बुधवार, 6 नवंबर 2024

डिजिटल अरेस्ट मानव अधिकारों पर हमला सम्पूर्ण जानकारी


डिजिटल अरेस्ट एक साइबर अपराध न सिर्फ भारत में बल्कि सम्पूर्ण विश्व में व्यक्तियों और संवेदनशील समुदाय के लिए एक गंभीर ख़तरा बन गया है |










   
 साइबर अपराध के क्षेत्र में नया वेरिएंट डिजिटल अरेस्ट 

परिचय 

आज कल एक तरफ डिजिटल तकनीकी ने हमारे जीवन को सुगम बनाया है वहीं दुसरी तरफ नयी चुनौतियों का सामना करने के लिए विवश कर दिया है | इन चुनौतियों में से एक है डिजिटल अरेस्ट | यह विषय आज के वैश्विक परिदृश्य के साथ-साथ देश के स्तर पर भी अत्यधिक महत्वपूर्ण हो गया है | साइबर अपराध की दुनिया में डिजिटल अरेस्ट नामक शब्द मानव अधिकारों के उल्लंघन का प्रतीक बन गया है तथा मानवअधिकारों के लिए भी गंभीर चुनौती है|   
भारतीय समाज में डिजिटल अरेस्ट का अपराध इतनी तेजी से फैला है जैसे अतीत में किसी समय स्माल पॉक्स की बीमारी फैला करती थी | भारत में डिजिटल अरेस्ट के अपराध की गंभीरता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि माननीय प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी को मन की बात के 115 वे एपीसोड में डिजिटल अरेस्ट के बारे में जनता को जागरूक करने के लिए हस्तक्षेप करना पड़ा है | 
समाज में लोगों के साथ ठगी करना सभ्यताओं के विकास की शुरुआत से ही चला आ रहा है | हालांकि समय के साथ -साथ ठगने के तरीकों में आमूलचूक परिवर्तन आता रहा है | वर्तमान के डिजिटल युग में तो ठगी और जालसाजी के तरीके पूरी तरह से बदल गए हैं तथा वे समय के साथ -साथ अत्यधिक आधुनिक और नए रूप में  समाज के सामने आ रहे हैं, और यह नया तरीका है डिजिटल अरेस्ट | 
अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक(ADGP), उत्तर प्रदेश तथा फाउंडर डायरेक्टर ,उत्तर प्रदेश स्टेट इंस्टिट्यूट ऑफ़ फॉरेंसिक साइंस ,लखनऊ ,प्रोफेसर (डॉ) जी.के. गोस्वामी, IPS के अनुसार डिजिटल अरेस्ट साइबर क्राइम का एक नया वेरिएंट है | वर्तमान परिदृश्य में उनका यह भी कहना है कि ऐसे मामले प्रति दिन बड़ी संख्या में हो रहे हैं कुछ लोग बता भी नहीं पाते | 
डिजिटल तकनीकी का विकास समाज की भलाई और जीवन को सरल बनाने के लिए किया गया है लेकिन यह भी सत्य है कि अपराधी हमेशा से ही अच्छी और उच्चस्तरीय तकनीकी का दुरूपयोग व्यक्ति और समाज के विरुद्ध तथा अपने हितार्थ करते आये हैं | 
आज के वैज्ञानिक और तकनीकी युग में जहाँ डिजिटल तकनीकी की उन्नति तेजी से हो रही है | वहीं अपराधियों द्वारा तकनीकी खामियों का लाभ उठाकर अनेक लोगों के साथ ठगी और जालसाजी की जा रही है | यह साइबर अपराध एक भयाभय प्रबृति के रूप में डिजिटल तकनीकी की जानकारी रखने वाले नवयुवकों में तेजी से उभर कर सामने आया है |
इस प्रकार की जालसाजी और ठगी में ठग पीड़ितों को अवैध बित्तीय लेनदेन करने के लिए विवश करते हैं तथा धन की डिजिटल वसूली होने पर उन्हें उनके द्वारा किये गए आभासीय तथा मनगढंत अपराध से मुक्त करने का आश्वासन भी देते हैं | यही डिजिटल अरेस्ट का महत्वपूर्ण घटक है | 

डिजिटल अरेस्ट क्या है ?

सामान्य भाषा में डिजिटल अरेस्ट का अर्थ है कि किसी व्यक्ति की ऑनलाइन गतिविधियों,उसके डाटा, और उसकी व्यक्तिगत जानकारी पर निगरानी और नियंत्रण कर उसे झांसे या भय में फँसा कर उससे ठगी या जालसाजी करना है | यद्धपि डिजिटल अरेस्ट की अभी तक कोई सर्वमान्य परिभाषा उपलब्ध नहीं है | इसका कारण विषय विशेषज्ञों द्वारा डिजिटल अरेस्ट के विषय का अन्तरविषयक(इंटरडिसिप्लिनरी) होना बताया है |  
डिजिटल अरेस्ट कोई वास्तविक गिरफ्तारी नहीं है, बल्कि इसमें व्यक्ति डिजिटल उपकरण जैसे कि मोबाइल, लेपटॉप या इलेक्ट्रॉनिक टेबलेट आदि के माध्यम से बातचीत करने के दौरान पीड़ित ठगों के आभासीय गिरफ्त में रहते है | इस दौरान ठग या जालसाज पीड़ितों को किसी संगीन अपराध में फसाने या उन्हें  गिरफ्तार करने या उनके किसी परिवारीजनों या प्रियजनों को किसी अपराध में फ़साने का झांसा दे कर उनसे मनमानी रकम डिजिटल माध्यम से वसूलने का प्रयास करते हैं या वसूल कर लेते हैं | 

डिजिटल अरेस्ट के मामलों में फंसाने के तरीके क्या हैं ?

डिजिटल अरेस्ट के माध्यम से ठगने या जालसाजी करने के तरीके यद्धपि निश्चित नहीं हैं फिर भी कई अलग -अलग तरीकों से ठगी या जालसाजी को अंजाम दिया जाता है | 
पहले तरीके में अच्छे पढ़े लिखे और कानून के जानकार लोगों को अधिकांशतः मनी लॉन्डरिंग का डर दिखाकर फंसाया जाता है |दूसरे तरीके में किसी व्यक्ति के कूरियर में ड्रग्स होने का भरोसा दिलाया जाता है | जिसकी वजह से उसे गंभीर अपराध में फंसने का डर दिखाया जाता है | तीसरे तरीके में व्यक्ति के बैंक के खाते से ट्रांजेक्शन्स में फाइनेंश्यिल फ्रॉड होने का डर दिखाया जाता है | 
चौथे तरीके में अधिकांशतः गरीब लोगों को, जिनके खाते में पैसे नहीं होते है, उन्हें लोन लेने वाला ऍप डाउनलोड करा दिया जाता है | बाद में उनको बसूली के लिए धमकाया जाता है और लोन के पैसे बापस करने को कहा जाता है, जो उन्होंने कभी उधार लिए ही नहीं | 
पाँचवा तरीका है जिसमे युवाओं से लेकर बुजुर्ग तक आते है | इस तरीके में व्यक्ति अपने अंतरंग क्षणों को ऑनलाइन प्रस्तुत करने का प्रस्ताव प्रस्तुत करता है, जिसे दूसरे व्यक्ति द्वारा स्वीकार कर लिया जाता है | धीरे धीरे प्रस्ताव देने वाला व्यक्ति दूसरे का विशवास जीत लेता है और दूसरे को अपने वस्त्र उतारने के लिए उकसाता है | पहला वाला व्यक्ति इन्ही अंतरंग क्षणों की ऑनलाइन तस्वीरें या वीडिओ बना लेता है और उसके बाद प्रारम्भ होता है दूसरे व्यक्ति का डिजिटल अरेस्ट | दूसरे व्यक्ति द्वारा पैसे न देने की सूरत में उसकी अश्लील तस्वीरें या वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल करने की धमकी दी जाती है |
समय के साथ -साथ साइबर खतरों का क्षेत्र दिन पर दिन व्यापक होता जा रहा है | इस क्षेत्र में डिजिटल अरेस्ट की अवधारणा समाज के लिए एक गंभीर खतरे के रूप में अत्यधिक तेजी से उभरी है | 
ठगी करने वाले स्वयं को क़ानून प्रवर्तन अधिकारी,जो पुलिस,सीबीआई, प्रवर्तन निदेशालय, फ़ेडरल ब्यूरो ऑफ़ इन्वेस्टीगेशन,आरबीआई, टेलिकॉम रेगुलेटरी अथॉरिटी ऑफ़ इंडिया आदि में से किसी के भी रूप में पेश कर सकते हैं, आवश्यकता अनुसार पीड़ितों को यह विस्वास दिलाते है कि उनके वैधानिक दस्तावेजों जैसे कि आधार कार्ड, बैंक खाते,आदि का अवैध रूप से उपयोग किया गया है | 
जिसके लिए उनके विरुद्ध तत्काल कानूनी कार्यवाही किये जाने का दबाब बनाया जाता है | जिन पीड़ितों ने कभी किसी कोर्ट-कचहरी के चक्कर नहीं लगाए तथा वे किसी कानूनी लफड़े में नहीं पड़ना चाहते है, अपने विरुद्ध या अपने किसी परिवारीजन या किसी अजीज के विरुद्ध डिजिटल रूप से कानूनी कार्यवाही की बात सुनकर घबरा जाते है | इसके बाद शुरू होता है ठगों का पीड़ितों को पैसा देने के लिए मजबूर करने का सिलसिला | 
डिजिटल अरेस्ट के माध्यम से ठगने या जालसाजी करने के तरीके यहाँ बताये गए तरीकों तक सीमित नहीं हैं, बल्कि साइबर अपराधी आये दिन नए -नए तरीके गढ़ रहे हैं | 

डिजिटल अरेस्ट की कुछ हालिया घटनाएँ 

विगत कुछ वर्षों में डिजिटल अरेस्ट की घटनाओं की बाड़ सी आ चुकी है | जिनमे से कुछ घटनाओं का जिक्र यहाँ किया जा रहा है | गृह मंत्रालय द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार 1 जनवरी 2023 से 31 दिसंबर 2023 की अवधि के दौरान भारत में वित्तीय साइबर धोखाधड़ी  के कुल 1128265 प्रकरण दर्ज किये गए जिनसे जुडी कुल धनराशि 748863.9 लाख रुपये रही है |  
उत्तर प्रदेश के जिला आगरा निवासी शिक्षिका मालती वर्मा 30 सितम्बर, 2024 को अपने स्कूल में थी | दोपहर 12 बजे उसके मोबाइल पर फोन आया | फोन करने वाले ने बताया कि वह इंस्पेक्टर विजय कुमार बोल रहा है | उनकी बेटी रैकेट में पकड़ी गयी है| उन्हें  लड़की की आवाज सुनाई गयी | लड़की को जेल जाने से बचाना है तो 15 मिनट में एक लाख रूपये खाते में ट्रांसफर कर दो |अपनी बेटी को परेशानी में देख विमला वर्मा सदमे से बेहोश हो गयीं | परिवारीजन अस्पताल ले गए जहाँ उनकी मृत्यु हो गयी | यह सब हुया डिजिटल अरेस्ट के कारण | यह रोंगटे खड़े कर देने वाला वाकया है | 
बेंगलूरु स्थित एक ७० वर्षीय वरिष्ठ पत्रकार को साइबर ठगों ने 15 से 23 दिसंबर तक 8 दिन डिजिटल अरेस्ट में रहने की धमकी दी | ठगों ने अपना परिचय मुंबई पुलिस और सीबीआई के अधिकारी के रूप में दिया | पत्रकार को धमकी दी कि उसे गिरफ्तार कर लिया जाएगा यदि वह घर से बाहर निकला और उसे बताया गया कि उसके नाम पर ड्रग्स की एक खेप भेजी गयी है तथा उसके बैंक खातों का उपयोग हवाला लेनदेन के लिए किया गया है | ठगों ने उनसे 1.2 करोड़ की अवैध वसूली कर ली | 
एक अन्य मामले में 13 जुलाई 2024 को नोएडा की रहने वाली एक डॉक्टर पूजा गोयल को साइबर ठगों ने 48 घंटे तक डिजिटल अरेस्ट करके रखा | उसे पोर्न वीडियो स्कैम में शामिल होने का भय दिखा कर उससे 59 लाख रूपये ठग लिए । डॉक्टर को कॉल कर साइबर ठगों ने खुद को टेलीफोन रेगुलेटरी ऑफ़ इंडिया का कर्मचारी बताते हुए कहा कि उसके फोन से पोर्न वीडियो भेजे जा रहे है और इसके उसके गिरफ्तारी वारंट जारी होने की बात कही |  वह लगातार पोर्न वीडियो स्कैम में शामिल होने से इंकार करती रही | लेकिंग ठगों ने कहा कि उनके पास सबूत है | इसके बाद डॉक्टर गोयल डर गयी और ठगों द्वारा बताये गए खातों में रुपये ट्रांसफर कर दिए | इस घटना में डिजिटल अरेस्ट के सम्बन्ध में सर्वाधिक चिंता का विषय यह है कि इस घटना की पीड़िता एक उच्च शिक्षित व्यक्ति है |
डॉ. रुचिका टंडन उत्तर प्रदेश के लखनऊ में स्थित मेडिकल कॉलेज के न्यूरोलॉजी बिभाग में कार्यरत हैं | साइबर ठगों ने उन्हें कृष्णानगर में डिजिटल अरेस्ट कर लिया तथा उनसे 2.81 करोड़ करोड़ रूपये ठग लिए |
डॉ टंडन द्वारा पुलिस को दी गयी अपनी शिकायत में बताया कि 1 अगस्त 2024 को उनके फ़ोन पर किसी अज्ञात मोबाइल नंबर से कॉल आई | कॉल करने वाले ने स्वयं को टेलीफोन रेगुलेटरी अथॉरिटी ऑफ़ इंडिया का सदस्य बताया तथा सभी फोन्स की सेवाएं बंद करने की चेतावनी दी तथा बताया गया कि उनके मोबाइल सिम के बारे में उनके विरुद्ध कई शिकायते है | सीबीआई अफसर उनसे बात करेंगे | बातचीत के दौरान टंडन को बताया गया कि उनका नाम मनीलॉंड्रिंग के अपराध में सामने आया है तथा उनके खाते का उपयोग पैसा जमा करने के लिए किया गया जिसका उपयोग बच्चों और महिलाओं की तस्करी के लिए किया गया है | डिजिटल अरेस्ट के दौरान उसे आश्वासन दिया गया कि जांच में सहयोग पर  छोड़ दिया जाएगा | 
10 सितम्बर 2024 को हैदराबाद के एक सेवा निवृत सलाहकार ए वी मोहन राव को अज्ञात मोबाइल नंबर से कॉल आयी | जिसके बाद साइबर अपराधियों ने स्वयं को मुंबई पुलिस का अफसर बताते हुए डिजिटल अरेस्ट कर लिया | तथाकथित अफसर ने राव को बताया कि उसके आधार कार्ड की डिटेल और फोन नंबर मनीलॉन्ड्रिंग तथा पोर्नोग्राफी के वितरण से जुड़े हुए हैं | पीड़ित को फर्जी वारंट का भय दिखाकर उससे उसके बैंक खाते का नंबर साझा करने का दबाब बनाया गया और 2 करोड़ की ठगी कर ली |  

डिजिटल अरेस्ट के प्रति संवेदनशील व्यक्ति और समुदाय 

डिजिटल युग का सबसे बड़ा नुक्सान उन लोगो को उठाना पढ़ रहा जो डिजिटल तकनीकी के सामान्य ज्ञान या बेसिक शिक्षा से वंचित हैं या उम्र के ऐसे पड़ाव पर है कि प्रौढ़ शिक्षा के रूप में भी डिजिटल तकनीकी की बेसिक शिक्षा भी नहीं लेना चाहते है, जिससे स्वयं को डिजिटल अरेस्ट से बचा सकें | यद्यपि डिजिटल अरेस्ट की अखबारों या मीडिया के माद्यम से समाज के सामने आयी घटनाओं से पता चलता है कि डिजिटल अरेस्ट की चपेट में अच्छे खासे पढ़े लिखे लोग भी आ चुके हैं |
तकनीकी निगरानी के माध्यम से न सिर्फ पड़े लिखे लोगों को बल्कि ऐसे लोगों को भी डिजिटल अरेस्ट किया जा  रहा है, जो गोपनीय रूप से प्रौढ़ वैब साइट्स पर कंटेंट को पड़ने या देकने का शौक रखते हैं या विवाह सम्बन्धी साइट्स पर योग्य वर या वधु की तलाश में रहते हैं या डेटिंग साइट्स पर अपना समय बिताते हैं |
बच्चे मन के सच्चे होते है, बच्चों को भगवान् का रूप भी माना जाता है लेकिन साइबर अपराधियों के लिए डिजिटल अरेस्ट के मकसद से बच्चे सर्वाधिक आसान शिकार होते हैं |   
डिजिटल अरेस्ट के प्रति बच्चों का समुदाय अत्यधिक संवेदनशील पाया गया है | अधिकाँश मामलों में डिजिटल अरेस्ट में फंस चुके बच्चे किसी को कुछ नहीं बताते जब तक उनके सामने जीने मरने की नौबत नहीं आ जाती है या उन्हें या उनके परिजनों को जान से मारने की धमकी नहीं मिल जाती है | 
डिजिटल अरेस्ट के सम्बन्ध में मोबाइल या इंटरनेट पर गुमनामी से अपराध करने की स्तिथियाँ बच्चों की मासूमियत और डिजिटल तकनीकी के शातिरों द्वारा अपराध के लिए उपयोग के चलते बच्चों के लिए जोखिम अत्यधिक बढ़ जाता है |
डिजिटल दुनिया से जुड़ने के बाद बच्चों के लिए अपने माता-पिता और शिक्षकों से अधिक प्रिय और सच्चे मददगार, उन्हें बहलाने और फुसलाने वाले लगने लगते है | इसी स्थति का लाभ उठाते हुए साइबर अपराधी मासूम बच्चों को डिजिटल अरेस्ट की चपेट में ले लेते हैं | उसके बाद स्तिथियाँ बच्चों के माँ-बाप या अन्य परिजनों के हाथ से निकल जाती हैं | 
बच्चों के साथ डिजिटल अरेस्ट के रूप में साइबर बदमासी कई रूपों में होती है तथा यह आम बात होती जा रही है | इसमें बच्चे जब ऑनलाइन होते है उस समय दूसरे लोगों द्वारा बच्चों को धमकाए जाने की बहुत सम्भावनाये रहती हैं | डिजिटल अरेस्ट के कारण बच्चों के मानसिक, शारीरिक और शिक्षा सम्बन्धी प्रयासों पर अत्यधिक बुरा प्रभाव पड़ता है | बच्चे बिना किसी कारण के बेचैन और असहज लगने लगते हैं |

