लिए अश्लील लेखन और साथ ही अन्य प्रकार के लैंगिक दुर्व्यवहार के खिलाफ प्रभावकारी उपाय करने की जरूरत है |
विश्व मानव अधिकार सम्मेलन सयुंक्त राष्ट्र संघ और उसकी विशिष्ट एजेंसियों द्वारा बालिकाओं के मानव अधिकारों का प्रभावकारी संरक्षण और अभिवर्धन सुनिश्चित करने के लिए किये जाने वाले सभी उपायों का समर्थन करता है | विश्व मानव अधिकार सम्मेलन राज्यों से अनुरोध करता है कि वे ऐसे मौजूदा कानूनों और विनियमों को रद्द कर दें तथा ऐसे रीति -रिवाजों को मिटा दे जो बालिकाओ के खिलाफ विभेद करते हैं और उन्हें हानि पहुंचाते हैं |
विश्व मानव अधिकार सम्मेलन इस प्रस्ताव का प्रबल समर्थन करता है कि महासचिव सशस्त्र संघर्षों के दौरान बच्चों के संरक्षण की व्यवस्था में सुधार के उपायों का अध्य्यन आरम्भ कराएं | युद्ध क्षेत्रों में बच्चों की रक्षा करने और उनकी सहायता के मार्ग को प्रशस्त करने के लिए मानवीयता सम्बन्धी मानदंडों को कार्यान्वित करना चाहिए और इन उद्देश्यों के लिए आवश्यक उपाय किये जाने चाहिए |
इन उपायों में युद्ध के सभी हतियारो के खास तौर से सैनिक-विरोधी सुरंगों के,अंधादुंध उपयोग से बच्चों को बचाने का भी समावेश होना चाहिए | युद्ध से आतंकित बच्चों की युद्धोत्तर देख-भाल और पुनर्वास की आवश्यकता की ओर तत्काल ध्यान दिया जाना चाहिए | यह सम्मलेन बच्चों के अधिकारों से सम्बंधित समित का आह्वान करता है कि वह सशस्त्र बालों में भर्ती की न्यूनतम उम्र को बढ़ने के प्रश्न का अध्ययन करें |
भारत में अंतराष्ट्रीय मानव अधिकार विधि का स्वतः क्रियान्वयन नहीं होता बल्कि अंतराष्ट्रीय विधि का स्थानीय विधि में देश की आवश्यकताओं के अनुसार रूपांतरण और स्वीकारोक्ति करने की आवश्यकता होती है | भारत के सर्वोच्च न्यायलय ने अपने अनेक निर्णयों में अंतर्राष्ट्रीय मानव अधिकार विधि के प्रावधनों को इंगित किया है और उन्हें अपने निर्णयों का आधार बनाया है |
ये निर्णय सम्पूर्ण भारत के अवर न्यायालयों और उच्च न्यायालयों में नजीर के रूप में उपयोग किये जाते हैं | भारत के संविधान का अनुछेद २५३ भारतीय संसद को अंतराष्ट्रीय विधि के अनुक्रम में स्थानीय विधि बनाने की शक्ति प्रदान करता है |
मानव अधिकार,मासूमियत अर्थात बालक और भारत का संविधान,का संगम बालकों के चहुमुखी विकास और उनकी सुरक्षा को सुनिश्चित करने की बुनियाद है | विएना घोषणा और कार्य योजना, १९९३ के अनुछेद ७९ में निरक्षरता मिटाने और शैक्षणिक पाठ्यक्रम में मानव अधिकारों को समाहित करने के लिए निम्नवत इंगित किया गया है ;
"७९. राज्यों को निरक्षरता मिटाने का प्रयत्न करना चाहिए और शिक्षा को मानव व्यक्तित्व के विकास तथा मानवाधिकारों और मूल स्वतंत्रताओं के प्रति सम्मान की भावना को मजबूत करने की ओर अभिमुख करना चाहिए | विश्व मानवाधिकार सम्मेलन सभी राज्यों और संस्थाओं का आह्वान करता है कि वे विद्योपार्जन की औपचारिक तथा अनौपचारिक दोनों प्रकार की संस्थाओं की पाठ्यचर्चाओ में मानवाधिकारों,मानवीयता सम्बन्धी क़ानून,लोकतंत्र और क़ानून के शासन का समावेश करें |"
राज्य द्वारा संवैधानिक प्रावधानों और अंतराष्ट्रीय मानवाधिकारों का सम्मान बालकों के मानव अधिकारों के संवर्धन और संरक्षण की दिशा में एक मील का पत्थर साबित हो सकता है जिसके लिए प्रबल राजनैतिक इच्छा शक्ति बहुत जरूरी है |
बच्चों के मानव अधिकारों की सुरक्षा न केवल बच्चों के भविष्य को सशक्त व् उज्जवल बनाती हैं बल्कि भविष्य के लिए एक शसक्त और मजबूत समाज की बुनियाद रखती है जो एक सशक्त और मजबूत राष्ट्र के निर्माण के लिए आवश्यक है | यह सभी की जिम्मेदारी है की वे सभी संवैधानिक और विधिक पप्रावधानों का पालन करें | जिससे हर बालक को एक सुरक्षित और सम्बृद्ध भविष्य मिल सके |
शोध सन्दर्भ
१ .मानव अधिकारों की सावभौमिक घोषणा ,१९४८
२.अनुच्छेद १४ ,अनुच्छेद १५ ,अनुच्छेद २१ ,२१ ए अनुछेद २३,२४,२९ और ४५ ,भारत का संविधान ,1950,
३. बच्चों के अधिकारों से सम्बंधित अभिसमय ,१९८९
४. विएना घोषणा और कार्य योजना, १९९३
आशा है कि मेरे द्वारा मानव अधिकार,बालक और भारत का संविधान (Human Rights, Children and Constitution of India in Hindi) विषय पर दी हुई जानकारी आपको पसंद आई होगी |