डिजिटल अरेस्ट से मानव अधिकारों का उल्लंघन

डिजिटल अरेस्ट में साइबर अपराधियों का पहला कदम होता है शिकार बनाये जाने वाले व्यक्ति, उसके परिवार या इष्टमित्रों या रिश्तेदारों के बारे में जानकारी इक्क्ठा करना तथा दूसरा कदम होता हे डिजिटल तकनीकी जैसे व्हाट्स एप्प, स्काइपे या ऑडियो या वीडियो कॉल द्वारा पीड़ित से संपर्क करना | 
संपर्क करने के बाद तीसरा कदम होता है व्यक्ति पर गंभीर अपराधों के आरोप लगाकर उस पर मानसिक दबाब बनाना |अंतिम या चौथा कदम होता है  पीड़ित को उन अपराधों से बचाने के लिए झांसा देना और उसके बदले में उनके द्वारा दिए गए बैंक खातों में जल्द से जल्द डिजिटल रूप में पैसे ट्रांसफर करने की धमकी | जैसा कि ऊपर बताया गया है कि डिजिटल अरेस्ट के प्रथम चरण में साइबर अपराधी शिकार बनाये जाने वाले व्यक्ति या परिजनों या इष्टमित्रों की पृष्टिभूमि के बारे में सोशल मीडिया या अन्य गैर कानूनी तरीके से व्यक्तिगत तथा गोपनीय जानकारियां इकट्ठा करते हैं | 
गोपनीयता  का अधिकार हर व्यक्ति का मौलिक अधिकार है | यह अधिकार भारतीय संविधान द्वारा सभी नागरिकों को मिला हुया है | भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा भी इसका समर्थन किया गया है | डिजिटल अरेस्ट के कारण गोपनीयता के अधिकार का सीधा -सीधा उलंघन होता है | 
जब किसी व्यक्ति की ऑनलाइन गतिविधियों की बिना उसकी अनुमति के निगरानी की जाती है या उसे गैर कानूनी रूप से हासिल किया जाता है तो यह उसके व्यक्तिगत जीवन मे दखल होता है तथा उसके गोपनीयता के अधिकार का उल्लंघन होता है | मानव अधिकार उल्लंघन की यह स्तिथि न सिर्फ व्यक्तिगत रूप में कष्ट और हानि पहुंचाने वाली है बल्कि समाज में भी भय का माहौल पैदा करती है | जनता पहले से ही अनेक प्रकार के आर्थिक अपराधों से जूझ रही है तथा डिजिटल अरेस्ट के रूप में नयी आफत सामने आ गई है |
मानव अधिकारों को सामान्यतः ऐसे अधिकारों के रूप में जाना जाता है जिनका उपयोग करने और जिनकी रक्षा करने की अपेक्षा करने का हकूक हर व्यक्ति को है | ये अधिकार हर व्यक्ति को उनके मानव होने के नाते प्राप्त हैं | विएना घोषणा के अनुसार सभी मानव अधिकार सार्वजनीन,अविभाज्य, अंतर्निर्भर और अन्तर्संबध  हैं |
अर्थात मानव अधिकार अंतर्निर्भर और अन्तर्संबध होने के कारण एक दूसरे को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करते हैं | गोपनीयता के मानव अधिकार का उल्लंघन व्यक्ति के अन्य कई अधिकारों पर सीधा असर डालता है | उदाहरण के लिए गोपनीयता के अधिकार के उल्लंघन से ही डिजिटल अरेस्ट के अधिकाँश मामलों में अनेक लोगों को जीवन भर की जमा पूंजी से वंचित होना पड़ता है जिससे पुनः जीवन के अधिकार का भी उल्लंघन होता है | 
साइबर अपराधी डिजिटल अरेस्ट द्वारा व्यक्ति  को मनमाने ढंग से उसकी सम्पति से वंचित कर देते हैं जो कि मानव अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा के अनुछेद 17(2) का सीधा उल्लंघन है जिसके अनुसार अनुसार किसी को भी मनमाने ढंग से उसकी सम्पति से वंचित नहीं किया जा सकता है | 
डिजिटल अरेस्ट के कारण पीड़ित को होने वाला आर्थिक नुक्सान उसके स्वास्थ्य को प्रत्यछ रूप से प्रभावित करता है | जिससे घोषणा के अनुछेद 25 में दिए गए स्वास्थ्य के अधिकार का उल्लंघन होता है |   
डिजिटल अरेस्ट के कारण ठगी होने के बाद अनेक लोग गरीबी के कुचक्र में फंसने के लिए विवश हो रहे हैं | गरीबी मानवाधिकारों का सर्वाधिक अतिक्रमण करती है |गरीबी के कारण भोजन के अधिकार,शिक्षा का अधिकार तथा आवास के अधिकार का भी उलंघन होता है | उपरोक्त से स्पष्ट है कि डिजिटल अरेस्ट व्यक्ति के कई मानव अधिकारों के उल्लंघन के लिए जिम्मेदार है | 
साइबर अपराधियों द्वारा डिजिटल अरेस्ट के रूप में कारित की गयी घटनाओं या अपराधों में पीड़ित या उसके परिजन या इष्टमित्रों के सम्बन्ध में कई रूपों में धमकियां दी जाती हैं | पीड़ित को कई- कई दिनों तक डिजिटल अरेस्ट में रखा जाता है अर्थात पीड़ित को संविधान प्रदत्त स्वतंत्र विचरण की स्वंत्रता और जीवन के अधिकार का सीधा -सीधा उलंघन होता है | 
इस सम्बन्ध में सर्वोच्च न्यायालय की विधि व्यवस्था रामवीर उपाध्याय बनाम स्टेट ऑफ़ उत्तर प्रदेश ए आई आर 1996 इला० 131 में स्थापित किया गया है कि "भारत के संविधान के अनुछेद 19(1 )डी  तथा 21 के अधीन नागरिकों को प्राप्त स्वतंत्र विचरण की स्वंत्रता तथा जीवन का अधिकार में ,यह स्पष्ट है कि जीवन को भय तथा धमकी से मुक्त होना चाहिए क्यों कि मृत्यु के भय या धमकी के अधीन जीवन कोई जीवन नहीं होगा | स्वतंत्र विचरण और निजी स्वंत्रता के लिए दी गई धमकी के लिए न्यायालय शक्ति विहीन नहीं होता है तथा वह नागरिकों की सुरक्षा के लिए सम्बंधित प्राधिकारिओ को सुरक्षा के निर्देश दे सकता है| जीवन का मतलब पशुवत जीवन जीना नहीं है और इसमें मानव मर्यादा के साथ शांतिपूर्वक जीवन जीने का अधिकार सम्मिलित होगा |" 

डिजिटल साक्ष्य की अदालत तक पहुंचने की प्रक्रिया 

अदालत में प्रस्तुत करने के लिए डिजिटल साक्ष्य की एक प्रक्रिया होती है | इस प्रक्रिया के कई चरण है | जिसके तहत डिजिटल साक्ष्य को सर्व प्रथम पहचानना पड़ता है | उसके बाद उसका संकलन किया जाता है | फिर उसे संरक्षित किया जाता है | अंत में डिजिटल साक्ष्यों को मौजूदा आपराधिक प्रक्रियात्मक कानून और तकनीकी के अनुसार अदालत में प्रस्तुत किया जाता है | क़ानून का यह स्वरुप साक्ष्य और आपराधिक प्रक्रिया के नियमो को निर्धारित करता है तथा उसे प्रमाणिकता प्रदान करता है |
किसी अपराध का सुबूत प्रदान करने में सूचना अवं संचार प्रौद्योगिकी बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है | सूचना अवं संचार प्रौद्योगिकी से प्राप्त डेटा को न्यायलय में उपयोग में लाया जा सकता है |इसी को डिजिटल साक्ष्य या इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य कहते हैं |इन सबूतों को पहचाने,संकलन करने,संरक्षण करने तथा विश्लेषण कर उन्हें क़ानून की अदालत में प्रस्तुत करने की प्रक्रिया को डिजिटल फॉरेंसिक के रूप में जाना जाता है | 
सूचना और संचार प्रौद्योगिकी का उपयोग करने वाला व्यक्ति अक्सर अपने पीछे डिजिटल निशाँन छोड़ देता है | ये  डिजिटल निशान उपयोगकर्ता द्वारा छोड़े गए डेटा के रूप में होते हैं जो उसके बारे में अनेक प्रकार की जानकारी दे सकता है | जैसे कि आयु ,जाती,लिंग ,राष्ट्रीयता, रंग, नस्ल, मूलवंश, चिकत्सकीय इतहास आदि | 
सूचना अवं संचार प्रौद्योगिकी के माध्यम से डिजिटल चिन्ह के रूप में छोड़े गए डेटा सक्रिय और निष्क्रिय दो रूपों में मिलते है | निष्क्रिय डिजिटल चिन्ह के रूप में डिजिटल तकनीकी के उपयोगकर्ताओं द्वारा ब्रॉजिंग हिस्ट्री एक अच्छा उदाहरण है | जबकि सक्रीय डिजिटल चिन्ह उपयोगकर्ताओं द्वारा प्रदान किये गए डेटा के रूप में होते हैं, जिसमें चित्र, वीडियो, निजी जानकारी, एप्स, वेबसाइट पर अपलोड की गयी सामिग्री समाहित है | सक्रिय और निष्क्रिय डिजिटल चिन्ह  के रूप में डेटा का उपयोग साइबर अपराध के अलावा अन्य अपराध के साक्ष्य के रूप में भी किया जा सकता है | इस डेटा का उपयोग किसी अपराध के साबित करने या उसके खंडन करने की लिए भी किया जा सकता है | 

डिजिटल साक्ष्य की अदालत में स्वीकार्यता

डिजिटल साक्ष्यों को अदालत में प्रस्तुत किया जाना उतना महत्वपूर्ण नहीं है जितना महत्वपूर्ण है उन्हें प्रमाणिकता के साथ अदालत में प्रस्तुत कर उन्हें स्वीकार करना |यद्धपि विधि अनुसार यह सही है कि डिजिटल साक्ष्य को स्वीकार या अस्वीकार करना न्यायिक विवेक पर निर्भर होता है |
भारत में 1 जुलाई 2024 से नया साक्ष्य अधिनियम अर्थात भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 2023 (बीएसए) लागू हो गया है| जिसमे डिजिटल साक्ष्य से सम्बंधित प्रावधान नए और व्यापक रूप में लाये गए हैं | बीएसए में दी गयी  "दस्तावेज" की परिभाषा में इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल रिकॉर्ड को भी शामिल किया गया है | इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल दस्तावेज में इ-मेल, सर्वर लॉग,कंप्यूटर पर दस्तावेज,लेपटॉप या स्मार्ट फोन, मैसेज, वेबसाइट,अवस्थिति साक्ष्य में इलेक्ट्रॉनिकी अभिलेख और डिजिटल युक्तियों में भण्डार किये गए वॉयस मेल मैसेज समाहित हैं | 
बीएसए की धारा 61 के अनुसार इलेक्ट्रॉनिक या डिजिटल दस्तावेज साक्ष्य के रूप में स्वीकार्य होंगे तथा इलेक्ट्रॉनिक या डिजिटल दस्तावेज भी वही विधिक प्रभाव, विधिक मान्यताऔर प्रवर्तनशीलता रखेंगे जो कोई अन्य दस्तावेज रखता है| 
इसी एक्ट की धारा 63(4) इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य की प्रमाणिकता पर बल देती है | जिसके लिए एक प्रमाण -पत्र की आवश्यकता होती है | इस प्रमाण -पत्र पर कंप्यूटर या संचार-युक्ति या सुसंगत क्रियाकलाप के प्रबंध, जो भी समुचित हो, के भारसाधक और विशेषज्ञ के हस्ताक्षर होने चाहिए तब डिजिटल साक्ष्य न्यायालय में स्वीकार्य योग्य माना जाएगा, अन्यथा की स्थति में नहीं | 
यद्धपि कानूनी रूप से किसी की आडियो -वीडियो रिकॉर्डिंग करना अपराध की श्रेणी में आता है लेकिन बीएसए के तहत कुछ विशेष परिस्थितियों में रिकॉर्डिंग करना भी अनिवार्य बनाया गया है | उदाहरण के तौर पर अपराध स्थलों पर या यौन अपराधों के पीड़ित प्रकरणों में | 
बीएसए में डिजिटल साक्ष्यों को दस्तावेजी साक्ष्यों के बराबर का दर्जा देने का उद्देश्य कानूनी प्रक्रिया को सरलता प्रदान करना है | यधपि ,डिजिटल साक्ष्यों को बिना पुख्ता डेटा प्रोटेक्शन क़ानून के लागू करना भी गोपनीयता के मानवाधिकार के लिए चिंता का सबब है |  

भारत में डिजिटल अरेस्ट की कानूनी वैधता

भारत में डिजिटल अरेस्ट के सम्बन्ध में कोई भी कानूनी प्रावधान अभी तक उपलब्ध नहीं है | यदि किसी व्यक्ति को डिजिटल अरेस्ट के सम्बन्ध में कोई वीडियो या ऑडियो कॉल आती है तो निश्चित तौर पर वह एक ठगी या जालसाजी करने के लिए  की गयी कॉल है | दरअसल 1 जुलाई 2024 से लागू नए आपराधिक कानून में कानून लागू करने के लिए डिजिटल गिरफ्तारी करने का कोई प्रावधान नहीं किया गया है | नए क़ानून में केवल सम्मन की सेवा का तथा इलेक्ट्रॉनिक मोड में कार्यवाही का प्रावधान किया गया है | 
डिजिटल अरेस्ट के सम्बन्ध में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने "मन की बात" के 155 वें एपीसोड में भारतीय जनता को सम्बोधित करते हुए कहा कि डिजिटल अरेस्ट जैसी कोई व्यवस्था क़ानून में नहीं है | यह सिर्फ फ्रॉड है, फरेब है, झूठ है, बदमाशों का समूह है | 

डिजिटल अरेस्ट की घटनाओं को रोकने के लिए सरकार के प्रयास

सरकार साइबर अपराध के नए रूप डिजिटल अरेस्ट से लड़ने के लिए सचेत और चिंतित  है | इसका अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी को  मन की बात के 115 वे एपिसोड में डिजिटल अरेस्ट विषय पर भारतीय जनता को सम्बोधित करना पड़ा तथा उससे बचने के उपाय के रूप में  जनता को रुको -सोचो -एक्शन लो नामक  मंत्र दिया गया | 
प्रधान मंत्री ने बताया कि राष्ट्रीय साइबर हेल्पलाइन का एक नंबर 1930 जारी किया गया है जिस पर कोई भी पीड़ित या उसकी ओर से किसी भी प्रकार के साइबर अपराध के सम्बन्ध अपनी शिकायत दर्ज करा सकता है | इसके अलावा एक राष्ट्रीय साइबर अपराध रिपोर्टिंग पोर्टल https://cybercrime.gov.in भी प्रारम्भ किया गया है, जिस पर डिजिटल अरेस्ट से पीड़ित व्यक्ति अपनी ऑनलाइन शिकायत दर्ज करा सकता है | साइबर अपराधों पर प्रभावी नियंत्रण पाने के लिए केंद्र सरकार सभी राज्य सरकारों और केंद्र साशित प्रदेशों से मिलकर काम कर रही है | जिसके लिए सरकार ने नेशनल साइबर को आर्डिनेशन सेंटर की स्थापना भी की है | 
साइबर अपराध जिसमें डिजिटल अरेस्ट भी शामिल है, के बारे में एसएमएस,सोशल मीडिया अक्स (पूर्व में ट्विटर)@ साइबरदोस्त, फेसबुक, इंस्टाग्राम, टेलीग्राम आदि के माध्यम से जन-जागरूकता फैलाने के लिए केंद्र सरकार गंभीरता से प्रयासरत है | 
गृह मंत्रालय द्वारा साइबर धोखाधड़ी के मामलों पर 6 फ़ेरबरी 2024 को जारी की गई प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार भारत सरकार द्वारा 3.2 लाख से अधिक सिम कार्ड और 49,000 IMEI ब्लॉक किए गए हैं।

डिजिटल अरेस्ट से बचाव के कुछ सरल उपाय 

साइबर अपराध के क्षेत्र में ठगी और जालसाजी के लिए "डिजिटल अरेस्ट" को हतियार के रूप में उपयोग की समाज में एक बाढ़ सी आ गयी है, जो तत्काल मानव अधिकार संरक्षण हेतु निवारण उपायों और सार्वजनिक जागरूकता की मांग करता है | सार्वजनिक जागरूकता में आपराधिक न्याय व्यवस्था और पुलिस प्रशाशन से लेकर  डिजिटल शिक्षा से वंचित हर आम नागरिक शामिल है |   
कोई भी व्यक्ति व्हाट्स- ऍप कॉल की अपनी डीपी पर पुलिस की वर्दी में किसी व्यक्ति का फोटो लगाकर या साधारण काल के जरिये किसी अनजान नंबर से काल करके फ़साने का प्रयास करे और किसी को न बताने की बात कहे तो तत्काल काल कट करके बिना घबराये पुलिस या परिवारीजन या परिचित को  सूचित करें | प्रोफेसर (डॉ) जी.के. गोस्वामी, IPS का कहना है कि जब आपने कोई अपराध किया ही नहीं है तो डर किस बात का है |  
साइबर अपराधी साधारण कॉल या व्हाट्स- ऐप या वेबसाइट या किसी एप्लीकेशन आदि के माध्यम से धमकाकर, झांसा देकर या आपके किसी परिजन के संकट में होने की सूचना देकर या जालसाज कहते है कि मनी लॉन्ड्रिंग या ड्रग तस्करी में आपकी संलिप्तता पाई गई है और आपको डिजिटल अरेस्ट  करने का प्रयास कर सकते हैं |ऐसी स्थती में तत्काल पुलिस को सूचना या संपर्क करना चाहिए| 
यदि कोई अपरिचित काल करने वाला आपके पुत्र या पुत्री के किसी रैकेट या यौन अपराध में फसने और उसे अरेस्ट करने की बात कहता है तथा तुरंत रूपये भेजने पर उन्हें छोड़ने का आश्वासन देता है तो तुरंत समझ जाना चाहिए कि कॉल साइबर ठगों या जालसाजों की है | डिजिटल तरीके से ठगी या जालसाजी करने वाले अपराधी पीड़ित व्यक्ति को किसी अपराध से बचाने के ऐवज में रूपये की मांग करते हैं | 
मोबाइल इंटरनेट पर अपनी निजी जानकारियों को साजा करने से तथा संदिग्ध  लिंक पर क्लिक करने और अज्ञात और अपुष्ट श्रोतों से उससे अटैच्ड फाइलें डाउनलोड करने से बचें | 
डिजिटल अरेस्ट करने वाले साइबर अपराधी पीड़ित को कॉल करके स्वयं को सीबीआई ,एनआईए या किसी अन्य विभाग में अधिकारी आदि बताकर ठगीका गैरकानूनी कारोबार करते हैं |
अक्सर देखा गया है कि 92 कोड वाले नंबर से डिजिटलअरेस्ट के लिए कॉल्स की जाती है इसलिए इस कोड वाली काल को नदरअंदाज करें |  
पुलिस विभाग में डिजिटल अरेस्ट जैसा कोई विधिक प्रावधान नहीं है | इसलिए पुलिस कभी भी लोगों को कॉल करके डिजिटल अरेस्ट नहीं करती है |
प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने "मन की बात" में डिजिटल अरेस्ट से बचने के लिए सरल उपाय के रूप में डिजिटल सुरक्षा के तीन चरण बताये | ये चरण हैं -रुको- सोचो-एक्शन लो |  

निष्कर्ष 

वर्तमान समय में जरायम पेशे अर्थात आपराधिक कारोबार की दुनिया का सिरमौर शब्द  डिजिटल अरेस्ट का व्यक्ति, परिवार, समाज और सरकार पर गहरा और व्यापक असर दृष्टिगोचर हो रहा है | यह न सिर्फ आभासीय बल्कि वास्तविक रूप में भी व्यतिगत स्वंत्रता को सीमित कर रहा है बल्कि समाज के लोकतांत्रिक ढाँचे को भी कमजोर कर रहा है | इस लिए यह आवश्यक है कि इस मुद्दे के निराकरण के सम्बन्ध में बिना समय गवाए हर मोर्चे पर ध्यान दिया जाए और नागरिकों की डिजिटल अरेस्ट से रक्षा के लिए हर स्तर से और हर संभव कानूनी और नीतिगत पुख्ता कदम उठाये जायें | डिजिटल दुनिया में डिजिटल अरेस्ट से मानव अधिकारों की रक्षा के लिए एक समर्पित और मानवाधिकार केंद्रित समग्र दृष्टिकोण की आवश्यकता है,ताकि सभी लोग स्वंत्रता और गोपनीयता के मानवअधिकार के साथ जी सकें |  

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)

प्रश्न : डिजिटल अरेस्ट क्या है ?
उत्तर :डिजिटल अरेस्ट एक नए किस्म का साइबर अपराध है | इसमें पीड़ित पर डिजिटल उपकरणों का उपयोग करते हुए झूठे आपराधिक आरोप लगा दिए जाते है और उन्हें आपराधिक कानूनी कार्यवाही से बचने के बदले में उन्हें पैसे देने के लिए धमकाया या राजी किया जाता है | यह एक प्रकार की ठगी या जालसाजी के लिए किया जाता है |
प्रश्न : यदि कोई संदिग्ध कॉल आये तो क्या करें ?
उत्तर : यदि कोई संदिग्ध काल आये तो  पहले रुकें  फिर सोचें  उसके बाद एक्शन ले अर्थात परिजनों या पुलिस को सूचित करें 
प्रश्न : मुझे सबूत जुटाने के लिए क्या करना चाहिए ?
उत्तर : संदिग्ध काल आने की बाद आप मोबाइल या लेपटॉप स्क्रीन का स्क्रीन शॉट ले सकते हैं तथा ऑडियो या वीडियो काल होने की स्तिथि में उसे रिकॉर्ड भी कर सकते हैं | 

 

 










रविवार, 27 अक्टूबर 2024

स्वच्छता अभियान में मैनुअल स्कवेंजर्स की अनदेखी : एक मानवाधिकार संकट

इसमें कोई संदेह नहीं है कि प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में प्रबल राजनैतिक इच्छा शक्ति के चलते भारत में चलाया गया स्वछता अभियान विश्व का सबसे बड़ा आंदोलन बन गया लेकिन इस दौरान उनके संरक्षण के लिए क़ानून उपलब्ध होने के बाबजूद उनकी अनदेखी होती रही तथा सीवर और सेप्टिक टेंकों की सफाई के दौरान उन्हें अपनी अकाल और अनावश्यक मृत्यु के लिए विवश होना पड़ा |मैन्युअल स्कवेंजर्स की यह स्तिथि सभी के लिए मानव अधिकार चुनौती पेश करती है |
चित्र श्रोत : ए आई निर्मित 










परिचय 

हाथ से मैला ढ़ोने की प्रथा या मैनुअल स्केवेंजिंग, ऐसी व्यवस्था है जो भारत में मैनुअल स्कवेंजर्स तथा उनके परिवारों के मानव अधिकारों का सदियों से उलंघन करती आ रही है | इस व्यवस्था की जकड में मुख्यतः समाज के सबसे निचले पायदान पर स्थित दलित समुदाय या अनुसूचित जाति के लोग आते हैं, जिन्हें पीढ़ी दर पीढ़ी सदियों से छूआ- छूत और सामाजिक बहिष्कार जैसी सामाजिक बुराई का दंश झेलना पड़ा है | 

भारत में यह प्रथा न केवल भारतीय समाज में व्याप्त सामाजिक असमानता को दर्शाती है, बल्कि यह जातिगत भेदभाव और मानवीय गरिमा के रूप में मानव अधिकारों के उल्लंघन का भी प्रतीक है | यद्यपि समाज के आधुनिकीकरण के चलते जाति- व्यवस्था प्रत्यछ रूप में दम तोड़ने के कगार पर है | लेकिन तमाम विधिक एवम नीतिगत प्रयासों के बाबजूद मैनुअल स्केवेंजिंग की प्रथा का जारी रहना हम सभी के लिए एक मानवाधिकार चुनौती है | 

इस लेख के द्वारा लेखक का प्रयास अपने सुधीय पाठकों को भारत में प्रचलित मैनुअल स्कवेंजिंग की अमानवीय व्यवस्था के विभिन्न पहलुओं के बारे में जागरूक करना तथा उसकी समाप्ति के लिए सुझाव प्रस्तुत करना है |

मैनुअल स्केवेंजिंग की परिभाषा तथा अन्य पहचान  

हाथ से मैला उठाने वाले कर्मियों के नियोजन का प्रतिषेद और उनका पुनर्वास अधिनियम ,२०१३  की धरा २(छ) में दी गई परिभाषा के अनुसार, "मैन्युअल स्कवेंजर्स या हाथ से मैला उठाने वाले कर्मी "से ऐसा कोई व्यक्ति अभिप्रेत है, जो  किसी अस्वच्छ शौचालय से या किसी खुली नाली या ऐसे गड्डे में से, जिसमे अस्वच्छ शौचालयों से या किसी खुली नाली या ऐसे गड्ढ़े में से या किसी रेल पथ से या ऐसे अन्य स्थानों या परिसरों से पूर्णतया विघटित होने से पूर्व मानव मल को डाला जाता है, हाथ से सफाई करने, उसको ले जाने, उसके निपटान में व अन्यथा किसी अन्य रीति से उठाने के लिए किसी व्यक्ति या स्थानीय प्राधिकारी या अभिकरण या ठेकेदार द्वारा लगाया जाता है या नियोजित किया जाता है |

हाथ से मैला ढोने वालों को अलग-अलग पहचान से जाना जाता है, भारत के अलग-अलग राज्यों में हाथ से मैला ढोने वालों के लिए अलग-अलग कोई नामकरण नहीं किया गया है। मैला ढोने वाली जातियाँ जो अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग नामों से जानी जाती थीं जैसे भंगी, बाल्मीकि, चूबरा, मेहतर, मजहबी, लालबेगी, हलालखोर, थोटी, चाचाती, राकी, रेली आदि।

भारत में मैनुअल स्कवेंजर्स की मृत्यु का परिदृश्य 

25 फरबरी 2021 को  एक अंग्रेजी दैनिक अखबार फर्स्टपोस्ट में अनन्या श्रीवास्तव द्वारा लिखित एक लेख में बताया गया कि आधिकारिक सूत्रों के अनुसार 1993 से  मार्च 2019 तक के बीच कुल 774 मैन्युअल स्कवेंजर्स की मौतें सीवर की सफाई करने के दौरान हुईं | जबकि एक गैर सरकारी संगठन सफाई कर्मचारी आंदोलन (एस क ए) का अनुमान है कि सीवर की सफाई के दौरान जहरीली गैसों के संपर्क में आने के कारण हर साल करीब 2,000 मैन्युअल स्कवेंजर्स की मृत्यु हो जाती है | इसमें सेप्टिक टेंकों में होने वाली मौतों को भी शामिल करें तो यह आंकड़ा और भी अधिक हो जाता है| 

सीवेज कर्मचारी यूनियन (रजि.) नगर निगम चंडीगढ़ अवं अन्य  बनाम यूनियन ऑफ़ इंडिया और अन्य, सी. डब्ल्यू  पी न.2008/1983 में अधिकांश याचिकाकर्ताओं  का आरोप था कि अधिकाँश सीवेज कर्मचारियों की मृत्यु उनकी सेवा काल के पूर्ण होने से पहले ही हो जाती है | क्यों कि उनके जीवन के दौरान होने वाली कई स्वास्थ्य समस्यों ने उनके औसत जीवन काल को घटा कर केवल  45 वर्ष कर दिया है | 

6 नवंबर 2023 को रहेजा नवोदय सोसायटी,जो कि हरियाणा के गुरुग्राम के सेक्टर - 92 में स्थित है, में सेप्टिक टैंक की सफाई के लिए उतारे गए दो मैनुअल स्कवेंजर्स 45 वर्षीय राज कुमार और 36 वर्षीय परजीत की जहरीली गैस के कारण दम घुटने से मृत्यु हो गई | इनको 30 फुट गहरे सेप्टिक टैंक में बिना सुरक्षा उपकरणों के उसकी सफाई के लिए विवश किया गया |  

8 जून 2024 को भारत में मथुरा जिले के बृंदावन में एक खाद्य निर्माता कंपनी के निजी सेप्टिक टेंक में घुसने के दौरान 3 मैनुअल स्कवेंजर्स की अकाल मृत्यु हो गई | उनकी मृत्यु सेप्टिक टेंक में बिजली की एक मोटर को बिना सुरक्षा उपकरण के साथ  मरमत करते हुए हो गई | जिसके लिए एक निजी ठेकेदार जिम्मेदार था |

कर्नाटका के मद्दूर टाउन नगर निगम में सफाई कर्मचारी के रूप में काम करने वाले ३७ वर्षीय मैनुअल  स्कैवेंजर नारायण ने अधिकारिओं के उत्पीड़न के चलते आत्महत्या कर ली ,क्योंकि  वे नारायण पर मैनुअल स्केवेंजिंग  के लिए दवाब डालते थे |   

मैनुअल स्कवेंजर्स और स्वछता अभियान का दायरा  

स्वछता अभियान परिवार,समाज और देश में रहने वाले शतप्रतिशत लोगों के कल्याण का विषय है | इस अभियान के सुचारू सञ्चालन के लिए अतीत में सैकड़ों लोगों को प्रत्यछ या अप्रत्यछ रूप से अपनी जान की बलि देने के लिए विवश  होना पड़ा | 

आजकल स्वछता अभियान सिर्फ गलियों और सड़कों की सफाई तक सीमित नहीं रहा है | इसके दायरे में शहरों में अपशिष्ट निस्तारण हेतु सीवर और सेप्टिक टेंक की व्यवस्था भी आती है | 

आज भी समाज में सबसे नीचे के पायदान पर माने जाने वाले दलित समाज से ही अधिकांश लोगों को शीवर लाईनों में रुकावट आने की स्तिथि में उन्हें खोलने के लिए दूषित और मलयुक्त अवशिस्ट में घुसने के लिए विवश किया जाता है, और यह सबकुछ कराया जाता है बिना किसी प्रकार के आधुनिक सुरक्षा उपकरणों के उपलब्ध कराये |  मैनुअल स्कवेंजर्स को यह कार्य अपनी और परिवार की रोजी रोटी की खातिर करना पड़ता है | 

जिस मल को, पाखाने में करने के बाद हम सभी उसकी तरफ झाँकना तक नहीं पसंद करते हैं, वह अन्य अपशिष्ट के साथ सीवर लाइनों या खुले नालों में पहुँचता है | सीवर लाइनों और नालों के बंद होने की सूरत में मैनुअल  स्कवेंजर्स को इन्हें  खोलने के लिए इनमे घुसने के लिए विवश किया जाता  है | 

सीवर लाइन में उपस्थित मल सहित अन्य जहरीले अपशिष्ट मैनुअल स्कवेंजर्स के नाक और मुँह में घुसने का  प्रयास करते है, जिन्हें मैनुअल स्कवेंजर्स द्वारा अपनी साँस पर नियंत्रण करके किसी प्रकार से रोका जाता है | 

लेकिन तमाम अभागे मैनुअल स्कवेंजर्स सीवर लाइन खोलने के दौरान अपनी जान बचाने के लिए सांस रोकने की अद्धभुत प्रक्रिया पर अधिक देर तक नियंत्रण नहीं रख पाते हैं और साक्षात मृत्यु के आगोश में चले जाते हैं | जबकि वैज्ञानिक और तकनीकी के इस वर्तमान दौर में उपलब्ध तकनीकी का उपयोग करके सभी की अनावश्यक और अकाल मृत्यु को रोका जा सकता है | जिसके लिए आवश्यकता है तो सिर्फ सामाजिक और राजनैतिक इच्छा शक्ति की | 

यद्यपि केंद्र सरकार ने वर्ष 2022 में सीवर लाइन्स और सेप्टिक टैंक की सफाई का कार्य मशीनो से कराने की योजना बनाई |  जिसका नाम NAMASTE यानी National Action for Mechanized Sanitation Ecosystem रखा गया | 

केंद्रीय वित्त एवं कारपोरेट कार्य मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण ने 01 फरवरी, 2023 को केंद्रीय बजट 2023-24  पेश किया जिसमे बताया गया कि सेप्टिक टैंकों और नालों से मानव द्वारा गाद (सिल्ट) निकालने और सफाई के काम को पूर्ण रूप से मशीन युक्त करने के लिए शहरों को तैयार किया जाएगा |  

उक्त प्रयासों के बाद भी मैनुअल स्कवेंजर्स की सीवर और सेप्टिक टैंक की सफाई के दौरान मौतें रुकने का नाम ही नहीं ले रही हैं | यह स्थति स्पष्ट रूप से स्वछता अभियान में मैनुअल स्कवेंजर्स की अनदेखी की ओर इशारा करती है|

भारतीय स्वछता मिशन कैसे बना विश्व का सबसे बड़ा अभियान ? 

यह प्रबल राजनैतिक इच्छा शक्ति ही थी जिसके चलते विशेष रूप से "खुले में शौच मुक्त भारत " का लक्ष्य प्राप्त करने के मकसत से प्रथम बार प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी ने २ अक्टूबर २०१४ को एक व्यापक आंदोलन के रूप में स्वच्छ भारत मिशन का नई दिल्ली, राजपथ पर उद्घाटन किया तथा लक्ष्य प्राप्त करने की समय सीमा महात्मा गांधी की 150 वी जयन्ती 2 अक्टूबर 2019 रखी गयी | 

प्रधानमंत्री ने अपने सम्बोधन में कहा कि, "एक स्वच्छ भारत के द्वारा ही देश 2019 में महात्मा गांधी की 150 वीं  जयंती पर अपनी सर्वोत्तम श्रंद्धांजलि दे सकता है |" 

उक्त के बाद से ही स्वच्छ भारत मिशन(SBM) का चिन्ह(LOGO),अर्थात महात्मा गाँधी का गोल चस्मा, देखते ही देखते भारत के हर शहर, गांव, सरकारी दफ्तरों, पेट्रोल पम्पों, बड़े -बड़े मॉल और छोटी से छोटी दुकान तक पहुंच गया तथा इस मिशन को प्रधान मंत्री की सर्वोपरि व्यतिगत प्राथमिकता वाले प्रोजेक्ट के रूप में मान्यता मिल गई | 

प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के भाषण और अखबारों से पता लगा कि उन्होंने वादा किया कि हर घर के लिए एक शैचालय बनवाया जाएगा | क्यों कि 2011 की जनगणना के अनुसार 12.3 करोड़ घरों में पेशाबघर या शौचालयों की कमी सामने आयी | 

2 अक्टूबर 2014 को प्रारम्भ किया गया स्वच्छ भारत मिशन पूर्व में सरकारों द्वारा चलाये गए निर्मल भारत अभियान, एवम पूर्ण स्वछता अभियान और केन्द्रीय ग्रामीण स्वछता अभियान का एक क्रान्तिकारी समरूप था | लेकिन अंतर स्पष्ट था कि नए कार्यक्रम का विस्तार पूर्व के कार्यक्रमों के मुकाबले अत्यधिक व्यापक था | 

इस असंभव से लगने वाले लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए प्रधान मंत्री ने 130 करोड़ लोगों का आह्वान किया कि वे स्वछता अभियान चलाये | जिसमे दूसरों को बुलाये या दूसरों द्वारा चलाये जा रहे स्वछता अभियान में हिस्सा लें | स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) धीरे-धीरे विश्व का सबसे बड़ा स्वछता अभियान और आंदोलन बन गया |परिणामस्वरूप 2 अक्टूबर 2019 तक भारत के सभी जिलों ने स्वयं को "खुले में शौचमुक्ति" घोषित कर प्रधान मंत्री द्वारा घोषित लक्ष्य को समय से प्राप्त कर लिया |  सर्व समाज के हितार्थ किसी व्यापक लक्ष्य को समय से प्राप्ति के लिए विश्व में प्रबल राजनैतिक इच्छा शक्ति का यह एक अद्भुत उदाहरण है | 

आवास एवम शहरी कार्य मंत्रालय के अनुसार 4372 शहरों /कस्बों को ओडीएफ (खुले में शौच मुक्त ) घोषित किया गया है  तथा 3,326 से अधिक शहरों में 67,407 शौचालय गूगल मानचित्र पर "एसबीएम शौचालय " के नाम से नजर आते है तथा उन्हें आवश्यकता पड़ने पर मोबाइल से ट्रैक किया जा सकता है | | स्वछता आंदोलन के दौरान स्वछता ऐप एक अत्यधिक महत्वपूर्ण डिजिटिल उपकरण के रूप में जनता के बीच लोकप्रिया हुआ |  स्वछता ऐप के करीब 2.08 करोड़ उपयोगकर्ता बने | 

सितम्बर 2024 तक ,स्वच्छ भारत मिशन (शहरी ) 3 के तहत पहल में 63 लाख से अधिक घरेलू शौचालयों और 6 लाख से अधिक सार्वजनिक शौचालयों का निर्माण हुया है | 

इसकी सफलता के लिए प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत के सभी लोगों से इस अभियान में जुड़ने की अपील की थी| यही नहीं इस कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए प्रद्यानमंत्री ने जानी -मानी हस्तियों योगऋषि रामदेव ,शशि थरूर, अनिल अम्बानी, सलमान खान, कमल हासन, प्रियंका चोपड़ा आदि को बुलाकर उनका आह्वान किया कि वे सफाई अभियान की तस्वीरें समाज के साथ साझा करें | इसके अलावा आमजन से भी माई क्लीन इंडिया हैसटैग पर स्वछता अभियान से जुड़े कार्यक्रम की तस्वीरें साझा करने की अपील भी की | 

यही नहीं सरकार ने आधुनिक प्रौद्योगिकी के माध्यम से स्वछता सम्बन्धी प्रयासों के बारे में आम जान तक जानकारी पहुंचाने के लिए एक डिजिटल मंच उपलब्ध कराया, जिसका उद्देश्य भारतीय लोगों द्वारा अपने दैनिक कार्यों में से कुछ समय निकालकर स्वछता सम्बन्धी आंदोलन में अपनी भागीदारी को सुनिश्चित करना रहा है | यह मंच किसी भी व्यक्ति, निजी संस्थान या सरकारी संस्थान के लिए उपलब्ध रहा है जहाँ उन्हें उसके द्वारा किये गए स्वछता सम्बन्धी कार्यों को उजागर कर अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचाने की सहूलियत रही है |  इसी लिए इस कार्यक्रम की सफलता का श्रेय राजनैतिक नेतृत्व और जनभागीदारी को दिया गया | 

इसके बाद  फरबरी 2020 में शौच मुक्त स्थति को बनाए  रखने के लिए स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण ) चरण- II को अनुमोदित  किया गया |  

स्वच्छ भारत अभियान सिर्फ खुले में शौच को समाप्त करने का अभियान नहीं है बल्कि इसमें शौचालयों का निर्माण, ठोस और तरल कचरे का उचित प्रबंधन, गलियों से लेकर सड़कों की सफाई, स्वछता के प्रति जागरूकता के साथ -साथ लोगों की स्वास्थ्य सम्बन्धी आदतों को बदलना, खुले पाखानों को फ्लश वाले पाखानों में बदलना के अलावा इसमें हाथ से मैला ढोने की प्रथा (Practice of Manual Scavenging) का निषेध भी आता है | 

लेकिन इस दौरान हाथ से मैला ढोने की प्रथा के अनवरत जारी रहने के चलते इस अमानवीय और कलंकित करने वाली व्यवस्था में मैला ढोने वालों और उनके परिवार वालों के दर्द को सुनने और समझने के प्रति राजनैतिक इच्छा शक्ति का अत्यधिक अभाव दृष्टिगोचर हुआ है | 

ऐसा नहीं है कि इस पेशे की रोकथाम के लिए कोई क़ानून उपलब्ध नहीं है बल्कि असल समस्या कानूनों के वास्तविक क्रियान्वयन की रही है | एक अन्य समस्या समय के साथ साथ हाथ से मैला ढोने की प्रकृति में निरंतर हो रहे बदलावों की भी है | 

इसमें कोई संदेह नहीं कि भारतीय राजनीतिक नेतृत्व, खेल तथा फिल्म जगत से जुड़ीं तथा अन्य जानी- मानी हस्तियों के अलावा सरकारी और गैर -सरकारी क्षेत्र के साथ-साथ आमजन के सहयोग ने भारत में स्वछता आंदोलन को विश्व का सर्वाधिक व्यापक और सफल आंदोलन बना दिया |

परिणाम स्वरूप इस का आंदोलन न सिर्फ शहरों पर सकारात्मक असर पड़ा बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों पर भी व्यापक असर हुआ जिसके कारण भारत के सभी जिलों को खुले में शौच से मुक्त घोषित किया जाना संभव हो सका | 

भारतीय परिवेश में खुले में शौच एक गंभीर समस्या थी जो भारतीयों को कई तरह से प्रभावित कर रही थी | इस समस्या का सबसे बुरा और व्यापक असर न सिर्फ इसके कारण विदेशों में निर्मित होती भारत और भारतीयों की नकारात्मक छवि के रूप में सामने आ रहा था बल्कि प्रति वर्ष कई हजार बच्चों की अकाल मौतों के रूम में भी सामने आ रहा था |

नेचर नामक एक प्रतिष्ठित जर्नल में प्रकाशित एक अध्य्यन में सामने आया कि सरकार के "स्वच्छ भारत मिशन" के तहत शौचालयों का  निर्माण सालाना लगभग 60 हजार से 70 हजार  शिशुओं की मृत्यु  रोकने का एक कारक बना | जिसे सरकार और आमजन के गंभीर और सकारात्मक प्रयासों से रोकने में अपार सफलता प्राप्त हुई है | 

मैनुअल स्कवेंजर्स का बदला हुया स्वरुप 

स्वच्छ भारत मिशन 2.0 के उद्देश्यों को पूरा करने के लिए दो महत्वपूर्ण घटकों पर बल दिया जा रहा है | पहला घटक 1.0  में हासिल किये लक्ष्यों को बनाये रखना है  तथा दूसरा  कचरा मुक्त शहरों को सुनिश्चित करना है | स्वच्छ भारत मिशन 2.0 के लक्ष्यों में कचरे का प्रभावी और टिकाऊ प्रबंधन, घर -घर जाकर कूड़े का संग्रह करने के लिए सही और आधुनिक प्रौद्योगिकी का उपयोग करना है | 

अस्पृश्यता के खिलाफ पीपुल्स अलायंस द्वारा अपनाई गई नागपुर घोषणा में अन्य बातों के साथ-साथ 'मैनुअल स्केवेंजर्स' शब्द की परिभाषा को विस्तारित करने की मांग की गई थी। मैनुअल स्केवेंजर्स की उपरोक्त परिभाषा में सेप्टिक टैंक और गटर की सफाई शामिल नहीं थी लेकिन बाद में इन्हें  शामिल कर लिया गया है। 

उक्त अधिनियम के लागू होने के बाद हाथ से मैला ढोने के कार्य में किसी व्यक्ति के नियोजन को गैरकानूनी बना दिया गया तथा किसी को मजबूरन इस कार्य में लगाना भी अपराध घोषित कर दिया गया है | भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने भी सभी राज्यों को निर्देशित किया कि वे अपने-अपने यहाँ मैनुअल स्कवेंजर्स की समस्या को समाप्त करें और इस कार्य में लगे व्यक्तियो का पुनर्वास करे | 

वर्तमान में स्वच्छ भारत मिशन 2.0 के लक्ष्यों में कचरे का सही प्रबंधन करने के लिए घर -घर जाकर कूड़े का संग्रह करने के लिए सही प्रौद्योगिकी के उपयोग करने का आह्वान किया गया है | लेकिन इस प्रक्रिया में जो चार पहिया वाहन घर -घर से कूड़ा इखट्टा करने के लिए बनवाये गए हैं वे मेनुअल स्केवेंजर्स के स्वास्थ्य और उनकी गरिमा के अनुसार किसी भी रूप में उचित नहीं है | 

स्वछता अभियान में घर -घर से कूड़ा इकट्ठा करने के लिए ठेके पर लगाए गए  सफाई कर्मचारियों को कूड़े के ऊपर ही बैठ कर गाड़ी में कूड़ा इकट्ठा करना होता है | कूड़ा इकट्ठा करने के दौरान पहले घर से अंतिम घर तक उन्हें कूड़े में ही बैठना पड़ता है | यह कार्य की अमानवीय स्थति है तथा मैनुअल स्कवेंजर्स का नया रूप है |









गाड़ी के पीछे के जिस हिस्से में घर-घर से जो कूड़ा इखट्टा किया जाता है, उसी हिस्से में कूड़े के ऊपर बैठकर महिला या पुरुष को उसे कूड़ा गाडी में भरना पड़ता है | घर -घर से कूड़ा इखट्टा करने का यह तरीका किसी भी रूप में हाथ से मैला ढोने की अपमानजनक और अवांछनीय प्रथा से कमतर नहीं है|  

उक्त से स्पष्ट है कि इस प्रक्रिया में ठेके पर लगे तमाम श्रमिक "हाथ से मैला उठाने वाले कर्मियों के नियोजन का प्रतिषेद और उनका पुनर्वास अधिनियम, २०१३" में दी गयी "हाथ से मैला उठाने वाले कर्मी/मैनुअल स्कवेंजर्स " की परिभाषा में नहीं आते हैं | इस प्रकार मानव अधिकार सन्दर्भ में देखा जाय तो  स्वच्छ भारत मिशन के तहत ठेके पर कार्यरत अनेको अनेक श्रमिक, उन्हें मानव होने के नाते मिले मानव अधिकारों से वंचित होने को विवश हैं | 

दर असल यह भी मैन्युअल स्केवेंजिंग का बदला हुआ नया रूप है | जिसका संज्ञान अभी तक न किसी राज्य सरकार और न ही केंद्र सरकार द्वारा लिया गया है | यही नहीं मैनुअल स्कवेंजर्स के लिए कार्य करने वाले किसी गैर सरकारी संघटन ने भी अभी तक इसका संज्ञान नहीं लिया है | उम्मीद है कि इस लेख के माध्यम से कानून विदों और नीति निर्धारकों का ध्यान इस ओर आकर्षित होगा | 

मैनुअल स्कवेंजर्स के उन्मूलन के लिए संवैधानिक और कानूनी ढाँचा 

भारत में मैनुअल स्कवेंजर्स की सुरक्षा के लिए संवैधानिक तथा कानूनी ढांचा उपलब्ध है | इसके अतिरिक्त हाथ से मैला उठाने वाले कर्मियों के नियोजन का प्रतिषेद और उनका पुनर्वास अधिनियम, 2013 को हाथ से मैला ढोने की प्रथा पर प्रभावी ढंग से रोक लगाने और सभी अस्वच्छ शौचालयों को ध्वस्त करने और उनके परिवार के सदस्यों सहित पहचाने गए मैनुअल स्केवेंजर्स के पुनर्वास से निपटने के लिए एक नए कानून के रूप में लागू किया गया था।

वर्ष 2013 से पूर्व भी मैनुअल स्कैवेंजरों का नियोजन और शुष्क शौचालयों का निर्माण (निषेध) अधिनियम, 1993 लाया गया था जो मैनुअल स्कैवेंजर के नियोजन और शुष्क शौचालयों के निर्माण पर रोक लगाता था । राष्ट्रपति ने 24 जनवरी 1997 को इसकी अधिसूचना पर हस्ताक्षर किए |संवैधानिक अधिकार के अलावा अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार घोषणाओं और अनुबंधों के तहत विभिन्न मानवाधिकार प्रावधान भी उपलब्ध हैं। 

नागरिक समाज द्वारा द्वारा मैनुअल स्कवेंजर्स के अधिकारों की वकालत 

सार्वजनिक जीवन जीने वाले महात्मा गांधी ने मैला ढोने की अपमानजनक और अवांछनीय प्रथा से मैला ढोने वालों की मुक्ति की वकालत की | पहली बार 1901 में कलकत्ता में राष्ट्रीय कांग्रेस सम्मेलन के दौरान, महात्मा गांधी ने इस मुद्दे को गंभीरता से उठाया | 

सुलभ इंटरनेशनल सोशल सर्विस ऑर्गनाइजेशन ने मैन्युअल स्कवेंजर्स की मुक्ति के लिए भारत में बहुत ही उम्दा कार्य किया है | यह 1970 में डॉ. बिंदेश्वर पाठक द्वारा स्थापित एक गैर-लाभकारी स्वैच्छिक सामाजिक संगठन है, जो सफाईकर्मियों की मुक्ति के लिए समर्पित है। सुलभ छुआछूत और सामाजिक भेदभाव को दूर करने के लिए काम कर रहा है | 

वेजबाड़ा विल्सन सफाई कर्मचारी आंदोलन नामक एक गैर सरकारी संगठन के समन्वयक हैं | उन्होंने सीवर और सेप्टिक टेंक में सफाई के दौरान मैनुअल  स्कवेंजर्स की हो रहीं लगातार और अनावश्यक मौतों के विरोध में एक राष्ट्रव्यापी "#StopKillingUs" अभियान चलाया | 

वेजबाड़ा विल्सन ने "#StopKillingUs" अभियान का उद्देश्य बताते हुए स्पष्ट किया कि मैनुअल स्कवेंजर्स द्वारा सीवर और सेप्टिक टैंक की सफाई के दौरान होने वाली मौतों को समाप्त करने के साथ साथ अस्पृश्यता और जाति  आधारित हिंसा की अमानवीय और क्रूर प्रथा को समाप्त करना है | इस दौरान उन्होंने प्रधानमंत्री से  इन दुखद मौतों को रोकने के लिए पुख्ता कार्यवाही की मांग भी की थी | 

एक गैर सरकारी संगठन राष्ट्रीय गरिमा अभियान ने पूरे भारत  के ११ राज्यों में सीवर और सेप्टिक टैंकों में होने वाली मौतों  तथा उससे सम्बंधित  सामाजिक तथ्यों का आकड़ा एकत्रित करने के लिए एक अध्ययन किया जिसमे पाया गया कि सिर्फ ३५ प्रतिशत मामलों में प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज की गयी थी |  जबकि नगर पालिका या ठेकेदारों द्वारा सीवर और सेप्टिक टैंकों की सफाई के लिए ज्यादातर बाल्मीकि जाती के लोगों को काम पर रखा गया था |  

मैनुअल स्कवेंजर्स पर राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग का रूख

हरियाणा राज्य के सोनीपत जिले के गाँव बाजिदपुर सबोली के रहने वाले दो भाई जो कि मैन्युअल स्केवेंजिंग का कार्य करते थे | एक प्राइवेट पैकेज फैक्ट्री के सेप्टिक टेंक में सफाई के दौरान 12 जून 2014 को उनकी अकाल मृत्यु हो गई | इस घटना का भारत के राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग  द्वारा संज्ञान लिया गया |

यही नहीं आयोग ने मैनुअल स्कवेंजर्स की सीवर या सेप्टिक टेंक में  सफाई के दौरान हुयी मृत्यु के अन्य कई  मामलों में स्व प्रेरणा से अखबारों में छपी खबर के आधार पर संज्ञान लिया है | कमीशन ने अपने स्तर पर भी इस अमानवीय प्रथा के उन्मूलन हेतु प्रयास किये हैं |  

मैनुअल स्कवेंजर्स पर भारतीय न्यायालयों का रूख     

2014 में, भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने सफाई कर्मचारी आंदोलन और अन्य बनाम भारत संघ और अन्य के मामले में फैसला सुनाया कि हाथ से मैला ढोना अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार प्रतिबद्धताओं का उल्लंघन है। माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि संविधान के प्रावधानों के अलावा, विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन और करार भी उपलब्ध  हैं| 

उक्त घोषणाओं और करारों का भारत  भी एक पक्षकार है| जो हाथ से मैला ढोने की अमानवीय प्रथा को समाप्त करने के सुसंगत हैं और इनमे सुमार हैं मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा (UDHR)नस्लीय भेदभाव उन्मूलन पर समझौता (ICERD) और महिलाओं के खिलाफ सभी प्रकार के भेदभाव के उन्मूलन के लिए समझौता(CEDAW)|यू. डी. एच. आर., सी. ई. आर. डी. और सी. ई. डी. ए. डब्ल्यू. के मैला ढोने की अमानवीय प्रथा को समाप्त करने के सम्बन्ध में कुछ प्रासंगिक प्रावधान निम्न प्रकार हैंः

मानव अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा ,१९४८ के अनुच्छेद १ के अनुसार सभी मनुष्य स्वतंत्र  पैदा हुए हैं और सभी लोग सम्मान और अधिकार सामान रूप से पाने के अधिकारी हैं | उन्हें एक दूसरे के प्रति भाईचारे की भावना से कार्य करना चाहिए | 

इसी प्रकार घोषणा का अनुच्छेद २ (१) कहता है कि प्रत्येक व्यक्ति बिना किसी प्रकार के भेदभाव के,जैसे जाति, रंग, नस्ल, लिंग, भाषा, धर्म, राजनीति या अन्य राय, राष्ट्रीय या सामाजिक मूल, सम्पति, जन्म या अन्य स्थति के आधार पर,इस घोषणा में वर्णित अधिकार और स्वतंत्रता प्राप्त करने का अधिकारी है | 

इसी घोषणा का अनुछेद २३(३)  स्पष्ट करता है कि प्रत्येक व्यक्ति उसके द्वारा किये गए काम के बदले उचित और अनुकूल मजदूरी / पारिश्रमिक पाने का अधिकारी है, जिससे वह और उसका परिवार गरिमामय जीवन यापन कर सके  और यदि आवश्यक हो तो उसे सामाजिक सुरक्षा के अन्य साधनों द्वारा पूरा किया जा सके | 

एक दैनिक समाचार पत्र  टाइम्स ऑफ़ इंडिया में छपी खबर का संज्ञान लेते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय ने मैनुअल  स्केवेंजिंग के मुद्दे पर स्वतः संज्ञान लेते हुए दिल्ली सरकार से जबाब मांगा | खबर के अनुसार एक सफाई कर्मचारी  रोहित चांदिल्या, 32 वर्ष सीवर के अंदर बेहोश हो गया | उसे बचाना के लिए एक सुरक्षा गार्ड अशोक, 30 वर्ष, निवासी झज्जर हरियाणा घुसा | दोनों की बाद में मृत्यु हो गई |

दिल्ली उच्च न्यायायलय ने टिप्पणी करते हुए कहा, " यह दुर्भाग्य पूर्ण है कि आजादी के 75 साल बाद भी लोगों का  बतौर मैनुअल स्केवेंजिंग उपयोग किया जा रहा है |" 

सर्वोच्च न्यायालय की विधि व्यवस्था दिल्ली जल बोर्ड बनाम सीवरेज और संबद्ध के सम्मान एवं अधिकारों के लिए राष्ट्रीय अभियान और अन्य  में माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने  निम्नलिखित  टिप्पणी की:
“३२. राय देते हुए कहा, कोई भी सफाई के लिए सीवेज सिस्टम के मैनहोल में प्रवेश करना पसंद नहीं करेगा, लेकिन ऐसे लोग हैं जो इस उम्मीद के साथ इस तरह के खतरनाक काम करने के लिए मजबूर हैं कि दिन के अंत में वे कुछ पैसे कमा पाएंगे और अपने परिवार का भरण-पोषण कर सकेंगे । वे दूसरों की सुविधा के लिए अपनी जान जोखिम में डालते हैं। दुर्भाग्य से, पिछले कुछ दशकों से, शहरी समाज का एक बड़ा हिस्सा गरीबों और वंचितों की दुर्दशा के प्रति असंवेदनशील हो गया है, जिनमें वे लोग भी शामिल हैं, जो आर्थिक मजबूरियों के कारण ऐसी नौकरियां/कार्य करते हैं जो स्वाभाविक रूप से जीवन के लिए खतरनाक हैं। इस वर्ग से जुड़े लोग यह समझना नहीं चाहते कि किसी व्यक्ति को बिना सुरक्षा गियर और उचित उपकरण के मैनहोल में क्यों उतारा जाता है। जब मैनहोल में मरने वाले किसी मजदूर का शव रस्सियों और क्रेन की मदद से बाहर निकाला जाता है तो वे दूसरी तरफ देखते हैं। इस परिदृश्य में, अदालतें उन लोगों के जीवन से संबंधित मुद्दों पर संज्ञान लेने की न केवल हकदार हैं, बल्कि संवैधानिक दायित्व के तहत भी हैं, जो ऐसे काम करने के लिए मजबूर हैं जो जीवन के लिए खतरनाक हैं।"

सीवरेज कर्मचारी संघ (पंजीकृत), एमसी चंडीगढ़ और अन्य बनाम भारत संघ और अन्य सीआरपी नंबर 1983/2008 के मामले में, पंजाब और हरियाणा के माननीय उच्च न्यायालय ने सीवरेज श्रमिकों के अधिकारों से संबंधित एक मामले में घोषणा की है कि सीवरेज की सफाई में किसी व्यक्ति को नियुक्त करना अस्पृश्यता और मैला ढोने जैसी घृणित प्रथाओं का एक आधुनिक विस्तार है।

माननीय सर्वोच्च न्यायालय की विधि व्यवस्था डॉ. बलराम सिंह बनाम भारत संघ और अन्य में न्यायमूर्ति अस.रविंद्र भट्ट ने मैनुअल स्केवेंजिंग के सम्बन्ध में  डॉ.बी.आर.अंबेडकर के कथन को सन्दर्भित किया ,जो निम्नवत है :

           "हमारी लड़ाई धन या सत्ता के लिए नहीं है | यह आजादी की लड़ाई है, यह मानव व्यक्तित्व के पुनरुद्धार की लड़ाई है |" 

सर्वोच्च न्यायालय  द्वारा दिनांक 20.10.2023 को दिए गए उक्त फैसले में मैनुअल स्केवेंजिंग की प्रथा को समूल रूप से समाप्त करने के लिए दिशा निर्देश जारी किये गए तथा मैनुअल स्केवेंजिंग को पूरी तरह समाप्त करने का आदेश दिया है | 

उक्त फैसले में विशिष्ट आदेश के तहत स्थानीय अधिकारियों और अन्य एजेंसियों  के ऊपर कर्तव्य अधिरोपित  किया गया कि उनके द्वारा सीवर आदि की सफाई के लिए आधुनिक तकनीक का उपयोग अमल में लाया जाय | 

इसके अतिरिक्त सीवर या सेप्टिक टैंक में सफाई के दौरान होने वाली मृत्यु के लिए उत्तराधिकारियों के लिए दी जाने वाली मुआवजा राशि १० लाख से बढ़ा कर ३० लाख किये जाने का आदेश पारित किया है | 

माननीय न्यायालयों के उक्त निर्णयों से स्पष्ट है कि उनका रूख मैनुअल स्कवेंजर्स और उनके परिवारों के मानव अधिकारों के संवर्धन एवं संरक्षण की दिशा में दृष्ट्रिगोचर होता है| 

निष्कर्ष 

भारतीय स्वछता मिशन के तहत स्वछता अभियान में मैनुअल स्कवेंजर्स की अनदेखी एक गंभीर मानव अधिकार संकट को जन्म देती है, जो समाज में जाति व्यवस्था के सबसे नीचे पायदान पर स्थित लोगों को सर्वाधिक प्रभावित करती है | मैनुअल स्केवेंजिंग की मजबूरी समाज के सबसे कमजोर वर्गों को न सिर्फ गरिमा से वंचित कर रही है बल्कि उनके स्वास्थ्य और जीवन की सुरक्षा के लिए भी गंभीर संकट पैदा करती है | 

न्याय और समावेशी समाज के निर्माण की ओर बढ़ने के लिए मैनुअल स्केवेंजिंग की अमानवीय और क्रूर प्रथा का पूर्ण रूप से खात्मा किया जाना आवश्यक है |जिसमे स्वछता अभियान की सफलता की तरह सरकार और समाज  दोनों की भागीदारी आवश्यक है | इसमें कोई संदेह नहीं किया जा सकता है कि सरकार की और से इस अमानवीय प्रथा के खात्मे के लिये प्रयास नहीं किये गए हों | 

भारत में विगत ३० वर्षों से मैनुअल स्केवेंजिंग को समाप्त करने के लिए कानून अस्तित्व में होने के बाबजूद देश में मैला ढोने की प्रथा/मैनुअल स्केवेंजिंग को खत्म करने में आधिकारिक विफलता आधुनिक भारत की सबसे बड़ी शर्मिंदगी कही जा सकती है | 

केंद्र और राज्य सरकारों को मैनुअल स्केवेंजिंग समस्या के निवारण के लिए मानव अधिकार केंद्रित पहुंच अपनाने की आवश्यकता है | जिसके तहत सभी तरह के सफाई कार्यों का शत प्रतिशत मशीनीकरण आवश्यक है | इस सम्बन्ध में भारत के सर्वोच्च न्यायालय और राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग, दिल्ली द्वारा सरकार को सफाई कार्यों के मशीनीकरण के क्रमशः आदेश और सुझाव दिए गए हैं | 

समाज को भी इस मुद्दे पर जागरूक करने की महती आवश्यकता है, तभी हम स्वछता को स्वछता अभियान के तहत एक सामाजिक जिम्मेदारी और मानव अधिकार के रूप में स्थापित कर पाएंगे | स्वछता अभियान केवल शरीर, गलियों, सड़कों, सीवर और सेप्टिक टैंकों की सफाई तक सीमित नहीं है बल्कि यह सभी के मानव अधिकारों के सम्मान,संरक्षण और पूर्ति तक पहुंच का मामला है,जिसमे मैनुअल स्कवेंजर्स भी आते है | 

श्रोत सूची:

1. पाठक बिंदेश्वर, रोड टू फ़्रीडम: भारत में स्कैविंग के उन्मूलन पर एक समाजशास्त्रीय अध्ययन, मोतीलाल बनारसीदास पब्लिशर्स प्राइवेट लिमिटेड, दिल्ली प्रथम संस्करण, 1991, पुनर्मुद्रण 1995

2.मानवाधिकारों की सार्वभौम घोषणा 1948.

3.भारत की मैला ढोने की समस्या, हिंदू नेट डेस्क, 16 फरवरी, 2020

4.क्यूलेट फिलिप, सुजीत कूनन और लवलीन भुल्लन (एडीआर), भारत में स्वच्छता का अधिकार, क्रिटिकल पर्सपेक्टिव (ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी, प्रेस, नई दिल्ली)

5. दिल्ली जल बोर्ड बनाम सीवरेज और संबद्ध श्रमिकों और अन्य की गरिमा और अधिकारों के लिए राष्ट्रीय अभियान, (2011) 8 SCC568

6. सफाई कर्मचारी आंदोलन और अन्य बनाम भारत संघ और अन्य, (2014)11SCC 224

7. भारत सरकार, भारत का सर्वोच्च न्यायालय, सिविल मूल क्षेत्राधिकार रिट याचिका (सिविल) संख्या 583/2003 HTTP://www.indiaenvironmentportal.org in/files/scavenging/20sc/202014 पर उपलब्ध है।

FAQ:-

प्रश्न : मैनुअल स्केवेंजिंग क्या है ?

उत्तर : मैनुअल स्केवेंजिंग या हाथ से मैला ढ़ोना भारत में बुराई के रूप में एक ऐसी प्रथा है जिसमे व्यक्ति मानव मल तथा अन्य अपशिष्ट अपने हाथ से साफ़ करता है | 

प्रश्न : मैनुअल स्केवेंजिंग का सामाजिक पहलू क्या है ?

उत्तर : मैनुअल स्केवेंजिंग का सामाजिक पहलू उससे गहराई से जुडी जाति व्यवस्था है | इस कार्य में अधिकांशतः जाति व्यवस्था में सबसे नीचे पायदान पर स्थित लोग लगे होते है | यह प्रथा पूर्ण रूप से जाति आधारित तथा अमानवीय है | 

प्रश्न : क्या मैनुअल स्केवेंजिंग में महिलायें भी लगी हुयी हैं ? 

उत्तर :हाँ ,मैनुअल स्केवेंजिंग के कार्य में पुरुषों के मुकाबले महिलाए अधिक संख्या में कार्य करने को विवश हैं | 

प्रश्न : मैन्युअल स्केवेंजिंग के उन्मूलन के लिए भारत सरकार ने क्या प्रयास किये हैं ?

उत्तर : उक्त प्रथा के उन्मूलन के लिए भारत सरकार ने नीतिगत और विधिक दोनों तरह के प्रयास किये हैं | विधिगत प्रयास के तहत मैन्युअल स्केवेंजिंग के कार्य का निषेद किया गया है तथा इसे कराने को दंडात्मक बनाया गया है जबकि नीतिगत प्रावधानों के तहत मैन्युअल स्कवेंजर्स तथा उसके परिवारों के कल्याण और पुनर्वास के प्रावधान किये गए है |


शनिवार, 5 अक्टूबर 2024

मानव अधिकारों की नए भारत के निर्माण में भूमिका :मुद्दे ,चुनौतियाँ और समाधान

Contribution of Human Rights in Building a Naya Bharat
प्रस्तावना 

नए भारत की संकल्पना को सिद्धि में बदलने के लिए मानव अधिकारों की भूमिका अत्यधिक महत्वपूर्ण है | वर्तमान में मानव अधिकार किसी भी देश की प्रगति और विकास के लिए आवश्यक हैं | जिन देशों में मानव अधिकार का स्तर अच्छा है उनमे निवास करने वाले वियक्तियों का जीवन स्तर भी उच्च स्तरीय है | 

मानव अधिकारों की अवधारणा 

मानव अधिकारों की अवधारणा उतनी ही पुरानी है जितनी कि मानव सभ्यता का विकास | मानव अधिकारों की अवधारणा की ऐतिहासिक जड़ें प्राकृतिक अधिकारों में दृटिगोचर होती हैं. | इस प्रकार मानव अधिकार वे अधिकार है जो किसी वियक्ति को उसके मानव होने के नाते स्वतः ही  प्राप्त होते हैं |मानव अधिकार वियक्ति को चहुमुखी विकास का अवसर उपलब्ध कराते है |  मानव अधिकार सार्वभौमिक ,अविभाज्य और एक दूसरे पर निर्भर होते है | सरल भाषा में मानव अधिकार वे हैं जो वियक्ति को मानवीय रूप और गरिमा प्रदान करते हैं | किसी एक मानव अधिकार का उल्लघन वियक्ति और समूह के दूसरे अन्य मानव अधिकारों का प्रत्यछ और अप्रत्यछ रूप से प्रभावित कर सकता है | उसी प्रकार किसी एक अधिकार के संवर्धन और संरक्षण से अन्य अधिकारों का स्वतः ही संवर्धन और संरक्षण संभव है |उदाहरण के रूप में वियक्ति को शिक्षा का लाभ मिलने पर अन्य अधिकारों का स्वतः  ही संवर्धन और संरक्षण हो जाता है  अर्थात मानव अधिकार एक दूसरे पर अंतर्निर्भर हैं | 

मानव अधिकार की भारतीय परिभाषा 

भारत में मानव अधिकारों के संरक्षण एवं संवर्धन के लिए बने  मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम ,१९९३ की धरा -२(द ) के अनुसार , " मानव अधिकारों से प्राण ,स्वतंत्रता ,समानता और वियक्ति की गरिमा से सम्बंधित ऐसे अधिकार अभिप्रेत हैं जो संविधान द्वारा प्रत्याभूत किये गए हैं या अंतर्राष्ट्रीय प्रसंविदाओं में शामिल हैं और भारत के न्यायालयों द्वारा प्रवर्तनीय हैं |" 

मानव अधिकारों की प्रकृति 

१७१ देशो और सैकड़ो गैर सरकारी संस्थाओं के सम्मलेन के बाद जारी की गयी विएना घोषणा में स्पष्ट शब्दों में कहा गया कि , "सभी मानव अधिकार सार्वजनीन ,अविभाज्य, अंतर्सम्बन्ध और अंतर्निर्भर हैं | " साथ ही स्पष्ट शब्दों में यह भी कहा गया है कि नागरिक ,राजनैतिक,सामाजिक और सांस्कृतिक  सभी प्रकार के व्यक्तिगत  अधिकारों तथा राज्यों और राज्यों के समूहों  के अंतर्गत सामूहिक अधिकारों का एक मात्र जामिन लोकतंत्र है | विश्व भर में मानव अधिकारों के विकास और क्रियान्वयन  के साथ ही भातीय प्रजातंत्र ने २१ वी सदी में प्रवेश किया है | भारत में भारतीयों के जीवन में आये तमाम सकारात्मक बदलावों को दृष्टिगोचर कर यह स्पष्ट रूप से कहा जा सकता है कि  वर्तमान में मानवाधिकारों  के बिना नए भारत की परिकल्पना और वास्तविकता में उसका रूपांतरण बेमानी होगा | 

भारत में मानवाधिकारों का उपयोग तथा क्रियान्वन 

नए भारत एवम समग्र विकास की भारतीय अवधारणाओं को मूर्त रूप में बदलने के लिए सयुक्त राष्ट्र सदस्य  के रूप में भारत के पास मानव अधिकार सिद्धांतों के रूप में सशक्त औजार लम्बे समय से उपलब्ध रहा है | सयुंक्त राष्ट्र अधिकार पत्र की स्वीकृति के बाद से अब तक करीब ७० वर्ष  गुजरने के बाबजूद भारत में मानव अधिकारों पर अमल का इतिहास निराशाजनक रहा है | मानव अधिकारों के पूर्ण कार्यान्वयन के लिए उनका ज्ञान और सरोकार पैदा करने की जितनी आवस्यकता आज है उतनी कभी नहीं थी | इसका अर्थ यह नहीं लगाया जाना चाहिए कि भारत में मानव अधिकारों के संवर्धन की दिशा में कोई कदम ही नहीं उठाये गए है | 
विश्वभर में मानवाधिकारों के संरक्षण अवं संवर्धन के क्षेत्र में प्राप्त प्रमुख उपलब्धि सयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा स्वीकृत की गयी मानव अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा है जिसे १० दिसम्बर ,१९४८ को स्वीकृत व् अंगीकृत किया गया था | इस घोषणा पत्र  द्वारा स्पष्ट किया गया है कि , "सभी वियक्ति जन्म से स्वतन्त्र  हैं और अपनी गरिमा और अधिकारों के मामले में बराबर है |" इसमें किसी भी आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जाएगा | विश्वभर में इस घोषणा के महत्त्व को इस आधार पर समझा जा सकता है कि अब तक इस दस्तावेज का ५०० से अधिक भाषाओं में अनुवाद हो चुका है | भारत भी उक्त घोषणा पत्र का सदस्य देश है | 
नए भारत के निर्माण से जुड़े अनेक मुद्दे और और चिंताए विद्द्मान रहे है | बाबजूद इसके करीब ७० वर्षों तक भारतीय संसद द्वारा अपने नागरिकों के हितों में अंतराष्ट्रीय मानव अधिकार सिद्धांतों का उतना उपयोग नहीं किया गया है जितना किया जाना चाहिए था | 

नए भारत की संकल्पना 

चौहदवीं लोकसभा चुनाव में जीत के बाद भारत के प्रधान मंत्री बने नरेंद्र मोदी के नए भारत के निर्माण की संकल्पना दरअसल कुछ और नहीं बल्कि भारतीय जनता पार्टी के मूल संगठन जनसंघ के नेता और उसकी विचार धारा को दार्शनिक आधार देने वाले पंडित दीनदयाल उपाध्याय के सपनो को आगे बढ़ाने की यात्रा है | प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा वर्ष २०१५ में सयुंक्त राष्ट्र संघ सतत विकास समिति के समक्ष सतत विकास विषय पर सम्बोधन किया | हम सबका साझा संकल्प है कि विश्व शांति पूर्ण हो ,व्यवस्था न्याय पूर्ण हो, विकास सस्टेनेबल हो , तो गरीबी के रहते यह कभी भी संभव नहीं होगा | इस लिए गरीबी को मिटाना हम सभी का पवित्र दायित्व है |  

पंडित दीन दयाल उपाध्याय का दर्शन 

पंडित दीन दयाल उपाध्याय का विकास के सन्दर्भ में विचार है कि विकास में सरकार द्वारा अंतिम पायदान पर स्तिथ वियक्ति का भी ध्यान रखा जाना चाहिए तथा जिससे उसकी मूलभूत आवश्यकताओं की भी पूर्ती हो सके |परिणामस्वरूप एक समरसता वाला समाज तैयार हो सके| पंडित दीन दयाल उपाध्याय के दर्शन को एकात्म मानव दर्शन कहा जाता है और इस एकात्म मानव दर्शन में समग्रता के व्यापक दर्शन होते हैं |
पंडित दीन दयाल उपाध्याय ने मानव की पहली कड़ी यानी व्यक्ति से लेकर सर्वोच्च स्तर यानी समाज तक गहरा चिंत्तन किया | पंडित दीन दयाल उपाध्याय ने समाज के किसी वंचित वर्ग की चिंताएं करने की बजाय समाज के चिंतन पर सर्वाधिक बल दिया | वे कभी यह नहीं कहते थे कि पिछड़े वर्ग का विकास किया जाय बल्कि उनका जोर रहता था कि समस्त समाज का विकास किया जाय,अर्थात समस्त समाज के विकास की चिंत्ता करते हुए संतुलित विकास का प्रबल समर्थन करते थे| 
पंडित दीन दयाल उपाध्याय की परिकल्पना थी कि पिछड़ा वर्ग समाज का ही एक अंग है | इसलिए समाज का विकास होने पर पिछड़े वर्ग का विकास स्वतः हो जाएगा | इस लिए सम्पूर्ण समाज के विकास पर बल दिया जाना चाहिए | वे मशीन आधारित विकास के विरोधी थे | वे हर व्यक्ति के हाथ में काम चाहते थे तथा वे अर्थव्यवस्था के  विकेन्द्रीयकरण के प्रबल समर्थक थे | 
नए भारत की परिकल्पना अनायास पैदा हुया विचार न होकर लम्बे समय में विकसित एक जटिल परिकल्पना है और समय के साथ -साथ इसके आयामों में भी विस्तार होता रहा है | 
इस एकात्मवाद का सैद्धांतिक आधार पंडित दीन दयाल के नए भारत की परिकल्पना को मूर्त रूप में परिवर्तित करने के लिए मूलभूत और ससक्त आधार उपलब्ध करता है | नए भारत की सैद्धांतिक  अवधारणा  का बीजारोपण  भारत के स्वतंत्रता आंदोलन के प्रारम्भ के समय से ही हो चुका था | लेकिन समय गुजरने के साथ साथ नए भारत की अवधारणा के विभिन्न आयाम देश की आवाम के सामने आते रहे हैं | अलग-अलग कालखंडों में नए भारत के निर्माण की अवधारणा में निरंतर बदलाव होता रहा है |
भारत के पांच राज्यों के विधान सभा चुनाव  परिणाम के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भाजपा के दिल्ली स्तिथि केंद्रीय कार्यालय में न्यू इंडिया पर नई बहस छेड़ कर भारतीयों को आश्चर्य में डाल  दिया | अनेक लोगों को न्यू  इंडिया का अर्थ ही समझ में नहीं आया | मोदी जी ने कहा कि, "न्यू इंडिया सरकार से नहीं बल्कि १२५ करोड़ भारतवासियों की छमताओं  और कुशलताओं  से उभरा है |"
जाती और धर्म आधारित राजनितिक समाज में विखंडन और वैमनस्य पैदा करती है और समाज में विखंडन और वैमनस्य सम्पूर्ण समाज के विकास में गंभीर बाधाएं पैदा करती हैं | जिससे समाज का समग्र विकास  कतई संभव नहीं है | पंडित दीन  दयाल  समाज को विखंडित करने वाली राजनीति के प्रबल विरोधी थे | उन्होंने महसूस किया कि हमें सभी राजनैतिक मतभेदों को दूर करके एक साथ मिलकर देश का समग्र विकास करना चाहिए |      
पंडित दीनदयाल की विशेषता रही है कि उनके द्वारा सदैव ही समग्र विकास की बात की जाती रही है न की खंडित विकास की | खंडित विकास का अर्थ अनेक सन्दर्भों में असंतुलित विकास से जोड़ा जाता है | 
हम आने वाली भविष्य  की  पीडीओं  को दुनिया में क्या सौप कर जाना चाहते  हैं ? यह वर्तमान पीड़ी पर ही निर्भर करेगा कि सिर्फ जीवन यापन करना चाहते है  या गरिमा के साथ जीवन जीना कहते है | यही भविष्य की पीडियों के बारे में सोचना पड़ेगा कि हम उन्हें  सिर्फ जीने के लिए छोड़ कर जाना चाहते है जिसमे गुलामी,संघर्ष, अत्याचार ,अमानवीय व्यवहार, भुकमरी,वर्ग संघर्ष,जातीय और धार्मिक संघर्ष का बोलवाला हो या गरिमामयी जीवन  जीने के लिए एक सुरक्षित व्  स्थायित्व  पूर्ण वातावरण देना कहते है | 
भारत अब दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था  बनने के कगार पर है बाबजूद इसके सार्वजनिक  स्वास्थय ,शिक्षा ,आवास ,भोजन और पानी जैसे मामले में देश दुनिया के अनेक  देशों से भी पीछे हैं |  इन मानकों पर तेजी से आगे बढ़ने के लिए भी सामाजिक ,शैक्षिक  और आर्थिक विकास की गति और तेज करनी होगी | जिसके लिए सतत विकास की अवधारणा को विह्वहार में लाने पर जोर देना पडेगा |   

सतत विकास की अवधारणा 

सतत विकास की अवधारणा विकास का ही नया आयाम है | जो नई  पीड़ी की भलाई के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है | शाब्दिक अर्थ के रूप में देखने पर सतत विकास का अर्थ है  निरंतर और परिवर्तन | 
ब्रूटलैंड आयोग , १९८७ में इसे परिभाषित करते हुए कहा कि , " सतत विकास ऐसा विकास है जो भविष्य की पीढ़ी की समस्त आवश्यकताओं को संतुषट करने की आवश्यकता के साथ किसी भी प्रकार का समझौता किये बिना वर्तमान पीढ़ी  की आवस्यकता को पूर्ण करता है |"   
मानव अधिकारों पर पहली कॉन्फ्रेंस २२ अप्रेल से १३ मई ,१९६८ तक तेहरान में(ईरान )में आयोजित हुई | इसमें सदस्य राज्यों से गुजारिश की गई  कि वे अपने यहाँ शिक्षा व्यवस्था को इस प्रकार बढ़ावा दे कि छात्रों में मानव अधिकार के प्रति सम्मान पैदा हो सके | पंडित  दीन दयाल का भी दर्शन था कि , "महिलाओं की शिक्षा के बिना एक सुसभ्य समाज का निर्माण असंभव है | 

नए भारत के निर्माण में चुनौतियाँ 

बर्तमान में भारत के समक्ष अनेक चुनौतियाँ है | जैसे की स्वछता की समस्या ,नदियों में प्रदुषण की समस्या ,आवास की समस्या, कुशल कामगारों की समस्या, शिक्षा और स्वास्थय की समस्या, सम्पूर्ण कम्प्यूटरीकरण का अभाव ,किसानो की समस्याएं मजदूरों की समस्याएं ,गरीबी और बेरोजगारी के समस्या आदि | उक्त चुनौतियों का सामना समाज में हर व्यक्ति द्वारा समाज के प्रति अपने कर्तव्यों का पालन तथा मानव अधिकारों का सम्मान करते हुए किया जा सकता है | इसके लिए सरकार की प्रबल इच्छा शक्ति की अति आवश्यकता है | भारत में मानव अधिकारों का संरक्षण एवम संवर्धन लिए भारत के नागरिक और भारतीय संसद के पास मानव अधिकार सिद्धांतों और नियमो के रूप में औजारों की एक बृहत श्रंखला उपलब्ध है |  जिसका उचित और व्यवहारिक उपयोग कर न्यू इंडिया के परिकल्पना को मूर्त रूप दिया जा सकता है | समय आ गया है जब हमें विचार करना होगा कि हम आने वाली पीढ़ीओं को विरासत में कैसी दुनिया सौपना चाहते हैं | 

उपसहार 

नए भारत के निर्माण में नरेंद्र मोदी संसद की उच्चत्तम क्षमताओं का सद्पयोग करना चाहते है लेकिन इसके लिए अनेक क्षेत्रों के अलावा मानव अधिकार शिक्षा के संवर्धन की दिशा में भी अनेक मुद्दे और चुनौतियाँ उपस्थित हैं जिनके निवारण के लिए  इस प्रकार के लेख की आवस्यकता को बल मिलता है | यह लेख पंडित दीन दयाल के नए भारत की परिकल्पना के भारतीय स्वरुप को मूर्तरूप प्रदान करने में मानव अधिकार सिद्धांतों का अधिकाधिक उपयोग का रास्ता प्रशस्त करने में सहायक होगा | इसके अतिरिक्त  पंडित दीन दयाल की परिकल्पना के भारतीय स्वरुप को वैश्विक आधार प्रदान करने तथा ज्ञान के यथार्थ योगदान में सहायक होगा | नए भारत की संकल्पना को सिद्धि में परिवर्तित करने के लिए भारत में मानव अधिकारों का संवर्धन अवं संरक्षण आवश्यक है | मानव अधिकारों के प्रति सम्मान की इच्छा शक्ति को बढ़ावा देकर विकसित भारत @२०४७ के लक्ष्य को प्राप्त कर आजादी के १०० वे वर्ष २०४७ तक एक विकसित भारत का सपना नए भारत के रूप  में साकार किया जा सकता है | 

सन्दर्भ श्रोत 

१. पी ऍम मोदी स्पीच एंड दी यूनाइटेड नेशंस सस्टेनेबल समिट ,सितम्बर २५ ,२०१५ | 
२. डॉ  ऍम सी  त्रिपाठी ,आणविरोन्मेंटल लॉ ,सेंट्रल लॉ पब्लिकेशन इलाहाबाद ,उत्तर प्रदेश | 
३. ह्यूमन राइट्स एजुकेशन ,असोसिएशन ऑफ़ इंडियन यूनिवर्सिटीज ,ए आई यू  हाउस ,कोटला मार्ग नई दिल्ली |
४. ब्रजेश बाबू ,ह्यूमन राइट्स एंड सस्टेनेबल डेवलपमेंट ,ग्लोबल पब्लिकेशन नई दिल्ली | 
५. यूनाइटेड नेशंस सस्टेनेबल डेवलपमेंट एजेंडा २१ ,यूनाइटेड नेशंस ऑन एनवायरनमेंट ,रिओ दे जेनेरिओ ,ब्राजील ३-१४ जून १९९२ | 
६. द  प्रोटेक्शन ऑफ़ ह्यूमन राइट्स एक्ट ,१९९३ | 
७. विएना डेक्लरेशन एंड प्रोग्रमम ऑफ़ एक्शन ,वर्ल्ड कॉन्फ्रेंस  ऑन  ह्यूमन राइट्स ,विएना ,१४-१५ जून,१९९३|  
८. मानव अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा १९४८ | 
९.डॉ कमल कौशिक ,एकात्म मानव दर्शन के प्रणेता पंडित दीन दयाल उपाधियाह,प्रकाशक पंडित दीन दयाल स्मृति महोत्सव समिति दीन दयाल धाम फराह, मथुरा | 
१०. डॉ कमल कौशिक ,भारत के महान दार्शनिक, पंडित दीन दयाल उपाधियाह,प्रकाशक पंडित दीन दयाल स्मृति महोत्सव समिति दीन दयाल धाम फराह, मथुरा | 

बुधवार, 25 सितंबर 2024

फॉरेंसिक साइंस और मानव अधिकार के बीच अन्तर्सम्बन्ध -Interlinkage between Forensic Science & Human Rights(In Hindi)

Forensic Science and Human Rights

फॉरेंसिक साइंस और मानव अधिकार के बीच रिस्ते 

फॉरेंसिक साइंस और मानव अधिकार के बीच अन्तर्सम्बन्ध एक महत्वपूर्ण और जटिल विषय है | फॉरेंसिक साइंस का मुख्य उद्देश्य गंभीर अपराधों की जांच कर उसकी तह तक पहुंचना है तथा आपराधिक न्याय प्रणाली के समक्ष उच्च कोटि के साक्ष्य उपलब्ध कराकर सत्य की स्थापना में न्यायालय की सहायता करना है |
दूसरी ओर मानव अधिकार वे अधिकार है जो मनुष्य होने के नाते हर व्यक्ति को उसके जन्म से प्राप्त है | इन अधिकारों में गरिमा,समानता,स्वतंत्रता, जीवन, सुरक्षा और सक्षम न्यायालय से न्याय की मांग करने का अधिकार    हर व्यक्ति के चहुमुखी विकास के लिए आवश्यक है | ये सभी मनुष्यों को बिना किसी मूल,वंश ,घर्म,जाति,नस्ल,रंग,भाषा,क्षेत्र, लिंग,आदि के भेदभाव के प्राप्त होते हैं। यही नहीं गरिमा का अधिकार व्यक्ति की मृत्यु या ह्त्या के उपरांत उनके शवों को भी  प्राप्त होता  है |
किसी भी देश में मानव अधिकारों का संरक्षण एक सुदृढ़ लोकतंत्र के लिए अति आवश्यक है | अक्सर फॉरेंसिक साइंस का उपयोग मानव अधिकारों के उल्लंघन की घटनाओं से सम्बंधित जटिल तथ्यों को उजागर करने के लिए  किया जाता है | जब नियम विरुद्ध किसी व्यक्ति को किसी झूठे अपराध में फंसाया जाता है और उसे यातनाये दी जाती है या हिरासत में ही उसकी ह्त्या कर दी जाती है | ऐसी स्थति में अपराधियों के विरुद्ध कोई भी व्यक्ति गवाही देने वाला सामने नहीं आता है  जिसके कारण सरकार पोषित या संरक्षण पाए व्यक्तियों के विरुद्ध कोई कानूनी कार्यवाही पहले तो प्रारम्भ नहीं होती है और यदि प्रारम्भ हो भी जाए तो साक्ष्य के अभाव में न्यायलय से दोषमुक्त हो जाते है | ऐसी स्थति में पीड़ितों के लिए फॉरेंसिक साइंस ही न्याय और मानव अधिकार संरक्षण के द्वार खोलती है |
विश्व के अलग-अलग देशों में नरसंहार की कई घटनाएं इतनी भीभत्स और भयानक हुयी है कि उन घटनाओं का कोई चश्मदीद जीवित नहीं बचा, जो घटना के सम्बन्ध में परिथितिजन्य विवरण उपलब्ध करा सके | जो  जीवित बचे वे आताताईयों के भयवस अपना मुँह खोलने के लिए तैयार नहीं  थे | 
जो जीवित बचे उनके द्वारा दिए गए घटना सम्बन्धी विवरण की सत्यता की पुष्टि के बिना घटना की सच्चाई को उजागर करना अपने आप में अत्यधिक दुरूह कार्य था| इस जटिल कार्य को आसान बनाया फॉरेंसिक साइंस के विशेषज्ञों द्वारा फॉरेंसिक साइंस का उपयोग करके | 
आज फॉरेंसिक साइंस में बहुत उन्नति हो चुकी है| यही कारण है कि फॉरेंसिक साइंस के उपयोग से विश्व के कई देशों में मानवाधिकार उलंघन की भीभत्स आपराधिक घटनाओं का खुलासा संभव हो सका है | 
विश्वभर में फॉरेंसिक साइंस का मानव अधिकार उल्लंघन के वैज्ञानिक दस्तावेजीकरण के सशक्त माध्यम के रूप में उपयोग होता रहा है | कई देशों के फॉरेंसिक साइंस के वैज्ञानिकों ने मानवता के विरुद्ध अपराध के रूप में नरसंहार की घटनाओं से सम्बंधित विशेष तथ्यों को उजागर करने का काम किया है| यही नहीं आज यह विज्ञान प्रयोगशालाओं से बाहर निकलकर दूर दराज स्थित आपराधिक घटना स्थलों तक पहुंच रहा है। वर्तमान में इसके अनेक उदाहरण उपलब्ध है |  जिनमे से कुछ यहाँ प्रस्तुत किये जा रहे हैं | 
उदाहरण स्वरुप, वर्ष १९९५ में स्रेवेनिका के बोसनियन गांव में सर्वों द्वारा मारे गए बोसनियन लोगों के शवों को बरामद किया गया | उनका सावधानी पूर्वक उत्खनन और विश्लेषण के परिणाम स्वरुप सामने आये वैज्ञानिक सबूतों को साक्षियों के ब्यानो के साथ मिलाया गया |  इस घटना में  ८००० लोगों की सामूहिक हत्या हुई थी |  
उसी प्रकार वर्ष १९९० में ग्वाटेमाला कमीशन फॉर हिस्टोरिकल क्लेरिफिकेशन ने अनेकों सामूहिक कब्रों की खुदाई के आदेश दिए | अनेकों वर्ष बीतने के बावजूद पीड़ित और स्थानीय लोग जोर से यह नहीं कह सकते थे कि उनके पास ही उनके परिजनों या रिश्तेदारों के शवों को दफनाया गया था | उक्त सामूहिक कब्रों को तहसनहस  और हेरफेर करने के प्रयास किये गए | परन्तु सामूहिक कब्रों के उत्खनन के उपरान्त निकले परिणामों ने स्पष्ट साक्ष्य उपलब्ध कराये कि ग्वाटेमाला आर्मी ने वर्ष १९८० में अत्याचार किये थे | 
73 वर्षीय ओकलाहोमा निवासी क्लाइड स्नो दुनिया के जाने-माने फोरेंसिक मानवविज्ञानी माने जाते है | वे  आपदाओं, दुर्घटनाओं और हिंसक अपराधों में मारे गए लोगों का वैज्ञानिक विधि से परीक्षण कर घटना के पीछे छिपे रहस्यों को उजागर करते है | वर्ष १९७९ में अमेरिकन एयर लाइन्स की १९१ दुर्घटनाग्रस्त हुई जिसमे २७३ लोग मारे गए | क्लाइड स्नो ने जांच करने के लिए एक टीम बनाई जिसमे चिकित्स्कीय जांचकर्ता ,दन्त चिकित्सक तथा एक्स -रे तकनीसियन शामिल थे | दुर्घटनाग्रस्त लोगों के अवशेषों की जांच  पूरी करने के परिणामस्वरूप  २७३ लोगों में से २४४ लोगों की पहचान कर ली गयी थी सिर्फ २९ लोग ही अज्ञात बचे थे | 
यह फॉरेंसिक साइंस ही है जिसकी बदौलत मानवता के विरुद्ध गंभीरऔर भीभत्स अपराधों का खुलासा संभव हो सका है  |  
सयुंक्त राष्ट्र  संघ की सुरक्षा परिषद् ने सशस्त्र संघर्ष के दौरान लापता हुए लोगों पर ११ जून २०१९ को पहली बार प्रस्ताव पारित किया जिसमे इस बात पर चिंता जाहिर की गयी गयी कि लापता होने वाले लोगों की संख्या में कमी आने के कोई संकेत नहीं मिल रहे हैं | 
परिषद् ने सर्व सम्मिति से संकल्प २४७४ (२०१९ ) को अपनाते हुए कहा कि संघर्ष के दोनों पक्षों को वह सभी उचित उपाय करने चाहिए जिनसे लापता लोगों की अनवरत खोज चलती रहे तथा उनके अवशेषों  की वापसी सुनिश्चित हो| दोनों पक्ष बिना किसी दुराग्रह के लापता लोगों का हिसाब दें और लापता लोगों की शीघ्र ,गहन और प्रभावी जांच सुनिश्चित हो | 
सुरक्षा परिषद् के प्रस्ताव में कहा गया कि  हम महान वैज्ञानिक और तकनीकी प्रगति से परिचित है जिससे अन्य बातों के साथ -साथ लापता लोगों की खोज और पहचान की प्रभावी विधियों में उल्लेख्नीय बृद्धि हुई है जिसमे फॉरेंसिक साइंस ,डीएनए  विश्लेषण ,उपग्रह मानचित्र और इमेजनरी ,तथा जमीन भेदने वाला रडार शामिल है | 
सुरक्षा परिषद् के उक्त प्रस्ताव में शास्त्र संघर्ष से जुड़े पक्षों से सशस्त्र संगर्ष के बाद मृतकों की तलाश करने ,उन्हें बरामद करने,उनकी पहचान करने ,दफ़न स्थलों का मानचित्र बनाने ,मृतकों के शवों का सम्मान करने करने और उचित रूप में रख रखाव का आग्रह किया गया है |  
सुरक्षा परिषद् के उक्त प्रस्ताव के अवलोकन से स्पष्ट हो जाता है कि प्रस्ताव में शवों और उसके परिजनों या रिश्तेदारों के मानव अधिकारों के प्रति संघर्ष के दोनों पक्षों को सम्मान दिए जाने का आग्रह किया है साथ ही लापता, लोगों की खोज में वैज्ञानिक विधियों के रूप में फॉरेंसिक साइंस ,डीएनए  विश्लेषण ,उपग्रह मानचित्र और इमेजनरी तथा जमीन भेदने वाला रडार के उपयोग की वकालत की है |
फॉरेंसिक साइंस की बदौलत अपराधी को सजा दिलाकर पीड़ित के मानव अधिकारों को संरक्षित किया जाता है उसी तरह अभियुक्त के निर्दोष साबित होने पर अभियुक्त की स्वतंत्रता और न्याय प्राप्ति के अधिकार का संरक्षण होता है | 
अनेक मामलों में जानबूज कर की गयी आगजनी और हत्याओं को दुर्घटना का रूप दे दिया जाता है लेकिन फॉरेंसिक साइंस के उपयोग से की जाने वाली जांच पड़ताल से दूद का दूध और पानी का पानी हो जाता है | आगजनी या ह्त्या करने वालों का पता चल जाता है तथा पीड़ितों को फॉरेंसिक साइंस की बदौलत छतिपूर्ति संभव हो पाती है | 

शवों /मृतकों का सम्मान और उचित व्यवहार का मानव अधिकार  

विश्वभर में अनेक उदाहरण उपलब्ध हैं जिनमे कब्रों में दफ़न लोगों को उत्खनन द्वारा निकाला गया और उनकी फॉरेंसिक साइंस के तहत जांच की गयी और उसके बाद उन शवों की पहचान होने पर वे उनके परिजनों और रिश्तेदारों को सौंपे गए जिससे वे अपनी रीती रिवाज के साथ उनका अंतिम संस्कार कर सके | मृत्यु या ह्त्या के बाद भी उनके शवों को सम्मान दिया जाना पीड़ितों के परिवारीजनों और रिश्तेदारों को दर्द भरा सकून देता है जिससे उन्हें भी गरिमा के अधिकार का अहसास होता है |
सर्वोच्च न्यालय की विधि व्यवस्था आश्रय अधिकार अभियान  बनाम यूनियन ऑफ़ इंडिया, ए आई आर २००२ एस सी ५५४  में सड़क पर मरने वाले आश्रयहीन व्यक्तियों के अदावाकृत  शवों को उनके धर्म के अनुसार रीति रिवाज  से अंतिम संस्कार के अधिकार को स्थापित किया गया है | 
फॉरेंसिक साइंस और मानव अधिकारों के बीच अंतर्रसम्बन्धों के बारे में जानकर आप आश्चर्यचकित होंगे कि स्पेन में हिंसा के इतिहास को चुनौती देने के लिए एक बहुत व्यापक फॉरेंसिक साइंस -आधारित मानवाधिकार आंदोलन खड़ा हो गया | इस आंदोलन के उद्देश्यों में परिवार के मारे गए या लापता परिजनों को खोजने,उन्हें वापस लाने और उनको पुनः दफनाने में सहायता करना और राज्य के अत्याचारों और नरसंहार के समय घटित घटनायों को वैज्ञानिक तथ्यों से पुष्ट करना शामिल था | 
सही मायने में यह एक अधिकार आधारित वैज्ञानिक आंदोलन था जो कि अतीत की हिंसक और भीभत्स कहानियों को उजागर करने पर आधारित था | इस आंदोलन में मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के लिए अवशेषों को प्राप्त करना और विज्ञान के सुस्थापित सिद्धांतों का उपयोग सुनिश्चित कर उनकी पहचान कराना था | यह अत्यधिक दुरूह कार्य था | शव परीक्षण भी फॉरेंसिक साइंस का एक विषय है | 
इस आंदोलन की खास  बात यह थी कि इस आंदोलन में फॉरेंसिक साइंस अर्थात विज्ञान को परिवारों के मानव अधिकारों की प्राप्ति का एक सशक्त माध्यम बनाया गया | जिसकी की बदौलत अर्जेंटीना में डीएनए परीक्षण से कम से कम 130 लापता बच्चों की पहचान संभव हो सकी
जिन परिवारों से उनके परिजन लापता होते हैं उनके पता न लगने तक परिवारीजन हमेशा शोक में डूबे रहते हैं  और उनके मिलने का इंतज़ार ख़त्म नहीं होता है | इस दौरान परिवारीजन अपने प्रियजनों का अपनी आस्था और परम्पराओं के अनुसार अंतिम संस्कार के अधिकार से वंचित रहते हैं और उनके इस इन्तजार को अनेकों मामलों में समाप्त किया है फॉरेंसिक साइंस के उपयोग ने | 
भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने विधि व्यवस्था पंडित परमानंद कतरा बनाम भारत संघ ,१९९५ (३)एस सी सी २४८ में स्थापित किया है कि,"भारत के संविधान के अनुछेद २१ के तहत सम्मान और उचित व्यवहार का अधिकार न सिर्फ जीवित व्यक्ति को है बल्कि उसकी मृत्यु के बाद उसके मृत शरीर को भी उपलब्ध है |"
इलाहाबाद उच्च न्यायालय की विधि व्यवस्था रामजी सिंह मुजीब भाई बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य ,(२००९)५ एआईआईऐलजे ३७६  में  माना गया कि भारत के संविधान के अनुछेद २१ में "व्यक्ति" शब्द में एक मृत व्यक्ति भी समाहित है और सम्मान के साथ जीवन के अधिकार का विस्तार इस प्रकार किया जाना चाहिए कि उसमे उसके मृत शरीर को भी उसकी परंपरा,संस्कृति और धर्म के अनुसार सम्मान दिया जाए, जिसका वह हकदार होता है तथा समाज को मृतक के प्रति किसी प्रकार का अपमान करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है | 
भारत के राष्ट्रीय विधायन और विधि व्यवस्थायों  में ही नहीं बल्कि अंतराष्ट्रीय स्तर पर भी संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग ,संकल्प २००५ /२६ ,१९ अप्रैल २००५ , में मानव अधिकार और फॉरेंसिक विज्ञानं पर एक प्रस्ताव में, संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग ने "मानव अवशेषों के सम्मानजनक तरीके से निपटाने के महत्व, जिसमे उनका उचित प्रबन्धन और निपटारा शामिल है, तथा साथ ही परिवारों की आवश्यकताओं के प्रति सम्मान" को रेखांकित किया गया है |  
उपरोक्त से स्पष्ट है कि न सिर्फ जीवित व्यक्ति को गरिमा का अधिकार प्राप्त है बल्कि मृत शरीर को भी जीवित व्यक्ति के सामान गरिमा का अधिकार प्राप्त है |    

फोरेंसिक साइंस  का तात्पर्य एवम क्षेत्र 

फोरेंसिक साइंस की आधुनिक और उत्कृष्ट परिभाषा के अनुसार कानूनी उद्देश्यों को पूरा करने के लिए उपयोग में लाए जाने वाला कोई भी विज्ञान फोरेंसिक विज्ञान है। फॉरेंसिक साइंस या न्यायालयीय विज्ञान मुख्य रूप से किसी आपराधिक घटना या अपराध की जांच तथा उसका विश्लेषण करने के लिए वैज्ञानिक सिद्धांतों औरअत्याधुनिक प्रौद्योगिकी के उपयोग से संबंधित है। फॉरेंसिक वैज्ञानिक अपराध स्थल से एकत्र किए गए सबूतों/सुरागों को अदालत में प्रस्तुत करने के वास्ते ग्राहीय साक्ष्य के तौर पर इन्हें परिवर्तित करने का प्रयास करता है।
अर्थात यह विज्ञान आपराधिक घटनाओं की जांच में वैज्ञानिक  विधियों का उपयोग करता है | जिससे आपराधिक घटना से सम्बंधित तथ्यों की पुष्टि सटीकता के साथ हो सके | एक फॉरेंसिक साइंटिस्ट किसी प्रकरण से सम्बंधित जटिल तथ्यों की उपस्थिति के बाबजूद एक निश्चित सटीकता के साथ उसके समक्ष आने वाले  प्रश्नो का उत्तर दे सकता हैं | यह विज्ञान आपराधिक न्याय व्यवस्था में समाज और मानवता के विरुद्ध होने वाले जघन्य अपराधों में अत्यधिक सटीक और ग्राहीय  साक्ष्य उपलब्ध करती है | इस विज्ञान का मूलमंत्र है सत्य की खोज करना | 
समाज में अनेक आपराधिक घटनाएं ऐसी होती है जो किसी की उपस्थिति में नहीं होते हैं अर्थात जिसके कोई प्रत्यक्ष सबूत नहीं होते है | ऐसी स्तिथि में अपराधी को पहचान कर घटना से सटीकता से जोड़ना तथा अपराधी को सजा दिलवाना सम्पूर्ण आपराधिक न्याय व्यवस्था के लिए कोई आसान कार्य नहीं होता है | बस यही वह स्थति होती है जहाँ आपराधिक न्याय व्यवस्था का ध्यान फॉरेंसिक साइंस की ओर जाता है |
फॉरेंसिक विज्ञान के तहत घटना स्थल पर मौजूद सुबूतों ,जैसे कि मृतक का शव,खून के धब्बे,वीर्य,नाखून,बाल,अन्य वस्तुएं,अँगुलियों के निशान,हतियार तथा शरीर पर लगे गोलियों के निशान तथा उन पर लगा गन पाउडर आदि,  के अतिरिक्त अन्य शारीरिक, रासायनिक और जैविक तथ्यों का संकलन किया जाता है और आवश्यकता अनुसार प्रयोगशाला में उन नमूनों का उपयोग किया जाता है | जिसके परिणाम स्वरुप विश्लेषण के आधार पर सटीक जानकारी, तथ्यों औरअपराधियों की पहचान की जाती है | 
न्याय और मानव अधिकार संरक्षण के लिए किसी आपराधिक घटना या दुर्घटना के तथ्यों के सम्बन्ध में सटीकता, पारदर्शिता और निष्पक्षतापूर्ण जानकारी का होना आवश्यक है और यह जानकारी एकत्रित होती है फोरेंसिक साइंस में उपलब्ध उन्नत तकनीकी और वैज्ञानिक तरीकों के उपयोग से |
इस विज्ञान का मुख्य उद्देश्य न केवल दोषियों को सजा दिलाना है बल्कि बल्कि निर्दोष व्यक्तियों को उनके विरुद्ध हो रहे अन्याय से बचाना भी है | न्यायालय में इन साक्ष्यों के स्वीकार किये जाने योग्य होने पर अपराध के दोषी को सजा मुकर्रर होती है या निर्दोष होने की स्तिथि में बाइज्जत मुक्त कर दिया जाता है | 
साक्ष्य विहीन मुकद्द्मों में न्यायालय का निर्णय मुख्य्तया फॉरेंसिक साइंस द्वारा इकट्ठे किये गए सबूत के सम्बन्ध में निकाले गए निष्कर्षों पर ही निर्भर करता है | इस विज्ञान द्वारा न्यायालय को किसी अपराध के सम्बन्ध में सटीक जानकारी मिलती है जो आपराधिक न्याय व्यवस्था को अधिक प्रभावी और पारदर्शी बनाती है खासकर जब न्यायालय के समक्ष अँधा मामला होता है| अर्थात मामले में निर्णय लेने के लिए किसी प्रकार के साक्ष्य उपलब्ध नहीं होते है लेकिन सबूत के रूप में वैज्ञानिक साक्ष्य उपलब्ध होने की सम्भावनाये होती हैं |इससे वर्तमान न्याय प्रणाली में फॉरेंसिक साइंस की भूमिका का अंदाजा बखूबी लगाया जा सकता है | 
फोरेंसिक साइंस का विस्तार आज बहुत व्यापक तथा एक बहु-विषयक क्षेत्र के रूप में हो चुका है। वर्तमान और भविष्य की चुनौतियों के चलते आये दिन इस क्षेत्र में व्यापक विस्तार हो रहा है | फोरेंसिक विज्ञान में फिंगरप्रिंट से लेकर फोरेंसिक मनोविज्ञान, फोरेंसिक नृविज्ञान, फोरेंसिक ओडोन्टोलॉजी, फोरेंसिक पैथोलॉजी, फोरेंसिक जीवविज्ञान और सीरोलॉजी,फोरेंसिक रसायन विज्ञान, फोरेंसिक भौतिकी, फोरेंसिक कीट विज्ञान, विष विज्ञान, डीएनए विश्लेषण, डीएनए फिंगरप्रिंटिंग, डिजिटल फोरेंसिक, फोरेंसिक इंजीनियरिंग, फोरेंसिक बैलिस्टिक, फोरेंसिक अकाउंटिंग, प्रश्नगत दस्तावेज, फोरेंसिक पोडियाट्री, फोरेंसिक भाषाविज्ञान और वन्यजीव फोरेंसिक तक कई तरह के विषय शामिल हैं जो उसके बहु-विषयक होने की स्पष्ट गवाही देते हैं | 

न्यायालय में फॉरेंसिक साक्ष्य का महत्त्व 

फॉरेंसिक साइंस के उपयोग से संकलित सबूतों के सम्बन्ध में यह आवश्यक नहीं कि न्यायालय हर मामले में उन्हें साक्ष्य के रूप में स्वीकार कर ले | यह न्यायालय के विवेक पर निर्भर होता है कि फॉरेंसिक साइंस के द्वारा किसी घटना के सम्बन्ध में जांच के नतीजों को स्वीकार करे या ना करे | 
यदि फॉरेंसिक साइंस के नतीजों को किसी न्यायालय द्वारा स्वीकार कर लिया जाता है तो वह न्यायालय के समक्ष उपस्थित प्रकरण में साक्ष्य का रूप धारण कर लेता है तथा वह न्यायालय द्वारा दिए जाने वाले निर्णय का आधार बनता है | 
यद्यपि १ जुलाई २०२४ से पहले फॉरेंसिक साइंस के तहत संग्रह किये गए सबूत भारतीय साक्ष्य अधिनियम,१८७२ की धरा ४५ के अधीन विशेषज्ञ की राय के तहत आते थे परन्तु उक्त अधिनियम के समाप्त किये जाने के बाद लाये गए नए भारतीय साक्ष्य अधिनियम,२०२३ की धरा ३९ में भी विशेषज्ञ की राय को सम्मिलित किया गया है | 
फॉरेंसिक साइंस के सबूत स्वतः ही साक्ष्य का रूप धारण नहीं करते हैं बल्कि उन सबूतों के सम्बन्ध में उस फॉरेंसिक साइंस विशेषज्ञ की जिसने सबूतों का संकलन या उनकी प्राप्ति के के बाद वैज्ञानिक विश्लेषण किया है उसकी मुख्य-परीक्षा और प्रति-परीक्षा के बाद ही वे सबूत साक्ष्य में बदलते है अन्यथा की स्थति में उस फॉरेंसिक साइंस के सबूत का भी कोई महत्त्व नहीं होता है |
ऐसी अपराधिक घटनाओं, जिनके सम्बन्ध में चच्छुदर्शी साक्ष्य उपलब्ध नहीं होते है, वहां अपराधियों को सजा दिलाने या निर्दोषों को दोषमुक्त करने के लिए परिस्थितिजन्य साक्ष्य के अलावा एक मात्र विकल्प के रूप में फॉरेंसिक साइंस का महत्त्व अत्यधिक बढ़ जाता है | क्यों कि कानूनी प्रक्रिया में भौतिक साक्ष्य अत्यधिक महत्व के होते हैं  साक्षी की तुलना में भौतिक साक्ष्य में हेरफेर करना मुश्किल होता है तथा ये साक्ष्य अत्यधिक भरोसेमंद, प्रमाणिक तथा वैज्ञानिक समुदाय द्वारा स्वीकृति प्राप्त होते है |
न्याय और मानव अधिकार संरक्षण के लिए किसी आपराधिक घटना या दुर्घटना के तथ्यों के सम्बन्ध में सटीकता, पारदर्शिता और निष्पक्षतापूर्ण जानकारी का होना आवश्यक है और यह जानकारी एकत्रित होती है फोरेंसिक साइंस में उपलब्ध उन्नत तकनीकी और वैज्ञानिक तरीकों के उपयोग से, जो किसी भी न्यायालय में किसी प्रकरण में निर्णय और आदेश देने के लिए आवश्यक है |  

फोरेंसिक साइंस का भारतीय परिदृश्य 

वर्तमान समय में न्याय प्रणाली में आये दिन अनेक आमूलचूक परिवर्तन हो रहे हैं | जिसके कारण भारत में अपराधों की जांच प्रक्रिया के दौरान साक्ष्य संकलन में फॉरेंसिक साइंस की भूमिका अत्यधिक महत्वपूर्ण हो गयी है | फॉरेंसिक साइंस को हिंदी भाषा में न्यायिक या न्यायालयिक विज्ञान भी कहा जाता है | यह विज्ञानं किसी आपराधिक घटना की तह तक जाने का अवसर प्रदान करती है | 
भारतीय न्याय व्यवस्था में फोरेंसिक विज्ञान का उपयोग भारतीय साक्ष्य अधिनियम,1872  के लागू होने के साथ ही  शुरू हो गया था। इस अधिनियम ने भारतीय न्यायालयों में वैज्ञानिक साक्ष्य की ग्राहीयता को मान्यता प्रदान की। आपराधिक जांचपड़ताल में वैज्ञानिक तरीकों के उपयोग के बढ़ने के साथ ही भारत में फोरेंसिक प्रयोगशालाओं की संख्या में इजाफा हुया है लेकिन न्यायालयों में लंबित मुकदद्मों की तुलना में अभी भी फोरेंसिक प्रयोगशालाओं और  फॉरेंसिक विज्ञान में में कुशल मानव संसाधन की अत्यधिक कमी है | 
इस बात की तस्दीक होती है फॉरेंसिक साइंस पर नयी दिल्ली में आयोजित एक वेबिनार से | अगस्त, २०२० में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग,इंडिया द्वारा भारत में फॉरेंसिक साइंस  की स्थापना और सम्बंधित मुद्दों पर आयोजित वेबिनार की समाप्ति इस निष्कर्ष के साथ हुई कि भारत में फॉरेंसिक लैब्स और उनके सञ्चालन के लिए पर्याप्त संख्या में मानव संसाधन की कमी है | 
केंद्रीय गृह मंत्री श्री अमित शाह ने, वर्ष २०२३ में गुजरात के गाँधीनगर में राष्ट्रीय फॉरेंसिक विज्ञानं विश्वविद्यालय (NFSU) के ५ वे अंतर्राष्ट्रीय अपराध विज्ञान सम्मलेन को सम्बोधित करते हुए कहा कि प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में ऐसी व्यवस्था की गयी है कि ५ वर्षों के बाद देश को हर वर्ष ९ हजार से अधिक वैज्ञानिक अधिकारी और फॉरेंसिक विज्ञान विशेषज्ञ मिलेंगे |  
लेखक उक्त वेबिनार में आये सुझावों में से एक महत्वपूर्ण सुझाव को पाठकों के साथ साझा कर रहा है और यह सुझाव था एकीकृत बीएससी (फॉरेंसिक) एलएलबी में एक अलग पाठ्यक्रम के रूप में फॉरेंसिक क़ानून की पढ़ाई शरू करना | इस सुझाव पर अमल करते हुए उत्तर प्रदेश स्टेट इंस्टिट्यूट ऑफ़ फॉरेंसिक साइंस (UPSIFS) के संस्थापक निदेशक डॉ जी के गोस्वामी, (IPS) ने इंस्टिट्यूट में एकीकृत बीएससी (फॉरेंसिक) एलएलबी (ऑनर्स) का पाठ्यक्रम भारत में संभवतः सर्वप्रथम प्रारम्भ कराकर न्याय और मानव अधिकार संरक्षरण की दिशा में मानव अधिकार आयोग की अनुसंसा का अनुसरण किया है |
फॉरेंसिक विज्ञान में डीएनए फिंगरप्रिंट के महत्त्व को समझते हुए एनडीए सरकार द्वारा डीएनए प्रौद्योगिकी (उपयोग और अनुप्रयोग)विनियम विधेयक,२०१९ को लाया गया लेकिन बाद में इसे वापस ले लिया गया है |  
कानून के क्षेत्र में आपराधिक न्याय प्रणाली की वर्तमानआवश्यकताओं को देकते हुए भारत में मुख्य रूप से भारतीय दंड संहिता, १८६० ,दंड प्रक्रिया संहिता ,१९७३ ,और भारतीय साक्ष्य अधिनियम ,१८७२ को समाप्त कर दिया है | इनके स्थान पर नए सिरे से क्रमशः तीन नए कानूनों भारतीय न्याय संहिता,२०२३,भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता ,२०२३ तथा भारतीय साक्ष्य अधिनियम,२०२३ को भारतीय संसद द्वारा पास करा कर १ जुलाई, २०२४ से लागू कर दिया गया है | 
कहना न होगा कि आपराधिक न्याय व्यवस्था की वर्तमान आवश्यकताओं को ध्यान में रकते हुए उसको अधिक गतिशील ,सुदृढ़ और पारदर्शी बनाने के लिए भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता,२०२३ में आमूलचूक परिवर्तन किया गया है |इस परिवर्तन के तहत अधिनियम की धारा १७६(३) के तहत एक नया प्रावधान लाया गया है|  यह प्रावधान स्पष्ट करता है कि,
            "किसी ऐसे अपराध के जो सात वर्ष या अधिक के लिए दंडनीय बनाया गया है ,के होने से सम्बंधित पुलिस थाने का भारसाधक अधिकारी को कोई सूचना प्राप्त होती है तो अपराध में कारणों का पता लगाने के लिए न्याय सम्बन्धी दल को न्याय सम्बन्धी साक्ष्य संग्रह करने के लिए अपराध स्थल पर भेज सकेगा और कार्यवाही की वीडियो भी किसी इलेक्ट्रॉनिक साधन से बनाएगा जिसमे मोबाइल फोन भी शामिल है | " 
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता,२०२३ के उक्त प्रावधान के अवलोकन से प्रतीत होता है  कि सरकार द्वारा न्याय प्रक्रिया में तेजी लाने के लिए उपचार के रूप में फॉरेंसिक विज्ञान पर बहुत बल दिया जा रहा  है | 
यद्धपि वर्तमान में फॉरेंसिक विज्ञान प्रयोगशालाओं में पहले से ही अनेक मामले जांच की राह टोह रहे हैं | इन प्रयोगशालाओं में जांच के लिए भेजे गए नमूनों की समय से जांच न होने तथा उसके न्यायालय के समक्ष उपलब्ध न होने के कारण अनेक आपराधिक मुकदद्मे के निस्तारण में अत्यधिक विलम्ब होता है | जिसके कारण न्यायालयों पर भी अत्यधिक बोझ बढ़ता है | 

फॉरेंसिक साइंस पर न्यायिक दृष्टिकोण 

भारत में सर्वोच्च न्यायालय और विभिन्न राज्यों के उच्च न्यायालयों ने फॉरेंसिक साइंस के अलग -अलग विषयों पर न्यायिक दृष्टिकोण के रूप में अनेक विधि व्यवस्थाएँ दी है | जिनमे से कुछ महत्वपूर्ण विधि व्यवस्थायों का इस लेख में वर्णन किया जा रहा है | 
सर्वोच्च न्यालय की विधि व्यवस्था उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य बनाम सुनील और अन्य ,एआईआर २०१७ एस सी २१५० में स्थापित किया गया है कि किसी भी व्यक्ति को साक्ष्य के समर्थन के लिए फुटप्रिंट देने के लिए आदेशित किया जा सकता है किन्तु ये भारतीय संविधान के अनुछेद २०(३) के अधीन संरक्षण की गारंटी का उलंघन नहीं माना जाएगा |  
सर्वोच्च न्यायालय के केस लॉ एच पी एडमिनिस्ट्रेशन बनाम ओम प्रकाश, एआईआर १९७२ एस सी ९७५ में माननीय न्यायालय द्वारा स्थापित किया गया है कि "फिंगरप्रिंट विज्ञान एकदम सही विज्ञान है |"  
सर्वोच्च न्यालय  द्वारा दिए गए एक निर्णय जसपाल सिंह बनाम राज्य ,एआईआर १९७९  एस सी १७०८  में माननीय न्यायालय द्वारा स्थापित किया गया है कि "फिंगरप्रिंग पहचान का विज्ञान किसी गलती एवम संदेह को नहीं स्वीकार करता है |" 
विधि व्यवस्था रामा सुब्रमण्यम बनाम केरला राज्य ,एआईआर २००६ एससी ६३९ में मृतक के बैडरूम में रखी अलमारी पर अभियुक्त की उँगलियों के चिन्ह पाए गए तथा उसके बाल मृतका की साड़ी और कच्छी पर पाए गए | इस प्रकरण में न्यायालय ने अभियुक्त को ह्त्या का दोषी पाया | 
सर्वोच्च न्यालय द्वारा निर्मित विधि फूल कुमार बनाम दिल्ली एडमिनिस्ट्रेशन, (१९७५ )१ एससीसी ७९७ में एक डकैती के दौरान छुए गए कैशबुक के कुंडे पर अभियक्त के अंगूठे के निशान पाए गए जिन्हे विशेषज्ञ की सहायता से न्यायालय में सिद्ध किया गया | इस प्रकरण में सर्वोच्च न्यायालय द्वाराअभियुक्त की सजा को बरकरार रखा गया | इस विधि व्यवस्था से फॉरेंसिक साइंस के सम्बन्ध में अवर न्यायालय से लेकर सर्वोच्च न्यायालय तक का न्यायिक दृष्टिकोण स्पष्ट होता है | 
आसाम राज्य बनाम यू एन रालखोवा ,१९७५ सी आर एल जे ३५४ के प्रकरण में अभियुक्त द्वारा अपनी पत्नी और तीन पुत्रियों की ह्त्या कर दी थी और उनके शवों को १० फरवरी १९७० रात्रि में जला दिया गया | अगले दिन पुलिस द्वारा उनके शवों को कब्जे में ले लिया गया | अभुक्त के विरुद्ध ह्त्या करने का आरोप लगा | अवशेषों के कंकाल का परीक्षण किया गया | जिमे उनकी खोपड़ी और फोटो का मिलान किया गया | जिसमे पाया गया कि ४ कंकाल उसकी पत्नी और पुत्रियों के थे| उक्त आधार पर अभियुक्त को दोषसिद्ध किया गया | 
मुकेश एवम अन्य बनाम स्टेट एनसीटी ऑफ़ दिल्ली अवं अन्य ,ए आई आर २०१७ एस सी २१६१ , जिसे निर्भया केस के नाम से भी जाना जाता है | भारत की राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में बलात्कार की घटना घटित हुई | पीड़िता के शरीर पर आए दाँतों से काटने के निशानों ने अपराधी को पहचानने के लिए महत्वपूर्ण सुराग दिए | इन सुरागों के तहत पीड़िता को दाँतों से आई चोटों के फोटो लिए गए साथ ही पांच अभियुक्तों के दाँतों के पैटर्न लिए गए |
उक्त दोनों के मिलान के विश्लेषण से आये परिणामो से स्पष्ट हुया कि पांच अभियुक्तों में से पीड़िता को दाँत से काटकर चोट पहुंचाने वाला अभियुक्त राम सिंह था | इस प्रकरण में भारतीय साक्ष्य अधिनियम ,१९७२ की धरा ४५ के अधीन विशेषज्ञ की राय माननीय न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत की गयी थी | 
विश्वभर में फॉरेंसिक साइंस के सिद्धांतों के उपयोग से संकलित किये गए सबूतों के आधार पर न्यायालयों द्वारा अनगिनत आपराधिक प्रकरणों में निर्णय दिए गए हैं | जनके आधार पर न सिर्फ पीड़ितों को न्याय और उनके मानव अधिकारों का संरक्षण हुया है बल्कि अनेक  अभियुक्तों को झूठे प्रकरणों में दोषमुक्त घोषित किये जाने से उनको न्याय और उनके मानव अधिकारों का संरक्षण संभव हो सका है |  

निष्कर्ष 

फॉरेंसिक साइंस और मानव अधिकार एक-दूसरे के पूरक हैं। फॉरेंसिक साइंस और मानव अधिकारों का मेल एकीकृत और समग्र आपराधिक न्याय प्रणाली के लिए आवश्यक है | फॉरेंसिक साइंस  का सही और सटीक तरीके से उपयोग किया जाए तो यह विधा परिस्थिति अनुसार अपराध के पीड़ितों और अभियुक्तों दोनों को न्याय दिलने और मानव अधिकारों की रक्षा में सहायता करती है। जब आपराधिक न्याय व्यवस्था फॉरेंसिक साइंस के सिद्धांतों का पालन करते हुए संकलित किये गए सही सबूतों के आधार पर निर्णय लेती है, तो यह न्याय और मानव अधिकारों की सुरक्षा में अत्यधिक सहायक होती है।
फॉरेंसिक साइंस और मानव अधिकारों के एकीकृत आंदोलनों और मिशनों ने  विश्व के अनेक देशों में फॉरेंसिक साइंस के सिद्धांतों का उपयोग करके मानव अधिकार उलंघन से पीड़ित असंख्य  लोगों  के आँसू  पौछे है तथा उन्हें न्याय और उनके मानव अधिकारों का संरक्षण  कराया है  
फॉरेंसिक विज्ञान के माध्यम से संकलित सबूतों का साक्ष्य के रूप में सही समय तथा सही उपयोग करके न्यायालय की प्रक्रिया में तेजी लाकर समय से मुकदद्मों का निपटारा किया जा सकता है | जिससे न्याय जल्दी सुलभ हो सकता है  | क्योंकि न्याय में देरी न्याय से इंकार के सामान होता है | 
फॉरेंसिक साइंस का बिना किसी दुराग्रह के सही और निष्पक्ष उपयोग मानव अधिकारों की रक्षा में महत्वपूर्ण योगदान होता हैं। इसलिए, एक स्वस्थ्य और मजबूत लोकतंत्र बनाये रखने के लिए आपराधिक न्याय व्यवस्था में मानव अधिकार पहुंच के सिद्धांत के तहत फॉरेंसिक साइंस का उपयोग करते समय मानव अधिकारों का सम्मान,संरक्षण और पूर्ति किया जाना आवश्यक और प्रथम शर्त है | 
विशेष रूप से भारतीय सन्दर्भ में उम्मीद की जानी चाहिए कि भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता,२०२३ की धारा १७६(३) के तहत फॉरेंसिक साइंस के लिए पर्याप्त मूलभूत ढांचा, जिसमे उसके उपयोग हेतु कुशल मानव संसाधन का निर्माण और पूर्ति शामिल है, की जल्द से जल्द पुख्ता व्यवस्था को कागजो से उतार कर अभ्यासिक रूप प्रदान किया जाएगा |  








 
 



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